‘पुशपुश हार्ड युवा, जस्ट वन मोर पुश एन्ड यू आर देयर कहते हुए मिडवाइफ ने सोलह वषीर्य युवा को पुचकारते हुए हिम्मत बँधाया। पास खडा इयन एक हाथ से उसके माथे पर आए पसीने को टिश्यू पोछ रहा था और दूसरे हाथ से उसकी हथेली को सहला रहा था। युवा के कमर में उठती दर्द की लहरें उसके अंदर घुसकर पेट और छाती में ऐठन पैदा कर रही थीं। वह युवा के दर्दीले चीखों से नर्वस हो रहा था।
‘ट्राय युवा, ट्राय माई डार्लिंग’ कहते हुए वह खुद रोने लगा। नर्स ने इयन को मीठी झिडक़ी दी।
‘डोन्ट बी सिली, कंट्रोल योरसेल्फ़ इयन। शी इज़ जस्ट देयर।’
इयन के बाहों पर युवा की पकड और सख्त हो गई। उसने अपनी सारी शक्ति बटोरते हुए ऑंखें बंदकर एक लंबी सांस खींची और पेट के निचले हिस्से तथा दोनों टाँगों के बीच ज़ोरो का एक अंतिम धक्का मारा और अचानक भयंकर चीख के साथ दर्द से हुँकारता उसका बदन तनावमुक्त हो गया।
‘कॉग्रेचुलेशन्स! युवा तुमने एक बेहद खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया है।’ कहते हुए नर्स ने उसकी खुली छाती पर बच्चे को लिटा दिया।
‘मेरा बच्चा! ओह! मेरा बच्चा’ कहते हुए उसने बच्चे के बदन के उष्मा को अपने अंदर ऑंख बंदकर समोया।
‘कैसी कोमल और सुनहरी त्वचा है मेरे आर्यन की। वेल्कम इन-टु आवर वर्ल्ड आर्यन’ कहते हुए युवा ने अपने सतरह वर्षीय ब्वाय-फ्रैंड इयन की ओर देखा।
‘अ परफेक्ट बेबी इज़न्ट ही, रेड लिप्स, लवली चीक्स एन्ड मासेज़ ऑफ़ ब्लैक हेयर! वी आर पैरेन्ट्स नाउ, इयन!’
‘यस युवा, आवर बेबी इज़ अ परफेक्ट बेबी, परपर क्या मैं आर्यन को गोद में ले सकता हूँ।’ खुशी से इयन की ऑंखें छलदला आई थी।
युवा ने एहतियात से पोटली में लिपटे आर्यन को उठाकर इयन के आतुर बाहो में डालते हुए उसके उत्फुल-उत्सुक चेहरे को देखा, इयन भावविभोर आर्यन को बाँहों में इस तरह सहेज रहा था मानो वह काँच का बना हो।
‘युवा देख न आर्यन की ऑंखें बिल्कुल मेरे जैसी हैं। हैं न। पर नाक और बाल तेरे जैसे, हमारा बेटा अपनी ममी को खूब प्यार करेगा, करेगा न?’कहते हुए इयन अपने बेटे के माथे पर एक नाज़ुक-सा चुम्बन जडा।
नन्हें से आर्यन को इयन के मजबूत कसरती बाहों में देखकर युवा का दिल प्यार से इस तरह छल-छल छलक उठा जैसे मुसलाधार बारिश में सागर की लहरें।
ऐसा प्यार भरा सुँदर जीवन भला कितनों ने जाना है। माँ बनना ही युवा के जीवन का एक मात्र लक्ष्य था। इयन ने प्यार से उसकी कोख में बीज डाला और वह उस बीज को पूरे नौं महीने अपने देह के अंदर महसूस करती रही। आज वह बीज फूल बन कर उसकी बाहों में मुस्करा रहा है। उस जैसा खुशनसीब शायद ही दुनिया में कोई हो, उसने सोचा।
ममी-डैडी से तो युवा की कभी पटी ही नहीं। उनकी तो बस एक ही रट थी, ‘युवा तुम्हें खूब पढना है और एक सफल प्रोफेशनल बनना है।’ पर युवा की ज़रूरत कुछ और थी। वह किसी और मिट्टी-पानी की बनी थी। पंद्रहवा लगते-लगते युवा के बदन में चाहत की बिजलियाँ दौडने लगी।। उसे पढाई नहीं, नन्हें-नन्हें गोल-मटोल बच्चे पसंद थें। ममी-डैडी की हर वक्त पढो-पढो की रट ने उसकी जिंदगी हराम कर रखी थी। इधर पढाई-लिखाई में उसका मन नहीं लगता उधर ममी-डैडी के समझ नही आता कि उनकी बेटी युवा जो अच्छी-खासी इंटेलिजेन्ट है अबतक हर साल मेरिट में रहती अब किताबों की ओर देखना ही नहीं चाहती। क्या करे वो कैसे समझाएं उसे? उनके सभी दोस्तों के बच्चे खूब महत्वकांक्षी हैं। उनमें अच्छे-ऊंचे दर्जे के प्रोफेशनल बनने की चाह है। बस युवा ही ऐसी क्यों है जिसे पढना लिखना अच्छा ही नहीं लगता? वे झल्ला उठते उनकी समझ में ही नहीं आता कि वह युवा को क्या कहें और कैसे समझाया जाए?
स्कूल के खुले सत्र में दोनों की युवा के फ़ार्म टीचर से बहस हो गई। टीचर ने भी उन्हें खरा-खरा सुना दिया, ‘मिसेज़ माथुर, क्या बात है तुम सारे इंडियन पेरेन्टस ऐसे महत्वकांक्षी क्यों होते हो कि बच्चों के निजी आवश्यकताओं को अनदेखा कर जाते हो। क्या डाक्टर इंजीनियर बन जाना ही सफलता की कसौटी है। युवा अच्छी वेलबिहेव्ड लडक़ी है। स्कूल में उसकी अच्छी रेपुटेशन है। वह संवेदनशील है। सामाजिक कार्यो में रूचि रखती है। आपलोग शायद उससे कुछ ज्यादा की अपेक्षा करते है। उसके मन को समझने की कोशिश करिए इस उम्र में मानसिक तनाव अच्छा नहीं है, बच्चे विद्रोही हो जाते हैं।’
घर आकर मीरा माथुर देर तक बडबडाती रहीं। पता नहीं ये ऍंग्रेज़ टीर्चस कैसे हैं बच्चों में महत्वकाँक्षा तो पैदा ही नहीं करते। अरे पढेग़ी लिखेगी नहीं तो क्या हम माथुरों की नाक कटाएगी।
सही बात तो यह थी कि युवा को ज्यादा पढने-लिखने की चाह नहीं थी। वह इतना ज़रूर पढ लेती थी कि उसे पास मर्ाक्स मिल जाए। ज्याद पढ लिखकर उसे नौकरी तो करनी नहीं थी। उसे तो घर-गृहस्थी के कामों में आनंद आता। अपनी तरफ़ से वह ममी-डैडी को खुश रखने की पूरी कोशिश करती। घर के सारे काम वह ममी-डैडी के घर आने से पहले कर रखती थी जब कि उसके उम्र की और लडक़ियाँ घर के कामों में हाथ तक नहीं लगाती थी। खाना तो वह ममी से कहीं अच्छा बनाने लगी थी। परिवार के सभी मित्र उसकी तारीफ़ करते। पर ममी-डैडी का पारा हमेंशा चढा ही रहता। रोज़-रोज़ की डॉट-डपट से अब युवा उदंण्ड और विद्रोही होती जा रही थी। कई बार तो गुस्से में आकर ममी ने किशोरी युवा के बाल खींचते हुए उसे दो-चार चाँटें भी जड दिए पर युवा पर कोई असर नहीं पडा।
उसे पढाई नहीं करनी है तो नहीं करनी है।
‘देखना यह लडक़ी भाड झोंकेगी, भाड। पता नहीं हरामज़ादी किन नक्षत्रों में पैदा हुई है।’
युवा के समझ नहीं आता कि भाड क्या होता है पर वह समझ जाती कि ममी कोई गंदी-सी बात उसको लेकर कह रही हैं।
माँ-बेटी में खूब तुर्की-बतुर्की होती अंत में ममी उसके बाल छोडक़र अपने बाल नोंचने लगती और युवा गर्दन झटकती, पैर पटकती, धडधड सीढियाँ चढती, अपने कमरे में घुसकर, दरवाज़े को पैर से ठोकर मारती धड से उसे बंद कर देती। फिर तो माँ बेटी में हतो बातचीत नहीं होती। हरबार डैडी मुह में चुरूट दबाए भारी कदमों से सीढियाँ चढते हुए ऊपर आते और खखार कर गला साफ़ करते हुए कहते,
‘देख युवा, तू हर रोज़ अपनी ममी को अपसेट कर देती है इससे सिर्फ़ उसके काम पर ही असर नहीं पड रहा है। हमारे संबंधों पर भी असर पड रहा है। कितनी रातों हम तेरी चिंता में सो नहीं पाते हैं।’ कहते कहते वे कुछ सोच में पड ज़ाते फिर कहते,
‘आखिर तुझे पढाई से इतना बैर क्यो है युवा। कुछ भी हो डिग्री तक पढाई तो तुझे करना ही है। सुन हमारे यहाँ एक कहावत है कायस्थ का बच्चा पढा भला या मरा भला। तू कहे तो तेरे लिए कोई टयूटर लगा देते हैं।’ पंद्रह वर्ष की युवा ने अभी हाई स्कूल भी नहीं किया था और माथुर साहब डिग्री की बात करने लगे थे।
युवा ने अंदर से चीखते हुए कहा, ‘आई डोट वान्ट टु स्टडी वाय डोन्ट यू गेट मी मैरिड। आई वान्ट टु मेक माई ओन फ़ैमिली।’
‘हृवाट? कौन करेगा तुझसे शादी? क्या क्वालिफिकेशन है तेरे पास? युवा अभी तुम बच्ची हो तुम्हे मन लगाकर अच्छी तरह पढाई करनी चाहिए।’ डैडी ने कहा।
‘अपनी शक्ल भी आइने में देख लिया कर युवा, सॉँवली लडक़ी वैसे ही हमारे समाज में उपेक्षित है। अगर पढाई नहीं करेगी तो तो तुझे अच्छा लडक़ा, खाक़ मिलेगा?’ नीचे से ममी ने ताना मारा
‘पढाई, पढाई और पढाई।’ युवा के मन में विद्रोह पनपने लगता।
‘पढाई माई फुट।’ कहते हुए उसने कानो पर वॉक-मैन के प्लग लगा लिए। और सुबकते हुए डेविड कैसेडी के गीत सुनने लगी।
माथुर दंपत्ति ने बडी क़ोशिशे की कि युवा किसी तरह पढाई में लग जाए पर उनके सामने वह किताबों को हाथ तक नहीं लगाती। यूँ युवा घर के हर काम बडी लगन और रूचि कर डालती। ममी-डैडी को न कभी खाना बनाना पडता न सफाई करनी पडती। युवा उनके ऑफिस से आने के पहले ही घर के सारे काम करके तैयार रखती। मीरा की सहेलिया युवा की तारीफ़ करते नहीं थकती क्योंकि उनके बच्चे घर के कामों में हाथ नहीं लगाते। युवा की ज़रूरतें माथुर दम्पति के समझ ही नहीं आती। वे युवा के सहज गुणों को महत्व न देकर हर वक्त उसके एकेडेमिक अचीवमेंट को लेकर परेशान रहते।
युवा को घर-ग्रहस्ती बच्चे-कच्चे अच्छे लगते। वह अक्सर ममी-डैडी की अनुपस्थिति में पास-पडोस के नन्हें-मुन्ने बच्चो घर उठा लाती और घंटों उनसे खेलती रहती। सुमी के बच्चे जय की बेबी सिटिंग तो जाने उसने कितनी बार बिना पैसों का किया है। वह जब जय को नहलाती-धुलाती, उसकी नैपी बदलती तो उसका मन करता कि वह भी एक बच्चा पैदा करे। बच्चे की सोच कर ही सके बदन में फुरहरी उठने लगती।
जून का अंतिम सप्ताह और हाफ़ टर्म की छुट्टियाँ। गुलाब और कमीलिया की झाडियाँ फूलों से लदी हुई थी। युवा गद्दीदार झूले पर बैठी दानें चुगती लंबी पूँछो वाले ‘ब्लैक बर्ड’ के जोडे क़ो निहार रही थी। दोनो साथ-साथ फुदकते हुए एक दूसरे पर चढ उतर रहे थे। युवा का किशोर मन चुलबुलाने लगा। दोनों पैरो के बीच गुदगुदी के साथ हॉल्टर नेक के अंदर बँधे यौवन ने कुछ और तकाज़ा किया। उसने हाल्टर नेक के फंदे को ढीला कर अपने यौवन को झाँका बाहर लाँन में इयन लाँन मोअर से घास कॉट रहा था। इयन उसकी ओर आर्कषित है उसने कई बार उसकी ऑंखों में अपने लिए चाहत देखी थी। क्यारियों में सुर्ख ज़रेनियम कतारें खिलखिला रही थी। फ़िज़ा में ताज़े कटे घास की मादक हवा तैर रही थी।
दरवाज़ा खोलकर युवा थोडी देर इयन के हट्ठे-कट्ठे कसरती जॉन ट्रिवाल्टा जैसे बदन को लॉन मो करते देखती रही। लॉन के एक लंबी लाइन को पूरीकर जब, सीटी बजाता इयन लॉन मोअर को घुमाते हुए पल्टा तो युवा को सामने दरवाजे क़े बीच खडा देख, मुस्कराया
‘हाय युवा, हॉट इजन्ट इट।’ कहते हुए उसने पसीने से तर अपना सैंडो कट जालीदार टी-शर्ट उतारकर लापरवाही से झाडी पर फेंक दिया। युवा के किशोर बदन मे हज़ारों बल्ब जलने-बुझने लगे।, उसने इयन से कहा,
‘आई एम गोईग टु मेक टी, वुड यू लाइक अ कप्पा।’
‘ओ! या युवा, आई नीड अ ब्रेक, शैल आई कम इन।’
‘यप्प’ कहते हुए युवा दरवाज़े पर बुत सी खडी रही, इयन अंदर आया तो उसने उसकी बाहों में अपनी बाहे डाल दी,
‘डू यू फैन्सी मी युवा?’ कहते हुए उसने युवा को अपनी बॉहों में भर कर उसकी बौराई ऑंखों में झाँका
‘यस सिली, हृवाट इल्स’ कहते हुए उसने उसने अपनी बाहें उसके गले में डाल दी।
इधर जीन्स के अंदर इयन का कुँआरापन चुलबुलाया, तो उधर युवा के हाल्टरनेक के फंदा ढीला पड ग़या, मेज़ पर पडा ममी के दिये होम-वर्क का पन्ना ब्रेक-फास्ट टेबुल फडफ़डाता रहा किचेन में रसल-हाब्स की ऑटोमेटिक टी-केटल उबलकर भाप छोडती हुई धीरे-धीरे शिथल हो गई।
युवा के मन की मुराद पूरी हों। इयन इज़ परफेक्ट उसने मन ही मन सोचा
इयन कई बार कहता युवा हमें रबर शीट इस्तेमाल करना चाहिए। युवा कहती नहीं, नहीं इयन नहीं। मुझे हमारे-तुम्हारे दरमियाँ कोई भी चीज़ नहीं पसंद है। पर युवा अगर तुम गर्भवती हो गई तो। तो क्या हमे काउँसिल लैट मिल जाएगा हम अपना आशियाना अलग बनाएंगे। इयन आई लव चिल्ड्रेन आई वान्ट माई ओन चाइल्ड इयन प्लीज़ गिव मी अ चाइल्ड।
इयन से मिलने के बाद युवा में परिवर्तन आने लगा उसे घर-गृहस्ती के साथ उसे पढाई में भी रूचि आने लगी।
ममी-डैडी खुश कि युवा पढाई कर रही है।
जीसीएससी का रिज़ल्ट आया युवा के सात ‘ए-ग्रेड’ ममी-डैडी खुश और बहुत खुश। इसी खुशी में ममी-डैडी ने पार्टी दे डाली।
जिस समय लोग माथुर दम्पति युवा की सफलता पर बधाई दे रहे थे युवा ने काँच के गिलास को चम्मच से बजाते हुए कहा,
‘अटेन्शन प्लीज़, आई वान्ट टु मेक एन अनाउन्समेंट’ माथुर दम्पति के साथ ही आए हुए मेहमान भी युवा की ओर अचंभित हो देखन लगे।
युवा ने लंबी सांस खींची और बोली,
‘आई एम फोर मंथ्स प्रेगनेन्ट एन्ड आई एम गोइंग टु हैव अ बेबी इन मार्च।’ उसने अपने पेट पर हाथ रखते हुए कहा, ‘एन्ड हियर इज़ द फादर ऑफ़ द बेबी इयन मेकेन्ज़ी। आवर बेबी इज गोइंग टुबी कॉल्ड, आर्यन माथुर मेकेन्ज़ी।’ कहते हुए उसने गर्व से पार्टी में आए ऑंटी- अंकल और मित्रों की ओर देखा।
माथुर दम्पति के साथ-साथ पाटी में आई उनकी मित्र मंडली सन्न रह गई। एक हिन्दुस्तानी लडक़ी और उसकी यह हिम्मत कि वह खुद को ही नहीं अपने मॉ-बाप को भी भरी महफिल में बेइज्जत कर दे। अरे! कोलडक़ा ऐसा करता तो क्षम्य था पर लडक़ी थू-थू। लोग युवा को धिक्कार उठे! जरा सी लडक़ी और छंद-फंद!
‘हृवाट? आर यू इन योर सेन्सेज़से इट्स अ जोकअ जोक’ मीरा चीखी। माथुर साहब धम से पास रखी कुर्सी पर बैठ गए,
‘क्या कह रही है यह नासमझ लडक़ी?’
पार्टी में आए लोग फुसफुसाएं ‘बेशर्म, आग लगे ऐसी जवानी को। हिम्मत तो देखो युवा काी।’
‘मीरा और अजय के सीने पर तो इसने मूँग दल ही दी, बडी डीगे मारा करते थे अपने माथुर-क्लैन की। अब हो गई न टीलि-लिली झर्र।’
युवा को अपने लोगो से यही आशा थी। उसको पता था सबलोग उसकी खिल्ली उडाएंगे। पर उसे खुद अपने निर्णय पर पूरा एतबार था।
उसके हमउम्र तो घबराकर अपनी-अपनी मम्मियों के ऑंचल में घुस गए। सिर्फ़ कोमिला आंटी उठी और उसे बाहों के घेरे में लेकर बोली, ‘युवा मैं तेरे साथ हूँ।’ कोमिला के कोई संतान नहीं थी। उन्होने कहा,
युवा अगर कभी फ़ोस्टर पैरेंट या बेबी सिटर की ज़रूरत पडे तो मैं हूँ तेरे पास घबरा मत।
ऑंटी मैं अपने बच्चे को खुद पालुँगी और उसकी हर ज़रूरत को पहचानुगी उसने भर आए गले से कहा।
‘हमे काऊंसिल लैट मिल गया है और हम अब उसमें मूवकर जाएंगे। मैं खुश हूँ मुझे मेरे बच्चे के आने का इंतज़ार है,’ और वह इयन का हाथ पकडक़र, सुबकती हुई बाहर चली गई।
मीरा सिर पर हाथ धरे देर तक बैठी रही, लोग उसे दिलासा देते रहे, ‘अभी समय है गर्भ गिरवा दो लडक़ी का’, ‘लडक़ी को दादा-दादी के पास इंडिया भेज दो। सब ठीक हो जाएगा।’ ‘हाय-हाय इस लडक़ी ने तो नादानी में अपना जीवन बर्बाद कर दिया है। अभी उम्र ही क्या अभी तो वह खुद बच्ची है।’ ‘क्या मीरा तुम भी, लडक़ी पर कडी नज़र रखनी चाहिए थी।’ ‘अरे! मेरी लडक़ी ऐसा करती तो मैं उसका गला घोंट देती’ ‘यह थोडे दिनों का उबाल है। देखना, कुछ ही दिनों में इयन उसे छोडक़र भाग जाएगा! इन हरामी गोरों का कोई एतबार है क्या?’ आज इसके साथ तो कल उसके साथ!’ ‘हाय राम! कलयुग है कलयुग! इन ऍंग्रेज़ो का कोई मोरैल होता है क्या?’ यह उन लोगों के वाक्य थे जिनके बच्चों की शादियाँ हो चुकी थी। जिनके बच्चे अभी कुँआरे थे वे भगवान से प्रार्थनाएँ करते हुए अपनी-अपनी खैर मना रहे थे कि उनके बच्चे ऐसे कलमुहें और नालायक नहीं है।
मीरा-अजय अपना सा मुँह लेकर बैठे रहे उन्हें नहीं पता था लडक़ी इस हद तक विद्रोह करेगी और भरे समाज में उनकी नाक कटा जाएगी।
घीरे-धीरे अजय मीरा को सांत्वना देते हुए लोग अपने-अपने घर चले गएँ।
रात को कोई भी नही सो सका। सभी इंग्लैण्ड, उसके उन्मुक्त संस्कार विहीन समाज और ‘वेल-फेयर सिस्टम’ को को गालियाँ देते रहे थे। ‘ईश्वर न करे ऐसा कभी किसी के साथ होलडक़ी ने अपनी जिंदगी तो तबाह की ही हम सबको भी तबाह कर कई अब हम क्या कभी पूरी नींद सो सकेंगे। ऐसी मुंह जोर और निडर लडक़ी हमने आज तक नहीं देखी। अब इस देश में रहना ठीक नहीं भाई बोरिया बिस्तर बाँधो और वापस चलो’ कोई वापस नहीं गया, धीरे-धीरे लोग माथुर दम्पति के घर हुई घटना को भूलने लगे।
जब कभी सुपर-मार्केट या शापिंग में लोग युवा के बढे हुवे पेट को देखते तो ताना मारने से नहीं चूकते, ‘युवा देखना जल्दी ही तुझे अपनी गलती का एहसास हो जाएगा। और वे युवा को हिकारत की दृष्टि से देखते हुए चले जाते तो युवा को दुःख होता कि लोग उसके जज्बातों और निर्णय को क्यो सहजता से नहीं लेते। अगर वह अन्य लडक़ियों से भिन्न है तो क्या?’ उसकी आवश्यकता हर तरह से प्राकृतिक है उसे घर-गृहस्थी और बच्चे-कच्चे अच्छे लगते हैं। उसे घर में काम करना अच्छा लगता, दूसरों को बाहर बैंको और अस्पतालों में। अपनी-अपनी पसंद। वह दूसरों के पसंद का काम क्यों करे, जब उसे अपनी पसंद मालूम है।
उधर तानो-तिष्णों के कारण माथुर दंम्पति का सोसाइटी में उठना-बैठना बहुत कम हो गया। उन्होंने समय के साथ समझौता कर लिया। इसके सिवा उनके पास कोई चारा भी तो नहीं था आखिर युवा उनकी इकलौती बेटी थी। जो कुछ उनका था वह युवा का ही था।उन्हों ने बहुत चाहा कि युवा घर लौट आए और वे उसका इयन के साथ विवाह करा दें। पर युवा नहीं मानी वह घर नहीं लौटी। उसने इयन के साथ घर बसा लिया। वह इयन के साथ अपने लैट में आने वाले मेहमान की उत्साह से तैयारी करती रही।
इयन के मॉ-बाप और मीरा उसे सहयोग देना चाहते पर युवा आत्मनिर्भर ही रहना पसंद करती। धीरे- धीरे उनकी समझ में आ गया युवा अपना जीवन अपनी तरह से जीना चाहती है उसे किसी तरह की इन्टरफियरेन्स नहीं पसंद है।
समय के साथ इयन और युवा का रिश्ता औरऔर पक्का होता गया। दोनों एक दूसरे के प्रति प्रकृतिक प्रेम से प्रतिबध्द थें। इयन युवा का पूरा खयाल रखता और अपने पिता के साथ प्रति सप्ताह लैंण्ड-स्केप गार्डनिंग की ट्रेनिंग लेताा। उसके एपरेन्टिसशिप और सोशल सेक्यूरिटी से मिला धन युवा जैसी सुघड ग़ृहणी के काफ़ी था। युवा के दिन सोने के रातें चाँदी की वह खुश थी और बहुत खुश थी।
हाँ, जब कभी सुपर-मार्केट या शॉपिंग मॉल में उसकी अपने तथाकथित ऑंटी-ऍंकल मिलते तो उसे देखकर या तो मुँह फिरा लेते या ताना मारते। क्या युवा तुमने तुमने तो सब कुछ डुबो दिया। ये ऍंग्रेज़ ज्यादा दिन साथ नहीं निभानेवाले। युवा कहती, ‘आप लोगों ने कितने ऍंग्रेज़ों से संबंध बनाएँ है जो इस तरह की बाते करते हैंअच्छे बुरे लोग हर समाज में हैं। इयन और उसके माता-पिता मेरा पूरा खयाल रखते हैं। वैसे हम किसी के मोहताज नहीं है वी आर सेल्फ़ सफिशियन्ट ऑंटी।’ और ऑंटियाँ मुँह बिचकाती हुई आगे बढ ज़ाती मानों वह अछूत हो तो ज़रूर उसे अपने भारतीय समाज के खोखलेपन पर वितिष्णां होती।
युवा के डिलिवरी के दिन नज़दीक आते जा रहे थे। ममी-डैडी अक्सर युवा का हाल-चाल लेने आ जाते। युवा भी सोचती अब मन में मैल रखने से कोई फ़ायदा नहीं वह भी घीरे-धीरे उनके साथ सहज होती जा रही थी।
उस दिन जब वह इयन के गोद में सिर रखकर फ़ायर-प्लेस के सामने लेटी उससे चुहले कर रही थी कि कमर में ज़ोरों का दर्द उठा, ‘ओह! इयन फोन द एम्बुलेन्स, आर्यन वान्टस टु कम अउट नाऊ।’
अस्पताल में डिलिवरी बेड पर उठंग बैठी युवा अपनी पूरी ताकत लगा रही थी बच्चे का सिर पेल्विस-बोन अटका रहा। नर्स ने एक बार फिर युवा को पुचकारा और कहा।
आज का विचार
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
आज का शब्द
जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।