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वनगन्ध-11

कुछ अस्फुट से स्वर उभरते हैं, मानसी करवट बदलती है, निखिल को नींद घेर रही है

'' आपको तो आज भी नींद आ रही है। ''

निखिल हँस पडता है

'' तुम तो जमाने से मेरी नींद की बैरी हो न! ''

वह उसे दुलराता है और मानसी उससे भी पहले नींद में खो जाती है, कुछ खुद में, कुछ उसमें डूब कर।  निखिल फिर सोचता र्है क्यों मानसी और मैं हमेशा अभिन्न बन कर रहे, कुछ इस तरह कि जहाँ जब भी मिले प्रगाढता के छूटे सूत्र फिर आ जुडे।  स्त्री-पुरूष होने के दैहिक स्तर से बहुत आगे एक प्रकृति का शाश्वत रिश्ता हमारे बीच बहता रहा है हमारे भीतर

एक ही घण्टा सो पाता हूँ मैं।  दिन में इससे ज्यादा सोने की आदत जो नहीं पर यही साठ मिनट मुझे स्फूर्ति दे जाते हैं
वह उठ कर सिगरेट सुलगा लेता है
।  मानसी सो रही है, गुलाबी चादर में ढँकी, चेहरा खुला है, एक बाँह बाहर लटकी है, पसीने की बूँदे माथे पर उभर आई हैं, होंठों में स्पंदन हुआ, शायद कुछ कहना चाहती है।  न चाह कर भी वह उसके चेहरे से ध्यान हटा लेता है और इधर-उधर बिखरी अपनी चप्पलें समेटता है।  आहटों से वह जाग जाती है, और पूछती है,

'' सोए नहीं? ''
''
एक घण्टा सो लिया, शाम हो रही है, जंगल देखोगी? ''
''
हाँ! ''
''
कॉफी पियोगी? ''
''
बनाउंगी। '' कह कर अस्त व्यस्त कपडे ठीक करती वह बडी कर्षक लगती है और न जाने क्यों बहुत समर्पित सी भी।  कोने की टेबल पर रखे परकोलेटर का प्लग स्विच बोर्ड में घुसाती है और कॉफी का सामान जमाने लगती है।  उसके होंठों पर एक आश्वस्त सी मुस्कान है, ऐसा आभास होता है कि इन अधरों पर क्षण भर के लिये एक कविता जन्म ले रही है

हम एक बार फिर साथ कॉफी पी रहे हैं।  दरअसल ये पल हज़ारों बार दोहराये गए होंगे मगर आज इन पलों का अर्थ सर्वथा अलग है

देर तक जंगलों में घूमना सुरक्षित न था इसीलिये साढे सात तक दोनों लौट आए।  फिर उस पुराने गेस्ट हाउस के अहाते में ही स्थित शैवालों से भरे उस पोखर के पास बैठ दोनों बतियाते रहे।  पास ही एक अलाव पर सोमा एक मुर्गाबी भून रहा था, निखिल व्हिस्की ले रहा था।  मानसी का ऐसा कुछ मन न था, सो सोमा ताजा सरस पानी से भरा हरा नारियल ले आया।  देर तक बातें हुईं।  कुछ अतीत की, कुछ वर्तमान की और कुछ शेष बचे भविष्य की।  निखिल के होंठों पर मानसी के भविष्य और विवाह के प्रश्न आ-आकर रुक रहे थे, पर वह कम से कम आज उसे आहत नहीं करना चाहता था

आज सोमा ने खाना सचमुच अच्छा बनाया था।  तारीफ सुनकर वह हँसता हुआ प्लेट उठा कर चला गया।  बरसात शुरू हो गई थी, वे दोनों अन्दर चले आए

मानसी अपना सूटकेस टटोलती है।  नाईटी निकाल कर लाईट ऑफ कर देती है।  रात की हल्की रोशनी में स्पंदित उसकी स्वस्थ, उजली देह , अमृता शेरगिल की सेल्फ पोर्टेट सी लगती है।  मानसी लाईट जला देती है।  नाईटी की स्ट्रिंग्स बाँधती हुई वह आगे बढती है।  अब वह एक संम्पूर्ण स्त्री है, लडक़पन कहीं पीछे छूट गया है।  मन ही मन आँकता हूँ तो हैरान हो जाता हूँ वक्त की रफ्तार पर, अब मानसी तीस की वयस को पार करती महिला है।  मैं भी तो अपनी उम्र का तीसरा दशक समाप्त करने जा रहा हूँ।

मानसी ने अब तक पूरा सूटकेस खोल दीवान पर बिखेर दिया था, बहुत से पैकेट्स निकाल कर उसे पकडा देती है

'' अरे! मेरे लिये? तुम्हें पता है ना मुझे तुमसे कभी लेना अच्छा नहीं लगता। ''
''
कब तक बस देते रहोगे? ''
''
वाह! मेरी पसंद भूली नहीं।''
''
ये छोटा बैग इसमें क्या है? ''
''
खुद ही देख लो न! ''
''
ये किसके लिये.. ''
''
जिसका उस पर नाम लिखा है। ''
''
नहीं! मानसी इतना मंहगागिफ्ट नहीं। कपडे तो ठीक है पर ये कैमरा वो भी वीडियो कैमरा। ''
''
नहीं रखोगे तो दिल दुखेगा निखिल, आपके पास पहले से है तो रहने दो, नहीं है तो रखलो।  आपके शौक को ध्यान में रख कर ले आई थी। ''
''
मेरा अपना तो नहीं ऑफिस का है।  अच्छा इसकी कीमत लेनी होगी। ''
''
मेरी वजह से इतने मूल्य चुका लिये जीवन भर  अब नहीं। ''
''
अच्छा तो एक शर्त... ''
''
बिना शर्त आप नहीं मानेंगे तो बता दीजिये... ''
''
अब तुम्हें घर जाकर अपने विवाह के जिक़्र पर आनाकानी न कर कोई सकारात्मक निर्णय लेना होगा। ''
''
ब्लैकमेल है ये तो... ''
''
इतने वास्ट मीडिया में काम करती हो, क्या कोई तुम्हारे स्तर का इन्टैलेक्चुअल नहीं मिला? ''
''
थे तो बहुत पर किसी ने मुझे प्रपोज ही नहीं किया। ''
''
असंभव! ''
''
तुम्हारे व्यक्तित्व के मैग्नेटिक फील्ड में आने के बाद कोई भी खिंचे बिना रह ही नहीं सकता। ''
''
वक्त कितना बदल गया ना, निखिल एक वक्त था जब इस मैग्नेटिक फील्ड से तुम अन्य लडक़ों को हरसंभव दूर रखा करते थे, मुझे भी सख्त ताकीद थी कि कोई पास भी न फटके।  आज क्यों चाहते हो कोई इस निषिध्द क्षेत्र में प्रवेश करे? ''
''
मानसी तब उम्र ही क्या थी तुम्हारी? भटकाव का डर था।  अब उल्टा है अब किसी को न चुना तो उम्र बीत जाऐगी। ''
''
बीत तो रही है, पर मुझे कोई अफसोस नहीं।  मेरे हिस्से का सुख मुझे मिल चुका  अच्छा अभी छोडो ना ये बेकार का टॉपिक।  मुस्कुराओ मैं कैमरा ऑन कर रही हूँ। ''
''
मानसी ये बेकार का टॉपिक नहीं।  तमाम जिदंगी का सवाल है। ''
''
अच्छा।  अब मुस्कुराओ भी ना। ''

निखिल विवश हो मुस्कुरा दिया

बरसात थम चुकी थी, टिन की छत पर बूँदों का शोर भी थम चला था।  मगर रात सील गई थी और जलती हुई धुँआ-धुँआ हो रही थी।  भावुकता का संक्रमण कभी मुझे, कभी मानसी को लग जाता और हम बारी-बारी उदास होते रहे

सुबह-सुबह एक खुली जीप में खाने की डलिया, कॉफी का थर्मस, पानी भरा कैम्पर रख मिनी मिनियामैंने उसी पुराने ढंग से पुकार लगाई।  वो आई तो भ्रम हुआ कि फिर दस साल पीछे लौट आया हूँ।  उसने कसी हुई टयूनिक पहनी है, और सफेद लेसी बडे क़ॉलर्स वाला टॉपर, जिसके कॉलर तितली के पंख से उड रहे हैं।  मैं देखता हूँ, मगर आदतन तारीफ नहीं करता, वह भी जरूरत नहीं समझती, जानती है मेरी आँखों के उतार-चढाव।  बस मुस्कुरा देती है

हम चल पडते हैं।  मैं उसके सपने का हू-बहू टुकडा पेश करने की कोशिश में अपनी खाकी वर्दी पहन कर फैल्ट हैट लगा उसकी उस किशोर वय का नायक बन जाता हूँ।  हम सघन वन में प्रवेश करते हैं।  एक ऊँचे पेड पर बने एक मजबूत मचान पर बाँस की सीढी से मैं और मानसी चढ ज़ाते हैं।  जीप पार्क कर एक जंगल गार्ड, ब्रेकफास्ट का सामान उपर ले आता है।  अभी कोहरा छंटा नहीं है।  मानसी गार्ड को कैमरा और बाइनोक्यूलर लाने को कहती है।  कॉफी की चुस्कियों के साथ वह जंगल की घनेरी खूबसूरती का लुत्फ उठा रही है।  मैं आँखों ही से दूर झील के किनारे भालुओं के झुण्ड का कोलाहल माप रहा हूँ और उससे कहता हूँ, उस दिशा में देखे।  वह दृश्य देख वह इतनी रोमांचित है कि वह वहाँ जाकर फिल्म लेने की जिद करती है।  उबले अण्डों और खीरे-टमाटर के सेन्डविचेज का ब्रेकफास्ट कर हम नीचे उतरते हैं।  मैं अपनी गन निकाल मानसी को हंटिग बूट्स पकडाता हूँ।

'' पहन लो।  उस तरफ जीप नहीं जाती।  रास्ता ठीक नहीं।  जोंक बहुत हैं और साँप भी। ''
''
रहने दें? ''
''
डरो नहीं।  मैं हूँ , गार्ड भी दूसरी तरफ से जीप ले कर आरहा है।  हम उस रास्ते को पार कर झील की उस तरफ से फोटोग्राफी करेंगे, वही थोडा चल कर जीप हमें मिल जाएगी। ''

वह रोमांचित है।  मैं सर्तक।  जंगल के मिजाज क़ो समझना इतना भी आसान नहीं।  उस पर यह पर्यटकों के लिये निषिध्द हिस्सा है।  वॉकी-टॉकी पर मेरा निरंतर सम्पर्क पास की चौकियों से बना हुआ है।  झील के इस ओर से मानसी पूरी तन्मयता से शूटिंग मैं व्यस्त है।  ऐशियाई भालुओं का झुण्ड अपने प्रात:कालीन क्रियाकलापों में व्यस्त हैं, कुछ पानी में हैं, कुछ पानी से बाहर घास पर उल्टे लेटे प्रभाती धूप का मजा ले रहे हैं

'' इस तरफ हाथी नहीं आते, उसके लिये दूसरी ओर कल जाऐंगे।  गैंडे तो रास्ते में मिल जाऐंगे।  तेन्दुए दिन में कम ही दिखते हैं।  बंदरों का झुण्ड तो आवारा है आज यहाँ, तो कल वहाँ।  चार अलग अलग किस्म के बन्दर यहाँ मिल जाते हैं। ''

भालुओं की फिल्म ले कर हमारा कारवां पायथन पोईन्ट देखने चला।  पास की चौकी से पता चला कि कल ही शाम एक हिरण का शिकार किया है एक पायथन ने और यहीं पर कहीं पडा होगा।  यहाँ यह आम दृश्य है, कई बार तो बडे बन्दर या हिरण को निगल अजगर सडक़ पर पडा होता है और उससे हिला तक नहीं जाता।  यातायात बाध्य हो जाता है तब उपकरणों की मदद से उसे हटाना पडता है

'' हिरण को निगल पायथन सुस्त पड ज़ाता है, जब तक उसके बेहद तेज डाईजेटिव ऐसिड्स उसे पचा नहीं लेते हैं। ''

मानसी को बताते हुए हम सर्पिलाकार पगडंडियों पर चल रहे हैं।  जल्दी ही लम्बी घास के बीच गार्ड ने अजगर ट्रेस कर लिया।  मानसी ने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा था।  उत्तरी इलाकों के उष्नकटिबंध जंगलों से बहुत अलग हैं ये जंगल
मिनी का कैमरा फिर चल पडा
।  देर शाम मैं ने उसी मचान पर से उसे तेन्दुआ भी दिखा दिया।  फिर हम लौट आए
अगले दो दिन की मूसलाधार बरसात ने हमें कैद कर दिया
।  हमने घर ही में रह कर ढेरों बातें की , संगीत सुना, सोमा का बनाया खाना खाया और रातों को जाग-जाग कर सोए और दिन भर जागते हुए ऊंघते रहे।  बडे अद्भुत दिन थे और तिलस्मी रातें

तीसरे दिन हम गौहाटी गए, वहाँ मिनी ने स्टिल फोटोज ड़ेवलप करवाए, कुछ टिपिकल लेडीज वाली शॉपिंग की जैसे बेंत के छोटे सजावटी सामान, मुखौटे, आसाम के पारम्परिक मोतियों के जेवर।  मैंने उससे अपनी ओर से मेखला सिल्क की साडी दिलवाई।  काली साडी पर सुनहरे तारों की बूटियों वाली।  रात का खाना वहाँ के एक चायनीज़ रेस्तरां में खा कर हम लौट आए।  अगले दिन मौसम साफ था।  जंगल के दूसरे छोर की खाक छानने एक बार फिर हमारा कारवां निकल पडा।  थोडा चलकर ही मिनी ने जीप रोकने का आग्रह किया।  दूर तक समतल मैदान में हल्की जामुनी जंगली लिलीज क़े फूल ही फूल खिले थेवह पगली वहीं उतर कर मंत्रमुग्ध सी एक चट्टान से सट कर खडी हो गई।  मैं ने एक फूल तोड उसके बालों में लगा दिया और अपना एक पैर चट्टान से टिका दिया ताकि वह मेरे घेरे को तोडे बिना बाहर न जा सके।  उसके रिबन की गिरह खुल जाती है और उसके सीधे रेशमी बाल खुल कर बिखर जाते हैं।  इन केशों की सुगन्ध से अपरिचत नहीं मैं, बडी उन्मादक है ये

'' अब कैमरा मुझे दो मिनी। ''

काई से हरी चट्टान, पीछे एक बाड पर बैठी रॉबिन, जंगली लिलियों से भरा जामुनी मैदान, खिली धूप और शोख मानसी, इससे बेहतर और क्या दृश्य होता?

हम फिर आगे बढे, रास्ते में एक आदिवासी गाईड से पूछ हम हाथियों की दिशा में चल देते हैं।  मानसी जंगल के सौंदर्य से स्तब्ध है।  मैं उसकी तन्द्रा भंग करता हूँ।  बडी घनी घास को रोंदते हुए, गजराजों के समूह की ओर इशारा करता हूँ।  वह फुसफुसाती है

'' ओह ! निखिल कितने स्वस्थ और स्वच्छंद हैं ये।  इनकी कसी सलेटी चमकीली स्किन देखो, पालतू हाथियों से कितने बेहतर हैं ये।''

और आगे जलीय पक्षियों से भरी झील के पास पहुँचते हैं हम।  वहाँ जीप से उतर फाईबर की बनी हल्की सी नाव में चढ झील में उतर जाते हैं।  पक्षियों को चौंकाए बिना यह हल्की नाव कमल के तैरते पत्तों सी इस उथली झील में घूम रही है।  मिनी रोमांच से मेरे कंधों पर सर रख देती है।  इस नाव को खेते असमिया गाईड की आँखों में संकोच को मैं भाँप जाता हूँ और अंग्रेजी में मिनी को टोकता हूँ।  सामने किनारे से एक फ्रेन्च युवक फोटोग्राफी कर रहा है।  मिनी का सफेद कॉलर उडक़र मेरा चेहरा छू रहा हैवह हँस कर यह दृश्य अपने कैमरे में कैद कर लेता है।  मैं उसे जानता हूँ, पिछले महीने से वह यहाँ डटा हुआ है।  हम जाने लगते हैं तो हाथ हिलाता है

लौटते हुए रात हो गई है।  खाना खाकर मिनी सोना चाहती है, सुबह उसे जाना है।  मैं भी नहीं रोकूँगा उसे, अपने मम्मी-पापा और अन्य रिश्तेदारों से भी तो मिलना होगा उसे।  फिर लौट जाऐगी या पता नहीं शादी करेगी

वह सो गई है और मैं जागा हुआ अच्छे पलों को बीतते हुए महसूस कर रहा हूँ।  अपने आप को समझाता हूँ जिन्दगी को भी तो बीतना होता है।  हर चीज हो-हो कर बीतती ही है।  कितनी तो अनमोल अनुभूतियाँ कितनी स्वतन्त्रता और बिना किसी दबाव के हमने इन चार पाँच दिनों में सहेज ली हैं

सुबह उठने पर मिनी को सामान बाँधते पाता हूँ, उदासी को उसने कस कर भीतर रोका हुआ है।  और मुझे देख मुस्कुराती है, एक कृत्रिम सी दृढ मुस्कुराहट।  मैं अनायास कह बैठता हूँ,

'' तुम्हारे पास उदासी का एक झीना सा आवरण है, जिसे जब चाहे ओढ लेती हो, जब चाहे उतार देती हो। ''
''
प्रणव को भी यही लगता है कि मेरे कुछ भाव जबरन ओढे हुए हैं। ''
''
कौन प्रणव? ''
''
मेरा एक सीनियर है। ''
''
बस सीनियर है या... ''
''
बस सीनियर ही है! ''
''
इतना क्लोज है कि पर्सनल कमेन्ट कर देता है? ''
''
आप भी ना.... प्रतिद्वन्द्वी था, तब ऐसी बातें करता था चिढक़र। ''
''
अब प्रतिद्वन्द्वी नहीं है! ''
''
अब दोस्त बन गया है। ''
''
उत्सुकता हो रही है, बताओ ना कौन है, कैसा है? ''

मिनी उसे बताती है।  पर ऐसा है ही क्या बताने लायक

'' क्या इस रोचक दोस्ती में विवाह की संभावना है। ''
''
पता नहीं, मजाक में वह संकेत करता है, पर मैं उसे गंभीरता से नहीं लेती। ''
''
अगर स्पष्ट होकर प्रस्ताव दे तो? ''
''
मना कर दूँगी निखिल।  मेरे जीवन में अब कहाँ कुछ गुजांईश है? ''
''
नहीं तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये मानसी। ''
''
आप को क्या अपराध बोध है निखिल? ''
''
कुछ भी कहो मेरी आत्मा में एक काँटा है जो तुम्हें अकेला देख कष्ट पाता है।  अभी तो ठीक है तुम सक्षम, सेल्फ डिपेन्डेन्ट हो।  मुझे बाद के वक्त की आश्वस्ति चाहिये।  जब आंटी-अंकल नहीं होंगे, भाई अपनी गृहस्थी में व्यस्त होगा, और सभी अपने में व्यस्त, तब तुम अपनी तन्हाई से जूझो यह मैं नहीं चाहता।  बहुत भयावह है यह सत्य, मानसी समय रहते समझ लो। ''

मेरी आँखे भीग रहीं थीं, मैंने उसकी हथेलियाँ कस लीं

'' अच्छा! ठीक है।  प्रणव ने प्रस्ताव दिया तो आपको जरूर बताउंगी। ''

दोपहर में उसका सामान जीप में रखते समय वही फ्रेन्च युवक आ जाता है, उसके हाथ में वही तस्वीर है, मैं, मानसी उसका उडता स्कार्फ।  मानसी बाहर आती है, वही मेखला साडी पहने, उसपर बहुत अलग किस्म का जूडा उसमें गजब का सौंदर्य प्रस्तुत कर रहा है, बंसतसेना या आम्रपाली या कुछ ऐसी ही लग रही है।  वह फ्रेन्च युवक भी उसे देखता रह जाता है
तस्वीर देख कर वह
हँस पडती है, और थैंक्स कह कर उसे रख लेती है।  सोमा बगल में उदास खडा है, नन्हा शेरखान अपनी डलिया में ऊँघ रहा है, इस बात से बेखबर कि , कल तक जिसके तकिये पर बिखरे बालों को उलझा-उलझा कर वह नन्हे पंजों से खेलता था, उसकी हमजोली, जिसके हाथ से दूध पीकर वह माँ का बिछोह भूल गया थानॉटी बॉय कहने वाली वह वात्सल्यमयी जा रही है।  जंगल को स्तब्ध छोड वह चली जाती है

एयर पोर्ट पर शान्ति है, कम लोग हैं।  जहाज आने पर उसका मस्तक चूम कर उसे विदा करता हूँ।  साथ ही महीने भर बाद दिल्ली एयर पोर्ट पर मिलने का और लन्दन के लिये विदा करने का वादा करता हूँ।

'' प्रणव की तस्वीर भेजना... ''
''
अँ... बात आगे बढी तभी, अन्यथा नहीं। ''
''
मैं प्रार्थना करूंगा.. ''
''
आपकी प्रार्थनाओं ने ही तो इतना बडा किया है।  और वह रो पडी। ''

मैं बोझिल नहीं होने देना चाहता था ये पल

'' ज्यादा बुरा लगा तो बस की तरह जहाज से तो नहीं उतर पडोगी बीच में? ''
 

हँसा ही दिया उसे मैंने।  हमने हल्की-फुल्की , मीठी , घनेरी स्मृतियों की डलिया एक दूसरे को थमा दी और फिर चल पडे अपनी अपनी राह, जो साथ तो चलती थीं पर कहीं भी एक दूसरे से मिलती नहीं थीं दो समानान्तर रेखाओं की तरह

- मनीषा कुलश्रेष्ठ    

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