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यहां और
अब
धरती की हर उम्मीद पूरी करने से पहले प्रकृति
कुछ धीमी आहटों से धरती को एक इशारा करती है। जैसे पौधों में कलियों का आना
इस बात का सबूत है कि फूल अब खिल के ही रहेंगे। प्रकृति के कुछ नियम है
उन्हें कोई तोड़ नहीं सकता है। उसे जो भी करना होता है उधर ही धरती पानी आग
आसमान हवा सब अपना रुख कर लेते है।
सुबह के सात बज रहे थे। उस समय मेनका अपने घर के आंगन में लगे पौधों में
पानी डाल रही थी। सहसा तभी उसे घर के बाहर से आ रही एक जानी पहचानी सी आवाज
सुनाई दी।
“मेनका दरवाजा खोलो मैं पाराशर.. “ मेनका को देर नहीं लगी आवाज को पहचानने
में । मेनका ने एक जोर से आवाज दी।
“आई..” मेनका ने जैसे ही गेट खोला बाहर पाराशर खड़ा था। आश्चर्यचकित मेनका
के मुंह से आवाज निकल गई “पाराशर तुम..”
“आप भी न मेनका जी। “
“डाकिये रोज़ थोड़े ही आते हैं। “ पाराशर के मुंह से अपना नाम सुनते ही
मेनका के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
“अब बाहर ही खड़े रहोगे क्या या अन्दर भी आओगे। “ मेनका बोली।
“आज तो यकीन ही नहीं हो रहा है मैं मेनका के सामने खड़ा हूँ। “ पाराशर ने
मेनका के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा और सोचा प्रेम के गणित के सवाल हल
करना हर किसी के बस में कहाँ होता है। विरले ही ये सवाल हल कर पाते हैं।
भीतर आकर पाराशर एक कुर्सी पर बैठ गया और घर के चारों तरफ नजरें घुमाते हुए
मेनका से बोला --
“सुकन्या बेटी और कनिष्का बहू नजर नहीं आ रही। “
“अरे हां बहुत दिनों से रट लगाये थीं सो दोनों आगरा घूमने गई है। एक सप्ताह
हो गया है एक-दो दिन में आने वाली हैं। “
“ ह्म्म”
“पाराशर समय -समय की बात है जैसे अब बहुयें और बेटियां अकेले घूम रही है।
वो भी एक छोटे से गाँव में रहकर। ये सब हमारे नसीब कहा था। घूमना फिरना तो
सपना ही रह गया। “
“मेनका मुझे कुछ अजीब - सा लग रहा है अभी नई शादी हुई है और सिकंदर के
वजाये कनिष्का बहू और सुकन्या बेटी साथ-साथ घूमने गई हैं। चलो जो भी है
वैसे बेटे सिकंदर के क्या हाल-चाल है। “
“वैसे तो ठीक ही है लेकिन जब से शादी हुई है ऐसा लग रहा है कुछ मुझसे छिपा
रहा है अब माँ हूँ उसकी इतना तो समझती ही हूँ । “
“अभी नयी -नयी शादी हुई है उसकी इतनी फिक्र मत करो। वैसे कभी पूछा नहीं
उससे?”
“अभी तो नही!” मेनका कुछ फिक्रमन्द होते हुए बोली।
“अरे हां मैं तो भूल ही गयी कुछ खा पी लो सवाल पर सवाल दागते चले जा रहे
हो। बताया भी नहीं अचानक सालों बाद इस घर का रास्ता कैसे याद आ गया । “
“कोई खास बात नहीं मेनका अब नौकरी तो करनी ही पडेगी ... तुम्हारे नाम की एक
चिट्ठी थी बस वो ही देने आया हूँ। “ पाराशर ने तुरंत ही अपने थैले से वो
चिट्ठी निकाली और मेनका दे दी -- ये लो आप की चिट्ठी!
मेनका ने वो चिटठी ली और उसे पास ही में बनी एक अलमारी में रखते हुए बोली –
“चिट्ठी तो मैं बाद में भी पढ़ लॅूगी तुम कहाँ रोज घर आते हो अभी तो मैं
सिर्फ बातें करूंगी। “ कुछ टीसें जिंदगी से कभी निकलती ही नहीं खास कर पहले
प्यार की। पाराशर ने मेनका की आंखों में देखा और मुस्कुरा दिया उस दिन अन्य
दिनों की अपेक्षा मौसम भी कुछ बदला हुआ था । साथ ही हवा भी कुछ तेज चलने
लगी थी।
“ पाराशर चलो अब अंदर बरामदे मैं बैठते है यहां तेज हवा लग रही हैं । “
“जो हुक्म मेरे हुजूर..” पाराशर मुस्कुराता हुआ बोला।
“पाराशर पहले तो तुम्हें इतनी बातें नहीं आती थी अब उम्र के साथ-साथ बातें
भी करना सीख गये हो। “ बरामदे में डायनिंग टेबल लगी हुई थी वे दोनो उसी पर
बैठ गये।
“पाराशर एक बात बोलूं?”
“बोलो। “
“तुम्हारी कभी-कभी बहुत याद आती है। ”
“मैं भी एक बात बोलूं मेनका। “
“बोलो। “
“मुझे भी कभी-कभी तुम्हारी बहुत याद आती है। अब उम्र का तगाजा ऐसा है कि
हमारे हाथ बिल्कुल खाली है हम कुछ भी नहीं कर सकते अगले महीने पचपन साल का
हो जाऊंगा। रिटायरमेंट नज़दीक है। जिन्दगी जीने के लिए तुम्हारे लिए तो
तुम्हारे बच्चे तुम्हारा मकसद हैं। मैं किसके सहारे जिन्दगी काटूँगा। यही
समझ नही आ रहा अभी तो पोस्टमैन की नौकरी है काम धंधे में समय कट जाता है
आने वाले कल में क्या होगा कुछ भी पता नहीं। “
“पाराशर मैं भी क्या करती माँ-बाप की इकलौती औलाद थी उनका दिल नही तोडना
चाहती थी लेकिन हाँ कभी-कभी बहुत अफसोस होता है। अब न तो मां-बाप रहे और न
ही पति ने मायके की ज़मीन जायदाद रहने दी। सब अय्याशी और नशे में उड़ा दी।
पड़ोसियों का तो ये भी कहना है गांव की ही एक महिला से उसका चक्कर था। उसने
मेरे पति को बहुत लूटा। होनी को कौन टाल सकता है। पाराशर । लेकिन पाराशर
मैंने अपनी जिन्दगी की काली परछांई अपने बच्चों पर नही पड़ने दी। उनकी
परवरिश मैं कोई कमी नहीं आने दी। लेकिन यहाँ बता .... “ अचानक मेनका तैश
में आ गई – “ “ तू अपने अकेलेपन का मुझे क्यों दोष देता है? तू भी तो फट्टू
था मुझे भगा ले जाता तेरी कोई बात का मैं कभी मना कर पायी। “ बोलते बोलते
मेनका की आँखों में आँसू आ गये, पाराशर भी रोना चाहता था। लेकिन उसकी आँखों
में आँसू नहीं आए। शायद सूख चुके थे। पाराशर ने मेनका का ध्यान बँटाने के
लिए उस समय माहौल को बदलना ही उचित समझा ।
“चलो ये सब छोडो मेनका उस चिट्ठी को तो खोलकर पढ़ लो क्या लिखा है। किसने
चिट्ठी भेजी है। जाओं उसे लेकर आओ मिलकर पढते है। “
“अरे उस चिट्ठी को तो मैं भूल ही गई अभी लायी। “
“चिट्ठियों के भी अपने-अपने भाग्य है..”
“अभी तो उस चिट्ठी को यही रखा था। कहां चली गई” बुदबुदाते हुए मेनका उस
चिट्ठी को खोज रही थी जो उसने थोड़ी देर पहले ही अलमारी में रखी थी। आस-पास
उसने सब जगह नजरें दौड़ाई लेकिन वो चिटठी कही नजर नहीं आ रही थी।
“पराशर वो चिटठी नही मिल रही अभी यही तुम्हारे सामने ही अलमारी में ही तो
रखी थी। “
“ क्यों परेशान हो रही हो मेनका, अभी कुछ देर पहले तेज हवा भी चल रही थी
उडकर यही-कही गिर गई होगी। ध्यान से देखोगी तो मिल जायेगी। “
“नहीं मिल रही पाराशर। “
“हमारे घर कौन चिट्ठी भेजता है। सालों बाद कोई चिठ्ठी आयी थी। पता नहीं
क्या लिखा होगा उसमें....अब चीजें मुझसे बहुत खोने लगी है पाराशर।वैसे
पाराशर चिट्ठी पर तो भेजने वाले का नाम होता है कुछ याद है। “
“मेनका मैंने इस सब पर तो ध्यान नहीं दिया बस तुम्हारा नाम और तुम्हारे घर
का पता देखा था। अब इतना भी परेशान मत हो चिटठी मिल जाएगी। और हाँ मेनका
मुझे भी इजाजत दो कुछ घरों के मनीआर्डर है उन्हे भी देने जाना है। फिर किसी
दिन आता हूं। “
“ ठीक है पाराशर जाओ आ जाया करो दिल बहल जाता है। “ कुछ लोगों से विदा होते
समय जो दर्द उभरता है वो ताउम्र तक नही जाता है। पाराशर के जाते ही मेनका
ने सुकन्या को फोन मिलाया दोनों कब घर आ रही हो। सिकन्दर भी घर पर नहीं है
घर में अकेले दिल नहीं लगता जल्दी आ जाओ।
“हमारी ट्रेन परसों है मां बस एक दो दिन की बात है। कुछ परेशान सी लग रही
हो क्या बात है मां ?”
“परेशान तो नहीं मगर मूड खराब है आज डाकखाने से एक पत्र आया था पता नहीं
किसने भेजा था। अलमारी में ही रख दिया था पता नहीं कहाँ खो गया मिल ही नहीं
रहा। “
“मिल जायेगा माँ मैं आकर खोजती हूँ उसे। होगा तो घर में ही घर से कहां गायब
हो जायेगा। अब ज्यादा चिन्ता मत करो, भाभी से बात करोगी। “ बेटी सुकन्या ने
परवाह से फोन पर कहा।
“कनिष्का बेटा तुम दोनों नहीं हो घर सूना सा है। “
“मम्मी बस दो दिन। और हां मम्मी आपके लिए एक बहुत सुन्दर सी साडी खरीदी है
कुछ और मन हो तो बताओ..”
“ और तो कुछ नही बस पेठा और दालमोठ लाना मत भूलना वहाँ से..मुझे आगरा का
पेठा और दालमोठ बहुत पसन्द है। “
माँ का जब फोन आया उस समय सुकन्या और कनिष्का आगरा में एक कॉफी शॉप में
बैठी कॉफी पी रही थी।
“गलती कर दी हमने मां को भी हम अपने साथ घूमने यहां ले आते। “ कनिष्का
बोली।
“कोई नहीं अगली बार जहाँ भी चलेंगे साथ ले चलेंगे माँ को। कनिष्का मूवी
देखने चले आज शाम..? “ सुकन्या बोली।
“कौन सी मूवी चल रही है अभी सिनेमा हॉल में?”
“क्या फर्क पड़ता है कोई भी मूवी हो, पता नहीं आज मूवी देखने का बड़ा मन कर
रहा है अगर ये बात है सुकन्या मेरी जान तो शाम को पक्का चलते है। सुकन्या
मैं आज अपनी एक इंट्रेस्टिंग बात बताऊं। “ कनिष्का मुस्कुराते हुए बोली।
“हाँ...”
“मैं सिनेमा हॉल में कभी पॉपकॉर्न नहीं खाती पता है क्यों। “
“क्यों ?”
“मूवी देखते समय मेरे आस-पास की सीट पर जब भी कोई पॉपकॉर्न खाता है। खाते
समय उसकी वो चपर-चपर की आवाजें मुझे बहुत इरिटेट करती है। मेरा मूवी देखना
डिस्टर्ब हो जाता है और इतना गुस्सा आता है वो सारे पॉपकॉर्न खाने वाले के
मुँह में एक साथ उडेल दूं। “ सुकन्या को ये सब सुन बहुत हंसी आयीं और हँसते
हुए बोली अब तो आज पक्का पॉपकॉर्न खाऊँगी। और मूवी देखते हुए आपके कानों
पास जाकर कचर -पकर करूंगी।
“हां तो मेरे मुक्के खाने को भी तैयार रहना। “ कनिष्का हँसते हुए बोली।
बातों-बातों में कनिष्का ने महसूस किया सुकन्या कुछ उदास सी है। हर सवाल के
जवाब होते है लोगों के पास अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से उदासी का कोई
जवाब नही होता किसी के पास।
“सुकन्या मैं एक बात पूछूं?” सुकन्या ने सिर हिला दिया
“मैं कुछ दिन से देख रही हूं कि तुम किसी अपराध बोध से ग्रस्त सी लग रही
हो। कही ऐसा तो नही हम दोनों ने जो मिलकर फैसला लिया है तुम्हें उसका
पछतावा हो रहा है अभी कुछ भी नही बिगडा सुकन्या खूब सोच समझ लो। “
“कैसी पागलों वाली बात कर रही हो कनिष्का फैसला तो हम दोनों ने हीं सोचकर
लिया है अब डरना क्या बस एक बात खाये जा रही है। मां और भाई से नजरे कैसे
मिला पाऊँगी मेरे इकलौते भाई के लिए माँ ने कितने सपने देख रखे है। सोचती
हूँ दोनो को क्या जवाब दे पाऊँगी । सुकन्या में अन्दर से कमजोर हो जाऊंगी
प्लीज इन बातों को अवॉइड करो। “
“ मैंने भी अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया है। लेकिन तुम्हारी तरह इन सब का
मुझ पर कोई फर्क नही पड़ता मेरी जिन्दगी है में अपनी तरह से जिऊंगी । मैं
तो फैसला कर चुकी हूँ। “ कनिष्का एक साँस में बोल गयी। सुकन्या की आँखें
भरभरा रही थी बो सुबकती हुई कनिष्का के गले से लिपट गई।
“शुरुआत में इतना कमजोर हो जाओगी तो फिर कैसे काम चलेगा और तुम तो बखूबी
जानती हो रास्ता हमारा बहुत लम्बा है बहुत सफर करना पड़ेगा तब मंजिल आयेगी।
“ सुकन्या ने कोई जवाब नहीं दिया। दुनिया की कुछ चुप्पियां ऐसी भी होती है
जिसका मतलब ही रजामंदी होता है।
एक महीने पहले
उस शाम बहुत तेज बारिश हो रही थी। इत्तेफाक से उस समय घर पर सुकन्या और
कनिष्का ही थी। मेनका अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में शरीक होने गई थी
। सिकन्दर जॉब के सिलसिले में घर से बाहर था।
“भाभी आज ये बारिश क्या करके छोड़ेगी बंद होने का नाम ही नही ले रही। “
“मुझे बहुत डर लग रहा है। “
“डर तो मैं भी रही हूँ सुकन्या लेकिन कुछ डर ऐसे होते है जो बाहर न आये तो
ही अच्छा। “ कनिष्का मुस्कुराते हुए बोली। धीरे-धीरे अंधेरा बढ़ने लगा था
बिजली बारिश की वजह से शायद चली गयी थी । बारिश तो अपना शोर कर ही रही थी
साथ ही हवा भी तेज चलने लगी थी ऐसा लग रहा था कि आज बहुत बड़ा तूफान आने
वाला है तेज हवा से घर का मेन दरवाजा खुल गया था। सुकन्या उसको बन्द कर रही
थी जो हवा की वजह से ठीक से बन्द नही हो पा रहा था। कनिष्का ने सुकन्या को
आवाज दी -- भीग क्यों रही हो जल्दी इधर आ जाओ ठंड लग जायेगी। सुकन्या पूरी
तरह से भीग चुकी थी।
“जल्दी इधर आओ। “ कनिष्का खुद ही टॉवल से सुकन्या को पोंछने लगी – “सुकन्या
एक बात बोलूं। “
“ हाँ...”
“सिकन्दर से उम्र में दो साल बड़ी हो तुमने शादी क्यों नहीं की?”
“भाभी बस यूँ ही अभी शादी करने का मन नही है। “ ” सुकन्या मुझे शादी होकर
आये यहाँ इस घर में तीन महीने हो गये हैं। पता है यहाँ मुझे कौन सहारा देता
है बताऊँ..”
“बोलो भाभी“
“तुम्हारी आँखे.. “
“मुझे ऐसा लगता है जैसे ये बहुत कुछ मुझसे कहना चाह रही है। ”
“हो सकता है मैं गलत भी हो सकती हूं। लेकिन मेरा दिल कहता है मैं गलत नही
हूँ। “
“सही गलत का फर्क सभी को पता होता है मगर कभी-कभी हम अपने हिस्से का सही
गलत चुनकर फ्री हो जाते है। “ सुकन्या ने कनिष्का का हाथ थाम लिया। ---
भाभी..
अब कभी भी भाभी नहीं सिर्फ मेरे नाम से बुलाओगी कनिष्का ने सुकन्या का
दूसरा हाथ भी पकड़ लिया । दोनों के हाथों का कसाव बढ़ता चला जा रहा था। उस
समय हवा तो तेज चल ही रही थी बारिश भी मूसलाधार हो रही थी। तभी अचानक बहुत
तेज आवाज में आसमानी बिजली कड़कड़ाई जैसे प्रकृति भी इशारा कर रही हो एक नई
घोषणा की। समय नहीं लगा दो जिस्म एक जान हो चुके थे।
ठीक उसी समय कनिष्का को महसूस हुआ कि कोई परछाई ज़रूर थी जिसने ये सब देख
लिया था। लेकिन मन का वहम समझ उसने जाने दिया। सदियों से वहम का रहस्य सुलझ
ही नही पाया है। वैसे वो परछाई कोई और नहीं सिकन्दर ही था जिसने ये सब देख
लिया था। सधे पाँव चुप-चाप वो अपने घर से बाहर निकल आया। सुकन्या और
कनिष्का के बेसुध जिस्म देख उसके पैरों तले ज़मीन निकल गई उसे लगा जैसे कोई
पहाड़ उसके सिर से टकरा गया हो । बारिश के वजह से ज़मीन रपटीली हो गई थी। वो
ये सब अचानक देखकर खुद को नही संभाल सका फिसलकर ज़मीन पर गिर गया। असहाय
महसूस कर रहा था वो अपने आप को, वही ज़मीन पर एक तरफ करवट लेकर सिकुड़ गया।
बारिश की तेज बूंदे उसके शरीर पर लगातार गिरती रही। बारिश अब थोडी-थोडी
धीमी हो गई थी लेकिन उसे ऐसा लग रहा था। जैसे वो बारिश की हल्की बूँदे नही
कोई आग का लावा हो जो बूंद-बूंद कर उसके ऊपर टपक रहा है। खुद को संभालते
हुए सिकन्दर खड़ा हुआ। और बहुत देर तक पैदल चलता रहा उसे कुछ पता नहीं था
कि वो किधर और कहां जा रहा है। चलते-चलते उसके दिमाग में बहुत सारे ख्याल आ
रहे थे। कई बार तो उसका दिल किया सुकन्या और कनिष्का का गला ही घोट दे,
लेकिन फिर दूसरा ख्याल आ जाता कही तीसरा ख्याल आ जाता उसका दिमाग चकरा रहा
था उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वो थोडी ही देर में ही पागल हो जाएगा। उसने
बहुत सी कहानियां पढी थी फिल्में देखी थी दोस्तों से ऎसी गॉसिप सुनी थी। वह
जब भी किसी से ये कहानियाँ सुनता तो उसे बड़ी हंसी आती थी। उसे ये थोडी ही
पता था। ये कहानी उसके घर में ही घट जायेगी उसकी जिन्दगी में तूफान ला देगी
और वो भी कोई छोटा - मोटा तूफान नहीं ऐसा तूफान जिससे धरती हिल जाती है।
सिकन्दर अपने आप से बहुत देर तक लड़ता रहा धीरे-धीरे उसने अपने आप को
संभाला और सीधा वो पाराशर के घर गया अपनी मां के प्रेमी के घर। कुछ पते ऐसे
होते है वहाँ तभी जाया जाता है जब कोई बहुत अकेला पड़ जाता है। सिकन्दर ने
पाराशर के घर के बाहर से आवाज दी – “पाराशर चाचा मैं सिकन्दर... उस समय रात
अपने शबाब पर थी, पाराशर गहरी नींद में सो रहा था। आवाज सुन अचानक पाराशर
की नींद टूटी और घर का दरवाजा खोला – “ अरे सिकन्दर बेटा इतनी रात को सब
ठीक है न...”
“पाराशर चाचा सब ठीक ही तो नही हैं। “ सिकन्दर ने पाराशर का कंधा पकड़ लिया
और वो रोने लगा ।
“चाचा इस समय इतनी बड़ी दुनिया में मेरा कोई भी नहीं जिसके पास आज में आ
पाता आपका मुझे बचपन से प्यार मिला इसलिए यहां चला आया । “
“चाचा मेरा घर एक विचित्र से चक्रवात में फस गया है उस चक्रवात से से
निकलवा दो। मुझे पता है सब कुछ पता लगते ही मेरी मां बुरी तरह से टूट जाएगी
, मेरे और सुकन्या के लिए उसने बहुत से सपने देखे है । माँ के वो सारे सपने
बिखर जायेंगे। “
“बेटा मुझे पूरी बात तो बताओगें आखिर हुआ क्या?”
“दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं जो सुलझे नहीं..”
“आराम से मुझे बताओ आखिर हुआ क्या। “ सिकन्दर ने पाराशर को सारी बातें बताई
जो उसपे बीत चुकी थी। सारी बाते सुन पाराशर भी अचम्भे में था। वो सोच रहा
था कि दुनिया के ऐसे भी रिश्ते होते है ।
“सिकन्दर बेटा तुमने मुझपे भरोसा किया है अब चाहे जो भी हो मैं तुम्हारी
पूरी मदद करूँगा तुम्हे इस भंवर से बहुत जल्दी उबार दूंगा बस मुझे थोडा सा
समय दो...”
सिकन्दर फिर सुबककर पाराशर के गले लग गया । कहते है जब कोई रास्ता नजर नहीं
आ रहा हो तो ढांढस झूठे ही सही अपना पूरा काम कर जाते है। अगले ही दिन
पाराशर मेनका के घर पर पहुँच चुका था।
“पाराशर आज फिर अचानक..?आशिकी का भूत बुढ़ापे पर सवार हो गया है क्या? उस
दिन तो मैं घर पर अकेली थी आज तो बेटी बहू बेटा सब घर पर ही है। “
“मेनका आज कुछ बात ही ऐसी है सारे परिवार का साथ होना बहुत जरूरी है बहुत
जरूरी काम है आज बहुत कुछ बताना है आपको। आप के बच्चे कुछ फैसले ले रहे है
और मुझे पूरा भरोसा है कि वो अपने फैसलों से बहुत संतुष्ट है आज उन्हें
हमारे सहयोग कि बहुत जरूरत है अगर हम ऐसा कर पाये तो वे बहुत खुश रहेंगे। “
“पाराशर बात तो सब ठीक है तुम्हारी मगर फैसले है क्या आखिर घर मैं हो क्या
रहा है मुझे तो ऐसी किसी बात की कोई भनक तक नहीं है। “
“साथ ही एक बात मुझे बहुत अचंभित कर रही है पाराशर। मेरे बच्चों के फैसलों
में तुम कैसे सम्मिलित हो गये। पाराशर सच-सच बताओ आखिर बात क्या है?”
“ मेनका पहले तो बैठ जाओं मैं तुम्हे सब कुछ बताता हूँ कुछ दिन पहले
सिकन्दर मेरे घर पर आया था उसी ने सब कुछ बताया। मैं तो सबसे ज्यादा इसलिए
भी हैरान हूं कि सिकन्दर मुझ पर इस हद तक भरोसा करता है
इतना सब कुछ जानने के बाद वो सबसे पहले मेरे पास आया। “
“अब मुझे भी बताएंगे कुछ ...” मेनका थोडे गुस्से से बोली। पाराशर ने मेनका
का हाथ पकड़ लिया, मेनका अब थोड़ा ज्यादा गुस्से में आ गई।
“ पराशर ये पहेलियाँ क्यो बुझा रहे हो असली बात बताओ, अब मेरा दिल बहुत
घबरा रहा है । “ पाराशर ने वो सारी बातें मेनका को बताई जो सिकंदर ने
जैसे-जैसे उसे बताई थी। पाराशर ने अभी अपनी पूरी बात भी खत्म नही कर पाई थी
कि मैंनका जिस कुर्सी पर बैठी थी उससे मुंह के बल आगे की तरफ लुढ़क गई।
मेनका मूर्छित हो गई थी\, पाराशर भी घबरा गया। तभी पाराशर को पास ही रखी
हुई मेज पर पानी का एक आधा भरा हुआ गिलास नजर आया पाराशर ने उस पानी को
मेनका के मुंह पर उड़ेल दिया। मेनका को अब होश आ गया था
“मेनका तुम ठीक तो हो न....,मैंने बच्चो को अभी जान-बूझकर आवाज नहीं दी। “
“मैं तो ठीक हूँ मगर डाकिए तू ये क्या बक रहा है। “ पाराशर अंदर तक हिल
गया। मेनका पाराशर के लिये डाकिया शब्द किन्हीं खास मौकों पर ही यूज करती
थी।
“मेनका दुनिया बहुत आगे निकल आई है। “
“अरे भाड़ में जाये दुनिया ..मेरे सिकंदर की जिंदगी बरबाद हो जायेगी, चार
महीने भी नहीं हुए शादी को... ”
“ऐसे कैसे बरबाद हो जायेगी? सुकन्या बेटी के बारे में भी तो सोचो। मेनका
सिकन्दर अब दिल से चाहता है कनिष्का और सुकन्या जैसे चाहे जहां चाहे अपने
तरीके से अपनी जिन्दगी जी सकती है। रही बात सिकन्दर की मैं उसके लिए एक
अच्छी सी बहू ढूंढ लूंगा ये मेरा वादा है तुमसे। “
“तू और तेरे वादे ..” मेनका धीरे से बोली जो शायद पाराशर ने सुन भी नहीं
पाया। “पाराशर आश्चर्य तो ये है घर में इतना सब कुछ घट गया मुझे पता ही नही
चला, मेरी तो किस्मत ही ऐसी है। मायके में भी कोई नहीं उस पर प्यार भी
डाकिये से हुआ था जिसमें कूबत ही नहीं थी मुझे ब्याहने की। पति भी मन का
नहीं मिला सोचा था बच्चे इन कमियों को भर देंगे। लेकिन बच्चों ने भी ..”
मेनका बोलते बोलते रुक गई, पाराशर सर झुकाए मेनका की सब बातें सुन रहा था।
“पाराशर अब तू ही जिन्दा रखेगा मुझे। “ मेनका रोते-रोते पाराशर के गले लग
गई
“चलो सभी मिलकर बातें करते है। कुछ फैसलों में देर नहीं होनी चाहिए। “
पाराशर बोला।
“मां हम लोग एक साथ बैठकर क्या बात करने वाले हैं पाराशर चाचा भी आज यहां
है। “ सिकन्दर चला आया था।
“सुकन्या मैं तुमसे बहुत नाराज हूं। “
“क्या हुआ माँ?”
“कनिष्का को दोष मैं इसलिए नहीं दे रही कि उसको तो आये अभी चार महीने ही
हुए है। तुम्हें तो बचपन से पाला था एक बार भी नहीं बोला। “ सुकन्या को कुछ
भी समझ नही आ रहा था कि माँ क्या बोले चली जा रही है, अचानक इस घर में क्या
तूफान खड़ा हो गया। मगर कनिष्का माहौल को भांप चुकी थी। उसे उस रात की
परछांई वाली बात याद आ गई, जिसे वो अपना वहम समझ रही थी। चूकि सच हर सीमाओं
से परे होता है। उस रात इन्हीं लोगों में से कोई एक था जिसने सब कुछ देख
लिया था।
“मम्मी हमने कोई पाप तो नही किया। “ कनिष्का बोली
“भाभी क्या बोल रही हो आप....”
“सुकन्या अब छुपाने से कोई फायदा नहीं... यहाँ सभी को सब पता है हमारे बारे
में। सुकन्या जो अभी खुल के बात कर रही थी अचानक उसने माँ और सिकंदर से
नजरें चुरा ली पता नहीं क्यों उसे अब कोई अपराध बोध सा खाये जा रहा था।
सिकंदर से ये सब देखा नहीं गया।
“सुकन्या अब ऐसे मुंह बनाओगी तो कैसे काम चलेगा, मैं तो यही चाहूँगा कि तुम
और कनिष्का अपनी लाइफ अपने तरीके से जी सकती हो। माँ को या मुझे कोई
प्रॉब्लम नहीं है। और हां मेरे लिए बिल्कुल भी परेशान मत होना मैं बहुत
जल्द ही घर खुशखबरी देने वाला हूं। है ना पाराशर चाचा?”
“ मैं कल ही एक बहुत अच्छा सा रिश्ता सिकंदर के लिए लेकर आता हूं। मेरे
मित्र की ही बेटी और ये तो देखो कि इत्तफाक से वो लडकी कॉलेज में सिकंदर के
साथ ही पढ़ती थी। “ सुकन्या माँ के गले लग गई और कनिष्का सिकंदर की तरफ
आभार भाव से देखने लगी। पाराशर ने भी धीरे से मेनका की आंखों में झांका जो
बहुत ही संतुष्ट लग रही थी। संतुष्ट हो जाना भी अध्यात्म कहलाता है।
“मेनका अब मैं चलूं..और हां एक बात तो बताना भूल ही गया तुम्हें कि उस
चिट्ठी को अब मत खोजना वो तुम्हें घर में ढूंढने पर नहीं मिलेगी । याद है
पहले दिन जिसे मैं लेकर आया था। दरअसल जो भी मैंने तुम्हें आज बताया है,
पहले मैंने वो उस चिट्ठी में लिखा था। उस दिन तुमसे बात करते-करते मेरा मन
बदल गया था सोच चिटठी पढकर तुम बहुत ज्यादा परेशान न हो जाओ इसलिए उस
चिट्ठी को अलमारी से मैंने ही वापस अपने थैले में रख लिया था। उस दिन के
लिए माफ कर देना मेनका। “ मेनका हैरान सी पाराशर को जाते हुए देख रही थी।
खुशियों के सांचे भी सबके अपने अपने होते है सब कभी न कभी अपने हिस्से की
खुशियों ढूँढ ही लेते है।
एक महीने बाद
सिकंदर ने अपना बैग पैक किया और अकेला ही गोवा घूमने निकल गया। उसे अब अपनी
दुनिया नये सिरे से शुरू करनी थी। उसने इतनी खुशी अपनी जिन्दगी में कभी
महसूस नही की थी जितनी वो आज गोवा के एक तट पर लेटा हुआ महसूस कर रहा था।
उसे कनिष्का से कही सुहागरात वाली वो याद आ रही थी – जब कनिष्का गुम-सुम सी
बैड के एक कोने में बैठी थी। उसने कहा था --
“ये भी तुम्हारा ही घर है कुछ दिनों में सब ठीक हो जायेगा आपको पता भी नहीं
चलेगा। मायके में हो या ससुराल में। ये मेरा वादा है आपसे। “ शायद उसने
अपना वादा पूरा कर लिया था।
इधर पाराशर की दुनिया में सिर्फ मेनका थी। ये राज सिर्फ मेनका ही जानती थी।
हाँ ये बात और है ये राज कभी-कभी पानी से सींचते हुऐ अपने पौधो को मौन रहकर
बता दिया करती थी। कनिष्का के तो दोनो हाथों में लड्डू थे उसने तो सपने में
भी नही सोचा था उसकी लाइफ यू टर्न हो जाएगी लेकिन तकदीर बदलते देर कहाँ
लगती है। हां पता नहीं क्यों सुकन्या खुश तो थी मगर एक अजीब से सन्नाटे में
रहने लगी थी। खुद को पता नही किस अपराध का अपराधी मानने लगी थी। अक्सर घर
में बनी एक खिड़की के पास उदास सी बैठी रहती। सुकन्या को इस तरह देख
कनिष्का का मन कभी-कभी बहुत दुखता मगर उसे यह पता था
एक छोटे कदम से न जाने कितने पहाड़ चढ़े गए । न जाने कितनी यात्राएं पूरी
हुई। बस एक छोटे से कदम से..
- अवशेष चौहान
ग्राम व पो0 नौगांव
जिला-मैंनपुरी (उत्तर प्रदेश)
पिन न0 205265
मो: 9999868008
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