संजय की मम्मी का चेहरा फक्क पड़ गया जैसे चलती गाड़ी में से उन्हें किसी ने धक्का दे दिया हो।

” क्या कहा‚ तुम करवाचौथ नहीं रखोगी? सुहागिन होकर मेरे बेटे के लिये अशकुन करोगी?”
उसने दबी ज़बान में कहा था ” माँ जी ॐ आपसे या मुझसे संजय का कौन शुभचिन्तक हो सकता हैॐ लेकिन मैं ही क्यों अपनी वफादारी का सबूत दूँ? “
” हाँ‚ मम्मीॐ यह ज़िद कर रही है कि मैं भी इसके साथ व्रत रखूँ। नहीं तो यह भी व्रत नहीं रखेगी।”
” तो रख ले न तू भी‚ पत्नीव्रत निबाहते हुए करवाचौथ का व््रात।” मम्मी ने कड़वे स्वर में कहा था।
” आप तो जानती हैं कि मैं भूखा नहीं रह सकता। इसकी मर्ज़ी है‚ यह व्रत रखे न रखेॐ मम्मी जब मैं परवाह नहीं कर रहा तो आप क्यों चिन्ता कर रही हैं? “

संजय अधिक विवाद में पड़ना नहीं चाह रहा था‚ तौलिया उठा कर बाथरूम में चला गया था। वह तो तैयार थी‚ उसने चाय का प्याला खिसका कर उठना चाहा तो उन्होंने पापा जी से शिकायत की‚

” आप घर के मुखिया हैं। कुछ सुन रहे हैं? घर की बहू करवाचौथ का व्रत नहीं रख रही है।”
पापा जी ने अखबार के पीछे से ही उत्तर दिया था‚ ” आजकल के बच्चे हैं‚ उन्हें अपनी तरह से जीने दो। तुम क्यों अपना खून क्यों जलाती हो।”
” इससे संजय के लिये अपशकुन होता है। आप तो कुछ कहिये।”
” संजय चार पांच बरस ज्योति को जानने के बाद ब्याह कर लाया है। उसे अच्छी तरह पहचानता है। उनके बीच में मैं क्यों पड़ूँ?”

श्वसुर के उत्तर से उसने राहत की साँस ली। उसने की होल्डर में लटकी स्कूटर की चाभी उतारते हुए घड़ी देखी। वह आज भी पन्द्रह मिनट लेट थी।

पंकज की खिसियानी सूरत उसे बहुत याद आ रही थी। डबडबाई आँखों से बस उसका चेहरा ही तैर रहा था। पता नहीं‚ उसे बिस्तर पर पड़े पड़े रोते हुए कितनी देर हो गई। वह घिसटती हुई बाथरूम की तरफ गई व मुँह पर छींटे मारने लगी। तब भी पंकज का चेहरा आँखों से नहीं धो पायी।

माँ के घर भी ऐसा ही हंगामा हुआ था उस दिन जिस दिन उसने पंकज को राखी बाँधने से इनकार कर दिया था। तब शायद वह चौदह बरस की थी। माँ उसके कमरे में घुस आई थी‚ पीछे से दुबला पतला पंकज रोनी सूरत लिये आ गया था। माँ क्रोध में बोली थी —

” क्यों तूने क्या कहा था? तू राखी नहीं बाँधेगी? “
” हाँ।” वह सफेद कुरते सलवार में जॉगिंग कर रही थी।”
” लेकिन अब तक तो बाँधती आ रही है।”
” एक नासमझी के कारण। आजकल लड़के लड़कियाँ बराबर हैं। भाई की कलाई पर राखी बांध कर उससे रक्षा की भीख क्यों माग्ाूँ?”
” कैसी बहन है? ” माँ विस्फारित आँखों से उसे देखती रह गई थीं।

उसे मज़ाक सूझा था। वह अपने दुबले पतले भाई पर कराटे का ज़ोरदार वार करते हुए बोली थी‚

” ये पिद्दी‚ मेरी क्या रक्षा करेगा? मैं ही इसके काम आऊंगी।”

कराटे का वार ज़रा जोर से पड़ गया था। पंकज दर्द से एंठता हुआ ज़मीन पर बैठ गया था।

” अलेॐ अलेॐ मेले लाजा को जला जोल से चोट लग गई है न।”

तब उसे मनाने के लिये वह साईकिल पर कॉलोनी में घुमाती फिरती रही थी।.
अपनी जेब से पाँच रूपये की आईसक्रीम खिलानी पड़ी सो अलग।

शाम को पिताजी के आने पर माँ जैसे बरस पड़ी थी‚

” पता है आपकी लाड़ली ने क्या किया है?”
” क्या?” वह वॉशबेसिन पर हाथ धो रहे थे। उन्होंने उसकी तरफ घूम कर देखा।
” आज ज्योति ने पंकज को राखी नहीं बाँधी है। वह कहती है कि क्या वह कोई कमजोर प्राणी है जो रक्षा की भीख मांगेगीॐ”
” ज्योति ने ऐसा कहा है?” वह नैपकिन से हाथ पहुँचते हुए सीधे उसके पास चले आए थे। उसका माथा चूमते हुए बोले थे‚
” मैं तुम्हें ऐसा ही देखना चाहता था‚ एक चेतन प्राणी के रूप में। मुझे बहुत खुशी है कि मेरी बेटी ने आँचल वाली‚ आँसू भरी नारी से मुक्त होने की घोषणा कर दी है।”
” मतलब यह कि वह जो कर रही है‚ सही कर रही है? माँ छटपटाई थी।
” हाँ‚ जानती हो क्यों? मेरी माँ मेरे बाबूजी का निर्णय मानती थीं‚ तुम ज़रा सी बात के निर्णय के लिये मेरा मुँह देखती रहती हो। मेरी चौदह वर्ष की बेटी ने स्वतन्त्र होकर एक व्यक्ति के रूप में इतना बड़ा निर्णय लिया है‚ यह मेरे अभिमान का दिन है।”

तब दस वर्ष का पंकज कुछ समझा या नहीं समझा‚ लेकिन माँ के गले से यह सब उतरने वाला नहीं था। मुँह धोने के बाद भी कुछ काम करने का दिल नहीं हुआ। वह फिर निढाल बिस्तर पर बैठ गई। एक दिन में दुनिया कैसे बदल जाती है। लगता है जैसे आज तक की उसकी सोच‚ उसकी विचारधारा पर जैसे किसी ने तमाचा जड़ कर रख दिया हो।

करवाचौथ वाले दिन जब सास को रुष्ट करके आई थी तो ऑफिस में सिंघानिया ज्वैलर्स के घर का नक्शा बनाने में उसका दिल नहीं लग रहा था। सास का उतरा हुआ‚ खिसियाया चेहरा याद करके मन में बार बार एक कील सी चुभ रही थी। उस नक्शे का कागज उसने रोल करके रख दिया‚ कल जब मन स्थिर होगा तब बनाएगी। वह एक मामूली शॉपिंग कॉम्पलैक्स का नक्शा लेकर बैठ गई। थोड़ा बहुत काम करने के बाद वह तीन बजे छुट्टी लेकर घर चली आई।

मम्मी ने ही दरवाजा खोला था‚ “तुम?”
” हाँ‚ मम्मी आज आपका व्रत है न इसलिये शाम का खाना मैं ही बनाऊंगी।”
” नहीं‚ नहीं। तुम क्यों मेरे व्रत में खाना बनाओगी? आज तो होटल में जाकर मटन सटन खाओ।”
” मम्मी मैं जानती हूँ कि आप नाराज़ हैं‚ लेकिन पापा ने मुझे एक व्यक्ति के रूप में स्वतन्त्रता दी। संजय भी ऐसे ही हैं। व्रत न रखने के लिये आप मुझे माफ कर दीजिये‚ लेकिन आप पलंग पर से नहीं उतरेंगी।”

उसने चाय पीकर थोड़ा आराम करके शाम साढ़े सात बजे तक सारा खाना बना डाला। पूजा के लिये सूजी का हलवा बनाना नहीं भूली। उधर मम्मी ने कागज पर बनी करवाचौथ दीवार पर चिपका दी। उसके सामने फर्श को मिट्टी से लीप कर‚ आटे का चौक बनाकर मिट्टी की गौर उस पर रख दी। गौर पर बिंदी लगाकर उसे नये कपड़े का आँचल उढ़ा दिया। वह किसी बच्चे की तरह ठुनकते हुए बोली‚

” मम्मीॐ आज मैं आपको सजाऊंगी।”

उसने अपने हाथों से साड़ी प्रेस की उनके बालों में अपना बाज़ार से लाया गजरा लगाया। पैरों में नेलपॉलिश व आलता भी स्वयं लगाने बैठ गई। इतनी मक्खनबाजी के बीच उसे पता लग रहा था कि उसकी सास का अहं अब भी आहत है कि हमारी परम्पराओं को उखाड़ने तू कहाँ से चली आई।

मम्मी चाँद को अध्र्य चढ़ाते जाते समय बोली थीं‚ ” बहूॐ व्रत नहीं रखा‚ पूजा नहीं की‚ चाँद को तो अध्र्य चढ़ा ही दो।”
वह भरसक अपन स्वर नम््रा बनाते हुए बोली थी‚ ” मम्मी‚ चाँद पर आदमी पहुंच चुका है। वहाँ कंकड़ पत्थर के अलावा कुछ नहीं तो फिर किस श्रद्धा से उसकी पूजा करूं? “
” कुछ मत करो जो मन में आए वही करो।” वे पूजा की थाली उठाये बड़बड़ाते हुए सीढ़ियां चढ़ गईं। उसके ससुर ने उसके पास आकर सिर पर शाबासी भरी थपकी दी थी।
” संजय से तुम्हारे बारे में सुनता था। लेकिन सच ही मुझे खुशी है कि एक जागरुक व्यक्ति के रूप में तुम हमारे घर आई हो।”
” पापाजीॐ मैं भी किस्मत वाली हूँ। मुझे भी तो अपने पिताजी के घर जैसा खुला वातावरण मिला।”

शादी के बाद एक दूसरी तरह की परितृप्ति थी उसके मन में‚ उसके जीवन में संजय जैसा बेलौस साथी‚ ऑफिस में सभ्य सुसंस्कृत वातावरण। वह हैरान इस बात पर रह जाती थी कि भारत जैसे गरीब देश में लोगों के पास पैसा कहाँ से चला आ रहा है कि वे लाखों रुपये तो अपने मकान की डिज़ाईन बनवाने में ही खर्च कर देते हैं।

चीफ मूलगांवकर की कुशाग््रा बुद्धि पर वह पहली बार ही प्रभावित हो गयी थी। उसने अपने इंतरव्यू के समय डरते डरते उनके ऑफिस में प्रवेश किया था। मन ही मन स्थापत्य की कठिन से कठिन शैलियां दोहराती रही थी। पता नहीं क्या पूछ बैठे। जब उन्हें पता लगा कि उसने विश्वविद्यालय में अंतिम वर्ष में तीसरा स्थान प्राप्त किया है तो उन्होंने उससे कुछ नहीं पूछा था। बस सामने वाले कागज पर एक लाईन भर खींचने को कहा था। उसकी एक सीधी लाईन की सुघड़ता से उसकी स्थापत्य कला की प्रतिभा को पहचान कर उन्होंने उसे पच्चीस प्रत्याशियों में से चुन लिया था। वह भी मेहनत से काम करती थी। सिंघानिया ज्वैलर्स के बंगले की डिज़ाईन भी वह पूरी तन्मय होकर बनाना चाहती थी। जिससे ‘चीफ’ के मुंह से ‘वाह’ निकल सके। उनकी ‘वाह’ का मतलब होता है एक बोनस चैक। इसलिये आर्किटैक्ट कम तनखाह पाकर भी उनके यहाँ काम करना पसन्द करते हैं।

जब उसे विशेष काम मिलता तो अपनी पूरी संतुष्टि के लिये थर्मोकोल‚ गत्ते‚ प्लास्टिक या माचिस की तीलियों से ईमारत का पूरा मॉडल बना लेती।

मेहुल उसे चिढ़ाता भी था‚ ” लगता है तुम तो सपने में भी मॉडल बनाती रहती हो। इधर नक्शा तैयार किया उधर फटाफट मॉडल तैयार। अपने को तो पैन्सिल से नक्शा बनाने के बाद ऐसा लगता है कि जान छूटी।”
तब शीना बीच में कूद पड़ती है‚ ” तुम्हें तो गर्व होना चाहिये कि तुम्हें इतनी जीनियस आर्किटैक्ट के साथ काम करने का मौका मिल रहा है।”
नीलेश चुटकी लेता है‚ ” यह इतनी मेहनत इसलिये कर रही है जिससे बॉस से अधिक से अधिक बोनस चैक झटक सके।खुद का एक न्यारा बंगला बना सके।”
वह इत्मीनान से थर्मोकॉल के टुकड़ों पर खिड़की के डिज़ाईन बनाती उत्तर देती‚ ” तुम दोनों बच्चे काफी समझदार हो‚ तुमने ठीक पहचाना। म्ंोरा सबसे बड़ा सपना है कि मेरा भी एक प्यारा सा बंगला हो चाहे छोटा ही सही। सड़क पर जाने वाला हर एक व्यक्ति एक बार तो ठिठक कर सोचे कि यह डिज़ाईन किसने तैयार की है। वैसे घबराओ मत‚ अपने बंगले की उद्घाटन पार्टी में तुम सबको बुलाना नहीं भूलूंगी।”
सब एक स्वर में बोले थे‚ ” तुम्हारे घर के वास्तु में हम सब ज़रूर आएंगे‚ अपने सारे काम छोड़कर।”
उसकी आँखें हैरत से फट गईं‚ ” सारा काम छोड़ कर क्यों?”
” क्योंकि तुम्हारे वास्तु में ‘ चाँदला’ ह्य भेंट के रूपयेहृ नहीं देना पड़ेगा।”
” नहीं नहीं। तुम लोगों को अपने प्रदेश का रिवाज़ नहीं छोड़ना चाहिये। तुम सब चाँदला लेकर ज़रूर आना। मैं तुम लोगों का अपमान नहीं करना चाहती‚ और किसी से चाँदला लूं न लूं‚ तुमसे ज़रूर लूंगी।”

ज़िन्दगी जैसे हँसती‚ खिलखिलाती सरसराती बही जा रही थी। बस कभी कभी उसे लगता कि उसके चीफ उसमें ज़रूरत से ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। वह उनसे कुछ ऐसे दृढ़विश्वास से व्यवहार करती कि वे कुछ हल्की फुल्की बात करना भी चाहते तो वह तुरन्त मकान की डिज़ाईन की रूखी सूखी बातें करने लगती।

चीफ उन दिनों बहुत खुश थे। शहर के बहुत बड़े स्टील के व्यापारी दादूभाई इन्टरप्राईज़ेज का काम हाथ लगा था। वह पूरी तरह सावधानी से टमिवर्क करना चाहते थे। कहीं भी कोई ढलि नहीं छोड़ना चाहते थे कि उन लोगों को शिकायत का मौका मिले। नक्शे की डिज़ाईनिंग के साथ साथ उसके ‘इन्टीरियर डेकोरेशन’ का काम उसे ही सौंपा था।

दादू भाई ने ज़मीन घूमघाम कर दिखाई थी कि वे कहाँ क्या बनवाना चाहते हैं। उस खुली खुली ज़मीन को देख कर उसका मन भी मुग्ध हो गय था। उनके ही सपनों में उलझ रही थी। संजय का व्यवसाय यदि जम जाए‚ वह और मेहनत करे तो कभी ऐसी बड़ी खुली जगह पर अपना घर बनवाएगी। चीफ अपनी कार में लौतते हुए बहुत खुश थे।

उन्होंने गुनगुनाते हुए घोषणा की थी‚ ” आज तुम सबका लंच मेरी तरफ से।”
नीता ने कोहनी मारी थी‚” इस मक्खीचूस मधुमक्खी के छत्ते से अचानक शहद कैसे टपक पड़ा?

मंहगे होटल में खाना खाने के बाद नीता व मेहुल बॉस के मूड का पूरा पूरा फायदा उठा अपने घर के पास होने का बहाना लेकर रास्ते में एक एक कर उतर के खिसक लिये। उसका दिमाग अभी तक दादू भाई इन्टरप्राईज़ेज के नक्शे में उलझा था। कुछ बातें अभी भी साफ नहीं थीं। वह बहुत गंभीरता से चीफ से उन पर बहस करना चाहती थी। थोड़ी दूर जाने पर चीफ ने कार धीमी कर दी। कार के स्टियरिंग पर हाथ रखे हुए उन्होंने पीछे घूम कर देखा‚

” वो सामने से जो तीसरा स्काईस्क्रेपर देख रही हो न?”
“जी।”
” इसी में मैंने एक नया फ्लैट खरीदा है।”
” रियली। काँग्रेट्स‚ लोकेशन बहुत अच्छी है।” वह उसे तौलती नज़रों से देखने लगे थे।
” मैं ने अपनी फैमिली अभी वहाँ शिफ्ट नहीं की है। आपका मूड हो तो वहाँ चला जाये। चाबी मेरे पास है।”

उन्होंने एक हाथ से स्टियरिंग संभाली दूसरा पैन्ट की जेब में डालकर फ्लैट की चाबी उसके सामने लटका दी। वह हतप्रभ क्या बिलकुल काठ हो गयी। उन्होंने ऐसा सोच भी कैसे लिया? एक गुस्से की चिनगारी से उसके होंठ फड़फड़ा उठे‚

” वॉट डू यू मीन बाई मूड? आपने मुझे समझ क्या रखा है?”
” मैं ने तो तुम्हें बहुत कुछ समझ रखा है‚ लेकिन शायद तुम ही कुछ समझना नहीं चाहती या जानबूझ कर बन रही हो।”
” वॉट डू यू मीन?”
” इतने सारे मुझसे बोनस चैक ले चुकी हो और आज मतलब पूछ रही हो? “
” बोनस चैक देना ऑफिस का नियम है। बिईंग ए फाईन आर्किटैक्ट आई डिजर्व फॉर दैट।”
” तुम ‘ डिजर्व’ तो बहुत कुछ करती होॐ कभी अपने आपको पहचाना है?” उन्होंने उस पर भद्दी दृष्टि डाली।
” मुझे पता होता कि बोनस चैक मेरे काम के लिये नहीं मिल रहे‚ बल्कि मेहरबानी करके आप मुझे दे रहे हैं‚ तो मैं उसी समय इन्हें फाड़कर आपके मुंह पर फेंक जाती मि। मूलगांवकर।”
” क्या तुम समझती नहीं थी क्या कि इतने भारी भरकम चैक क्या फालतू ही कोई लुटाता रहेगा क्या?”
” मेरी यह पहली नौकरी है। आगे के लिये यह बात समझ में आ जायेगी। जरूरी थोड़े ही है‚ सब आप जैसे ही हों। आई एम वर्किंग इन योर ऑफिस एज़ ए पर्सन नॉट एज़ ए फीमेल। घाड़ी तेज करिये सीधे ऑफिस चलिये।”

उसके घृणा से लबालब भरे स्वर में पता नहीं कैसा आत्मविश्वास था कि मूलगांवकर ने सिटपिटा कर एक्सलरेटर पर पांव रख दिया। ऑफिस से अपना स्कूटर उठा कर रास्ता पार करती वह आज किस तरह घर पहुंची है उसे होश नहीं। आज पहली बार पलंग पर उलटी लेट वह सिसक रही है। एक तीखी घृणा ने उसे अन्दर तक हिला दिया है। वह अन्दर तक बेहद आहत व अपमानित महसूस कर रही है।

शाम को संजय ऑफिस से आकर उसकी सूजी आँखें देख कर चौंक उठते हैं‚ ” यह क्या हालत बना ली है?”

वह उसके गले में बांहें डालकर हिचकी भर भर कर रो उठती है। उन्हीं सिसकियों के बीच उसने उन्हें वह सब कुछ कह सुनाया। संजय से पत्नी का अपमानित चेहरा देखा नहीं जा रहा था‚ लेकिन उन्होंने अपने को सहज बनाते हुए कहा‚

” इतनी सी बात के लिये रो रही हो? मैं तुम्हें औरों से अलग समझता था। भई‚ मैं तो यही मानता हूँ कि गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में।”
” तुम शायद मेरी पीड़ा मेरा अपमान नहीं समझ सकते। आज मैं ने जीवन में पहली बार जाना है मैं स्त्री हूँ‚ मात्र एक स्त्री। मैं मूलगांवकर आर्किटैक्ट्स में अब फिर पांव भी नहीं रखूंगी।”
” तुम इतनी क्यों हताश हो रही हो? तो तुमसे कहता कौन है कि नौकरी करो।”
” तुम जानते हो मैं घर पर खाली नहीं बैठ सकती।”
” जब मन स्थिर हो जाए तो दूसरी नौकरी ढूँढ लेना।”

संजय अपनी बांहों से उसके कन्धे घेर लेता है। वही सहारा उसे बेहद राहत पहुंचाता है। उसे पहली बार लगता है‚ क्यों सिर्फ नारी बहन के रूप में भाई की कलाई पर राखी बांधती है। क्यों सिर्फ नारी पति पुरुष का फूलों के हार से बांधने की पहल करती है। उसे लगता है वह इसी सुदृढ़ सहारे पर टिकी ऐसी स्थितियों से जूझती कहीं दूर निकल जाएगी।

इस घटना के बाद अगले हफ्ते वह रसोई में सबके लिये नाश्ता तैयार कर रही है। मम्मी वहीं आकर कहती हैं‚

“आज मेरे लिये चाय व नाश्ता मत बनाना। आज मेरा करवाचौथ का व््रात है।”
” मम्मी आज मैं भी करवाचौथ का व्रत रखूंगी।” वह नीरीह दृष्टि से उन्हें देखती है।”
” क्या? तुम…तुम करवाचौथ का व्रत रखोगी? ” उनका चेहरा एक उत्तेजित खुशी से छलछला आया है‚
” …लेकिन तुम्हें क्या ज़रूरत पड़ गई व््रात करने की?”
” बस‚ ऐसे ही अन्दर से मन हो रहा है।”
” ठीक है‚ तो तुम जाकर आराम करो‚ मैं नाश्ता बना देती हूँ।”

वे उत्साह से छलकती हुई उसे रसोई से बाहर कर देती हैं।

वह रात को शादी का गोटा जड़ा लंहगा पहने‚ माथे पर बड़ी सी चमकती बिन्दी लगाये‚ पैरों में आलता सजाये‚ सास के साथ पायल छनकाती सीढ़ियों पर चढ़ जाती है। चाँद को देख कर असमंजस की स्थिति में है। कितनी बार कंकड़‚ पत्थर‚ गड्ढे वाले चाँद को अध्र्य देती माँ का मज़ाक उड़ाया है।

माँ हमेशा वही उत्तर देती थीं‚ ” हो आया होगा आदमी चाँद पर। हम तो इस जनम में वहाँ पर पहुँचने वाले नहीं हैं। रात्रि के अंधकार को अपनी चाँदनी से नष्ट करने वाले चाँद को यदि मैं सृष्टिकर्ता का रूप मान मैं‚ अपने सुहाग की कामना करते हुए जल चढ़ा रही हूँ तो क्या बुरा कर रही हूँ?”
” अब बहूॐ तुम भी यहाँ जल चढ़ा दो।” सास के स्वर से उसकी तन्द्रा टूटती है।

वह भी ढेरों चूड़ी पहने हुए हाथ से करवे से चाँद के सामने जल चढ़ाने लगती है। उसे लगता है करवा चौथ या रक्षाबन्धन उसकी बेड़ियां नहीं है। सिर्फ उस धारणा के प्रतीक चिन्ह हैं‚ जो युग युगान्तर से अविरत चली आ रही नारी के इर्द गिर्द नारीत्व की सूक्ष्म शाश्वत सीमा – रेखा खींचते आये हैं। जिनके पार स्कूटर या हीरोहोण्डा पर बैठ कर तेज गति से आज भी जाया नहीं जा सकता।

चन्द्रमा के धवल रूप पर काजल लगी नजर टिकाये उसके मन में दर्द की भारी लकीर लहक रही है। सृष्टि के जननहार सृष्टिकर्ता ने उसकी देह को सर्वोच्च सम्मान दिया है। वही जननहारी अपनी देह रचना के कारण कभी भी अपमानित की जा सकती है। बड़ा विद्रूप मजाक सा लगता है न।लेकिन जीवन का यही नियम है‚ जीवन की कोई भी बड़ी उपलब्धि अपना पूरा पूरा मोल लेती है न।

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आज का विचार

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

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