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रीटा और जोटो टोकियो जपान की राजधानी का शहर हैं। यहाँ एक विशाल विश्वविद्यालय हैं। इसी विश्व विद्यालय में एक विद्वान प्राध्यापक श्री ज़ोटो प्राफेसर थे। यह कहानी उनकी और उनके कुत्ते रीटा की हैं। श्री ज़ोटो ने अपने कुत्ते का नाम प्यारसे रीटा रखा था। दोनों एक दुसरे पर जान छिडक़ते थे। परछाई जैसे एक दूसरे के साथ रहते और प्यार करते थे। श्री जोटो का विद्यालय दूसरे उपनगर में था इसलिये वे रोज रेल से आया जाया करते थे। घर से स्टेशन थोडी दूरी पर था। रोज जब वह जाने के लिये निकलते रीटा भी उनका साथ स्टेशन तक देने निकल पडता। स्टेशनपर अपने मालिक के साथ रेलगाडी क़ा इन्तजार करता और गाडी चली जाने के बाद घर लौटता। वैसे ही रोज शाम को उनके आने के समय पर स्टेशनपर पूंछ हिलाते हुए अपने मालिक का स्वागत करता और उनके साथ घर आता। यह सिलसिला सालों साल चलता रहा। एक दिन श्री जोटो की तबियत विद्यालय में अचानक बिगड ग़यी। बाकी प्राध्यापक सहयोगी घबरा गये। डॉ क़ो बुलाया गया। लेकिन उनके बचने के आसार नजर नहीं आ रहे थे। देखते देखते सबके सामने ही वह चल बसे। उनकी आखिरी इच्छा के अनुसार विद्यालय के परिसर में ही उनका अन्तिम क्रिया कर्म किया गया।
उस शामको रीटा हमेशा की
तरह स्टेशनपर अपने मालिक की राह देख रहा था।
काफी समय बीत
जाने पर वह उदास मनसे घर लौट आया।
सारी रात वह
बेजुबान अपने मालिक के बारेमें सोचता रहा।
दूसरे दिन सुबह
वह नई उम्मीद के साथ स्टेशन पहूँचा।
दिनभर इन्तजार
करके रात को फिर मायूसी साथ लिये घर लौट आया।
दिन महिने साल निकल गये। स्टेशनपर गाडियों आना जाना जारी रहा लेकिन ना रीटा का इन्तजार खतम हुआ ना उसके मालिक को लेकर आनेवाली गाडी आयी। रीटा की उदासी दिनोंदिन बढती गयी। उसने गम में खाना पिना छोड दिया। आठ साल के लम्बे अन्तराल के बाद स्टेशनपर ही अपनी मालिक का इन्तजार साथ लिये उसने अपनी आंखे बंद कर ली। सबने मिलकर उसका अन्तिम संस्कार किया। स्टेशनपर संगमरमर की समाधि पर यह कहानी लिखी हुई है। जानवरों की वफादारी के अनेक किस्से सुनने के मिलते हैं पर यह अपनी किस्म का अनूठा है। ऐसी वफादारी कुत्ता ही कर सकता है। इस बेजुबान जानवर जैसी थोडी भी वफादारी यदि इन्सान में देखने को मिले तो क्या कहने। दीपिका जोशी |
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