हम लोग अपने जूते समुद्र तट पर ही मैले कर चुके थे। जहाँ ऊंची – ऊंची सूखी रेत थी, उसमें चले थे और अब हरीश के जूतों की पॉलिश व मेरे पंजों पर लगी क्यूटेक्स धुंधली हो गयी थी। मेरी साडी क़ी परतें भी इधर उधर हो गयीं थीं। मैं ने हरीश से कहा, ” उन लोगों के घर फिर कभी चलेंगे।”

” हम कह चुके थे लेकिन! ”
” मैं ने आज भी वही साडी पहनी हुई है। ” मैं ने बहाना बनाया। वैसे बात सच थी। ऐसा सिर्फ लापरवाही से हुआ था। और भी कई साडियां कलफ लगी रखीं थीं पर मैं, पता नहीं कैसे यही साडी पहन आई थी।
” तुम्हारे कहने से पहले मैं यह समझ गया था।” हरि ने कहा। उसे हर बात का पहले से ही भान हो जाता था, इससे बात आगे बढाने का कोई मौका नहीं रहता। फिर हम लोग चुप चुप चलते रहते, इधर उधर के लोगों व समुद्र को देखते हुए। जब हम घर में होते, बहुत बातें करते और बेफिक्री से लेटे लेटे ट्रांजिस्टर सुनते। पर पता नहीं क्यों बाहर आते ही हम नर्वस हो जाते। हरि बार बार अपनी जेब में झांक कर देख लेता कि पैसे अपनी जगह पर हैं कि नहीं, और मैं बार बार याद करती रहती कि मैं ने आलमारी में ठीक से ताला लगाया कि नहीं।

हवा हमसे विपरीत बह रही थी। हरीश ने कहा, ” तुम्हारी चप्पलें कितनी गन्दी लग रही हैं। तुम इन्हें धोती क्यों नहीं? ”
” कोई बात नहीं, मैं इन्हें साडी में छिपा लूंगी।” मैं ने कहा ।
हम उन लोगों के घर के सामने आ गये थे। हमने सिर उठा कर देखा, उनके घर में रोशनी थी।

” उन्हें हमारा आना याद है।”
उन्हें दरवाजा खोलने में पांच मिनट लगे। हमेशा की तरह दरवाजा प्रबोध ने खोला। लीला लेटी हुई थी। उसने उठने की कोई कोशिश न करते हुए कहा, ” मुझे हवा तीखी लग रही थी।” उसने मुझे भी साथ लेटने के लिये आमंत्रित किया। मैं ने कहा, ” मेरा मन नहीं है। ” उसने बिस्तर से मेरी ओर  फिल्मफेयर  फेंका। मैं ने लोक लिया।

हरि आंखें घुमा घुमा कर अपने पुराने कमरे को देख रहा था। वहा यहां बहुत दिनों बाद आया था। मैं ने आने ही नहीं दिया था। जब भी उसने यहां आना चाहा था, मैं ने बियर मंगवा दी थी और बियर की शर्त पर मैं उसे किसी भी बात से रोक सकती थी। मुझे लगता था कि हरि इन लोगों से ज्यादा मिला तो बिगड ज़ायेगा। शादी से पहले वह यहीं रहता था। प्रबोध ने शादी के बाद हमसे कहा था कि हम सब साथ रह सकते हैं। एक पलंग पर वे और एक पर हम सो जाया करेंगे, पर मैं घबरा गई थी। एक ही कमरे में ऐसे रहना मुझे मंजूर नहीं था, चाहे उससे हमारे खर्च में काफी फर्क पडता। मैं तो दूसरों की उपस्थिति में पांव भी ऊपर समेट कर नहीं बैठ सकती थी। मैं ने हरि से कहा था, मैं जल्दी नौकरी ढ/ूढ लूंगी, वह अलग मकान की तलाश करे। 

प््राबोध ने बताया, उसने बाथरूम में गीज़र लगवाया है। हरीश ने मेरी तरफ उत्साह से देखा, ” चलो देखें।”

हम लोग प्रबोध के पीछे पीछे बाथरूम में चले गये। उसने खोलकर बताया। फिर उसने वह  पैग  दिखाया जहां तौलिया सिर्फ खोंस देने से ही लटक जाता था। हरि बच्चों की तरह खुश हो गया।

जब हम लौट कर आये लीला उठ चुकी थी और ब्लाउज क़े बटन लगा रही थी। जल्दी जल्दी में हुक अन्दर नहीं जा रहे थे। मैं ने अपने पीछे आते हरि और प्रबोध को रोक दिया। बटन लगा कर लीला ने कहा, ” आने दो, साडी तो मैं उनके सामने भी पहन सकती हूँ।”
वे अन्दर आ गये।

प््राबोध बता रहा था, उसने नये दो सूट सिलवाये हैं और मखमल का  क्विल्ट खरीदा है, जो लीला ने अभी निकालने नहीं दिया है। लीला को शीशे के सामने इतने इत्मीनान से साडी बांधते देख कर मुझे बुरा लग रहा था।
और हरि था कि प्रबोध की नई माचिस की डिबिया भी देखना चाहता था। वह देखता और खुश हो जाता जैसे प्रबोध ने यह सब उसे भेंट में दे दिया हो।

लीला हमारे सामने कुरसी पर बैठ गई। वह हमेशा पैर चौडे क़रके बैठती थी, हालांकि उसके एक भी बच्चा नहीं हुआ था। उसके चेहरे की बेफिक्री मुझे नापसंद थी। उसे बेफिक्र होने का कोई हक नहीं था। अभी तो पहली पत्नी से प्रबोध को तलाक भी नहीं मिला था। और फिर प्रबोध को दूसरी शादी की कोई जल्दी भी नहीं थी। मेरी समझ में लडक़ी को चिन्तित होने के लिये यह पर्याप्त कारण था।

उसे घर में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने कभी अपने यहाँ आने वालों से यह नहीं पूछा कि वे लोग क्या पीना चाहेंगे। वह तो बस सोफे पर पांव चौडे क़र बैठ जाती थी।

हर बार प्रबोध ही रसोई में जाकर नौकर को हिदायत देता था। इसलिये बहुत बार जब हम चाय की आशा करते होते थे, हमारे आगे अचानक लेमन स्क्वैश आ जाता था। नौकर स्क्वैश अच्छा बनाने की गर्ज से कम पानी ज्यादा सिरप डाल लाता था। मैं इसलिये स्क्वैश खत्म करते ही मुंह में  जिन्तान की एक गोली डाल लेती थी।

प्रबोध ने मुझसे पूछा, ” कहीं एप्लाय कर रखा है? ”
” नहीं ” मैं ने कहा ।
” ऐसे तुम्हें कभी नौकरी नहीं मिलनी। तुम भवन वालों का डिप्लोमा ले लो और लीला की तरह काम शुरु करो।”
मैं चुप रही। आगे पढने का मेरा कोई इरादा नहीं था। बल्कि मैं ने तो बी ए भी रो रोकर किया है। नौकरी करना मुझे पसन्द नहीं था। वह तो मैं हरि को खुश करने के लिये कह देती थी कि उसके दफ्तर जाते ही मैं रोज
 आवश्यकता है  कॉलम ध्यान से पढती हूँ और नौकरी करना मुझे थ्रिलिंग लगेगा।

फिर जो काम लीला करती थी उसके बारे में मुझे शुबहा था। उसने कभी अपने मुंह से नहीं बताया कि वह क्या करती थी। हरि के अनुसार, ज्यादा बोलना उसकी आदत नहीं थी। पर मैं ने आज तक किसी वर्किंग गर्ल को इतना चुप नहीं देखा था।

प्रबोध ने मुझे कुरेद दिया था। मैं भी कुरेदने की गर्ज से कहा, ” सूट क्या शादी के लिये सिलवाये हैं? ”
प्रबोध बिना झेंपे बोला – ” शादी में जरीदार अचकन पहनूंगा और  सन एण्ड सैण्ड  में दावत दूंगा। जिसमें सभी फिल्मी हस्तियां और शहर के व्यवसायी आयेंगे। ळाीला उस दिन इम्पोटर्ेड विग लगायेगी और रूबीज़ पहनेगी।”
लीला विग लगा कर, चौडी टांगे करके बैठेगी – यह सोच कर मुझे हंसी आ गई। मैं ने कहा, ” शादी तुम लोग क्या रिटायरमेन्ट के बाद करोगे क्या?”

लीला अब तक सुस्त हो चुकी थी। मुझे खुशी हुई। जब हम लोग आये थे उसे डनलप के बिस्तर में दुबके देख मुझेर् ईष्या हुई थी। इतनी साधारण लडक़ी को प्रबोध ने बांध रखा था, यह देख कर आश्चर्य होता था। उसकी साधारणता की बात मैं अकसर हरि से करती थी। हरि कहता था कि लीला प्रबोध से भी अच्छा आदमी डिजर्व करती थी। फिर हमारी लडाई हो जाया करती थी। मुझे प्रबोध से कुछ लेना देना नहीं था। शायद अपने नितान्त अकेले और ऊबे क्षणों में भी मैं प्रबोध को ढलि न देती पर फिर भी मुझे चिढ होती थी कि उसकी पसन्द इतनी सामान्य है।

प्रबोध ने मेरी ओर ध्यान से देखा, ” तुम लोग सावधान रहते हो न अब? ”
मुझे सवाल अखरा। एक बार प्रबोध के डाक्टर से मदद लेने से ही उसे यह हक महसूस हो, मैं यह नहीं चाहती थी। और हरीश था कि उसकी बात का विरोध करता ही नहीं था।

प्रबोध ने कहा, ” आजकल उस डॉक्टर ने रेट बढा दिये हैं। पिछले हफ्ते हमें डेढ हजार देना पडा।”
लीला ने सकुचाकर, एक मिनट के लिये घुटने आपस में जोड लिये।
” कैसी अजीब बात है, महीनों सावधान रहो और एक दिन के आलस से डेढ हज़ार रूपये निकल जायें।” प्रबोध बोला।
हरि मुस्कुरा दिया, उसने लीला से कहा, ” आप लेटिये, आपको कमजोरी महसूस हो रही होगी।”
” नहीं।” लीला ने सिर हिलाया।

मेरा मूड खराब हो गया। एक तो प्रबोध का ऐसी बात शुरु करना ही बदतमीजी थी, ऊपर से इस सन्दर्भ में हरि का लीला से सहानुभूति दिखाना तो बिलकुल नागवार था। हमारी बात और थी। हमारी शादी हो चुकी थी। बल्कि जब हमें जरूरत पडी थी तो मुझे सबसे पहले लीला का ध्यान आया था। मैं ने हरि से कहा था, ”चलो लीला से पूछें, उसे ऐसे ठिकाने का जरूर पता होगा।”

लीला मेरी तरफ देख रही थी, मैं ने भी उसकी ओर देखते हुए कहा, ” तुम तो कहती थी, तुमने मंगलसूत्र बनाने का आर्डर दिया है।”
” हाँ, वह कबका आ गया। दिखाऊं? ” लीला आलमारी की तरफ बढ ग़ई।
प््राबोध ने कहा, ” हमने एक नया और आसान तरीका ढूंढा है, लीला जरा इन्हें वह पैकेट”
मुझे अब गुस्सा आ रहा था। प्रबोध कितना अक्खड है – यह मुझे पता था। इसीलिये हरि को मैं इन लोगों से बचा कर रखना चाहती थी।
हरि जिज्ञासावश उसी ओर देख रहा है जहाँ लीला आलमारी में पैकेट ढूंढ रही है।
मैं ने कहा, ” रहने दो मैं ने देखा है।”
प््राबोध ने कहा, ” बस ध्यान देने की बात यह है कि एक भी दिन भूलना नहीं है। नहीं तो सारा कोर्स डिस्टर्ब। मैं तो शाम को जब नौकर चाय लेकर आता है तभी एक गोली ट्रे में रख देता हूँ।”
लीला आलमारी से मंगलसूत्र लेकर वापस आ गई थी, बोली – ” कभी किसी दोस्त के घर इनके साथ जाती हूँ तब पहन लेती हूँ।”
मैं ने कहा, ” रोज तो तुम पहन भी नहीं सकती ना  कोई मुश्किल खडी हो सकती है।” कुछ ठहर कर मैं ने सहानुभूति से पूछा, ” अब तो वह प्रबोध को नहीं मिलती ?”
लीला ने कहा, ” नहीं मिलती।”
उसने मंगलसूत्र मेज पर रख दिया।

प््राबोध की पहली पत्नी इसी समुद्र से लगी सडक़ के दूसरे मोड पर अपने चाचा के यहाँ रहती थी। हरि ने मुझे बताया था, शुरु शुरु में जब वह प्रबोध के साथ समुद्र पर घूमने जाता था, उसकी पहली पत्नी अपने चाचा के घर की बालकनी में खडी रहती थी और प्रबोध को देखते ही होंठ दांतों में दबा लेती थी। फिर बालकनी में ही दीवार से लगकर बाँहों में सिर छिपा कर रोने लगती थी। जल्दी ही उन लोगों ने उस तरफ जाना छोड दिया था।

प््राबोध ने बात का आखिरी टुकडा शायद सुना हो क्योंकि उसने हमारी तरफ देखते हुए कहा, ” गोली मारो मनहूसों को! इस समय हम दुनिया के सबसे दिलचस्प विषय पर बात कर रहे हैं।क्यों हरि, तुम्हें यह तरीका पसन्द
आया? ”
हरि ने कहा, ” पर यह तो बहुत भुलक्कड है। इसे तो रात को दांत साफ करना तक याद नहीं रहता।”
मैं कुछ आश्वस्त हुई। हरि ने बातों को  ओवन  से निकाल दिया था। मैं ने खुश होकर कहा, ” पता नहीं मेरी याददाश्त को शादी के बाद क्या हो गया है? अगर ये न हों तो मुझे तो चप्पल पहनना भी भूल जाये।”
हरि ने अचकचा कर मेरे पैरों की तरफ देखा। वादे के बावजूद मैं पांव छिपाना भूल गई थी।

उठते हुए मैं ने प्रबोध से कहा, ” हम लोग बरट्रोली जा रहे हैं, आज स्पेशल सेशन है, तुम चलोगे? ”
प्रबोध ने लीला की तरफ देखा और कहा, ” नहीं अभी इसे नाचने में तकलीफ होगी।”

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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