हिंदी नैस्ट के बैनर तले देश भर के दिग्गज साहित्यकारों के साथ सम्पन्न हुई तीन दिवसीय कथाकहन कार्यशाला।

कहानियां खुद लिखना जानती हैं अपनी कहानी, बस उन्हें तलाश है सधी भाषा और शिल्प की। ये तलाश है खुद की और उसे अभिव्यक्त करने की। अभिव्यक्ति की इसी परम्परा में एक कदम और आगे बढ़ाया है कथाकहन कार्यशाला ने। प्रतिभागियों का हाथ थामे ये कार्यशाला अपने पाँचवे वर्ष में पहुँची है। 4-5-6 अप्रेल, तीन दिन तक कानोता कैम्प रिजॉर्ट जयपुर के विस्तृत प्राकृतिक कैनवास पर चित्रों से दृश्य, दृश्यों से कहानियां और कहानियों से फ़िल्मों तक का सफर चलता रहा। 

उद्घाटन सत्र में आयोजक कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपनी साहित्यिक यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि मेरी यात्रा एकलव्य की तरह शुरू हुई। जिसके द्रोणाचार्य वरिष्ठ साहित्यकार और किताबें बनीं। आयोजक बहादुर सिंह राठौड़ और कुश वैष्णव ने भी कथाकहन कार्यशाला को एक ऐसा कारवाँ बताया जो नये शब्द, नई कहानियाँ गढ़ता है। 

कार्यशाला का आगाज विश्व विख्यात चित्रकार अखिलेश की बीस अमूर्त चित्रों की प्रदर्शनी से हुआ। प्रतिभागियों को अमूर्तन कहानी लिखने के लिए औऱ चित्रों को देखने की समझ का विकास करना इसका उद्देश्य रहा। स्वयं चित्रकार अखिलेश ने प्रतिभागियों से बातचीत के दौरान उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया।

उत्तर प्रदेश भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित, ‘मेरे संधिपत्र’, ‘सुबह के इंतजार तक’, ‘अग्निपंखी’, ‘दीक्षांत’, ‘यामिनी कथा’ तथा ‘कौन देस को वासी…. वेणु की डायरी’ से बहुचर्चित साहित्यकार सूर्यबाला जी की दो कहानियों का मंचन किया गया -एक़ स्त्री के कारनामें, मेरी शिनाख्त। प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक देवेंद्र राज अंकुर, अभिनेता अमिताभ औऱ दुर्गा ने इसे बखूबी मंचित किया। कथाकार प्रोफेसर लक्ष्मी शर्मा से संवाद के दौरान सूर्यबाला जी ने कहा कि स्त्री के पास प्रकृति प्रदत्त विरल गुण है, उसे सिर्फ भावनात्मक संरक्षण चाहिए। सूर्यबाला जी ने कथाकहन की करिश्माई ताकत का जिक्र करते हुए प्रतिभागियों को सुझाव दिया कि आपकी भाषा में हृदय को मिला दीजिये। हृदय की भाषा की बराबरी कोई नहीं कर सकता।

कहानी औऱ उपन्यास में अंतर विषय पर संवाद करते हुए मुख्य वक्ता मनीषा कुलश्रेष्ठ औऱ नवीन चौधरी ने कथाओं, उपकथाओं औऱ उनके विस्तार, शैल्पिक विधान, कथानक की बुनावट की परतें खोली। पावर पॉइंट प्रेजेटेंशन के द्वारा पात्रों के विकास औऱ उनके मनोवैज्ञानिक पक्ष एवं व्यवहार पर बात की सुप्रसिद्ध मनोचिकित्सक औऱ कवि कथाकार विनय कुमार जी ने। 

कार्यशाला की बेहद सार्थक परिचर्चा रही कहानी के तत्व पर मास्टरक्लास। कथानक, परिवेश, चरित्र और उनके संघर्ष और विकास पर मनीषा कुलश्रेष्ठ, पंकज सुबीर और विवेक मिश्र ने बातचीत की। उत्साहित प्रतिभागियों ने बेबाकी से प्रश्न पूछे। 

जयपुर से वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज, सत्यनारायण, प्रबोध गोविल ने कौनसे तत्व कहानी को कालजयी बनाते हैं विषय पर वार्ता में बताया कि किस तरह कहानी आगे बढ़े कि वो अपने समय से आगे निकल जाए और कहानी और उसे पढ़ते- पढ़ते पाठक अनुभूतियों को ऐसे जोड़ ले कि वे कालजयी हो जाएँ। इस सत्र का सफल संचालन कथाकार उमा ने किया। 

मुलाक़ात एक़ जिंदा कहानी सत्र में संघर्ष से सशक्त बनी महिला शीलू तोमर की कहानी साझा की गई। कारगिल युद्ध में फौजी पति के शहीद होने के बाद, अजन्मे बच्चे और पिछड़े समाज के सामने हार न मानने वाली शीलू तोमर। महिला बाल विकास अधिकारी सुरेश तोमर और पत्रकार तसनीम ने शीलू तोमर से बातचीत में उनके भीतर बैठे दर्द को बाहर निकाला। 

लोकप्रिय बनाम क्लासिक सत्र में जिसमें साहित्य तक के बुक कैफे पर प्रतिदिन एक़ नयी किताब पर बात करने वाले जयप्रकाश पांडे ने लोकप्रिय बनाम क्लासिक साहित्य विषय पर बात करते हुए, गंभीर साहित्य रचने वाले लोकप्रिय साहित्यकारों का भी जिक्र किया। कान के लिए लिखना आँखों के लिए लिखने से कैसे अलग हैं पर कई उदाहरण देते हुए बात की गई ऑडियो कहानी सत्र में। लोकप्रिय उदघोषक यूनुस खान और रेडियो सखी ममता सिंह ने बताया कि ऑडियो कहानी लिखते समय अनावश्यक शब्द हटाना कितना जरूरी है। 

प्रकाशक की भूमिका के विशेष सत्र में वाणी प्रकाशन की प्रबंध निर्देशक आदिति माहेश्वरी ने मनीषा कुलश्रेष्ठ के साथ आत्मीय संवाद में कहा कि  अच्छे प्रकाशक नये लेखकों की पाण्डुलिपियाँ पढ़ते हैं औऱ नयी सम्भावनाओं को अवसर देते हैं।

नवीन चौधरी, कुश वैष्णव, गौतम राजऋषि और लोकप्रिय पॉडकास्टर पंकज दुबे ने मास्टर क्लास में कहानी के अलग अलग तत्वों को कई उदाहरणों के साथ समझाया और प्रतिभागियों के सवालों के जवाब दिए। इस मास्टर क्लास में नवीन चौधरी ने कथावस्तु का चयन और ट्रीटमेंट पर बात करते हुए बताया कि कहानी में स्पष्ट ढांचा, शुरुआत और मध्य हो। गौतम राजऋषि ने चरित्रों का चयन, विकास और चित्रण पर बात की। उन्होंने कहा कि पाठकों के जहन में बसे किरदार हैं जेम्स बांड, देवदास, हैरी पॉटर। कुश वैष्णव ने कहानी का रोचक आरम्भ, मारक अंत और संवाद विषय पर बात की। संवाद दमदार कैसे बनाए कि किरदार और परिवेश उभर कर आए। पंकज दुबे ने कहानी में क्लिफ हेंगर, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक द्वन्द पर बात की। उन्होंने कहा कि किसी भी कहानी में दिलचस्पी बनाए रखना सबसे जरूरी चीज़ है। आपके पास आइडिया होना चाहिए और उसको दिलचस्प बनाए रखना आना चाहिए। साथ ही ह्युमर होना भी जरूरी है। 

दिन डूबे कानोता के कमलताल के सामने ओपन थियेटर में खूबसूरत शाम का आगाज़ हुआ।  रंगकर्मी कथाकार डॉक्टर ज्योत्स्ना मिश्रा ने अपने कुशल अभिनय से मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी स्यामीज़ को जीवंत कर दिया। स्यामीज़ स्त्री के आंतरिक द्वन्द की कहानी है। एक ही स्त्री के भीतर बसे दो मनों की कहानी। स्त्री मन के इन दो रूपों को डॉ ज्योत्स्ना मिश्र ने बेहद कुशलता से अंजाम दिया। यही पर हुए पोएट्री इवेंट आवर में मंझे हुए दो कलाकार सौम्या कुलश्रेष्ठ और हरीश ने फैज, खुसरो, अमृता, इमरोज, साहिर को याद करते हुए खूबसूरत समां बांध दिया।

कथाकहन कार्यशाला के अंतिम दिन स्क्रीनप्ले, राइटिंग,बाल लेखन,कथाकहन से निकले सफल प्रतिभागियों का सत्र,साहित्य औऱ स्त्री, प्रतिभागियों से संवाद, किताब लिखने से बिकने तक के सत्र हुए। अभिनेत्री, स्क्रीनप्ले राइटर वाणी त्रिपाठी टिक्कू ने प्रतिभागियों को स्क्रीन प्ले की मास्टर क्लास में जयशंकर प्रसाद की लोकप्रिय क्लासिक कथा बेड़ी पर प्रतिभागियों को जोड़ते हुए संवाद किया कि वे इसका स्क्रीनप्ले कैसे बनेगा, इस पर दृश्य दर दृश्य सोचें। उन्होंने छोटे -छोटे टास्क भी रखे जिसे प्रतिभागियों ने बड़े उत्साह से पूरा किया।

हीरामंडी की स्क्रीन प्ले राइटर विभा सिँह ने कई फिल्मों के यादगार दृष्यों को प्रतिभागियों से साझा करते हुए कहा कि सही दिशा में धैर्य के साथ मेहनत औऱ आत्मविश्वास से आप आगे बढ़ सकते हैं।

इलेस्ट्रेटर कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ ने बच्चे क्या चाहते हैं अपनी कहानियों में सत्र में बोलते हुए कहा कि बच्चों के लिए कहानियाँ लिखना बच्चों का खेल नहीं। बच्चों को बहुत कहानियाँ चाहिए होती हैं।ईमानदारी औऱ सहजता से बाल लेखन करना चाहिए जिसमें दृश्य भी सरल हो।

नवीन चौधरी ने किताब लिखने से बिकने तक सत्र में आलिंद माहेश्वरी से विभिन्न मुद्दों पर बात की।

साहित्य औऱ स्त्री सत्र में उर्मिला शिरीष ने संवाद की शुरुआत में कहा कि कानोता में लेखकों का आदर औऱ सम्मान है। कथाकहन में वरिष्ठ से लेकर युवा कथाकार , चित्रकार, फ़िल्मकारों का जुटान बेजोड़ संगम है। उनसे संवाद करते हुए उमा ने कहा कि लेखन को स्त्री औऱ पुरुष खाँचों में क्यूँ रखा जाता है। उर्मिला शिरीष ने कहा मैं स्त्री विमर्श को ख़ारिज करती हूँ।

इस वर्ष नये सत्र कथाकहन पाठशाला में हिमाचल से देवकन्या, जयपुर से उजला लोहिया, अजमेर से विनीता बाड़मेरा, जयपुर से सोनू यशराज ने अपनी कथायात्रा औऱ कथाकहन के योगदान पर बातचीत की। हिमाचल से आई फिल्मकार  देवकन्या ने अपनी उपलब्धियां साझा की । उन्हें कई अंतराष्ट्रीय महोत्सवों में अपनी फिल्मों के लिए पुरस्कार मिल चुके। कथाकार उजला लोहिया ने बताया कि संगीत से छूटी लय साहित्य में मिली। पुराने जयपुर के किस्सों ने उन्हें किस तरह कहानियों की ओऱ मोड़ा।उन्होंने कहा कि समाज को लेकर मन में जब कोई कचोट या ऐसी बात हो जिसे कहने की तलब उठ रही हो तो कहानी एक बेहतर माध्यम है। विनीता बाड़मेरा ने कहा कि कहानी में शीर्षक, परिवेश, पात्रों का चरित्र चित्रण अहम भूमिका निभाते हैं, साथ ही वही कहानियां सार्थक और वास्तविक मानी जाएगी जिसमें मनुष्य की अच्छाइयां के साथ बुराइयों को भी सहज रूप से दिखाई जाए क्योंकि कोरे आदर्श और नैतिकता की दुहाई देती कहानियों का जमाना लद चुका है। कवि कथाकार सोनू यशराज ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कविता एक़ जंगल है तो कहानी उसकी पगडंडी।विषय की माँग के अनुरूप दोनों एक़ दूसरे में आवाजाही करते रहते हैं। कथाकहन से सीखते हुए जाना कि एक कहानी का नमक होता है उसका द्वंद।ये भी जाना कि अपने रचे से मोह नहीं रखना चाहिए। कथाकहन के पूर्व प्रतिभागी ऐश्वर्य मोहन गहराना ने सत्र का कुशल संचालन करते हुए कथाकहन  के माध्यम से कहानी लिखने के सफर को साझा किया। उन्होंने कहा कि साहित्य में रुचि बचपन से थी। कथाकहन में आकर लिखने का उत्साह बढ़ा है। इस महत्वपूर्ण अवसर पर सूर्यबाला, उर्मिला शिरीष, मनीषा कुलश्रेष्ठ के करकमलों द्वारा पूर्ति खरे की पहली किताब इत्ती सी बात के पोस्टर का भी विमोचन हुआ। पूर्ति ने कहा कि लेखन मेरे लिए शौक नहीं, जीवन की वह धारा है, जिसमें हर अनुभव शब्दों का रूप लेकर बहता है। 

अंत में 35 प्रतिभागियों से विस्तार से संवाद किया गया औऱ उन्हें सफलता पूर्वक प्रतिभागिता का सर्टिफिकेट भी दिया  गया। कला,संस्कृति औऱ साहित्य के संगम बने कानोता कैम्प रिसॉर्ट जयपुर में इस तीन दिवसीय कथाकहन कार्यशाला का ये पांचवा आयोजन सम्पन्न हुआ। – उजला लोहिया

आज का विचार

द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।

आज का शब्द

द्विशाखित होना The river bifurcates up ahead into two narrow stream. नदी आगे चलकर दो संकीर्ण धाराओं में द्विशाखित हो जाती है।

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