अधूरी रात
ऑफिस होता तो उनके बुलाने पर आर्यन फोन को अधूरी बात के बीच पटककर कांपता-भागता चला आता।पर यह रोली मैम का घर था।इस नशीली रात के रुपहले साए में आर्यन उनका अधीनस्थ-मातहत नहीं, बल्कि उनकी रात को गुलज़ार कर देने आया राजकुमार था।वे सब्र से बैठी रहीं।
आर्यन की फोन पर बात चल रही थी, जिसकी फुसफुसाहट यहां सुनाई दे रही थी।वह पर्दे के पीछे ड्राइंग रूम में टहल कर बात कर रहा था।
दूध ठंडा हो रहा था।
रोली मैम ने एक भरपूर अंगड़ाई ली और उड़ती निगाह से दूध के गिलास को देखा।
उन्होंने दूध के गिलास की आड़ में अपनी अकुलाहट आर्यन तक पहुंचाने की कोशिश की, कुछ ज़ोर से बोलीं- ‘दूध ठंडा हो रहा है आर्यन! अब क्या मुझे फिर से किचन में जाना होगा इसे गर्म करने के लिए?’
आर्यन ने एक हाथ से मोबाइल थामे हुए दूसरे से ड्राइंग रूम का पर्दा हटाया और भीतर आकर गिलास उठा ले गया।वह वापस लौट गया, ड्राइंग रूम का हिलता पर्दा मानो रोली मैम को मुंह चिढ़ाता रहा।
रोली मैम माथे पर हाथ रख कर तकिए पर अधलेटी हो गईं।
आर्यन की आवाज वैसे ही बदस्तूर आती रही।बीच-बीच में वह गिलास उठा कर दूध का घूंट सिप कर लेता और फिर बातों में मशगूल हो जाता।
रात का डेढ़ बज रहा था।
रोली मैम के घर को इतनी रात गए तक बत्तियां जली देखने की आदत कहां रह गई थी।कभी- कभी जब बिटिया दशा आती, तब जरूर देर रात तक बातों के साथ जागरण होता।
रोली मैम ने बैडरूम की तेज लाइट बुझा कर हल्का-सा नाइट लैंप ऑन कर लिया।
इस नीली-रुपहली रोशनी में ड्राइंग रूम के पर्दे के पीछे टहलता आर्यन जब पर्दे के गैप के बीच से गुजरता तो रोली मैम को लगता, मानो साक्षात कामदेव उनके शयनकक्ष में दाखिल होने से पहले कायनात का जायजा ले रहा हो!
ओह, हल्की-सी झपकी के खुमार से छिटक कर रोली मैम की उनींदी आंखों ने दीवार पर टंगी घड़ी पर निगाह डाली तो वो सवा दो बजने का संकेत दे रही थी।
आर्यन की फुसफुसाहट जारी थी।
रोली मैम एक बार उठकर फिर से वाशरूम में गईं और जब लौटीं तो उनकी आंखों की चमक का रंग जरा-सा बदला हुआ था।मानो इंद्रधनुष की दुनिया में झूलती आंखों ने वॉयलेट, इंडिगो, ब्लू और ग्रीन रंग पार कर लिए हों और अब पीलेपन की ओर बढ़ रही हों।
वे पर्दा हटा कर ड्राइंग रूम में आईं और झल्लाहट भरे स्वर में बोलीं- टू हूम आर यू टॉकिंग मैन! इज़ ही ओर शी अ नाइट शिफ्ट वर्कर? व्हाट हैपेंड, इट्स थ्री ओ क्लॉक!
आर्यन उनके इस तेवर से सकपका गया।जल्दी से फोन को होल्ड पर लेकर उस पर हाथ रख कर बोला- ‘आप सो जाइए मैम! मैं यहां ड्राइंग रूम में सो जाऊंगा।’
रोली मैम हतप्रभ रह गईं।फिर एकाएक संभल कर बोलीं- ‘यहां कैसे सोओगे सोफे पर, वहां बैड है न खाली,…कम!’
– ‘आप सो जाइए, मुझे एक पिलो दे दीजिए यहीं।मैं सो जाऊंगा, नो प्रॉब्लम।’
– ‘अरे नहीं-नहीं… यहां कैसे सो पाओगे।’
– ‘तो मैं आ जाऊंगा भीतर, आप सो जाइए।’ आर्यन ने मानो अनुनय-सा करते हुए कहा।
– ‘बट ऐसे मुझे नींद नहीं आएगी…’
– ‘तो मैं चला जाता हूँ।’ आर्यन ने कुछ हैरानी से कहा।
अब रोली मैम हत्थे से ही उखड़ गईं।बोलीं- ‘एज़ यू विश! इतनी रात में तुम्हें कोई व्हीकल मिलेगा?’
आर्यन कुछ सकपकाया, फ़िर मायूस होकर बोला- ‘पैदल चला जाऊंगा।’
रोली मैम उसी तल्खी से बोलीं- ‘ओके, स्कूटी ले जाओ, परसों ले आना ऑफिस में!’
वे किसी शेरनी की भांति पलटकर भीतर स्कूटी की चाबी लेने गईं, और आर्यन झटपट शॉर्ट्स उतार कर जींस पहनने लगा।उसने अपने शूज़ पांवों में ऐसे ही बिना लेस बांधे डाल लिए और रोली मैम के हाथ से चाबी लेकर बाहर निकल गया।
उसने स्कूटी को इतनी तेजी से भगाया मानो किसी भारी बाइक पर सवार हो।रोली मैम कांप कर रह गईं।
उन्होंने धड़ाक से दरवाजा बंद किया और बत्ती गुल करके किसी कटे पेड़ के मानिंद ढह कर अपने बिस्तर पर आ गईं।
उनकी रुलाई फूट पड़ी।
वह घंटे भर तक ऐसी ही बदहवासी की हालत में रोती रहीं और अपने परिवार और बीते दिनों को याद करती रहीं।उन्हें दशा की याद भी बेसाख्ता आ रही थी और दशा के पापा की भी! नींद आंखों से कोसों दूर थी।
आर्यन पर गुस्सा आ रहा था और हैरत भी थी।वह आया क्यों था? क्या सचमुच वह बच्चा ही है, क्या अपने अफसर की आज्ञा मानकर डर से चला आया, क्या उनके अकेलेपन को बांटने की मासूम चाह लेकर ही आ गया था।
कहीं ऐसा तो नहीं कि दशा को याद करके, भविष्य में उससे मिल पाने का सपना देखता, उनसे अपनापन बढ़ाने के लिए चला आया हो? दशा भी तो अब पंद्रह पार कर रही थी।
ये सब सोचते-सोचते भोर के न जाने कौन से पहर में रोली मैम को नींद आई।
आर्यन ने रात वापस लौट कर दोस्तों से कुछ नहीं बताया, मगर भीतर से वह अपने को अपमानित महसूस कर रहा था।अगले दिन उसका मन किसी बात में नहीं लगा।
उसे पूरी आशंका थी कि अब उसकी नौकरी रहने वाली नहीं है।घर पर मां को क्या जवाब देगा!
सोमवार को उसका मन ऑफिस जाने को नहीं था।उसने नौकरी से निकाले जाने से पहले ही खुद त्यागपत्र दे देने का मन बना लिया।कैरियर के शुरू में इस तरह किसी ऑफिस से निकाले जाने का दाग वह नहीं लेना चाहता था।
मगर रोली मैम की स्कूटी लौटाने के लिए जाना जरूरी था।
सोमवार की सुबह भारी मन से वह तैयार हुआ।उसने अपना त्यागपत्र जेब में रख लिया।
सुबह नाश्ता भी नहीं किया, और ऑफिस के लिए निकल पड़ा।
ऑफिस में सब यथावत था।जैसे कुछ हुआ ही न हो।होना भी क्या था, झंझावात तो आर्यन की जिंदगी में आया था।किसी का उससे क्या लेना देना!
रोली मैम अपने केबिन में थीं।
थोड़ी देर बाद आर्यन के लिए उनका बुलावा आया तो वह भारी कदमों से केबिन की ओर चल पड़ा।
भीतर पहुंच कर उसने रोली मैम को नमस्कार किया।न वह उनकी ओर देख रहा था, और न मैम ही उसकी ओर देख रही थीं।
जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो।रोली मैम ने आर्यन से कहा- ‘यह फाइल तुमने भेजी थी न, एक बार नाइन नंबर वाला एस्टीमेट फिर से चैक करो बेटा!’ कह कर रोली मैम ने फाइल उसकी तरफ़ खिसका दी।
आर्यन चौंक पड़ा, इसलिए नहीं कि आज पहली बार उसके बनाए एस्टीमेट में गलती निकली है, बल्कि इसलिए कि आज पहली बार रोली मैम ने उसे ‘बेटा’ कहा।उसके भीतर कहीं दर्जनों बत्तियां जल गईं।उसने जेब से निकाल कर स्कूटी की चाबी रोली मैम को दी।
रोली मैम की अंगुलियों ने आर्यन से चाबी लेते हुए जब उसकी हथेली को छुआ तो आर्यन ने हथेली को हटाया नहीं, बल्कि मेज की दूसरी ओर जाकर धीरे से झुक कर मैम के पांव छू लिए।
रोली मैम हतप्रभ रह गईं।
कुछ रुक कर वे धीरे से बोलीं- ‘बेटा, तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है क्या?’
आर्यन शरमा कर बोला – ‘जी नहीं मैम, मैं रात को गांव में फोन पर ही अपनी छोटी बहन को मैथ्स पढ़ाता हूँ, पापा तो हैं नहीं न, और मम्मी पढ़ी-लिखी नहीं हैं।’
रोली मैम ने तेजी से अपनी रिवॉल्विंग चेयर पीछे घुमा ली, ताकि केबिन से जाता हुआ आर्यन कहीं उन्हें रोते हुए न देख ले!
उनकी आंखों की हताशा के पीले रंग ने क्रोध के नारंगी रंग को पारकर, पश्चाताप के लाल डोरे अब आंसुओं में डुबो दिए थे।