यह दृश्य देख कर मेरा कलेजा मुंह को आ गया या कहिये कि कलेजा मुंह को आना क्या होता है यह मैंने पहली बार जाना। अस्पताल के प्राईवेट वार्ड में जोशी जी लेटे हुए हैं छत को खाली आंखों से टकुर – टुकुर निहारते।उनके एक हाथ में ड्रिप लगी हुई है। पलंग के पास ही स्टूल पर श्रीमति जोशी बैठी हुई हैं। पास के सोफे पर उनकी खेरखबर लेने आये पटेल दंपत्ति बैठे हैं। शन्नो पलंग के पायताने दीवार की तरफ मुंह किये बैठी है। उसका सिर इस बुरी तरह झुका है जैसे गर्दन पर मानो अपराध का बोझ लदा हो। इतने दिनों में उसके चेहरे का लावण्य धुल पुंछ गया है। रंग धुंधला गया है। जी में आता है, दौडक़र उसके पास जाऊं और झिंझोड क़र पूछूं, ” शन्नो, तू क्यों सिर झुकाए बैठी है? तूने किया ही क्या है? किस शर्म से जमीन में गडी ज़ा रही है?

मैं पैरों को जबर्दस्ती घसीटते हुए अंदर दाखिल होती हूं।
” आंटी नमस्ते!”
मैं चौंकती हूं। जोशी जी के सिरहाने की तरफ खडी है बन्नो, जो कभी सांवली स मरियल लडक़ी हुआ करती थी। अब कौन कहेगा कि यह वही लडक़ी है! पांच महीने में सारा शरीर भर गया है। चेहरा तो ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने गुलाल मल दिया हो। क्या औरत की सिर्फ एक ही पहचान होती है माथे पर गोल बिन्दी व मांग में जगमगाता सिंदूर! बाकि तो सिफ जीने का बहाना मात्र है!

शन्नो भी तो उसी रात उसी मंडप में ब्याही गयी थी लेकिन वह उजडी हुई, अपने में छिपी सहमी कोने में बैठी है। मेरे सोफे पर बैठते ही उसने एक उचटती निगाह से मुझको नमस्ते की। उस एक छोटी सी निगाह से ऐसा लग रहा है कि वह मुझे देखकर तीखे दर्द से कराह उठी हो। उसकी दम घोंटती – सी सांसों का बोझ मेरे सीने में फैलता जा रहा हो। मन होता है मैं उसे अपनी छाती में भींच कर रो उठूं। वह तो क्या हल्की होगी, मैं जरूर हल्की हो जाऊंगी। पटेल दंपत्ति के कारण मैं चुप ही बैठी रहती हूं। कहीं खो गयी है वह मासूम शन्नो जो आंखों में ढेर सी खुशियां छलकाये मुस्कुराते हुए चेहरे से मेरे पास आती थी। वह सिर के ऊपर दुपट्टे को अपने कुर्ते के कंधों पर फैलाकर बालों को जानबूझ कर अपने गालों पर छितरा लेती व कमरे में कमर लचकाती ठुमक ठुमक कर चलने लगती । ऐसे में उसकी पायल खनकती रहती छन छन। वह जोर से चिल्लाती, लगती हूं न नम्बर वन मॉडल?”

” तू तो नम्बर वन मॉडल ही भगवान ने पैदा की है।” मैं गदगद हो उसका दुपट्टा पकडती। वह नाज से दुपट्टा छुडाकर ठुनकती, ” छोड दो आंचल जमाना क्या कहेगा?”
” तू हमेशा फिल्मी मूड में ही रहती है।”
” यह फिल्मी मूड नहीं, इस दुपट्टे जैसा सतरंगी मूड है।” वह ठुमकते ठुमकते अपनी चाल पर ब्रेक लगा देती, ” अरे! बाप रे! मैं गैस पर दूध चढा कर आई थी।” पीछे उसकी बौखलाहट पर मैं हंसती रह जाती।

बन्नो से वह खूबसूरत थी, उसका जहीन पारदर्शी व्यक्तित्व मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं ने उसे कभी उदास होते हुए नहीं देखा था। अपनी मां के पेट के होने वाले ऑपरेशनों में हर बार वही हर काम में आगे रहती थी। बन्नो के तो हाथ पैर फूल जाते थे। शन्नो ही बन्नो को समझा बुझा कर काम करवाती थी। मोपेड दौडाती कभी अस्पताल एक खाना पहुंचाती, कभी दूसरी। मैं अपनी खिडक़ी में खडी तेज रफ्तार से उन्हें मोपेड पर जाते देखती तो सोचती, जमाना कितना बदल गया है! जींस शर्ट व छोटे बालों में उन्हें दूर से आता देख कौन कह सकता है कि वह लडक़ा है या लडक़ी!
मुझे तो लगता था कि इस भागदौड में अपनी प्रथम श्रेणी खो बैठेगी, लेकिन जीवविज्ञान में उसके कमाल के नम्बर आते थे।अलबत्ता बन्नो जरूर लुढक़ते लुढक़ते बची थी।

कैसी होती हैं लडक़ियां, हंसती, चहचहाती मां बाप के घर की फुनगियों पर फुदकती उनकी लाडली बुलबुलें! सिर्फ एक पुरुष के उनके जीवन में पदार्पण से उसकी दी हुई प्रतिष्ठा जैसे माथे पर लिख जाती है। श्रीमति पटेल शन्नो से पूछती हैं, ” वीजी नहीं आये?”
शन्नो की मम्मी बीच में जल्दी से कह देती हैं, ” उन्हें छुट्टी नहीं मिली।”
” यह अच्छा है, बन्नो की लोकल शादी कर दी। वह एक्सीडेन्ट के बाद एकदम आ कर खडी हो गयी वरना आपको बडी मुश्किल होती।”

 

पटेल दंपत्ति को तो पता ही नहीं होगा कि शन्नो को वी जी के पास बंबई से आये एक महीना हो गया है। बेचरी एक महीने से मुंह छिपाए दादाजी के यहां पडी हुई है, एक चोर की तरह। उसके मम्मी डैडी व हम लोग शोक मनाते हुए बिलकुल जड होते जाते रहे हैं।मृत्यु का तो कोई सब्र भी कर ले लेकिन शन्नो जिन कांटों से गुजर कर आयी है वह सीधे हमारे सीने में धंसते रहते हैं। पहले जोशी जी के घर जो भी आता चंचल चपल शन्नो को पूछता घर में घुसता आता था। बन्नो अजीब सी हीन भावना से घबराई अपने कमरे में घुसी रहती थी। शन्नो मेरे पास आकर बडबडाती – ” आंटी, बन्नो को कितना भी समझाओ किसी के सामने बाहर नहीं आती। अपने कमरे में किताब खोले कहीं खोई रहती है फिर फेल हो जाती है। मैं तो कहती हूं बी ए करते ही इसकी शादी कर देनी चाहिये।”
” और तू? तू क्या शादी नहीं करेगी?”
” क्यों नहीं? अभी कर लूं ! कोई अच्छा सा लडक़ा आपकी नजर में हो तो बताइये।” वह मेरी आंखों में आंखें डालकर शरारत से मुस्कुरा देती।
” तुझे शर्म नहीं आ रही! अपने लिये लडक़ा ढूंढ रही है।”
” आंटी! अब आप स्लोमोशन मूवी जैसी हो गयीं! जमाना आज फास्ट फूड तक पहुंच चुका है।”
” तेरे से जीतना तो मुश्किल है।”
मैं बहाना बना कर उठती तो वह लपक कर मेरा हाथ पकड लेती, ” लडक़ा ढूंढने अभी कहां चल दीं? पहले मैं रिसर्च करूंगी फिर शादी।”

आज वही शन्नो अस्पताल के वार्ड में हम सब से मुंह फेर कर दीच्वार की तरह मुंह किये बैठी है। बन्नो तत्परता से चूडियां खनकाती मां को कभी नैपकिन थमा रही है तो कभी मौसमी का जूस निकाल कर दे रही है। शन्नो के बेलौस ठहाके, उसकी पायल की छम छम जैसे मेरे कानों में कहीं दूर गुफा में से गूंजते सुनाई पड रहे हैं। श्री व श्रीमति पटेल उठते हैं। मैं भी उनके साथ उठ लेती हूं। मुझे पता है, मैं रुकूंगी तो अपना रोना नहीं रोक पाऊंगी। मैं रोऊंगी तो शन्नो भी रोएगी, उसकी मां भी रोएगी। जोशी जी के जख्म पट्टी के नीचे तरल हो जायेंगे।

घर आकर पस्त पड ज़ाती हूं। शेखर को बताती हूं, ” पता है, शन्नो आ गयी है।”
” अच्छा, कैसी है वह?”
” बहुत दुबली हो गयी है, बिलकुल बदल गयी है।”
” पता नहीं, कहां फंस गयी बेचारी!”
मैं निढाल हो बेमन से रात का खाना बनाती हूं। शन्नो की सूरत मेरी पलकों से हट नहीं पा रही। बाद में एक किताब पढने की कोशिश करती हूं। उसके पृष्ठों में मन नहीं गुम हो पाता। हर पृष्ठ पर एक जोडा आंखों की उदासी बिखरी हुई है। बडी मुश्किल से नींद आती है। लगता है, कोई दरवाजा लगातार खटखटा रहा है। मैं उनींदी सी दरवाजा खोलती हूं और चौंक जाती हूं- ” शन्नो तुम?”
” हां आंटी। सॉरी। आपको इस समय परेशान किया। आज कॉलेज में हम फााइनल वालों को फेयरवेल दे रहे हैं।”
” तो उन्हें जाकर फेयरवेल दो, मेरी नींद क्यों खराब कर रही हो? रात में किसी ने सोने नहीं दिया, अब तुम जान खाने आ गईं।”
” मम्मी बाजार गयी हैं। मेरी समझ में नहीं आ रहा इस साडी क़े साथ काला ब्लाउज पहनूं कि ये हरा! ये हरे रंग का ब्लाउज साडी से मैच नहीं कर रहा।”
” इतनी सी बात पूछने के लिये तूने मेरी नींद खराब की?” मैं झुंझला उठती हूं।

” आप तो दोपहर में रोज रोज सोती हैं, क्या हमारे कॉलेज में पार्टी रोज रोज होती है?” वह अधिकार से पलंग पर जमकर बैठ जाती है। उसके इस धांसू अधिकार पर मैं मुस्कुरा देती हूं। ” वाकई यह हरा शेड साडी से मैच नही कर रहा। यह काला ब्लाउज ही पहन लेना। अब यहां से दफा हो।”
” आपसे यह किसने कह दिया कि मैं जाने वाली हूं? आप ही मुझे साडी पहनायेंगी। मैं साडी पहली बार पहन कर बाहर जा रही हूं। जरा पिनअप ठीक से कर दीजिये। कहीं वह खिसक न जाये और” फिर वही खिलखिलाहट। साडी पहनकर वह गुडिया सी लगने लगती है। उसे अपना हरे रंग का हैदराबादी जडाऊ सैट पहना कर हाथ जोड क़र कहती हूं, ” बाबा! अब तो जा।” उसे बाहर निकाल कर मैं लपक कर दरवाजा बन्द कर देती हूं। जल्दी में मेरी उंगली दरवाजे के बीच में आ जाती हैं। घबराकर मेरी नींद खुल जाती है। कमरे में अंधेरा गहराया हुआ है। कहीं भी तो नहीं है हरी साडी में गुडिया सी सजी पार्टी में जाती शन्नो। मेरे इर्द गिर्द अंधेरे में घिरी एक जोडा आंखें भर हैं।

पहले तो वह जरा सी बात पर उबल पडती थी। उसे लगता था कि उसके आसपास जो भी उलटा सीधा घटित हो रहा है उसे वह ठीक करके छोडेग़ी। उस रक्षाबंधन के दिन जैसे ही उसने सुना, काशीबेन की तीसरी बेटी भी ससुराल से पिटकर वापस आ गयी है, वह दनदनाती सुबह दस बजे हमारे घर में घुस आयी थी, बरामदे में रखी डायनिंग चेयर खिसका कर मेज पर अपनी दोनों कोहनी टिकाये हथेली पर अपनी ठोडी रख किसी जज की तरह अकड क़र बैठ गयी थी। बडे अधिकार से उसने काशी बेन को रसोई से बाहर आने को कहा था।

काशी बेन कुछ भी न समझती सी साडी के आंचल से हाथ पौंछती सी बाहर निकल आई थी – ” बेन सु छे।”
” मैं ने तम्हें कितनी बार समझाया था कि अपनी लडक़ियों को स्कूल में दाखिल करा दो। गुजरात सरकार ने लडक़ियों की फीस माफ कर दी है। काश कुंता पढी – लिखी होती तो ससुराल में कैसे उसे कोई मार सकता था? अब तुम्हारी तरह बर्तन मलेगी।”
काशी बेन बेवक्त की डांट से सकपका गयी थी। अपने आंचल से आंसू पोंछती कह उठी थी, ” बेन, लडक़ियों का भाग्य पहले से कौन जान पाता है?”
” पहले तुम विधवा हो गयीं? बाद में तुम्हारी दो बेटियां ससुराल से मार खाकर तुम्हारे यहीं आ गयीं तब भी भाग्य की बात करती हो? मैं तुम्हें कितना समझाती थी कि उसे पढाओ लेकिन हर बार तुम यही कहती थीं, उसे नौकरी थोडे ही करनी है। चूल्हा ही तो फूंकना है तो क्यों टैम खराब करे!”

शन्नो ने ही पढ लिख कर कौन सा तीर मार लिया? वह भी एम एस सी में गोल्ड मैडल लेकर? एम एस सी के बाद उसकी रिसर्च की इच्छा रखी की रखी रह गयी थी। बस, जैसा कि होता है, सपनों का राजकुमार सामने आकर खडा हो जाता है। हर लडक़ी अपनी सुधबुध भूल जाती है। तब उसने अपने दादा के घर से लौट कर लाल होते हुए बताया था, उसके लिये बहुत सी सुंदर लडक़ियों के ऑफर थे लेकिन उसने मुझे ही चुना। उसे पांच बजे आना था लेकिन वह चार बजे ही आ गया। मैं तो साथ वाले कमरे में बाल खोले बडे ज़ोर जोर से शोर मचा रही थी कि जरी की साडी नहीं पहनूंगी तभी उसने देख लिया था।
” मतलब, जनाब तभी फ्लैट हो गये थे?”
” बुरी तरह! घर पहुंचते ही उसने हां कर दी थी!”
” मतलब, उसके मां – बाप, भाई बहन साथ में तुम्हें देखने नहीं आये थे?”
” नहीं, उन्होंने सब उसके ऊपर छोड रखा था।
मैं शन्नो की मां को क्या समझाती कि शन्नो की शादी की इतनी जल्दबाजी न करें, क्योंकि वह तो सगाई करके ही लैटी थीं। बहुत गद्गद् होकर उन्होंने बताया था कि जैसा लडक़ा हमें चाहिये था उससे अच्छा लडक़ा हमें मिल गया।
” बम्बई में क्लास वन ऑफिसर है। हम बडे क़िस्मत वाले हैं जो शन्नो पहली बार में ही पसन्द कर ली गई।”
” किस्मत वाले तो वे हैं जो शन्नो को ले जा रहे हैं।”

बाद में सगाई की रंगत जैसे उसके चेहरे पर उतर आयी थी। किसी से जुडने पर जैसे कि नारी एक लचीली टहनी में बदल जाती है, वैसी ही खुशी से उसका पोर पोर लहक रहा था। हल्की खुमार भरी आंखें खोई खोई सी हो उठी थीं। उसकी उंगली में हर समय सगाई की अंगूठी जगमगाती रहती थी। कुछ दिनों बाद ही वी जी उनके घर में आ धमका था। लंबा तडंगा। दोनों रात को पेडों की कतारों से घिरी सडक़ पर जब टहलने निकलते तो उनकी लंबी जोडी देखते ही बनती थी। उसे लेकर वह शर्माई – सकुचाई – सी हमारे घर भी आई थी। सारा ध्यान उसका अपनी साडी संभालने में ही था।वी जी की मिठास भरी बातचीत, उसकी विश्लेषण भरी बातें सुनकर मैं हैरान रह गयी थी। उसने बहुत मीठे स्वर में उलाहना दिया था, ” आंटी, शन्नो कहती है, शादी के बाद पति – पत्नी का बराबर अधिकार होना चाहिये, लेकिन मैं कहता हूं कि पत्नी को थोडा झुककर पति व उसके घर वालों के साथ व्यवहार करना चाहिये।

उसके इस पुरुष अहं ने मेरा मन हल्का सा आहत किया था। मेरे बस में होता तो मैं भी यही कहती कि पति – पत्नी दांपत्य में बराबर के हिस्सेदार हैं किंतु सच बात यह है कि स्त्री पुरुष के अहं से जीत नहीं सकती। सफल दांपत्य का रहस्य यही है कि पत्नी कुछ झुक कर चले।
शन्नो कुछ झुंझला कर बीच में बोल पडी थी, ” क्या आप यह राय देंगी कि हर गलत बात के सामने वह झुक जाये?”
” ऐसा तो कभी नहीं करना।”
इन्होंने बीच में चुटकी ली, ” शुरु शुरु में तो ऐसा भी कर लेना। बाद में तो वी जीका भी हमारा जैसा ही हाल हो जाने वाला है।” इनकी बात सुन कर सब हंस पडे। मैं बहुत संतुष्ट हो उठी थी कि शन्नो को भी उसके जैसा परिपक्व मस्तिष्क वाला सुलझा हुआ पति मिल रहा था।
” आप लोगों की शादी की तारीख क्या तय हुई है?”
” आप लोग कहें तो हम लोग अभी शादी तय कर लें।” उसने मीठी नजरों से शन्नो को देखते हुए कहा था। उसकी इस नजर से शन्नो की रंगत गुलाबी हो उठी थी। फिर वी जी ही बोले थे, ” बस बन्नो की शादी तय होने का इंतजार हो रहा है। इनके मम्मी डैडी दोनों बहनों की शादी एक साथ करना चाह रहे हैं।”
उन दोनों के जाने के बाद मैं बहुत खुश थी। मेज पर से जूठे प्याले ट्रे में लगाते हुए बोली, ” शन्नो कितनी लकी है! बहुत सुलझा हुआ पति मिल रहा है।”
ये गंभीर हो उठे थे, ” सुगर – कोटेड टंग वाले कभी कभी बेहद खतरनाक निकलते हैं।”
” आप तो हर बात में बुरी बात ही ढूंढने की कोशिश करते हैं। क्या कमी है वी जीमें?” मैं झुंझला उठी थी।

इत्तफाक से बन्नो के लिये हमारे ही शहर में लडक़ा मिल गया था। शादी के बाद दोनों बहनें आम पर आई बौर की तरह महक उठीं थीं। दोनों का फाइनल बाकी था। बन्नो तो बी ए फाइनल की परीक्षा भूल भाल कर पति के घर चली गयी थी। मैं शन्नो को पकड क़र पूछती थी, ” तेरा पढाई में मन कैसे लगता होगा?”
वह शर्मा कर कहती, ” मैं ने तो वी जीसे कितना मना किया था कि फाइनल परीक्षा के बाद ही शादी की तारीख रखना लेकिन उसने बेशर्म होकर साफ साफ कह दिया था कि अब सब्र नहीं होता।”
परीक्षा के बाद तैयारी शुरु हुई थी शन्नो की विदाई की। उसकी मम्मी रोज बाजारा के चक्कर लगाने चल देतीं। जो शादी में कमी रह गई थी वह ही अब पूरी कर रही थीं। शन्नो झल्लाती, ” क्या मम्मी, वी जीक्या कंगला है या बंबई में यह चीजें नहीं मिलेंगी।”
” अभी तू गृहस्थी का मतलब समझती नहीं है। बंबई जाकर एकदम कहां सामान खरीदने निकल पडेग़ी?”

वी जी को छुट्टी नहीं मिली थी। शन्नो के डैडी ही उसे बंबई छोडने गये थे। एक महीने बाद पता लगा कि शन्नो बंबई से कुछ दिनों के लिये आई हुई है। मैं उसके हालचाल लेने, बीती हुई रातों के किस्से सुनने फौरन भागी थी उसके घर। दरवाजा उसकी मां ने खोला था – उतरे हुए,उजडे हुए स्याह मुंह से। मैं ने अधिक ध्यान नहीं दिया, ” शन्नो कहां है?”
वह भरे स्वर में बोलीं थीं – ” अंदर वाले कमरे में है।

मैं अन्दर वाले कमरे में उत्साह से जैसे ही गयी, सामने वाला दृश्य मुझे जड क़र देने के लिये काफी था। पलंग पर तकिये पर अपनी पीठ टिकाये शन्नो बैठी थी। बिखरे हुए बाल, रोता चेहरा। नीचे का होंठ व एक गाल सूजा हुआ था। दूसरे गाल पर एक लंबा नाखून का निशान बना हुआ था।
मैं गबरा कर उसके पास दौडती चली गयी।” शन्नो यह क्या हालत बना रखी है?”
उसने खाली खाली नजरों से मुझे देखा और अपने घुटनों में मुंह छिपा कर रोने लगी। उसकी मम्मी भी पलंग पर आकर बैठ गयीं।

मैं समझ नहीं पा रही थी, उडती, हंसती खिलखिलाती चिडिया के पर नोंच करउसे जमीन पर किसने पटक दिया है! मैं इतना भर पूछ पाई -” शन्नो क्या हुआ?”
उसकी मम्मी मेरे पास बैठ कर सिसकने लगी, ” हमारी तो तकदीर ही फूट गयी।”
” लेकिन हुआ क्या?”
” वी जी ने इसे पहली रात से ही मारना शुरु कर दिया था।”
” लेकिन इसने पहले कुछ नहीं बताया!”
” हमें यही लगता था कि शादी से बहुत खुश है।”
” हां तब कुछ नहीं बताया। ये बंबई छोडने गये थे तब वह इनके साथ बुरा व्यवहार करता रहा। मेरी बेटी ने तीन रात बाहर सीढियों पर ही गुजारी हैं। जब सहा नहीं गया तो वहां से भाग कर घर चली आई।”
” वह तो पढा लिखा है फिर कैसे?”

 

” हमने शादी में इतना दिया है फिर भी वह खुश नहीं है।”
”मैं मान ही नहीं सकती कि वह शादी के लेन देन के लिये इसको तंग कर रहा है। खोई भी आदमी पहली रात को ही कैसे पत्नी को मारना शुरु कर सकता है?”
” पता नहीं,क्या बात है? शन्नो ने बंबई में स्टेशन पर ही इनसे भरे गले से कहा था कि वी जी का व्यवहार बडा एबनॉर्मल है, लेकिन वह कैसे भी उसके साथ एडजस्ट कर लेगी। जब इसकी हिम्मत जवाब दे गयी तो उस नरक से मकानमालिक की मदद से भाग आई है।

आज सोचती हूं , सारे समय मुस्कुराती होशियार सी लडक़ी की किस्मत में वही नीच आदमी लिखा था? नियति कहां से ढूंढ कर उसे बांध गई थी शन्नो से सिर्फ तीन महीने के लिये? उसका चेहरा देखा नहीं जाता था। स्याही पडी हुई आंखें, क्षोभ से झुकी गर्दन। सिर्फ एक पुरुष के नाम से तीन महीने मांग में सिंदूर भर जाने के लिये? पुरुष भी कैसा! वहशियाना क्रोध में पागल हो जाने वाला! शन्नो की समस्या का कोई हल नजर नहीं आ रहा था। उससे दादाजी व चाचा ने पुलिस में रिर्पोट करने से मना कर दिया था। शन्नो को उन्होंने अपने पास बुला लिया था।

जोशी जी अस्पताल से घर आ गये हैं। इधर – उधर पडौस में कानाफूसी शुरु हो गयी है कि अब शन्नो यहां क्या कर रही है? बाप के एक्सीडेन्ट को तो एक महीना बीत गया। शन्नो भी भेदती निगाहों से बची सी घूमती है। वह बिलकुल टूट चुकी है। कहीं भी कुछ करने की इच्छा शेष नहीं रही है।
एक दिन सहमते स्वर में उसकी मां ने उससे कहा, ” शन्नो! रिसर्च करना चाह रही थी। कब शुरु कर रही है?”
” मुझे अब कुछ नहीं करना। सब कुछ खत्म हो गया है। मैं अपने खत्म होने का इंतजार कर रही हूं।” वह चीखती तडपती जोर से रोने लगी।
” जिन्दगी एक ठोकर से तो खत्म नहीं हो जाती।”
”लेकिन मेरी जिन्दगी खत्म हो चुकी है। इतना अपमान सहकर भी मैं तभी क्यों नहीं मर गयी, आज भी नहीं समझ पाती।”

शन्नो गिरती पडती, घिसटती लाश की तरह जी रही है। घर वालों का दिल रखने के लिये दो निवाले मुंह में किसी तरह डाल लेती है। सारा समय पलंग पर करवट लिये लेटी रहती है या फिर अपने कमरे में खिडक़ी की सलाखें पकडे आसमान पर टंगे काले बादलों को बुझी आंखों से देखती रहती है। सबकी बातें उस पर बेहद धीरे असर करती हैं। उसने शोध करने का निर्णय ले लिया है।
मैं इतने दिनों तक उससे अकेले मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई हूं। एक दिन वह स्वयं ही मेरे दरवाजे पर उजडी हुई आंखें लिये दर्द की तस्वीर – सी खडी हो जाती है। मैं बाल छितरा कर सतरंगी चुन्नी लहराकर नजक़त से चलने वाली शन्नो को ढूंढने लगती हूं। कहां खो गयी है वह?
वह बडे सहमे से स्वर में पूछती है, ” आंटी! आऊं? आप सो तो नहीं रहीं?”
” अरे कैसी बात करती है। अन्दर आ जा।” वह सहमी – सिकुडी सोफे पर बैठ जाती है। मैं जान बूझ् कर उसे शोध की बातों में, जोशी जी की बीमारी की बातों में उलझाये हुए हूं। उसकी कराहती आंखें बीच बीच में मुझसे शिकायत कर रही हैं – ‘ मैं ने जो झेला है उसे आप पूछने तक की हिम्मत नहीं कर पा रहीं?’

वह अनमनी सी मेरी बातें सुन रही है। अचानक वह तैश में आकर मुझसे पूछती है – ” आंटी, एक बात का आप साफ साफ जवाब दीजिये। आप मेरे इस तरह से बंबई से भाग आने को जस्टीफाई करेंगी या नहीं?”
” बिलकुल करुंगी। तुम तो बहादुर हो जो इतना सही कदम उठाया। तुम्हारी मम्मी को भी, जिन्होंने तुम्हें वापस नहीं भेजा।”
” तो लोग ऐसा क्यों नहीं मानते” कहते हुए वह फफक पडती है” जब मैं दादाजी के घर थी तो सब मुझे वहां महसूस करवाते रहते थे कि हमारे खानदान में अब तक किसी लडक़ी ने हमारी नाक नहीं कटाई! जैसी जिसको ससुराल मिली वह वहीं की होकर रही।”
” तेरी चाची तो बहुत अच्छी हैं।”
” वह भी घुमाफिरा कर यही जताती रहती थीं कि उनकी लडक़ियों की शादी कैसे होगी? उन्हें शायद तब उतनी तकलीफ नहीं होती जब सुनतीं कि शन्नो कैरोसीन डाल कर आग लगा कर जल कर मर गई है या जला दी गई है। वहां नरक की आग में झुलसने के बजाय मेरे जीने की कोशिश करने से लोगों को तकलीफ हो रही है!”
” शन्नो वह मौत तो एक कायर की मौत होती। तुमने बहुत अच्छा किया जो भाग आईं।”
”आप समझती हैं, भागने का निर्णय मैं ने क्या एकदम ले लिया था? तीन बार वी जी ने मेरी पिटाई करके घर से बाहर निकाल दिया था। मैं तीनों रात सीढियों पर पडी रोती रही। मकानमालिक के परिवार ने मुझे अपने घर सुलाया। उन लोगों के बहुत कहने पर मैं ने दो बार ऊपर जाकर वी जी से माफी मांगी, जबकि मेरा कोई कुसूर नहीं था। तीसरी बार।” बात पूरी करने से पहले ही वह फिर सिसक उठी है।
” तेरी ये बातें बाद में सुनूंगी। मेरा दिल दहल रहा है।”
” नहीं आज आपको मैं बताकर रहूंगी।” वह बडी मुश्किल से अपनी हिचकियों पर काबू रख पाती है, ” आखिरी रात दस बजे तक खाना लिये उसकी प्रतीक्षा करती रही। मैं ने सिर्फ इतना ही कहा कि रात में कम से कम आठ बजे तो घर लौट आया करो। उसने मेरे बाल पकड लिये और मेरे चेहरे पर दो तमाचे लगाये व चिल्लाया कि – मुझ पर हुकुम चलाने वाली तू कौन है? निकल मेरे घर से। उसने मुझे बाहर धक्का देकर दरवाजा बंद कर लिया। आप ही बताइये, मैं और कितना अपमान सहती? उसी रात मकानमालिक का सहारा लेकर भाग आई थी।”
” शन्नो। असली बात क्या थी? वह इतने अच्छे पद पर है फिर क्यों जंगलियों जैसा व्यवहार करता था?”
”अपने मामूली परिवार में एक वह ही पढा लिखा है, सारे खानदान में पूजा जाता है। शायद मेरी काबिलियत बर्दाश्त नहीं कर पाता है।”
” इसके अलावा भी जरूर कोई बात होगी जो उसने तुझे पहली रात से मारना आरंभ कर दिया। वह व्यक्ति नॉर्मल तो हो ही नहीं सकता है।”

कितना अच्छा अभिनय कर गई थी शन्नो हनीमून से लौटकर। खूब भारी भरकम साडियां पहने, गहनों से लदी, बात बात पर खिलखिला उठती थी। बन्नो भी अपनी ससुराल से खुश आई थी। दोनों बहनें घर बाहर चहकती रहतीं। बन्नो मेहुल के किस्से चटखारे लेकर सुनाती, शन्नो वी जी के। श्री व श्रीमति जोशी उन्हें देखकर तृप्त हो उठते थे। तब हमें क्या पता था, शन्नो ने बडी बडी मुस्कुराती, हंसी बिखेरती आंखों के नीचे की तरफ दर्द की एक कटीली लकीर बडे यत्न से गहरे फाउंडेशन से छिपाकर रखी है। उसकी गहरी लिप्सटिक, काला मस्कारा किसी बात को छिपाने का प्रयास भर थे।

उस दिन शन्नो ने अपने घाव के टुकडे – टुकडे क़र मुझे पकडाती जा रही थी। किस तरह वी जीउसका मजाक उडाते हुए हंसा था – ” मैडम यह बंबई है बंबई! यहां आप जैसी हजारों लडक़ियां रिसर्च करने के लिये मारी मारी घूमती हैं। आप किसी का पत्र लेकर आई हैं तो क्या? कौन घास डालेगा आपको?”
”एक बार मैं उन प्रोफेसर से मिल तो लूं जिनके नाम से पत्र लाई हूं।”
दूसरे दिन वह विश्वविद्यालय से बहुत खुश लौटी थी। उसने वी जीको बतााया था, ” पता है वी जीवह तो स्वयं ही मुझे रिसर्च करवाने के लिये तैयार हो गये हैं।”
” ये हो ही नहीं सकता।” वी जी का अहंकार फुंफकार उठा था, वैसे भी तुम घर संभालोगी कि रिसर्च करोगी?”
” लेकिन मैं घर बैठकर सिर्फ रोटियां नहीं पका सकती। तुम्हें रिसर्च पसंद नहीं है तो मैं नौकरी कर लूंगी।”
” मुझे तुम्हारा घर से निकलना या नौकरी करना बिलकुल पसन्द नहीं है।”
” फिर तुमने एम एससी लडक़ी से शादी क्यों की? तुम से मेरी शादी हो गई है, अब तुम जो कहोगे मैं वही करने को तैयार हूं किन्तु मुझे शान्ति से जीने तो दो।”
”तुम तो बहस बहुत करती हो!” कहते कहते वी जी का हाथ उठना आरंभ हो गया था।

शन्नो शोध में, जोशी जी मुकदमे के लिये धीरे धीरे जानकारियां इकट्ठी करने में लगे हुए हैं। बडी अजीब सी बातें सामने आ रही हैं। वी जी अपनी नौकरानी से ही शादी करना चाहता था। विभाग की दो लडक़ियों से भी उसके सम्बन्ध थे। शन्नो को विश्वविद्यालय जाते देखती हूं तो सहम जाती हूं। सपने का रंग, पता नहीं कहां छिप गया है! आंखों के आगे काला दायरा बन गया है। अपनी लडख़डाई जिन्दगी को संभालने की जद्दोजहद से वह बार बार स्वयं लडख़डा जाती है।
बन्नो अपने प्रसव के लिये रिवाज के मुताबिक मां के घर आ गयी है। वह जब भी समय मिलता है हल्के कदमों से छत पर टहलती है। शन्नो अपने शोध परिणामों को और भी गंभीरता से लिखने में जुटी है। अपना अधिक से अधिक समय विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में बिताने लगी है लेकिन बिना अपना दर्द दिखाए बन्नो के प्रसव के लिये भाग दौड क़रती रहती है। अस्पताल से वह और उसकी मम्मी बन्नो को उसके गुलगुले बेटे के साथ टैक्सी से वापस लाती हैं। जहां तक होता है वह मां बेटे की साज संभाल में अपनी मां का हाथ बंटाती है।

बन्नो एक कमरे में अपने बेटे के गुदगुदे गाल से अपना गाल सटाये हुए नवजात की कोमलता महसूसते हुए ममत्व के गौरव से भर कुछ गुनगुना उठती है। उधर शन्नो अपने कमरे में शोध के लिये डिसेक्शन टे्र में सफेद सफेद छोटे नवजात चूहों की गर्दन पर निर्ममता से छुरी चला रही होती है। क्षोभ व क्रोध में वह सिर्फ एक की जगह चार चूहों को काट डालती है।

कभी बन्नो का बेटा झूले पर टंगी हुई घूमती हुई तेज चकरी को देखकर जल्दी जल्दी पैर चलाकर किलकारी मारने लगता है तो शन्नो घर से निकल कर मेरे पास आकर बेवजह सिसकने लगती है। गुस्सा कहीं और उतरता है।

” आंटी मेरा तो इस कॉलोनी में रहना भी मुश्किल हो गया है। पहले तो सिर्फ लोग मुझे एक दूसरे को इशारा करके ही दिखाते थे। अब तो बस में लडक़े भी आवाजें क़सने लगे हैं – पति को छोडक़र तो हम भी रिसर्च कर लें। कोई कहता है – सुना है, अपने किसी प्रोफेसर के लिये पति को छोड आई है। कोई कहता है – जरूर चालू होगी।”
”तू दुनिया की परवाह क्यों करती है? तेरे मम्मी पापा तो तेरे साथ हैं, तेरा सच तो तेरे साथ है।”
” वे बेचारे क्या करें? लोगों की बातें सुन सुन कर उनकी हालत खराब हो गयी है। कुछ रिश्तेदारों ने तो सिर्फ उनसे इसीलिये संबन्ध तोड लिये हैं कि उन्होंने मुझे पनाह दी है। उनकी सूरत देखकर लगता है कि इससे तो अच्छा था मैं जलकर कहीं मर जाती।”
” ऐसा क्यों सोचती है? जीवन में बहुत से उतार चढाव आते रहते हैं।”
” मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? मैं ने किसी का क्या बिगाडा था?

मैं निरुत्तर हूं। लडक़ियों की तकदीरें उनके किसी के बिगाडने न बिगाडने के आधार पर कहां लिखी जाती हैं! कुछ जीवन तो मां बाप के यहीं हंसते खिलखिलाते कट जाता है। बाकी का जीवन कैसा होगा, यह उसकी मांग की तरफ बढता एक हाथ निर्णय लेता है, सिर्फ एक हाथ!
पता नहीं कैसा विश्वास मेरे मन में है कि शन्नो जैसी लडक़ी को इस जरा सी बात के कारण भला कौन दोबारा अपनाने से इनकार कर देगा? तब मुझे कहां पता था, स्त्री की मांग से चुटकी भर सिंदूर का लग जाना एक बहुत बडी बात होती है। उस स्त्री की परिभाषा बदल जाती है। जोशी परिवार कॉलोनी वालों की बातों से तंग आकर किसी और कॉलोनी में जा बसा है, बिना किए अपराध की सजा भोगता हुआ।

मुकदमा चलते – चलते महीने, साल निकले जा रहे हैं। वी जी ने अपने गांव की किसी लडक़ी से शादी कर ली है। शन्नो की मां व उसके पिताजी गांव जाकर शादी करवाने वाले पुजारी के सामने जब रो उठते हैं तब कहीं वह कोर्ट में गवाही देने को तैयार होता है, किन्तु कोर्ट में वी जी को पहचानने तक से इंकार कर देता है।कोर्ट से लौटकर श्रीमति जोशी छटपटाती हैं।
” वह शादी करके एक लडक़ी के साथ रह रहा है। और हम सबूत तक नहीं जुटा पा रहे हैं।”
” पुलिस से इसके घर छापा पडवा दीजिये। सबूत अपने आप मिल जायेगा।”
पुलिस उसके घर गयी थी। लेकिन उस दुष्ट ने अपनी पत्नी को चचेरी बहन बता दिया।”
इस मुकदमे की आखिरी आस अब वी जी के मकानमालिक पर टिकी हुई है। वह तो वी जी को सींखचों के पीछे खडा कराने में मदद करेंगे ही।उनकी गवाही सुनने के लिये मैं भी कोर्ट जाती हूं। वह कोर्ट के कटघरे में बोलना शुरु करते हैं।
” जज साहब, वी जी हीरा लडक़ा है हीरा। यह बात सच है कि इन दोनों की लडाई में दो रात मैं ने और मेरी पत्नी ने इस लडक़ी को पनाह दी। उसे बंबई से अपने घर पहुंचने के लिये रुपये दिये। मुझे बाद में इन दोनों की लडाई का कारण मालूम पडा। ये लडक़ी वी जी को हाथ भी नहीं लगाने देती थी। उसने इसे समझाया भी था, शादी के पहले हुई कोई दुर्घटना हो या इसके किसी प्रेमी ने धोखा दिया हो तो वह उसे हाथ भी नहीं लगायेगा। एक साल तक इंतजार कर लेगा फिर भी यह घमण्डी लडक़ी इसको छोड क़र भाग गई।”

मुझे लग रहा है कोर्ट की एक एक चीज घूम रही है। मैं ही कुर्सी से उठने में असमर्थ हो रही हूं।इन लांछनों में फंसा दी गई शन्नो की तस्वीर सही है या दस साल मेरी आंखों द्वारा देखी गई मेरी सहेली व उसकी प्रोफेसर की बात, ” जोशीज आर वेरी लकी पेरेन्ट्स। दे हैव गॉट ए ब्रिलियेन्ट डॉटर लाइक शन्नो।”

वी जीकोर्ट की तारीख पर कभी आाता कभी नहीं आता। तलाक की अब उसे कोई जल्दी नहीं है। गऊ जैसी पत्नी से पुत्र पाकर वह पिता भी बन गया है। उधर शन्नो ने अपने को व्यस्त कर लिया है। वह यू जी सी स्कॉलरशिप पाकर खुश है। हर सेमिनार, हर कॉनफ्रेन्स में उसके शोध पत्रों की तारीफ होती है। उसके चेहरे से अब कोई नहीं जान पाता कि अकेले में उन खौफनाक यादों के दंश उसे किस तरह से छटपटाते हैं।

एक साथ दो बातें होती हैं। शन्नो बेमतलब की सादी से मुक्त हो जाती है। शोध के बाद उसी विश्वविद्यालय में उसको नौकरी मिल जाती है। उसने दिखा दिया कि चुटकी भर लाल रंग की बैसाखी या कैरोसीन के डिब्बे के बिना भी उसे जीना आता है। लेकिन जब जब मैं उससे मिलती हूं, उसी खिलखिलाती लचकती शन्नो को ढूंढने लगती हूं। पता नहीं कहां खो गयी है वह! वी जी ने तो कानून को धता बता कर पहले ही अपना रास्ता निकाल लिया था लेकिन शन्नो की नाव किस किनारे लगेगी कौन जाने! वह अपनी कर्मठता से लंदन के विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रही है। यह तो जरूर है, वह सुखी न भी हुई तो दुखी भी नहीं होगी!

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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