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रूह रंगे कैनवास

रोज़ की तरह नेहा का अलार्म स्नूज़-मोड पर सेट की गई कुछ अंगरेजी-इलेक्ट्रिक बीट्स पर उसको जगाने का पूरा प्रयास कर रहा था । ऊपर से तेज बारिश और बिज़ली कड़कने की ऐसी आवाज़ आई कि नेहा झट से उचक कर उठ गयी । मौसम देखकर उसे यह अहसास नहीं हुआ लेकिन जैसे उसने अपनी चादर-तकियों में छुपे फोन के अलार्म को बंद किया, बस अपने हाथों से सिर को पकड़ लिया था ।
“ ओह नो ! आज तो लेट नहीं होना चाहिए था । अगर पिंकी जल्दी आती तो डोर बेल से मेरी नींद खुल जाती....ये पिंकी भी ना....जब ज़रूरत होती है तभी नहीं होती। ”
नेहा का आज कॉलेज में बहुत ज़रूरी काम था । एग्जाम तो नहीं था लेकिन ऐसा मान लो कि फाइनल इयर का वो एसाइनमेंट जिसके लिए पूरे बैच को बेसब्री से इंतज़ार रहता है । इतना इंतज़ार कि सब स्टूडेंट उस सब्जेक्ट के कठोर प्रोफेसर की भी कोई बात नहीं टालते । नेहा मुम्बई के जे.जे.स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के बेचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स के फाइनल इयर में ही तो थी । आज के लाइव-स्केचिंग के लिए प्रोफ़ेसर ने विश्व प्रसिद्ध आर्टिस्ट को बुलाया है । बस नेहा को भी अन्य स्टूडेंट की तरह उसी क्षण का इंतज़ार था ।

नेहा ने तैयार होना शुरू ही किया था कि डोर बेल बजी । उसने स्कर्ट को हाथ में लेकर दरवाजा खोला । पिंकी बारिश में भीगी हुई दरवाजे पर खड़ी थी । उसकी छतरी उल्टी दिशा में जैसे अंगड़ाई ले रही हो और उसकी थरथराती आवाज़ –“ सॉरी दीदी ! मुझे तो लगा आप घर पर नहीं मिलोगे, कॉलेज चले गए होगे” पिंकी भी जानती थी कि नेहा उस पर कितना निर्भर रहती है । साफ़-सफाई, टिफिन पैक करने में ही नहीं बल्कि नेहा को लाउड डोर-बैल से जगाने से लेकर कॉलेज जाने से पहले उसकी फ्रेंच चोटी बनाने और छुट्टी के दिन ढेर सारी बातें करने में भी नेहा के लिए पिंकी उसकी मददगार रहती । नेहा और पिंकी की इस जोड़ी में कोई दखल देने वाला भी नहीं होता । नेहा को अकेला रहना ज्यादा पसन्द है और उसके ज्यादा दोस्त भी नहीं है । हाँ ! यह ज़रूर कह सकते हैं कि एक दोस्त ज़रूर है जिसके साथ वो अपने सारे एसाइनमेंन्ट साझा करती है । लो ! उसी का फोन आ गया । “हेल्लो नेहा ! मौसम को देखते हुए आर्टिस्ट ने बैक-आउट कर दिया है और सब स्टूडेंट को बोला गया है कि लाइव-स्केच के लिए वो अपना आर्टिस्ट खुद ही चुन ले” विक्रम नेहा को सूचित करता है । नेहा सोच विचार में डूब गयी ।

झाड़ू लगाते हुए पिंकी को एक ब्लैक एंड व्हाईट तस्वीर दिखती है । खिड़की की सलाखों से आती धूप फर्श पर बैठी एक लडकी पर पड़ती है । उसके पूरे शरीर पर काली पट्टियां धूप के हिस्से को बांटते हुए फर्श पर पसर गई है । लड़की के हिस्से में ना पूरी धूप है ना छाया । उसकी जिज्ञासा नेहा से सवाल कर ही लेती है –“ अरे दीदी ! ये पुरानी तस्वीर किसकी है ? मतलब आपके पास पुराने जमाने की ब्लैक एंड व्हाईट तस्वीर क्या कर रही है ”
“ पिंकी ! पहली बात तो यह पुराने ज़माने की तस्वीर नहीं है । यह तो हाथ से बने स्केच की तस्वीर है जिसमें कोई रंग नहीं है । इसे चारकोल से भरा हुआ है । इसे चित्रकला कहते हैं । यही आर्टिस्ट तो आज कॉलेज आने वाली थी लेकिन बारिश ने सारा काम खराब कर दिया । ” नेहा को यही पोज़ तो चाहिए था । रेफरेंस के लिए उसने कल प्रिन्ट निकलवाया था । लेकिन अब क्या फ़ायदा !!?? किसी काम का नहीं है ये पन्ना ।
“इसमें ऐसी क्या बड़ी बात है । ” पिंकी ने झाड़ू साइड में रखा और तस्वीर के मुताबिक़ अपने हाथों को चेहरे पर टिकाकर, आँखों को झुकाकर मूर्ति की तरह बैठ गई और फिर जोर-जोर से हँसने लगी । पिंकी ने अपना काम समेट कर नेहा के हाथों में वो तस्वीर थमा कर बोली –“ इसे संभाल का रखो नेहा ! तुम्हें ज़रूर मौक़ा मिलेगा इस तस्वीर को चित्र में उतारने का और आपका ब्रेकफास्ट टेबल पर रखा है । ”
“ अरे पिंकी रुक जाओ । ” नेहा अपने असाइंमेंट में ही खोई हुई थी । अचानक उसको विचार आया कि पिंकी उसकी आर्टिस्ट बन सकती है । नेहा ने पिंकी को रोक कर पूछा- “क्या तुम....मैं तुम्हें अपने कैनवास पर उतार सकती हूँ ?”
पिंकी हंस कर बोली –“क्या दीदी कैसा मज़ाक ....” और बच्चों जैसे नेहा ने पिंकी को अपनी बांहों के घेरे में ले ही लिया । मुम्बई की बारिश में कॉलेज की छुट्टी ने हमें आखिर सन्डे-फनडे का मौक़ा दे ही दिया है । नेहा का उत्साह खरल में अदरक-इलायची कूट रहा था और पिंकी की तसवीरों के विचार नेहा के मन में चाय के उबाल की तरह फूट रहे थे । चाय की चुस्कियों के साथ गप-शप भी सुनने लायक थी । इतनी बातें तो नेहा अपने कॉलेज की सहेलियों में भी नहीं कर पाती ।

“तस्वीर में रस का वही स्थान है जो शरीर में रूह का है । जिस प्रकार रूह के बिना इंसान का अस्तित्व संभव नहीं है, उसी प्रकार रसहीन चित्र को चित्रकला नहीं कह सकते । रस कैनवास की रूह है.....” नेहा धाराप्रवाह बोल रही थी ।
पिंकी नेहा की बात को बहुत ध्यान से सुन रही थी । उसके मन में रस को लेकर बहुत से विचार चल रहे थे ।
“ आखिर क्या है ये रस ? ” पिंकी ने नेहा से पूछ ही लिया ।
“साहित्य को पढ़ने सुनने या कैनवास को देखने से जो आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं । ” नेहा ने चाय का आख़िरी घूँट ख़त्म किया ।
पिंकी ने नेहा से फिर सवाल किया “तो फिर हम इसे रोचक बनाने के लिए क्या करें । मेरा मतलब मैं तो तैयार ही नहीं हूँ । अच्छे कपड़ों से भी तो रस आता होगा । ”
“ बिलकुल नहीं ! हर इंसान में खुदा होता है और खुदा में इंसान । मुस्सविर इन दोनों से परे जाकर कुछ खोजने की कोशिश करता है । कपड़ा जिस्म पर पहनाया जाता है, रूह पे नहीं और तुम्हें अपने काम में रूह खोजने की कोशिश करनी चाहिए । ऐसा मेरे प्रोफ़ेसर कहते हैं । तुम इस डार्क पर्पल साड़ी और ब्लैक ब्लाउज में अच्छी लग रही हो और कम्फर्टेबल भी और यही सबसे ज़रूरी भी है । बाकी जो तुम्हें करना है कहने को तो हम सब हर क्षण करते हैं । नाट्य-शास्त्र के मुताबिक़ रस नौ प्रकार के होते हैं । श्रृंगार रस, हास्य रस, करुण-रस, वीर-रस, रौद्र-रस, भयानक-रस, वीभत्स-रस, अद्भुत-रस और शांत-रस ” इन रस के साथ हमारे रुख भी बेहद विचित्र होते हैं । जैसे हर व्यक्ति का भाव प्रकट करने का रुख अलग-अलग हो सकता है और यही हर व्यक्ति को अद्वितीय बना देता है ।


पिंकी ने अपनी बैंगनी रंग की साड़ी के पल्लू को सेट करके अपने पेटीकोट में अड़ा दिया बिलकुल वैसे ही जैसे वो काम करने से पहले अपनी कमर कस रही हो । पिंकी अपना चेहरा छुपाने का प्रयास कर रही थी । वो कभी अपने बालों को खोलकर चेहरे के करीब लाती तो कभी अपने दोनों हाथों को चेहरे पर हौले से ले आती । उसके हाथों का गिल्ट का कंगन झूलकर कलाई से नीचे आ जाता और उसका फूलों का गज़रा उसकी अँगुलियों को छूने का प्रयास करता ।


“कुछ भी तो नहीं जम रहा” पिंकी मन ही मन खुद से बात कर रही थी । नेहा भी पिंकी को अपने मन मुताबिक़ आज़ादी देना चाहती थी । आखिर कला में जबरदस्ती या दबाव हो तो वो कैसी कला । चित्र तभी बोल सकता है जब वो आराम से कम्फर्टेबल पोश्चर में हो बिलकुल हमारी तरह ।

आपने भी तो यह ज़रूर ध्यान दिया होगा कि आपकी सबसे सुन्दर वही तस्वीर होती है जिसमें आप व्यवस्थित होते हैं लेकिन फोटोग्राफर ने कब आपका फोटो खींच लिया आपको पता ही नहीं होता ।
हाँ \! खासकर पिंकी को तो काफी देर मूर्ति बनकर भी रहना पडेगा । इसलिए संतुलन ज़रूरी है और संतुलन तभी मुमकिन है जब वह लम्बे समय तक एकदम नेचुरल आरामदायक पोज़ में बैठी रहे ।

पिंकी अपने कैनवास को सेट कर रही थी । ऑयल कलर और विभिन्न प्रकार के ब्रश, टर्पेंटाइन आयल, लिनसेड ऑयल, कलर प्लेट को वो जमा ही रही थी कि पिंकी ने पूछा “ क्या ये पोज़ ठीक है ? ” उसने अपने एक हाथ की कोहनी को मोड़कर अपने चेहरे को छुपा लिया था । कोहनी मोड़ते ही उसके कंगन छन्न-छ्न्नाक से हथेलियों की ओर सरक गए । अभी भी थोड़ा चेहरा तो दिख रहा था । नेहा ने पिंकी के भाव को समझते हुए अपने कैनवास का एंगल 45 डिग्री से बदल कर 90 डिग्री कर लिया । लो अब तुम्हारा चेहरा पूरी तरह से छुपा पा लिया है मैंने । नेहा ने पिंकी को अपने फोन से फोटो लेकर विश्वास दिलाया ।

नेहा ने पूरी पेंटिंग की प्रक्रिया टाइम-लैप्स पर रिकॉर्ड कर ली थी । इन्स्टाग्राम पर पोस्ट करते ही पेंटिंग और पिंकी दोनों को ही बहुत प्रशंसा मिलने लगी थी । कुछ दिन बाद तो वायरल हो चुकी थी पेंटिंग । सबकी टिप्पणी पिंकी की सुन्दरता पर थी । बिना चेहरा दिखाए भी कोई ख़ूबसूरत हो सकता है । इसका मतलब खूबसूरती को चेहरे से नहीं तोल सकते । “फिर यह सुन्दरता क्या है”- नेहा महसूस कर रही थी कि सुन्दरता वास्तव में खुद को स्वीकार करने और हमारी सहजता से उभरती है । जिस पल हम खुद को लेकर सहज होते हैं हम सुंदर महसूस करते हैं । नेहा के ख़याल आसमां में बादलों की तरह विचरण कर रहे थे । जब हम खुद को स्वीकार करते हैं तब हमारा आत्मविश्वास दूसरे लोगों को हमारी ओर आकर्षित करता है । शायद असली सुन्दरता यही है । ठीक वैसी ही पिंकी के आत्मविश्वास ने नेहा को यह विश्वास दिला दिया था कि यह कोई मामूली पेंटिंग नहीं है बल्कि यह तो अभी तक के फ़ाइनल ईयर कलेक्शन का मास्टर पीस बन सकता है । नेहा ने पिंकी को सारे कमेन्ट सुनाये । अपनी पेंटिंग की इतनी प्रशंसा पर नेहा ने अपने कॉलेज में पिंकी को फुल-टाइम आर्टिस्ट की सम्भावना के लिए सवाल किया । पिंकी ने पहले तो संकोच किया फिर हां कह दिया । अब पिंकी को भी उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार था ।


कुछ दिन बाद पिंकी को कॉलेज बुलाया गया । अपनी सेलरी जानकर वह बहुत खुश थी । सबसे पहले जब उसने नेहा को बताया तब नेहा ने कहा कि यह मेरा सबसे महत्वपूर्ण दिन है । तुम्हारी सुन्दरता और सरलता इस काम के लिए ही बनी है । मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम और आगे जाओगी । बस एक ही मुसीबत है अब ..... “मुझे सुबह कौन उठाएगा ”
दोनों जोर से हंसने लगे । “अरे दीदी किसने कहा कि अच्छी सेलरी देखकर मैं आपको भूल जाऊँगी...आपका भी यह फाइनल ईयर है....मैं हमेशा सुबह आऊँगी...आपको डोर बेल बजाकर उठाऊँगी..आपका सारा काम करके आपके साथ ही कॉलेज जाऊंगी ” पिंकी ने कहा तो नेहा ने उसे गले लगा लिया ।

वो दिन पिंकी और नेहा के ख़ास थे । नेहा को तो अब कॉलेज में भी सहेली मिल गयी थी । दोनों साथ में कैंटीन में लंच करते । चाय की टपरी पर भी अब नेहा अकेली नहीं थी । नेहा ने पिंकी का विक्रम से भी परिचय करवाया था । तीनो साथ में हैंग आउट करते थे । उनकी दोस्ती काफी अच्छी हो गयी थी ।

लेकिन कुछ दिन बाद विक्रम अचानक नेहा और पिंकी से दूर होने लगा था । कोई ना कोई बहाना बनाकर वह दोनों को इग्नोर करने लगा था । जाति-प्रथा प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बचपन से ही ऊँच-नीच, उत्कृष्टता-निकृष्टता के बीज बो देती है । विक्रम इन्हीं ख्यालों से जूझ रहा था । मरीन लाइन के किनारे आँखें मूंदकर लेटा था । उसकी लाल चेकदार शर्ट के नीचे काली टी-शर्ट झाँक रही थी । उसने अपना चश्मा उतार कर टी-शर्ट पर लटका लिया था । वह सोच रहा था कि नेहा को कैसे बताया जाए कि पिंकी के साथ इतना समय बिताना ठीक नहीं है लेकिन बताना तो पड़ेगा । उसे उम्मीद थी कि नेहा उसकी बात को समझेगी । आखिर वो उसका एक अच्छा दोस्त था । विक्रम को क्या पता था कि वह ऐसी सोच से नेहा को हमेशा के लिए खो भी सकता है । जब विक्रम ने नेहा को केफेटेरिया में बुलाकर अपनी बात समझाने का प्रयास किया । तब बस एक मिनट की ही बातचीत कह लो या फिर कॉलेज का वो आम दृश्य....नेहा के गुस्से में फेंकी गयी वो कोल्ड कॉफ़ी और उसका आखिरी जवाब सारे लड़के-लड़कियों को सुनाई दिया था “मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी विक्रम ! तुम एक आर्टिस्ट हो और आर्टिस्ट की एक ही जाति होती है - कला कहते हैं उसे ...एफ.वाई.आई. (FYI) (फॉर योर इनफार्मेशन)”
गुड बाय विक्रम !

अब तो नेहा और विक्रम की अगली मुलाक़ात की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी । कॉलेज की इस चर्चा ने पिंकी को नेहा से पूछने पर मजबूर कर दिया “ इतना गुस्सा क्यों नेहा ? विक्रम ने ऐसा क्या कहा दिया ” शायद पहली बार नेहा ने पिंकी से कुछ छुपाने की गांठ बांधी होगी । सच नहीं बताया नेहा ने... बस इतना कह कर दिया कि उसकी सोच अच्छी नहीं है और बस मुझसे सहन नहीं हुआ ।
पिंकी तेज रफ़्तार से आर्ट की दुनिया को समझने में लगी थी । कॉलेज की आर्ट-प्रदर्शनी के दौरान एक फिल्म डायरेक्टर ने पिंकी को एक ऑडिशन के लिए आमंत्रित किया । आज पिंकी काफी बेचैन महसूस कर रही थी । ऑडिशन का पता पूछते-पूछते जैसे उसने मुम्बई का पूरा रास्ता नाप लिया था । पहुंचते ही उसे एक वेटिंग-रूम दिखा जहां पर एक आर्टिस्ट इंतज़ार कर रही थी । पिंकी की बेचैनी देखकर आर्टिस्ट ने पानी ऑफर किया । पिंकी ने धन्यवाद कहते हुए कहा- “ तुम्हारी बोतल का रंग सुन्दर है ”
“ हाँ ! दिस इज माई फेवरेट कलर -न्यूड । न्यूड नेल-पॉलिश, न्यूड लिपस्टिक, न्यूड मेकअप, न्यूड इज न्यू ट्रेंड और तुम्हारे सामने ये वाटर बॉटल भी । ” वो आर्टिस्ट लगातार बोल रही थी ।
“ और तुम्हारा फेवरेट कलर कौनसा है ? पिंक ही होगा ” उसने व्यंग्य में पिंकी से पूछा ।
“ पाउडर पिंक ” उसने आत्म विश्वास से कहा । “ एक फूल है , फूल का नाम तो नहीं मालूम पर अम्मा बालों में लगाया करती थी, जो हमारी ही नहीं सबकी अम्मा थी, गाँव में सब बच्चे उसे अम्मा ही बुलाते थे ।
“जो रंग दिल के करीब होते हैं , अक्सर उनके शहर बहुत दूर होते हैं” पिंकी ने गहरी सांस लेकर कहा । पिंकी की यह बात सुनकर आर्टिस्ट ने कहा - “अरे वाह !...तुम्हारा नाम क्या है ? ” इससे पहले कि पिंकी अपना परिचय देती, आर्टिस्ट को ज़रूरी फोन आ गया । पिंकी बालकॉनी की तरफ चली गई । ऐसा नज़ारा उसने कभी महसूस नहीं किया था । एक तरफ ऊंची बिल्डिंग से घिरा हुआ और दूसरी तरफ लोकल ट्रेन और मेट्रो के शोर से पिंकी अम्मा की याद में डूब गई थी । अचानक पिंकी ने साइकिल पर आते एक डाकिये को देखा और अम्मा को पत्र लिखने का सोचा ।
“ नेहा से मदद ले लूंगी लेकिन आज तो मैं पत्र लिख कर ही रहूँगी । जब से शहर आई हूँ, रंगों की दुनिया में इतना खो गई हूँ कि अम्मा को भूल ही गई । वो नहीं होती तो मैं यहाँ कभी नहीं पहुँच पाती । बिल्डिंग की खिड़की से गार्डन देखकर मुझे गाँव का वो खेत याद आ रहा था जहाँ अम्मा ने मुझे सबसे पहले देखा था और अपने घर ले आई थी । अपना समझ कर कितने प्यार से रखा मुझे । पर मैं बोझ नहीं बनना चाहती थी ...मैं कमाना चाहती थी । अम्मा को भी कितना भरोसा था मुझे पर, इसलिए भेज दिया मुझे यहाँ मेरी इच्छानुसार ....”
पिंकी को यादों के शोर के बीच चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी । बालकॉनी से निकलकर वेटिंग रूम में देखा, उस आर्टिस्ट ने फोन पर रोते-रोते गुस्से में अपना फोन फेंक दिया । पिंकी ने नीचे गिरे फोन को सीधा किया और हैरान रह गयी । टूटी हुई स्क्रीन के नीचे वही ब्लैक एंड व्हाईट तस्वीर, वही काली पट्टियां धूप के हिस्से को बाँटते हुए, ना पूरी धूप..ना पूरी छाया...बिलकुल हम सब की ज़िंदगी की तरह । एक बार तो जैसे पिंकी की रूह काँप गयी थी ।
“ यह तस्वीर ...आपके पास भी...” पिंकी ने हैरानगी से पूछा ।
“हाँ ये मेरी फेवरेट फोटो है इसलिए मेरे वाल पेपर पर है । मैं ही हूँ ...लीज़ा। ” वह अपने आंसू पोंछते हुए मुस्कुरा दी ।
“ और तुम ?”
“ मैं पिंकी !! ”
पिंकी धम्म से सोफे पर बैठ गई । इंसानियत के रंग कितने एक होते हैं । आज पिंकी ने जाना था । आज इस अनुभव से पिंकी ने अपनी रूह से जीवन रूपी कैनवास को रंग दिया था ।

- आस्था सेठी

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