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लांछन


कॉलबेल की आवाज सुन जब दरवाजा खोला तो आकाश ही थे। यूँ तो रोज मुस्कराते हुए ही अंदर आते थे पर आज की मुस्कराहट कुछ अलग थी।
"जानती हो आज तुम्हारी दोस्त उर्मि से मुलाकात हुई?"
“अच्छा” चेहरे पर मुस्कान फैल गई उसके।
"उर्मि, अब आयत बन गई । "
"क्या कह कहे हो ? चौक कर उसने अपनी आँखों को आकाश के चेहरे पर जमा दिया।

शाम में लाइट की रोशनी से पूरा ड्राइंग रूम जगमगा ऱहा था सामने शो-केस के ऊपर गणेश जी की मूर्ति रखी थी नीचे में विभिन्न जगह से लाए गए मोमेंटो विद्यमान थे छोटा ऐफिल टावर वेनिस से लाए मुखौटे , फूलदान ,बार्सिलोना से लायी बैले नृत्य करती गुड़िया। आकाश सोफ़े पर पसर गया ।अनु जल्द ही पानी का गिलास लेकर हाजिर हो गई और स्वयं भी सोफे पर बैठ गई।
"आज प्रोजेक्ट के लिए उसका सेलेक्शन होना था । बायो- डाटा में आयत लिखा था जैसे कमरे में दाखिल हुई ।नजर मिलते ही क्षण भर दोनों स्तब्ध हो गए फिर बॉस ने उससे परिचय कराया मैं उसे न पहचानने का नाटक कर उसे सहज रखने की कोशिश की”।
अनु कुछ और बाते कहना सुनना चाहती थी कि तभी आकाश तपाक से बोल पड़ा
“पहले चाय पिलाओ, मैं चेंज कर आता हूँ “आकाश कमरे में घुसे वह रसोई में।
किचेन से सटे बॉलकोनी में हवा तेज बह रही थी उसमे पसरे कपड़े उड़ रहे थे उसके ख्यालों की तरह ही जो अब पुराने अतीत के सागर में गाते लगा रहा था जिसमें कई जिज्ञासाएं कुलबुला रही थी।
“तुमने उसका नम्बर नहीं लिया “ शिकायत थी लहजे में।
“नहीं कई जन थे कैसे लेता” चाय लेकर आई तो देखा आकाश फिर अपना लैपटॉप खोल चुके थे ।
“ वो वैसी ही दिखती है?”
“हाँ ज्यादा बदलाव नहीं आया है।“
हर स्त्री में स्त्रियोचित तत्व होता है जैसे क्या पहना था, दुखी तो नहीं लग रही थी उसने भी पूछ लिया
“अच्छा सिंदूर लगाया था या नहीं”
“हद हो गया तुमलोग को कोई और बात नहीं है, अच्छा ये बताओ इससे क्या जान लोगी आजकल की आधुनिक युग में कौन लगाता हैं नहीं लगाता है उसकी मर्जी, कौन सा तुम चूड़ी और बिछुए डाल घूमती रहती हो।.”

वह अपने काम में व्यस्त हो गया । वह भी समझ गई अब और कुछ जानकारी नहीं मिलने बाली बस उससे इतना ही कह पाई उसके बारे में और कुछ पता लगाना.. कहाँ रहती है यहाँ कब से है ...वह अपने मोबाइल के गैलरी में जा पुराने उसके संग की तस्वीर देखने लगी।

उसे य़ाद आ रहा था उससे पहली मुलाकात स्वीट्ज़रलैंड के जिनेवा शहर में एक ऑफिस पार्टी में हुई थी ।दोनों के पति एक ही कंपनी में थे दोनों के बेटों में भी ज्यादा का अंतर नहीं था। पहली मुलाकात में ही वे दोनों अच्छी सहेलियाँ बन गई। कुछ लोग जीवन में ऐसे मिल जाते है जिनपर आपको बेवजह ही प्यार आ जाता या फिर विकर्षण। इन दोनों को आकर्षण का कारण भी यही रहा जिसमें दोनों का इस्पात नगरी से होना एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया एक ही से परिवेश के लोग की मानसिकता भी कमोवेश एक सी होती है उन दोनों में एक सबसे बड़ी समानता थी विचारो का खुलापन होना ... इतने लोगों में उसके ही सबसे नजदीक आ जाना इस बात की गवाही दे ही रहे थे । फिर तो अन ऑफिसियल भी दोनों परिवार कितने जगह घूमे ज्यूरिक, इंटरलेकन, बर्न और माउंट टिटलिस । ये साथ का घुमक्कड़पन ने भी उन्हें और करीब ला दिया था। अंतिम मुलाकात भी वहीं की रही ।

दोपहर में वैसे भी व्यस्तता कम ही होती है बेटे स्कूल पति ऑफिस अनु अपने सोसयटी के गार्डन एरिया को निहार रही थी तभी। मोबाइल पर आकाश का कॉल आया ।
“अनु , उर्मि ने दूसरी शादी कर ली है”
“किससे?”
“तुम उसको नहीं जानती” वो ध्यान लगाकर नाम सुनना चाह रही थी कि फिर आकाश से दोबारा पूछना न पड़े।
“इम्तियाज नाम है उसका”
“और उसका बेटा” नारी के एक माँ रूप का हमेशा से पहला प्रश्न
वो अपने पापा के साथ रहता है
ओ..ये नीलाभ है कहाँ “
“शायद चार साल पहले पूना चला गया। दूसरी कंपनी ज्वाइन कर ली उसकी माँ साथ रहती है बच्चे की देख रेख में मदद हो जाती है।
उर्मि अभी य़ूनिटेक में रह रही है “
“अच्छा है”
“किस बात का वो यूनिटेक में रह रही है जो तेरे से ज्यादा दूर नहीं है या दूसरी शादी की” हँसकर उसने फोन रख दिया।
उर्मि ने दूसरी शादी कर ली ।क्यों की यह ख्याल बाद में आया सबसे पहले उसे उसके बेटे का ख्याल आया । कैसे रह रहा होगा वो अपने माँ के बिना... जिन्दगी का सफर उर्मि के लिए भी आसान नहीं रहा होगा। कैसे बताया होगा उसने अपने पति नीलाभ को ये बात कि वो किसी और से प्यार करती है... फिर क्या प्रतिक्रिया रही होगी उसकी कही निकाल तो नहीं दिया होगा उसको न ..
ये प्यार भी एक कोमल संवेदना होते हुए भी कई अन्य कोमल संवेदना को इंसान कैसे मार देता है उसे लगा उसे स्ट्रांग कॉफी की सख्त जरूरत है ।
उसे याद है अंतिम मुलाक़ात..... । वो अकेले बेटे को लेकर इंडिया लौट रही थी तो अनु उसके घर गई हुई थी। कह रही थी पढ़ाई पर ध्यान देना होगा साल बरबाद हो रहा है इसलिए जा रही हूँ। कुछ दिनों बाद अनु भी तो कोलकाता लौट गई वजह बेटे की पढ़ाई ही थी।
एक माँ के लिए अपने बच्चे को छोड़ पाना आसान नहीं होता है
फिर बदनामी सब की नजरों से सामना करना भी एक प्रेमी के साथ भागी हुई माँ का दाग झेलना भी सरल तो नहीं ही कहा जा सकता पर जो भी हो अनु को कभी उसकी गलती की तरफ ध्यान कम हमेशा उर्मि की चिंता रही । आज उसके मन में वही स्थान था जो पहले था दुनियादारी की बातों पर उसकी दोस्ती हमेशा भारी रही। वो ये सब अब क्यों सोच रही हैं जब उसे परिवार से अलग हुये चार साल हो चुके वो तो भूल ही गई उसे ...आखिर उससे भी मिले हुए भी तो दस वर्ष बीत गये।
इको पार्क में आज फूलो की प्रदर्शनी लगी है। इको पार्क में जाड़े की गुनगुनी धूप का अपना ही मजा होता है खेलते हुये बच्चों की हँसी ठिठोली कितनी प्यारी लग रही है । बोटिग में अलग से भीड़ जुटी हुई है। यहाँ छोटे- छोटे कॉटेज बने हुये हैं तभी पाया कि मिनी ट्वाय ट्रेन उधर से गुजरी हाथ हिलाते बच्चों देख रेलगाड़ी गाने के बोल जुबा पर ला रही हैं। । इन सब नजारों में अनु भूल ही गई अरे! उसे तो पुष्प प्रदर्शनी देखना है। वह इन सब को छोड़ उस ओर बढ़ गई ।जज लोग एक जगह बैठे हैं । रंग- बिरंगी फूलो को देख मन भी रंग-बिरंगी हो रहा हैं अभी कुछ दूर तक गुलाबों की कतार है फिर गुलदाबदी,अटल पुष्प, बह्म कमल और न जाने कितने सभी फूलों के वह नाम भी नहीं बता पायेगी पर गमले के नीचे लिखे के नाम से वह जान पा रही ये कौन से फूल हैं । काला गुलाब कितना बड़ा खिला है तभी उसे अपने कंधे पर हाथ रखा महसूस हुआ । पलट कर देखा तो...
“अरे उर्मि ,,, तुम!” खुशी से चहक पड़ी।
नीले टी-शर्ट और काले जिंस में पहले से अधिक खूबसूरत लग रही थी । बाल पहले से छोटे हो गये थे रंग कुछ ज्यादा ही निखर गया। वह इधर-उधर नजर डाली सोचा शायद कोई साथ हो
“कोई नहीं है मेरे साथ ,अकेले आई हूँ।“
उसने उत्साह से अनु की हाथ पकड़ रखी थी।
“तू आकाश भैया के साथ आई है?”
“नहीं मैं भी अकेले ही आई हूँ।“
“पूरी प्रदर्शनी देख ली “।
“नहीं अब तुमसे मिलने के बाद इस फूल से बात करने की जरूरत नहीं” एक चिर परिचित मुस्कान चेहरे पर तिर आ।
“चलो कही बैठते है, भीड़ से अलग थोड़े शांत जगह “अनु। ने उर्मि को देखा
“हाँ, जहाँ जमकर गप्पें मारा जा सके।“
एक फूल के पेड़ के नीचे दोनों सखियाँ बैठी।
उर्मि अपने चारों ओर दृष्टि घुमाई। सोच रही हैं
बात कहाँ से शुरू किया जाय।
“जॉब कर रही हो?”
“हाँ, खाली बैठे कर क्या करना था ,कब से सोच रही थी नौकरी करूँगी मौका मिल गया तो कर ली।
“तेरा बेटा कैसा है”?सबाल उर्मि का था।
“ठीक, अभी आठवीं में गया।
उसने सोचा वह भी पूछे पर लगा कहीं उसकी दुखती रग पर हाथ न रख दे वो गलती से.. कुछ मिनट इधर उधर की बातें होती रही।
जब कोई आपपर विश्वास करता है न तो आप उससे तबतक उससे आप कुछ निजी बात नहीं पूछ पाते हैं जबतक वह स्वयं नहीं बताये।
“यही पास के रेस्त्रां में चलते हैं.. कॉफी पीते हैं “वो स्वयं को सहज महसूस कर बात शुरू करना चाहती हो शायद ...अनु ने सोचा।
इको पार्क में ही रेस्तरां था उर्मि ने सैडविच और कॉफी का ऑडर दे दिया ।
“तुमने मेरे बारे में सुना ही होगा।“
“हाँ ,थोड़ा बहुत “उसने सिर हिलाया ।
वह तो उससे जानना चाहती है कि माजरा क्या है?
“देख अनु, तुझसे झूठ नहीं कहूँगी, कह कर फायदा भी क्या”
वह मुस्करा दी।
स्वीट्ज़रलैंड से लौटने के बाद मैं कोलकता ही रह गई बेटा का भी अच्छे स्कूल में दाखिला करा दिया। सब कुछ सही चल ही रहा था
तभी नीलाभ को साउथ अफ्रीका का प्रोजेक्ट मिल गया। एक साल का था । मैं सोची मैं क्या करूँगी जाकर बच्चे की पढाई हर्ज होगी।
वहाँ पर उनके साथ टीम ही गई।
“जोबर्ग में प्रोजेक्ट था”
“,नहीं सेन्चुरियन में..
“ओके”
बैरा आ कर कॉफी और सैडविच दे गया। रेस्त्रां में आने के बाद अनु ने पहली बार कर्मी के चेहरे से नजरे हटाकर इधर उधर दौड़ाई। रेस्त्रां छोटा सा ही था ।दीवार पर फाउन्टेन का जल गिर रहा था ।झूमर और बहुत प्यारे प्लांट से पूरा रेस्त्रां सजा हुआ था जिसकी गुलाबी रंग की दीवारों पर सुंदर पेंटिग लगी हुई थी। अनु और उर्मि ने कॉफी मग उठा लिया । बैरा जा चुका था।।
अनु ने उर्मि के चेहरे पर नजरे टिका दी।
उर्मि ने उसकी आँखों में झांकते हुये कहा ..”बस यही से रिश्तों में ढलान आ गया।“
“ नीलाभ के टीम में एक लड़की प्रांजल भी गई थी। धीरे धीरे
मैंने देखा पार्टी पिकनिक में तो मौजूद रहती थी पर वो जो भी फोटो भेजे वीकइंड में ट्रिप पर गये हर जगह वो रहती। आरंभ में मुझे बिल्कुल शक नहीं हुआ कि उन दोनों में कुछ ऐसा वैसा भी हो सकता है तुम तो जानती ही हो इतना खुले विचार की हूँ .. पर जब ये इंडिया बीच में आये तो देखा दोस्त कॉलीग् सभी उसका नाम लेकर चिढ़ा रहे । पहले अजीब लगा । मैंने नीलाभ से पूछा तो उसने इंकार कर दिया
मैं भी निश्चिंत हो गई।
पर फिर दूसरी बार जब इंडिया आया तो किसी का मैसेज आया देखा समीर ने मैसेज किया है पर मैसेज के नीचे पढ़ा तो लगा जैसे कोई प्रेमिका का हो
मैंने समीर से पूछा तो उसने उसके अफेयर की सारी बातें बता दी,
जो नीलाभ छुपा रहा था।
सभी समझते हैं मैंने उसे धोखा दिया पर...
उसने पूरी की कॉफी ले एक साथ ही पी लिया अपने दिल के दर्द को कॉफी के कड़वाहट से ढकना चाह रही थी।
“ओ के” अनु ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया
“नौ इट्स नॉट ओ के”
“अनु सब जानते है मैंने उसे धोखा दिया जो सच नहीं है ।पहले उसने मुझे धोखा दिया।“वह आगे कहती गई
”मैं क्या करती उसे छोड़ दिया नौकरी थी नहीं सोचा बेटा की कस्टडी लेकर कैसे परवरिश करूँगी रहने दिया उसके पास”
“पर तूने भी विवाह किया न “उसने भी पूछ ही लिया।
“हाँ ,चार साल पहले...नौकरी ढ़ूढ़ने के क्रम में इम्तियाज से मुलाकात हुई...
तुमने सुना हैं ना... जब कोई किसी से टूटकर जुड़ता है न तो ज्यादा जुड़ जाता है।
मैं उससे टूटकर उससे जुड़ी बस..पहले उसने मेरी मदद की नौकरी दिलाने में फिर संबल सा लगने लगा जीवन की छोटी मोटी मुसीबतों में साथ दिया और अंत में पति बन गया । अच्छा व्यक्ति है मिलाउँगी कभी तुमलोग से
उसके चेहरे पर खुशी की रेखा साफ सी दिखी। दो वर्ष पहले सोचा क्या करना है जो गया उसे लौटना नहीं है जो टूटा उसे बनना नहीं है तो कुछ नया ही शुरूआत कर ले..बस शादी कर ली।
“एक प्रश्न पूछूँ”
“फिर नीलाभ से मिली?”
“मन नहीं किया...
उसने इतनी तोहमत इतनी बदनामी इतनी नफरत जो सौगात में दी है.. उसके बाद पलटकर देखने की इच्छा नहीं हुई”
“बेटा को साल में एक माह के लिए भेज देता है है बस वही चाहिये भी”
“तुम्हें गुस्सा नहीं आता…गलत इल्जाम पर”
“पहले नहीं जानती थी पर अब जान गई हूँ.. लांछन दुख सिर्फ स्त्रियों के हिस्से ही आते है दर्द भी तोहमत भी
आजाद से साँस लोगी तो बदचलन होने का दाग भी.....
बैरा बिल लेकर जा चुका था अनु और उर्मि गले लग रहे थे अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान होने से पहले...

- कंचन अपराजिता

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