एक उतरते दिन के बीच में कहीं!!

1:

वे काफी देर से बात कर रहे थे…… वे लगातार बात किये जा रहे थे…. उन्हें बात करते हुए कोई घंटे भर से ऊपर हो गया था; ये उसके लिए आश्चर्य की बात थी कि जो फ़ोन की दूसरी तरफ़ है उससे वह इतनी देर तक कैसे बात कर सकती है| उसे अनुभव हुआ कि वे दोनों किसी बड़ी सूचना के रहस्य से पर्दा उठने से पहले की मशक्कत कर रहे हैं, जैसे सुई में डालने से पहले धागे को बार-बार हेरा के बटा जाये| 

वे इस बातचीत को चंद मिनटों में खत्म कर सकते थे, असल में एक मिनट से भी कम समय उनके चेहरों से इस बात के मुखौटे के टूटने के लिए काफ़ी होता| दो सेकंड ये कहने के लिए कि भैया जी अब नहीं रहे और बाकी सांत्वना देने के लिए, पर वे बात किये जा रहे थे|    

“अल्पा, तुम आ रही हो? मोना ने पूछा|

“ये कोई पूछने वाली बात है मोना, जो भी सबसे पहली फ्लाइट मिलती है मैं उससे पहुँच रही हूँ| हद से हद कल दुपहर तक|

“फिर सारा काम तुम्हारे आने के बाद होगा|” मोना ने कहा और फ़ोन काट दिया|

अल्पा ने अपना फ़ोन देखा, उस पर पसीने की कुछ बूँदें ठहरी हुई थीं जिसे अपने कुर्ते की बाँह से पोंछ उसने घर जाने की टिकिट्स बुक कराने के लिए ट्रेवल एजेंट को कॉल मिलाया| फ़ोन चार्जिंग पर लगा उसने सोफे की पुश्त पर सर टिका आँखें बंद कर लीं, थकान एकदम से उसके अंदर आ कर बैठ गई थी| जनवरी की उजली, गर्म धूप एकदम ही फीकी पड़ गयी थी, जैसे किसी ने सफ़ेद पतला पर्दा खींच धूप को अवरुद्ध कर दिया हो|

******

वह समय से काफ़ी पहले ही एअरपोर्ट पहुँच गई थी| हाथ में एक छोटा सा बैग था जिसमें कुछ दिन घर रुकने लायक कपड़े थे| चेक-इन की प्रक्रिया ख़त्म कर उसने लाउंज में जा चाय आर्डर की, हांलाकि उसका मन स्कॉच पीने का था पर उस वक़्त ऐसा करना ठीक नहीं लगा| उसने चप्पल उतारीं पैर मोड़े और आराम कुर्सी की पुश्त पर सर टिका सोचना शुरू किया कि कितने रिश्तेदार वहां होने वाले हैं और किस किस से उसका सामान होने वाला है| कईयों के चेहरे तक उसकी याद से मिट गए थे, अब उनके नाम के साथ चेहरे और चेहरों के साथ नाम उसकी याद में मेल ही नहीं खाते थे| उसकी नज़र में याद एक बहुत घातक चीज़ है, ये हमेशा ही गलत वक़्त पर आपके पास लौट-लौट कर आती है और अक्सर ये वापसी किसी तरह का आराम नहीं देती| याद एक बंद बक्सा है जिसे बार-बार खोलने की कोशिश की जाती है और खोलने वाला ये मानता है कि इसके खुलने पर रौशनी, सुख और ख़ुशबू वाले फूल निकलेंगे| उसने सोचा कि हम लोग कितने मूर्ख होते हैं कि हमेशा उस अतीत के सूखे, मुरझाये हुए फूल को सूंघने की कोशिश करते रहते हैं जो कि कब का मर चुका है, सड़ चुका है| मुक़म्मल माज़ी पर दाँव नहीं लगाना चाहिए, ये खुद से एक किस्म की चालाकी होती है। बीते बीहड़ पर रास्ता कैसे बनाया जा सकता है? इमली के बीजों को बीच में से तोड़ काले-सफ़ेद पासे तो बना लिए जाएंगे पर अतीत के खेल में खिलाड़ी नहीं मिले तो?? हद-बेहद, दूर-करीब के बीच का वह फासला जिसके इंतज़ार में गुज़रे कल से आने वाले कल में दाख़िले की गुंजाइश में हाड़ तक झोंक देना ही असल दाँव है। जैसे सरहदों के जाल में उलझा ज़मीन का टुकड़ा हैरत से पलट के देखे, जैसे दूर तक फैले हरे खेतों में कहीं बीच-कोने उग आया ढूह आंखें मीढ़ के उचक-उचक के देखे कि उसके लिए कोई ऐसा टुकड़ा बचा है जो हरा न हो…… बहुत बार बहुत हरे के बीच मिट्टी का रंग हो अकेला बने रहना भी एक दाँव होता है… जिसमें कभी पासे हैं तो खिलाड़ी नहीं, खिलाड़ी हैं तो पासे गायब। आशा का पूरा खेल, धैर्य की सभी कसौटियाँ इस खुरपेंच पर टिकी रहती हैं कि वे हमारे माज़ी पर कोई दाँव नहीं लगाना चाहते। पिटी बिसातों पर चालक खिलाड़ी उंगली नहीं रखते। अतीत की बिसात पिटने पर ये चीज़ गिर के बिखर जाती है जिसके लिए हम कहते हैं कि “होप इज़ अ डिवाइन हेल्प” या “धैर्य और आशा ईश्वर के हाथ हैं”। ये अदृश्य हाथ अनदेखे भविष्य पर पासा फेंक दाँव लगाते हैं।

उसने उठ कर घड़ी देखी फ्लाइट में अभी वक़्त था, उसने ख़ुद को जल्दी आने के लिए कोसा| वह इस यात्रा से बैचैन थी, यात्राएं उसे हमेशा से असहज करती रही हैं| पिछले कुछ सालों से उसने लम्बी यात्राएं बिलकुल ही बंद कर दी थीं| उसने गिना कि कुछ सात साल बाद वह कोई लम्बी दूरी की यात्रा कर रही है| उसने अंगड़ाई ले एक नज़र इधर-उधर डाली, अपेक्षाकृत उसे अपने आस-पास कम लोग नज़र आये| बिना किसी कारण उसने ड्यूटी फ्री के यूँ ही कुछ चक्कर लगाये, थकने पर एक जगह बैठ मोना को मैसेज कर अपने घर पहुँचने का समय बता उसके जवाब का इंतज़ार करने लगी, पर जब देर तक कोई जवाब नहीं आया तो उसे बुरा नहीं लगा, उसे पता था कि मोना की आदत है सन्देश देख कर भी जवाब नहीं देना| पहले भी मोना ने उसके भेजे संदेशों का कभी कोई जवाब नहीं दिया यहाँ तक की जन्मदिन की बधाई वालों पर भी जब कोई जवाब मिलना बंद हो गया तो उसने ये सिलसिला खत्म ही कर दिया| ये इधर के सालों में पहली बार होगा जब अल्पा ने उसे कोई मैसेज भेजा होगा|

अल्पा के ज़हन में कुछ कौंधा और पल भर ही में एक बुझती हुई चिंगारी सा लोप हुआ| शायद कोई चेहरा या याद; वह इस बात पर निश्चित नहीं थी कि उसे क्या याद आ कर गुम गया| अचानक गले में रुलाई का एक बुलबुला बना और ठहर गया| तरल होने की परिभाषा में कंठ का गह्वर भी आ सकता है और किसी पत्ते पर गिरी ओस भी, उसने सोचा कि गले का ये पानी और पत्तियों पर रुकी ओस दोनों ही में सैराब करने ताकत होती है, छाये होने पर अँधेरा भी हाथ थाम कर चला सकता है ठीक वैसे ही जैसे धूप चलने की राह दे, अब भैया जी के न होने से उनके जीवन की बदली हुई रौशनी कैसी होगी उसे इस बात का अंदाज़ नहीं था जबकि पिछले आठ-नौ बरस में कभी-कभार फ़ोन पर हुई रस्मन बातचीत के अलावा वह मिले नहीं थे| उसने चाहा कि काश उसे इस ख़बर के उलट कुछ और बताया जाता, वह कैसे बीमार हुआ, कि उसे क्या बीमारी थी, या ये ही कि वे नहीं चाहते थे की इस ख़बर से वह परेशान हो पर अब किसी चाह का होना न होना बराबर है| जितनी चाह, मन का उतना भटकाव, जितने ज़्यादा बादल उतना तेज़ सैलाब, जितनी तेज़ धूप उतनी गहरी छाँव| किसी चाह के न होने से उसके जीवन में कोई अँधेरा नहीं| जितनी बड़ी चाह उसे पाने का उतना बड़ा जतन जैसे जितना घना बादल उसके भीतर उतनी तेज़ चमक, उतनी मारक बिजली| उसने एक बार एक चाह की थी तो उसका मोल भी चुकाया था, उसे खोया भी था और अंततः एक दिन ऊब कर उसे मन से अलग भी कर दिया था|

उसके आश्चर्य के लिए उसके मोबाइल में मोना का मैसेज चमका|

“चिंता ना करो, तुम्हारे आने तक उसे नहीं ले कर जायेंगे|”

3.

नीची उड़ान भरते हुए जहाज की खिड़की से अल्पा को दूर-दूर तक फैले पहाड़ों की नुकीली, धूसर चोटियां नज़र आ रहीं थीं। धूप उन पर से फिसल कर शायद नीचे बहती किसी नदी में या रेत में जा मिलती होगी। अभी कुछ देर में जहाज इस जगह से दूर कहीं और किसी ज़मीन का दृश्य उसकी आँखों के सामने ला कर खड़ा कर देगा, जिसमें मैदानों के बीच पेट के बल लेटे घर होंगे या हो सकता है करवटें बदलती खाईयाँ हों। पर ये दृश्य कितनी देर में उसके सामने से हटेगा……. मुड़ते हुए जहाज की खिड़की से टकरा के धूप पल भर में किर्ची-किर्ची हो उसकी आँखों में बिखर के चुभ गई। उसकी आँखों में चीज़ें आ कर बस चुभती ही रहीं, चेहरे हों या परछाइयाँ कोई भी तो पल भर उसकी आँखों में साबुत, सुकून से नहीं बस सका। जो भी आया बिखरता हुआ, चटका हुआ, पैने, नुकीले डैनों पर सवार हो कर ही आया। जैसे अभी ये धूप है, इससे ज़रा पहले पीछे छूटती नुकीली चोटियां थीं…… ये था, वो था, ऐसा था, वैसा था और इन ऐसी वैसी चुभन के बीच में कुछ चेहरे भी थे जो उसकी आँखों में थे या दिल की किसी तह में ये उसे लम्बे वक़्त से पता ही नहीं। एक दृश्य उसके सामने आ कर रुक गया|

पानी बहुत धीरे से सरक के छज्जे के कोने तक आ कर ठहर गया था। उन सबने गर्दन थोड़ी पीछे खींच सर ऊपर कर छज्जे के बाहर निकले पाइप से बूंद भर गिरते पानी को देखा। नज़र में जो पहली बूंद आई वह साथ खड़े साथी के माथे पर गिर के, टकरा कर बिखरी तो उसकी बहुत हल्की नमी जैसे अल्पा की  आँख के पास तक आ के चली गई। सबको तेज़ बारिश का इंतज़ार था। इतनी तेज़ बारिश का कि जिसमें स्वभाव से उद्दंड पानी को उन तक सरक के, हाँफ के न आना पड़े। आये तो बहता हुआ, सब बहा के ले जाता हुआ आये। ऐसे पानी का इंतज़ार था सबको। इस मुहल्ले में तेज गरमी के दिनों के बाद सब को ऐसी ही बारिश का इंतज़ार रहता है जिसमें बहते पनालों के नीचे रख बाल्टियां भर पानी जमा किया जा सके। उसने मुड़ के देखा साथी ने ज़रा सी जगह बदल गिरती हुई दूसरी बूंद को माथे पर फिर से ऐसे फिसलने दिया जैसे हरसिंगार के खुरदरे पत्ते से टकरा के बिखर कर पानी नीचे उतर जाये। दोस्त के माथे की हरसिंगार के खुरदरे पत्ते सी वाहियात तुलना पर अल्पा ने थोड़ा सा मुस्कुरा के उसकी तरफ़ देखा तो पाया उसके माथे पर सच ही में बहुत छोटे छोटे दाने उभरे हुए हैं, जैसे पीठ की घमौरियां आगे तक चल कर आ गई हों। उसने उसे देखा और याद में एक बहुत पुराना सफ़ेद नारंगी फूलों से ढका पेड़ उभरा और खो गया। ये दोस्त उसका भाई था|”

उसने खिड़की का शटर गिराया और आँखें बंद कर कर लीं, आँखें उसकी यूँ भी अब रौशनी के प्रति संवेदनशील होने लगी थीं| बंद आँखों में एक और धुंधली छाया तैरने लगी|

“तुमको स्पीच थैरेपी करानी चाहिए” अल्पा को याद आया कि उससे आखिरी बात यही हुई थी, और जवाब में उसने एक पर्ची थमा दी थी जिस पर लिखा था कि….

“तुमको अब जाना चाहिए अल्पा अँधेरा होने लगा है टैक्सी नहीं मिलेगी वरना।”

अल्पा ने सर दूसरी तरफ घुमाया…….

“तुम्हें वह हकला ही मिला है ज़िंदगी भर को” भैया जी ने उससे कहा।

“मिला कहाँ हैं खुद ही देखा भाला है इन्होंने” मोना ने ज़मीन पर फैले पानी पर पोंछा डालते बात को ज़ारी रखा|

“देखो मम्मी-पापा होते तो तुम्हारी मनमर्ज़ी उनके सर होती, हम अपने मत्थे कुछ ऐसा वैसा नहीं लेंगे जिससे बातें बने| शऊरदार ढंग का बोलता-बतियाता कोई देखेंगे, ख़ुद बौखलाने की क्या ज़रूरत है तुम्हें|” भैया जी अपनी रौ में बोले जा रहे थे| 

“तुमको हर चीज़ अपने खींसे में बांधने की आदत क्यों है? हमारी बात है हम ख़ुद देख लेंगे|” इतना कह कर वह कमरे से बाहर निकल थी|

देर तक कुर्सी पर बैठे-बैठे उसकी पीठ अकड़ने लगी थी, उसने खिड़की खोली और कुर्सी पर ज़रा आड़ी हो दुबारा बाहर देखा, कुछ ही देर बाद नज़र में सालों से छुपा शहर नज़दीक आ कर कुछ साफ़ दिखने लगा था, यहाँ बादलों के बीच से कभी छिटक कर नीचे कहीं-कहीं इमारतों के शीशों पड़ती धूप पर ऐसे दिख रही थी जैसे दियों की लौ लहक रही हो, उसने थक के आँखें मींच लीं। जहाज के पहिये ज़मीन से टकराये तो अल्पा की आँख खुल गई…. आस-पास बैठे लोग जाने के लिए उठ खड़े हुए थे और वो सब भी जो अब तक उसकी आँखों के अंदर पानी से तैर रहे थे……

वह जब जहाज से बाहर निकली तो देखा कि मोना का एक और मैसेज उसके फ़ोन पर चमक रहा था|

“कितना समय लगेगा पहुँचने में| सामने की तरफ़ से मत आना बैक एंट्रेंस से आना, छोटी बुआ पहुँच गई हैं|

“कोई घंटा भर लगेगा|” उसने जवाब दिया|

उसने टैक्सी बुक की, घडी पर नज़र डाली और अचानक उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान आ कर ठहर गई| छोटी बुआ, पिता के भाई-बहनों में सबसे छोटी, ख़ूब लाड़ली, घर भर के आकर्षण का केंद्र, बाद के सालों में आकर्षण की धुरी खिसकने पर उनका ज़ोर वितंडा खड़ा करना और सहानुभूति पाना रह गया था|

मोना घर के पिछले दरवाज़े पर उसका इंतज़ार कर रही थी| उसने एक नज़र मोना को देखा बड़े-बड़े फूलों वाला बादामी सूट उसकी छवि से मेल नहीं खा रहा था, इस रंग की छाया में उसके चेहरे की थकान और ज़्यादा नज़र आ रही थी, आँखें ऐसी थीं जिनमें कई रातों की बची नींद पूरी होना चाहती हो पर कुल मिला कर वह सोबर दिख रही थी| उसने सोचा कि अगर वह ख़ुद को संयत नहीं रखेगी तो यहाँ सबकुछ कौन मैनेज करेगा|

मोना ने आगे बढ़ कर उसे गले लगाया और उसके कानों में फुसफुसाते हुए कहा|

“मैंने अंदर वाले कमरे में बिस्तर पर एक सूट निकाल रखा है| बदल कर बाहर आना, इस तरह जींस में बाहर आओगी तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा|

अल्पा जानती थी कि मोना छोटी बुआ के बारे में बात कर रही है| कोई और दिन होता तो वह मोना की बात टाल के उनके सामने जींस में ऐसे ही चली जाती पर आज का दिन विद्रोह दिखाने का नहीं है; उसे ये भी पता था कि हर दूसरी बात पर विद्रोह जताने से अहमियत घट जाती है| जब वह बाहर आई तो बहुत सारे चेहरे उसको ही देख रहे थे| कुछ को वह जानती थी सगे-सम्बन्धी थे बाकी सब अजनबी शायद नए पडोसी हों| वह जा कर बुआ के नज़दीक बैठ गई थी, उसने उन्हें कोई दस बरस बाद देखा होगा, चेहरा झुर्रियों के नए जाल के अन्दर धंसा हुआ जिसे किसी तरह के मेकअप से छुपाने की कोशिश की थी| इस बात से उसे याद आया कि कैसे उसकी एक रिश्तेदार कहीं मातमपुर्सी में भी जाने के लिए पहले कपड़ों से मैचिंग के झाले-झूमर मिलाती थीं| उसके चेहरे पर हल्की सी हंसी आ कर रुक गई, उसने ऐसे सब ख्यालों को झटका और ध्यान सामने रखी भैया जी की देह पर टिका दिया| एक मझोले कद-काठी की देह जो एक वक़्त जीवन से भरी-पूरी रही होगी अब कैसे एक रूखे सफ़ेद कपडे के भीतर शांत पड़ी थी| उसकी आँखों से बूँद भर आंसू बह निकला जिसे उसने झट से पोंछ डाला| पानी बरसने लगा था और बेचैन लोग देर तक पानी रुकने का इंतज़ार कर फिर बारिश ही में भैया जी कि देह को अंतिम संस्कार के लिए ले गये| सभी आदमी साथ गए थे, घर पर पीछे औरतें रह गयीं उदास, सुस्त| वह लोगों के साथ जाना चाहती थी फिर सोचा कि दिखावा करने की क्या ज़रूरत, यूँ भी उन्होंने एक-दूसरे के जीवन में पहले कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो अब ये सब शोशा क्यों? उसने औरतों के साथ मिल कर कमरा धोया और आदमियों के लिए खाना आर्डर किया, कि जब वे लौटेंगे तो मुंह जूठा करने के लिए कुछ चाहिए, रस्म है|

उसने देखा बुआ कमरे के बाहर खड़ी किसी से फ़ोन पर बातें कर रही हैं, जैसे दूसरी तरफ़ से उन्हें कोई निर्देश दे रहा हो| उन्होंने बात खत्म की और उसकी तरफ़ देख कर कहा|

“हम लोग पाँच दिन में सब रस्में निबटाने की सोच रहे हैं| चौथे-शुद्धि के बाद तुम्हें कुछ मीठा मंगाना होगा, बताशे भी चलते हैं| केवल घर की लड़कियां ही मंगाती हैं मीठा तो मोना से कुछ मत पूछना-कहना लाने के लिए|” उसने सोचा भला वह क्यों कहेगी मोना से कुछ लाने के लिए पर उसने सामने से कुछ नहीं कहा बस सुनती रही| छोटी बुआ बोले जा रही थीं “पगड़ी की रस्म है किसी के गुजरने के बाद घर का मुखिया चुना जाता है| तुम्हारे पापा जब गए तो तुम्हारे बरेली वाले चाचा को पगड़ी पहनाई गई, अब योगेश के बाद रस्म होगी और मोना को पगड़ी पहनाई जाएगी|

सालों बाद उसने भैया जी का नाम सुना था, ऐसा महसूस हुआ जैसे सदियों बाद किसी ने इस भूले हुए नाम को अपनी ज़बान से पुकारा हो| ममता और दुःख की एक लहर उसके भीतर उठी और डूब गई| वह उठी और बिना कुछ कहे बरामदा पार कर भीतर वाले कमरे में चली गई|

4
जब उनके पिता की मौत हुई तब दोनों बहुत छोटे थे, नाज़ुक थे पर टूट के बिखर जायें इतने भी कमज़ोर नहीं थे| वे दोनों ये जानते थे कि वह परिवार के सामने कमज़ोर नहीं दिख सकते हांलाकि उनके पिता की मौत ने उनके जीवन की तस्वीर में अलग रंग का घालमेल कर दिया था| शायद उनके जीवन को ऐसे ही होना था पर अपनी तईं ईमानदार दिखने के लिए जिंदगी कोई न कोई बहाना परोस ही देती है ताकि आप मौत के लिए कुछ और नाम ढूंढ लें, उन्होंने भी एक चिट निकाली और इस मौत को बीमारी का नाम दिया| जिंदगी को पता था कि कोई कुछ भी कर ले जाने वाले के लिए मरा नहीं जाता और चाह कर भी गए हुए को वापस नहीं लाया जा सकता| मौत एक चिड़िया है जो न ख़ूबसूरत, न बदसूरत जिसका चेहरा उसके पंखों के पीछे ढंका हुआ है और लोग अक्सर उसके पंख से लटके हुए गिरने के डर से घबराये जाने वाले को देखते रहते हैं|

लोगों को वापस लौटे लगभग एक घंटा हो गया था, ज़्यादातर मेहमान वापस जा चुके थे| उसने अपनी बुआ की आवाज़ सुनी जो किसी को बचे हुए लोगों के सोने के इंतज़ाम के बाबत निर्देश दे रही थीं| उसके आश्चर्य के लिए उनकी आवाज़ हमेशा से उलट आज धीमी और नर्म थी| उसे ताज्जुब हुआ कि बुआ ज़रूरत के हिसाब से कितनी आसानी से अपनी आवाज़ और लहज़ा बदल लेती हैं| वह कभी भी फुसफुसा के बात नहीं कर सकती, फुसफुसाने की कोशिश में तो शायद उसके अंदर से शब्द ही नहीं निकलें| इस बात से उसे किसी की याद आई, जो कभी उसे बहुत प्यारा हुआ करता था पर अभी जीवन के नक़्शे पर उसका कहीं कोई निशान नहीं है|   

जो बीत गया, छम्म से गुज़र गया, करवट फेर के पीठ दिखाता हुआ सामने से ऐसे चला गया कि बस आड़ से चेहरे की काँपती झलक दिखती रहे और वह भी कुछ देर में धीरे से कहीं ओझल हो जाये…… बाद में ये सब याद में एक ठप्पे की तरह ठसके से खड़ा रहता है न आगे बढ़ता हुआ न पीछे लौटता, छोटे-छोटे चोभों, कीलों के सहारे स्मृति में टंका हुआ, जैसे कागज़ पर चिपके तितलियाँ के सूखे पर जिन को नाख़ूनों से खींच कर बाहर निकाला नहीं जा सकता…… ख़ैर तितलियाँ फिर तितलियाँ हैं चमकीले परों वाली जिन पर लाल से उलट कहीं काले, कहीं पीले तो कहीं भूरे रंग के गुलमोहर जैसे फूल छपे होते हैं, कितने रंगीन परों में बंद रंग हमारी तुम्हारी आँखों से बिलकुल अलग, बस हमारी ही पुतलियों पर पड़ने के लिए एक ही रंग मिलता है, किसी की आँख काली, किसी की भूरी या नीली, हरी, शरबती…. किसी भी आँख में गुलमोहर की छाप नहीं कि लाल लपट में उदास हल्का पीला करवट ले रहा हो….. अल्पा ने अपनी आँख की कोर को छू कर सोचा कि किसी में ऐसी पुतलियां पड़ जायें तो उसकी उम्र डॉक्टरों के दरवाजे पर ही बीते फिर…..|

*********

मोना ने आँख उठा चौखट को देखा… वो चौखट से टिका उसकी नज़र के घेरे में खड़ा था।

उसने मोना को देखा और गले से आवाज़ निकाली …….

‘अल, अल’

‘अल्पा बाहर आओ, कोई आया है तुमसे मिलने’ मोना ने अल्पा को आवाज़ लगाई, अल्पा ने बाहर आ मोना को एक नज़र देख उस पर नज़र टिका सोचा।

‘चौबीस बरस की उमर और आवाज़ में ऐसी ख़राश मानो आधे शब्द गले में ही बिला गए हों या हर बार किसी डर के मारे आधे रास्ते से ही लौट जाते हैं और उसकी बातें हवा की जाली में से गिर गिर के इधर उधर बिखर जाती हैं।”

उमर की बाबत उसने सोचा कि उमर का क्या है वह तो नौ-नौ गज के फेरे ले सबके लिए वहीं आ कर खड़ी हो जाती है जहाँ दूर तक पानी में पड़े लकड़ी के पटरों पर चल के नाव पर बैठना होता है….. किसी-किसी को नाव वहीं चक्कर लगवाती रहती है, किसी को ज़रा दूर पानी में ले जा कर किनारे की रेत और पेड़ दिखा खुश कर देती है तो किसी-किसी को गहरे, दूर, बीच समंदर ख़ामोशी के टापू पर ले जा कर छोड़ देती है।

उसने काल्पनिक नाव पर बैठे-बैठे देखा कि अल्पा अब बाहर आ कर चौखट के सहारे टिक उसका हाथ थामने के लिए अपने हाथों को बढ़ा रही है….. उसे लगा कि दूर किनारे पर लगे लकड़ी के पटरे कहीं पानी की तह में जा डूबे हैं और इस नाव से उतर पानी के बीचोंबीच बने टापू से चल कर अल्पा तक जाया नहीं जा सकता….. सहसा सब बीत गया जैसे हथेली की रगड़ से दीवार पर लिखा मिटाया गया हो और उमर का क्या वह तो अपने दसवें गज के फेरे पर आ कर डूबने लगती है।

5.

घर एक चौकन्नी चुप्पी में लिपटा हुआ था| उसके कमरे का दरवाज़ा खटका मोना अंदर आई उसके हाथों में रजाई के साथ कुछ यूँ ही फालतू सा सामान था जिसमें एच.एम.टी. की एक पुरानी घडी थी जिसकी सुनहरे रंग की चेन का रंग कई जगह से उतर चुका था|

“किसकी घड़ी है ये? पहचानी सी लग रही है|” उसने मोना से पूछा|

“योगेश की, पर मुझे लगता है कि शायद तुम्हारे पापा की है जब वह थे|”

“उन्हीं की है, जब भैया जी कोई अठारह-उन्नीस के रहे होंगे तो उन्हें बड़े काले बक्से में से कुछ निकालते-करते मिली थी| उन्होंने इसे सही कराया और पहनने लगे| क्या अब तक पहनते रहे थे इसे?” उसने मोना से पूछा| 

“नहीं अब तो कई सालों से उसने घडी पहनना ही छोड़ दिया था, हाथ की तकलीफ़ जब से बढ़ी, फिर अब मोबाईल में सब रहता ही है| मैं रज़ाई रखे जा रही हूँ, शायद पानी पड़े दुबारा| दूध भेजूं तुम्हारे लिए, मतलब अभी भी सोने से पहले पीती हो|”

“नहीं, काफ़ी वक़्त हुआ छोड़े, अब तो सालों से दूध वाली चाय भी छोड़ रखी है| बुआ क्या कह रही थीं तुमसे, मैं जब सोने आ रही थी तो उनकी आवाज़ सुनी|”

“परसों हरिद्वार जाने की बात है विसर्जन की पूजा के लिए| क्या तुम साथ चलना चाहोगी? कितने दिन की छुट्टी पर आई हो?” मोना ने पूछा|

“हाँ चलेंगे, अभी हफ़्ते भर की छुट्टी हैं मेरे पास|” अल्पा ने कहा|

“क्या तुम अब तक नाराज़ हो सबसे?” मोना ने पूछा|

“किस बात के लिए?” उसने पूछा|

“हमारा तुम्हें उस से शादी के लिए रज़ामंदी न देना|”

“नहीं नाराज़गी जैसा कुछ नहीं है|”

“चाय पिओगी, भिजवाऊँ|” मोना ने पूछा|

“नहीं|” अल्पा ने कहा|

मोना जब उठ कर जाने लगी तो अल्पा ने उसे कुछ देर और ठहरने को कहा| 

“मैं सोच रही थी कि?”

“क्या?” मोना ने पूछा|

“कि मैं अभी हूँ यहाँ कुछ दिन तो अगर तुमको ठीक लगे तो सब काम से फ़ारिग हो मेरे साथ वकील से मिलने चली चलो| मेरा जो हिस्सा है घर का मैं तुम्हारे नाम ट्रांसफर करना चाह रही हूँ| कागज़ मेल या किसी और तरह से अगर बाद में भी भेजना चाहो तो भी चलेगा| जब भी तुमको ठीक लगे|” उसने कहा|

“आर यू ट्राइंग टू मेंड द ब्रिजेज़ बिटवीन अस?” मोना ने दबी जुबान में कहा|

“मैं ऐसी किसी चीज़ को रिपेयर करने में विश्वास नहीं रखती जो हमारे बीच है ही नहीं| हमारे आपसी डिफरेंसेस का इस बात से कोई लेना देना नहीं है| मुझे लगता है कि परिवार की चीज़ है जो मैं वैसे भी भैया जी को देना चाह रही थी अब तुम्हें इसे रखना चाहिए|” उसने कहा|     

“एक दम ही से अचानक ऐसा पूछ रही हो, इस सिम्पथी की वजह|

“प्यार, सहानुभूति, करुणा, चिंता, लिहाज़ परिवारों के बीच सीने पर रखे भारी बोझ होते हैं, हम को अपनी आख़िरी साँस तक इस बोझ को सीने से उतारने के लिए मेहनत करनी पड़ती है| ये सब चीज़ें बड़ी उलझी हुई पहेलियाँ हैं जिन्हें सुलझाना मुश्किल है, फिर एक दिन आख़िरकार हम सब इन्हें बिना सुलझाये, अधूरा छोड़ मर ही जाते हैं| फिर भी सब जानते हुए भी परिवारों के तमाशे में सुकून पाने के अलावा हम और क्या कर सकते हैं मोना|”

“तुम सो जाओ बड़ा लंबा दिन रहा आज का|” मोना ने कहा और कमरे के बाहर चली गई|

“अल्पा कुछ देर यूँ ही बैठी रही| अपना फ़ोन देखा, कोई मैसेज नहीं था| उसने सोचा कि कौन उसे मैसेज करेगा, जो कुछ लोग उसे कॉल या मैसेज कर सकते थे ज़्यादातर तो सभी उससे आज दिन में मिल ही चुके थे| घर नींद में डूबा हुआ और ठंडा था| उसने अपने परिवार के बारे सोचा जो उनके पिता की मृत्यु के बाद ऊपरी तौर पर उनके प्रति बहुत प्यार, सौहार्द और गर्मजोशी से भरा रहा पर अल्पा और योगेश दोनों ही जानते थे कि उनके लोहे जैसे दिलों में बर्फ़ की सिल्ली है जिसे वे लोग लगातर घिसते जा रहे हैं ताकि ये बर्फ़ उनके चेहरों पर नुमायाँ न हो जाये और गर्मजोशी का ये मुखौटा ठंडा न पड़ जाये| वे सब एक दूसरे से ज़िंदगी भर ऐसे चौंकते रहे जैसे दुपहर की ख़ामोश धूप में निकली गिलहरी हवा से चौंक जाए….. आपस में वे सब एक दूसरे से ऐसे बच-बच के गुज़रते रहे कि कभी आमने-सामने पड़ गए तो दिल के अंदर बंद ग़ुबार, नराज़गी बाहर न आ जाये। सैलाब के उमड़ने और उतरने में सबसे ज़्यादा नुक़सान पानी को ही उठाना पड़ता है, वह जितनी तेजी से ऊपर चढ़ता है उतनी ही तेजी से जाने किन अंधेरों कोनों में गर्क हो जाता है और अपने पीछे एक लंबी गीली रेत-मिट्टी की लकीर और गाद छोड़ जाता है……

अल्पा के पैर पिछले सालों की ऐसी ही उतरती मिट्टी में लिथड़े हुए थे…. ये सूखी कीच उतारने में उसकी ख़ाल भी साथ उतरी जा रही थी। उम्र भर बचने छुपने के इस खेल में अब वह एक अंधेरे कमरे में बिछी अदृश्य पटरियों पर दौड़ लगा रही है जिसका लोहा घिस के टूटने को तैयार है।

उसने एक सपना देखा……….सपने में एक चेहरा था, कुछ देर तक उसे समझ नहीं आया ये किसका चेहरा है, उसे लगा ये चेहरा उसके पिता का है नहीं या शायद योगेश का……. पर आखिरकार वह उस चेहरे को पहचान गई, ये वही था जो उसकी याद से कहीं खो गया था|

“क्या तुमने सच में ही जाने का तय कर लिया है??”

“क्यूँ पूछ रहे हो?

“ऐसे ही”

“हां एक जगह रुक के कुछ होता भी नहीं….. एक जगह टिका पानी सड़ने ही लगता है…..।”

उसने अल्पा को ठंडी नज़र से देखा, जैसे उसके जवाब से उसके अंदर शीशे पर चटक आ गई हो। इस चटक की आवाज़ से उसकी आँख खुल गई|

दूर किसी पंछी की आवाज़, शायद टिटहरी की आवाज़ थी जो उसने सुनी। जनवरी की रात में बीच बारिश के शोर में कैसे उसे ये सुनाई दिया उसे ज़रा भी हैरत नहीं हुई इस बात पे।असल हैरत ये थी कि उसके कान पिछले कुछ समय से सूक्ष्म से सूक्ष्म ध्वनि को पकड़ रहे थे। ऐसे कंपन भी उसके पास आ कर झनझना जाते थे जिन्हें खुद ये नहीं पता होता था कि वे कब काँपे कब स्थिर हुए। ऐसी एक जगह जो कि उसके घर से दूर थी, ऐसी चुप्पियां जो उसके परिचित सन्नाटों से भिन्न थीं इन अलग, अंजान मेहमान परिवेश में उसकी समूची देह में कान ही सबसे पहले यहां यारबाश हुए। उसने सोच की इस जगह जाने कौन कौन सी आवाज़ें दौड़ कर, चल कर, बर्फ़ की तरह फिसल कर या पानी की तरह एकदम चुप बहते हुए उसके कानों में चली आएं इसका क्या अंदाज़ा। दिलासे के नाम पर उसे अब तक ये कहा जाता रहा कि ये सेंसरी एडप्टेब्लिटी है जैसे उसकी आँखें कमज़ोर हुई हैं तो कान पैने हो गए जो कि अपनी सी पर आएं तो हर सरसराहट, हर कंपन के साथ-साथ पलक झपकने की आवाज़ को भी पकड़ सकते हैं।

उसने करवट खा कान को तकिए से ढँका…. रुई की इस दीवार को भेदती जो आवाज़ उस तक सबसे पहले आई वह बूंद के पत्थर पर टकराने की थी, आख़िरी आवाज़ जाने किसी बंद गली के अँधेरे में मार दिये गए बच्चे की थी या टिटहरी की थी ये उसे पता नहीं चला…. भले ही उसने इन आवाज़ों को अलग करने और सुलझाने के लिए देर तक अपने कान रगड़े हों।उसने नज़र घुमा के इधर-उधर देखा और पहचाना ये आख़िरी मुलाक़ात की जगह नहीं बल्कि उसका कमरा है और ये आवाज़ बाहर गड़गड़ाते बादलों की थी| अल्पा को इस बात की शर्मिंदगी हुई कि ऐसे में उसने सपने में उसे देखा न कि अपने भाई को जो कल ही मरा है|

वह उठी और बिस्तर को खिड़की की तरफ़ जरा सा खींचा ताकि हवा महसूस हो सके| खिड़की आधी खुली हुई थी, उसकी याद के किरदार अँधेरे में जाने किस चीज़ को ख़ोज रहे थे जो उनकी ज़िंदगी से कब की खो चुकी है| बाहर गिरते पानी की खुरदरी आवाज़ उस तक ऐसे आ रही थी जैसे कोई उसके सरहाने बैठ चाकू से सूखी रोटी पर मक्खन लगा रहा हो|  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आज का विचार

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.