”अपने मोती सुअरों के आगे मत डालो, वरना वे उसे सूंघ कर छोड देंगें और पलट कर तुमको फाड ड़ालेंगे।” बाईबल का सफा उसने तेजी से पल्टा, उसका दिल किसी तरह काबू में नहीं आ रहा था। पासपोर्ट की तफसील का कागज़ सफे में दब गया, उसने निकाला स्याह लफ्ज़ों में साफ साफ लिखा था –

नाम : जैसमीन बलमोट
उम्र: 32 साल
रंगत: गहरी सांवली
बाल: काले
कद: पांच फीट चार इंच
पहचान : दाहिने रुखसार पर स्याह तिल
पता:

जैसमीन बलमोट के सफरी थैले में बाइबल का न्यू टेस्टामेन्ट हमेशा रहता था। उसके पापा का कहना था कि दुआएं तमाम बलाओं से महफूज रखती हैं। लेकिन आज कोई दुआ काम न आई थी। रब्बे औला, खुदा बाप ने उसकी कोई मदद नहीं की। घर से निकलते वक्त पापा हमेशा यही दुआ देते थे, ” खुदा बाप इस बे-माँ की बच्ची की मदद करना।” वह बेसाख्ता हंस पडती।

”पापा तुम्हारी खूंखार लडक़ी की तरफ कोई बला आते हुए भी डरती है।” पापा की आंखें सातवें आसमान पर खुदा को ढूंढने लगतीं। वह जमीन के शैतानों को तलाश करने निकल पडती। पुलिस की नौकरी ही ऐसी होती है अच्छे अच्छों को सख्त जान बना देती है।

रात में उसने कई बार उठकर सूटकेस से अपनी पिस्तौल निकाली, देखा, फिर रख दिया। हाथ में लिया, गोलियां गिनीं – अपनी कनपटी तक पिस्तौल ले गयी। सूखा, चिमरिख ताड क़े पेड क़ी तरह लम्बा। उसका चेहरा कहकहा लगाता हुआ नजर आया, जी चाहा तड से गोली चला दे अपनी कनपटी पर। व्हील चेयर ढकेल कर पापा सामने आ खडे हुए। बूढे पापा जिन्हें वह दिलोजान से चाहती है, इकलौता सहारा भी है उनका। पापा भी पुलिस की नौकरी में थे। एक साम्प्रदायिक फसाद में अपनी दोनों टांगे, खूबसूरत बीवी और जवान भाई को गवां चुके थे। उसके बावजूद बेहद खुशमिजाज, हिम्मतवाले, मजबूत, जिन्दादिल, हंसमुख, जिन्दगी से कभी मायूस नहीं हुए। वह उनकी इकलौती औलाद इतनी जल्दी जिन्दगी से नाउम्मीद हो बैठी? डर गई? घबरा गई?

” नहीं नहीं मैं क्यों खुदकुशी करुं? मैं ने क्या गुनाह किया है? उस गवैय्ये को ही क्यों न मार दूँ, तानसेन की औलाद को।” उसने सोचा और फिर पिस्तौल सूटकेस में रख दिया। पापा उसकी शक्ल देखकर जीते हैं, उसकी लाश देख कर पापा जीते जी मर न जाएं! नहीं पापा नहीं मर सकते। पापा की मौत के बारे में वह सोच तक नहीं सकती। जो इंसान रोज ही चोर सिपाही और मौत का तमाशा देखता है वह अपनों की मौत कहाँ बरदाश्त कर पाता है। कितना कमजोर हो जाता है दिल

आज वह ऐसी पहली रात थी जबकि वह दौरे पर थी और उसने पापा को फोन नहीं किया था। एक नीम बेहोशी के आलम में थी वह। वह कब होश में आती थी और कब बेहोश हो जाती थी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसको। नफरत और थकन एक दूसरे पर हावी होते जा रहे थे। गेस्टहाउस का गीजर ऑन ऑफ होता रहा। टेलीफोन की घण्टियां बजती रहीं, उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।

उसने निहायत बेरहमी से उसके होंठ चबा डाले थे। उसके होंठ गैरकुदरती तौर पर वजनी हो गये थे। उन पर नन्हीं नन्हीं खराशें पड ग़यी थीं, खून छलक आया था। धुले भीगे बाल नोच डाले थे। कलाइयों और बाजुओं पर अनगिनत सुर्ख खराशें डाल दी थीं। जगह जगह ऊदे और नीले धब्बे पड ग़ये थे। कसमसा कर उसने उसकी गिरफ्त से निकलने की कोशिश की थी मगर उसकी गिरफ्त और सख्त हो गई थी। हाथ उसके फौलाद की तरह बेरहम थे। एक हाथ उसने मुंह पर रख दिया, वह चीखी, लेकिन उसने इतनी जोर से डांटा कि सिसकी हलक में उतर गई। उसने पूरी ताकत से उसे दूर करना चाहा, उसने थप्पडों से मारना शुरु कर दिया, थप्पड ईतना अचानक था कि वह सहम कर रह गई।

उसे बचपन से लेकर आज तक किसी ने हाथ नहीं लगाया था। बल्कि गरम निगाह तक से नहीं देखा था। वो तो तितली के लार्वे की तरह नर्म रुई के फाहों में रख कर पाली गई थी। उसने कभी किसी से हाथ तक नहीं मिलाया था, हमेशा सलाम का जवाब दूर से ही देती। क्रिसमस पर औरतों तक से गले नहीं मिलती थी, उसको सख्त उलझन होती थी इन चीजों से। एक खास दूरी बनाए रखना उसकी आदत में शुमार था। कोई पास आने की जुर्रत भी न करता, जिन लोगों ने कोशिश भी की तो वह इतनी बुरी तरह पेश आई कि आईन्दा किसी की हिम्मत ही नहीं हुई आगे बढने की। वह अपने कवच में बडे आराम से बैठी थी। किस कदर महफूज थी अपने किले के अन्दर बीबी जैसमीन। उनके गुमान में भी नहीं था कि उनको कोई छू भी सकता है। गॉड ग्रेस! वह कांप उठी।

तालिब इल्मी ( विद्यार्थी जीवन) के जमाने में भी कभी कोई नाजुक़ जज्बा नहीं उभरा और उभरा भी तो उन्होंने उसे सख्ती से कुचल दिया। वह इन कमजोर जज्बात की कायल ही नहीं थी। मुसलसल जद्दोजिहद ने उसको खुश्क मिजाज बना दिया था। वह एक लम्हे को भी चाचा और अम्मा की मौत को नहीं भूली थी, न ही भूलना चाहती थी। अकसर वह लाशऊरी तौर(अवचेतन अवस्था) पर बेरहम हो जाती।

अगली सुबह जब वह जी भर कर रो धोकर बाथरूम से निकली तो सामने मेज पर चाय की ट्रे सुबह के ताजे अखबार के साथ रखी थी। तमाम रात का जागरण, बेदारी औप्र शदीद थकान के बाद उसकी ख्वाहिश चाय पीने की हुई। मजबूरन चाय बनाने के लिये टीकोजी क़ी तरफ हाथ बढाए। गवैय्ये ने हाथ बढाकर हल्के से उसको छू लिया उसने फौरन हाथ खींच लिया, गुस्से के मारे उसका चेहरा तमतमा उठा। चाय बनकर, प्याली में उस तक आ गई, वह नजरें नहीं उठा पा रही थी। उसने अखबार उठा कर उसकी गोद में रख दिया और खुद उठकर खिडक़ी के पास खडे होकर सिगरेट पीने लगा। उसने अपनी उंगलियों को सूंघा, तेज बू सिगरेट की आ रही थी। सिगरेट से उसे शदीद नफरत थी। इम्पोर्टेड साबुन से वह घण्टों हाथ थोती रही मगर गुलाबी तौलिये से पौंछ कर सूंघा तो लग रहा था पांचों उंगलियां जलती हुई सिगरेट बन गयी हैं। वह सिर पकड क़र बाथरूम में ही बैठ गई , उसने दरवाजा खटखटाया। ख़ामख्वाह उसने वाशबेसिन का नल खोल दिया। देर तक पानी की आवाज बाहर जाती रही। थोडी देर में फिर दरवाजा खटखटाया गया, मजबूरन उसको खोलना पडा।

” आपको मीटींग में जाना है।” वह पीठ मोडे ख़डा था। नीली सफेद धारी वाली कमीज चमक रही थी। उसका सांवला रंग दमक रहा था, उसने झटके से हैण्डबैग उठाया और कमरे से बाहर आ गई। उसकी सूजी आंखें ड्राइवर ने हैरत से देखीं। सख्तमिजाज मैडम आज?  बैग खोल कर उसने स्याह चश्मा लगा लिया। ड्राइवर को रास्ता बताना थावह डर रही थी कि बोलते वक्त उसकी सिसकी न निकल जाये। वह मुश्किल समझ गया, मौके की नज़ाकत को समझते हुए उसने रास्ता बताना शुरु किया। वही पुरअसरार भारी आवाज। यही आवाज तो उसकी कमजोरी थी। रेडियो स्टेशन पर उसकी आवाज ही तो सुनकर ठहर गई थी। इश्क था उसको खूबसूरत आवाजों से, शाइस्ता लहज़ा, जबकि वह खुद जंगली जबान बोलती थी। रहती भी तो जंगली जबान वालों के साथ थी।

अब याद आ रहा है कि गज़ल सुनाने के लिये ही तो पहली बार उसको बुलाया गया था, पुलिस वीक पार्टी में। वही उसे लाई थी। डिनर के बाद कॉफी पीने को अपने कमरे में बुलाया था। गज़ल की फरमाइश की थी कि उसे इकबाल बेहद पसन्द हैं, उन्हीं की कोई गज़ल सुनाई जाये। नाक भौं चढा कर उसने कहा था,

” सडी पसन्द है आपकी, गालिब की गज़ल सुनाउंगा मैं!
” जी नहीं, गज़ल मेरी पसन्द की गाएंगे आप।”

उसका अन्दाज तहकमाना हो गया था। नहीं सुनने की उसको आदत ही नहीं थी। अपनी पोस्ट और इल्म का उसको बेहद गुरूर था। बडी दिल आवेज, नफीस और परुसुकून सी धुन गूंजने लगी थी। उसने धीरे से आंखों को बन्द कर लिया। वही मनहूस लम्हा था। कमरे में उसकी आवाज ज़ादू बन कर छा चुकी थी। दबीज परदे शीशे की लम्बी खिडक़ियों को ढके हुए थे। वह कब उठा, जब उसे होश आया तो वह मजे से सिगरेट पी रहा था और उसको घूर रहा था, एकदम वहशी आंखें, जानवर का शिकार करने से पहले जो सर्चलाइट फेंकी जाती है वैसी ही सुर्ख मायल छोटी छोटी तेज आंखें। उसके अन्दर की तमाम कूबत अचानक खत्म हो गई। वह उठने में लडख़डा गई। नन्स से बेहद मुतास्सिर थी वह, और…वर्जिन, वर्जिनिटी….मरियम की तरह पाक इन तमाम लफ्ज़ों पर पानी फिर चुका था अब।

मर्द…कमबख्त मर्दजलील ब खरवह मर्दो में सिर्फ अपने पापा को चाहती थी। बाकी तमाम मर्द बेमुरव्वत और काबिले नफरत, झूठे और मक्कार लगते। औरतों को जलाने और सताने वाले। उसके पास औरतें आतीं थी नाक बहाते बच्चे सीने से चिपकाए…रोती बिलखती…फूले पेट लिये….अपने पतिदेव के लिये क्षमा याचना मांगती जो कत्ल या रेप के मुकदमों में जेल में हराम की रोटियां तोड रहे होते और अगले जुर्म के ख्वाब देख रहे होते।

अकसर वह सोचती खुदा ने औरतों को इतने आँसू क्यों दे दिये हैं? हर वक्त बरसात! वह खुश होती है तो आंसू आ जाते हैं, दुख में भी सुख में भी। यही उनकी जायदाद हैं क्या? लेकिन आज वह इसी बरसात में खुद डूब और उभर रही थी।

डिस्परिन की दो गोलियां उसने गिलास में डालीं, धीरे धीरे वह घुलने लगीं। पानी में सफेद बादल उठने लगे। गर्म टोस्ट पर लगा नमकीन मक्खन उसके जख्मी होंठों पर जलने लगा। उसके मुंह से सीऽऽ निकल गई। झुंझलाहट में कनपटी को दबाया, गवैय्ये का सख्त हाथ उसकी कनपती के करीब आ गया, उसने हटाना चाहा पर उंगलियां मजबूती से जम गईं। वह निढाल कुर्सी पर पडी रही, और वह उसका सर सहलाता रहा। ख्वाबवार, गुनूदगी उस पर छा गयी। नरमी से उसके होंठों ने उसकी पेशानी चूम ली। आँख खुली तो पूरे कमरे में उसकी तेज महक थी। वह कमरे से जा चुका था। थोडी देर को वह चुपचाप पडी रही…अचानक उसे लगा कि कहीं….वह उसे शिद्दत से चाहने लगी है (हँ…बकवास)।

अगले दिन इतवार था, उसने सोचा वह चर्च जा सकती है( कनफेशन के लिये?)

मोमी शमां रोशन करते वक्त उसने चुपके से मां मरियम से माफी मांग ली

‘ मेरे इस इकलौते गुनाह को बख्श देना माँ मैरी!

उसकी इकलौती फूफी जब भी हर साल अमेरिका से आती तो नसीहतों का टोकरा भी साथ लेकर आती। टूथब्रश कितनी बार करना चाहिये से लेकर क्या रंग पहनना है, यह फैसला भी उनका ही रहता, उसे अपने सांवले रंग का बडा कॉम्पलेक्स था। पर कितना आसान है, दूसरा फैसला लेता रहे आप उस राह पर आराम से चलते रहिये। सोचने की भी जहमत मत कीजिये। पापा और फूफी ने उसे जहनी तौर पर बालिग ही नहीं होने दिया। हमेशा बच्चों की तरह सुलूक किया और उसे इस सबकी आदत पड ग़ई। संस्कारों की कीलें उसके वजूद में इतने अन्दर तक ठोंक दी गई थीं कि वह चाह कर भी किसी को चाह नहीं सकती थी।

घर वापस आकर वह चुपचाप बिस्तर पर पडी रही। पापा परेशान थे, इस बार टूर से आकर हर बार की तरह वह कोई किस्सा नहीं सुना रही थी। कितने गुनहगारों को पकडा और बहादुरी के नये कारनामे अंजाम दिये। कुछ नहीं बता रही थी, इस तरह तो कभी नहीं हुआ आज तक।

वह लेटे लेटे सोचती रही कि क्या वाकई हव्वा ने आदम को गेहूं या सेब खिलाने के लिये बरगलाया था? भला हव्वा के अन्दर इतनी हिम्मत कहाँ से आई होगी? यकीनन आदम ने ही हव्वा को खिलाया होगा। अक्सर रवायत गलत भी तो साबित हो जाती हैं।

उसके लम्स का जादू उस पर छाया था और फन काढे ज़ंगली ख्वाहिशात का रेला बहा ले जाने को उतारू थाउसके तमाम हथियार कुंद हो चुके थे।

अचानक एक कद्दावर औरत उसके तहखाने से निकल कर लडने लगी। वह हैरान रह गई,

” कौन हो तुम? ” वह सिर उठाये ढीठ की तरह अकडी अकडी ख़डी रही।
” तुम्हारे अन्दर की औरत।” सख्त लहजा था उसका।
” झूठ…मेरे अन्दर कोई औरत नहीं…मैं….मैं खुद बडा साहब हूँ….जानती नहीं मुझे तुम….पचास लोग मुझे सलाम करते हैं…….मैं बुजदिल कमजोर औरत नहीं हूँ।”

वह हँसी एक खौफनाक हँसी। जैसे हकीकत हँसी…सच हँसा।

” मत मानो…मत मानो लेकिन एक न एक दिन तुम्हारे शर्म व हया के यही पत्थर जिनसे तुमने मुझे मार मार कर जख्मी किया हैतुम्हारे ही हाथों में भारी हो जाएंगे। तब तुम क्या करोगी? ”

नफरत और गुस्से से वह काँप उठी

” चल निकल…निकल….भाग भाग! ”

औरत कहकहा मार कर हंसी और तहखानों के अंधेरों में जाकर छुप गई।

रात को पापा के लिये वह कॉफी बनाकर उनके कमरे में ले गयी। खुद कुर्सी पर बैठ कर इण्डिया टुडे पढने लगी। पापा ने कप उठाया, सिप लिया फिर उसको हैरत से देखा। किताब का एक वर्क तक इतनी देर में नहीं पलटा गया था।

” बेटे! ”
” यस पापा।” उसने आवाज क़ो नॉर्मल करने की भरसक कोशिश की।
” नमकीन कॉफी बनाई है? ”
” ओह  आय एम सॉरी पापा। गलती से शक्कर की जगह नमक।”
” कोई बात नहीं…वैसे बेटा हरी ने हर डिब्बे पर लेबल लगा रखा है।”
” लाइये दूसरी बना लाती हूँ।” वह जल्दी से उठी।
” रिलैक्स बेटे।” उन्होंने व्हील चेयर पास कर ली, गौर से उसका सुता बुझा चेहरा देखा, वे सहम गये।
” मेरी बच्ची! ” बेअख्तियार होकर उन्होंने उसको अपने करीब कर लिया।
” पापा।”

उसने थका हुआ सिर उनके सीने पर टिका दिया। उसका दिल जो सदमे और दुख सहते सहते सख्त हो चुका था अचानक मोम सा पिघल गया।

तमाम रात उसको तेज बुखार रहा।

सरसाम की सी कैफियत, मर्द भी इतना खूबसूरत होता है यह उसे मालूम नहीं था। उसको तो मालूम था कि औरत का जिस्म हसीन होता है। उसकी नुमाइश की जाती है। लेकिन उसका जिस्म तो चाकू के फल की तरह लम्बा और पैना था। नर्तक की तरह सुडौल, गठा हुआ, सख्त, नरम और मजबूतओ खुदा वो लहराया और लगा कि फिजां का बिगुल बज उठा। मोर का नृत्य शुरु। उसके पैर मोर की तरह बदसूरत थे, लेकिन बाकी हिस्सा….वह मोर में तब्दील होने लगा…धीरे धीरे…अपने सतरंगे इन्द्रधनुष के रंगों में रंगे पर फैलाने लगा। मोर नाच उठाचारों दिशाएं नाच उठीं…नृत्य तेज होने लगा और तेज और तेज और तेज…तांडव नृत्य शुरु…अरे यह तो शंकर भगवान साक्षात खडे हैं। नटराज की मूर्ति सिविल लाईन्स इलाहाबाद के किसी शो रूम में देखी थी…आज सामने खडी है।

उडीसा के लिंगराज मंदिर में शिवलिंग को दूध से नहलाया जा रहा हैगुफा में अंधेरा है  पैरों के नीचे दूध बह रहा है पैर आगे नहीं बढ पा रहे हैं। दूध की एक नदी है, शहद की दूसरी नदी है पैर चिपक रहे हैं।

मां के कदमों तले जन्नत है; जन्नत में दूध और शहद की नदियाँ बहती हैं। क्या जन्नत में दाखिला मिल गया है? आदम हव्वा से कह रहे हैं लो यह सेब खा लो। यह मजेदार है, खुश्बूदार है, रसभरा है लो…  लो… लो.. चक्खो! नहीं… नहीं… नहीं…. नहीं… माँ मरियम मुझे बचा लो सांस रुकी जा रही है। बडी घुटन है…फिजां में सिगरेट का धुआं है, लो यह सेब खा लो सेब, शहद और दूध की तेज ख़ुश्बू है । सुर्ख चर्च की बिल्डिंग में घंटियां बजती चली जा रही हैं सर फटा जा रहा है मुंह में शहद भरा हुआ है  पंचमढी क़े जंगलों में एक आदिवासी औरत ने दरख्त से छत्ता तोड क़र ताज़ा ताज़ा शहद खिलाया था। वही मजा, वही खुश्बू आज भी।

वह घबरा कर उठ गयी सुबह की किरणें कमरे में आ चुकी थीं। मुंह में शहद भरा था, उसने चाय नहीं पी।

पलिका बाजार से गुजरते हुए उसने पापा के लिये चॉकलेटी और ग्रे दो गर्म कमीजें खरीदी थीं। और उसने गुलाबी शिफॉन की साडी ली थी…शायद अपनी बीवी के लिये ले रहा होगा। वह खुद कहाँ साडी पहनती है। रात जब सूटकेस खोल कर उसने पापा की कमीजें निकालीं, तो नीचे वही गुलाबी साडी रखी थी। उसने उठा कर पलंग के नीचे फेंक दी थी।

” तुम्हारा रेडियो से कॉन्ट्रेक्ट लैटर आया है।” पापा कमरे के दरवाजे तक आ गये। ओह, कल ही शहर में बढते क्राईम और आत्मसुरक्षा  पर उसकी टॉक थी।

अगले दिन वह नहाकर बाहर निकली तो सूट निकालते निकालते अलमारी में उसको गुलाबी साडी नजर आ गई। शायद नौकरानी ने उसकी समझ टांग दी होगी। बाल सुलझाते हुए अरसे के बाद उसने अपना चेहरा आईने में गौर से देखा। कम से कम एक लिप्सटिक और कोल्डक्रीम तो खरीद ही लेना चाहिये। वाकई मोहब्बत औरत में बाजारूपन पैदा कर देती हैउसने खुद पर खीज कर कंघे से उलझे बालों को बुरी तरह नोच डाला।

बाहर निकली तो वह गुलाबी साडी पहने थी। पापा लॉन से मुस्कुराये, उसने हाथ हिलाया और जाकर गाडी में बैठ गई। उसको अच्छी तरह मालूम था कि वह रेडियो स्टेशन के म्यूजिक़ सेक्शन में बैठा किसी टीन एजर हसीना की कमर में हाथ डाले राग बागेश्वरी के आरोह अवरोह बता रहा होगा। रेडियो स्टेशन की टूटी फूटी चहारदीवारी के जंगले के ऊपर लगे नुकीले लोहे के कांटों के दरम्यान डेजी क़े सफेद नाजुक़ फूल लहलहा रहे थे। बेगम अख्तर का रिकॉर्ड बजे चला जा रहा था।

” इश्क में रहबर ( मार्गदर्शक) व रहजन ( चोर – लुटेरा) नहीं देखे जाते इश्क में रहबर व रहजन नहीं देखे जाते! ”

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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