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नन्हीं नीतू
नीतू को गाडियों से खेलने का बडा शौक था। उसके पास छोटी बडी ढ़ेर सी कारें थी, एक पीली टैक्सी थी, एक ट्रक था, इंजन था, हवाईजहाज था, और एक रेलगाडी भी थी।
उसे सबसे जादा पसन्द थी एक बडी क़ार, जिसमें बैठ कर नीतू उसे चला भी सकती थी। लेकिन कार में वो मजा कहां जो स्कूटर में होता है? फिर आजकल कार उसकी छोटी बहन मीतू को जादा पसन्द थी और सारे दिन मीतू ही उससे खेलती रहती थी। नीतू रात-दिन यही सोचती रहती थी कि उसे इतने सारे उपहार मिलते हैं क़ोई उसे स्कूटर क्यों नहीं दे देता। मां नीतू को
खाना खाने के लिये बुला रही थी और नीतू नन्हीं गुडिया हाथ में पकडे एक छोटी
स्कूटर के बारे मे सोच रही थी जिसे वो चला भी सके।
''मुंह चलाओ नीतू'' मां
ने कहा। नीतू ने ध्यान दिया कि मां ने
दाल-चावल खूब अच्छे बनाये
हैं। उसने मुंह का खाना खतम किया और मां ने एक और निवाला मुंह में डाला।
मां
ने
बताया
रोज पढने और ठीक से खाना खाने वाले बच्चों को सभी प्यार करते हैं।
माता
पिता तुम्हारी अध्यापिका और भगवान भी।
ऐसे
बच्चों की इच्छाएं सभी मिल कर पूरी कर देते हैं।
''मां
तुम कितनी अच्छी हो तुमने पहले क्यों नहीं बताया'' ''
नीतू ने खुश होकर मुंह का खाना खतम किया और अगले
निवाले के लिये मुंह खोल दिया।
''अरे
मेरी प्यारी गुडिया जब तूने पूछा तभी तो मैने बताया।
कोई
बात परेशान करे तो मां को बताना चाहिये ना।
''
मां ने लाड से नीतू को गले से लगा लिया।
नीतू ने नये
कपडे
पहने और मेहमानों के साथ जन्मदिन के उत्सव का आनन्द लिया लेकिन आज कोई
उसके लिये उपहार नहीं लाया।
ऐसा
क्यों हुआ उसने सोचा मां से पूछना चाहिये।
''मां
आज मेरे लिये कोई उपहार क्यों नहीं लाया?''
नीतू ने पूछा।
नीतू देर रात तक स्कूटर पर सवार खेलती रही। मां और पापा उसे देख कर खुश होते रहे। कहानी व ग्राफिक्स पूर्णिमा वर्मन |
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