हरसिंगार

वो‌ क्यों नहीं हो सकता ,जो हम चाहते हैं..और वो होता ही क्यों है, जो हो नहीं सकता है! जैसे मेरे ठीक सामने, मेरे पचासों स्टूडेंट्स के बीच खड़ी ये लड़की यहाँ आई ही क्यों? 

” सर! अब ठीक है?” गालों पर पीले रंग का एक निशान चेहरा थोड़ा और खूबसूरत बना गया था!

” तुम्हें अब तक समझ नहीं आया कि सनसेट का आसमान कैसा होगा?” ब्रश उसके हाथ से छीनकर मैंने रंगों से खेलना शुरू कर दिया!

वो कुछ कहना चाहती थी,” सर, मैंने सोचा कि…”

“ऐक्चुअली निधि, तुम सोचा मत करो क्योंकि यू आर एन ईडियट!” सारे स्टूडेंट्स के बीच एक दबी हुई हँसी की लहर और मासूम सी दो आँखों में टिमटिमाते हुए आँसू मैंने महसूस किए…मेरे हाथ कैनवस पर बेतरतीब दौड़ रहे थे, और सवाल दिमाग में! मैं क्यों नहीं खदेड़ सकता इन सबको?और क्यों नहीं चूम सकता इन भीगी आँखों को ?

करीब दो महीने पहले आई ये लड़की भूचाल की तरह दाखिल हुई थी, मेरे स्टूडियो में और शायद उसी वक्त मैं अपनी पकड़ से छूट गया था,” सर! मेरी आपसे बात हुई थी ना कल, मैं निधि! …आपका वॉचमैन बहुत बदतमीज़ है!”

हरसिंगार का पेड़ अगर चल सकता,बोल सकता तो ऐसा ही होता…पहला ख्याल जो मुझे उसे देखते ही आया था!

मैं रंगों को पसंद करता हूँ या रंग मुझे? पसंद तो करते होंगे मुझे भी, तभी तो कभी भी अपने पास बुला लेते हैं, मैं डूबता जाता हूँ रंगों में,वो मुझमें…इतनी शिद्दत से चाहना एक-दूसरे को, वो भी कमरा बंद करके! ना कोई आए,ना फोन कुछ नहीं उस समय…तब फिर कौन आ रहा है मेरे और मेरे पहले प्यार के बीच में? आज पहली बार ऐसा हुआ कि ब्रश उठाया और सूखा ही वापस रख दिया, सब कुछ सूखा हुआ! क्या कह रही थी वो लड़की? वॉचमैन बद्तमीज़ है… वॉचमैन को बुलाकर पूछना चाहिए! 

“कुछ नहीं हुआ था साहब!” रात के दो‌ बजे बुलाने से वो नींद भरी आँखें जबरदस्ती बड़ी  करके बात कर रहा था,” कार का दरवाज़ा खुला छोड़ कर बढ़ गई थीं मैडम, टोक दिया तो बर्राने लगीं!”

मैं एकदम से हँस पड़ा,वो भी!  वो शायद पहली बार मुझे हँसते हुए देख रहा था। उसके जाने के बाद भी मैं देर तक हँसता रहा, पता नहीं किस बात पर; दरवाज़ा खुला रहने पर या “बर्राने” पर! सिगरेट की तेज़ तलब के साथ, रंगों की तलब भी हुई थी… मैंने तभी एक अल्हड़ बच्ची की पेंटिंग बनाई थी, खिलखिलाती हुई … और मन किया कि  इसके एक हाथ में कार की  चाभी पकड़ा दूँ! 

सोचने वाली बात ये थी कि उस दिन के बाद से क्या क्या बदल गया था! मैं अभी भी, पूरी शिद्दत से स्टूडेंट्स पर चिल्ला देता था, उनकी पेंटिंग्स उठाकर फेंक देता था,फिर नया क्या था?… खिड़की से बाहर झाँककर देखा – मौसम बदल रहा था, हरसिंगार पर हरे रंग के साथ सफेद और नारंगी रंगों का फैलना, हवा में हल्की ठंडक का घुलना और निधि का मुझसे मिलना…सब एक साथ हो रहा था!

” सर! आप इतनी सिगरेट क्यों पीते हैं?” एक दिन अचानक धड़धड़ाते हुए निधि ने मेरे अंदर झाँकने की कोशिश पर ,” तुम कहो तो छोड़ दूँ” ये कहते  कहते मैं रुक गया, मैं पागल तो नहीं हो रहा हूँ?

“आप अपने काम से काम रखिए,निधि! आई एम नीदर योर ब्रदर नॉर योर  लवर !”

मैं जितना हट रहा था,उतना ही खिंचता जा रहा था…गहरी नींद में मैंने महसूस किया, निधि ने मेरे होंठों पर हाथ रखकर सिगरेट की महक सूँघी और मुँह बनाते हुए पैकेट उठाकर डस्टबिन में फेंक दिया, मैं हड़बड़ा कर उठ गया…उसी उनींदी हालत में एक और पेंटिंग बनाई थी; एक लड़की जलती हुई सिगरेट को पैरों से बुझा रही है…उसके बाद मैं सो नहीं पाया था!

आगामी प्रदर्शनी की वजह से बेहद व्यस्त दिन और उस लड़की ‘हरसिंगार’ की वजह से बेहद बोझिल रातें, लेकिन उस दिन उसको देखकर ‘अमलतास’ याद आ गया, पीला लंबा सा कुर्ता और हरा दुपट्टा…एक स्टूडेंट कुछ सुना रहा था…

” शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर

खुदावंद ने जाने किस आग से बनाया  है तुमको

तिनकों से बना घर है मेरा,

कभी आओ तो क्या हो!”

” ये तो गुलज़ार साहब ने लिखा है, उनकी त्रिवेणी है…” निधि आगे कुछ और सुनाने लगी, मैं वहीं अटककर रह गया! मेरी हालत गुलज़ार साहब को भी पता है तब तो शायद ये कहानी कुछ आगे‌ जाएगी ! मैंने सोच लिया आज एक अमलतास का पेड़ बनाऊँगा, पीले फूलों से लदा हुआ…और शायद इसी सम्मोहन को काटने के लिए उसको ‘ईडियट’ कह दिया था।

“सर, मुझे कुछ बात करनी है,”  वो सबके जाने के बाद भी रुकी हुई थी,” मैं प्रदर्शनी के लिए पेंटिंग्स दे नहीं पाऊँगी, और कल क्लास के लिए भी नहीं आऊँगी!” नपे-तुले शब्द मुझको छूते हुए निकल गए, एकदम मासूम चेहरा… नहीं, मैं इसको कभी कैनवस पर नहीं उतार पाऊँगा!

” क्यों नहीं आओगी? आज तुम्हें सबके सामने ईडियट कह दिया, इसीलिए?” शायद ‘साॅरी’ कहने के बाद मेरे लिए रुकना मुश्किल हो जाता!

सफेद और पीले रंग से मिलकर बना चेहरे का रंग हल्का लाल हो गया, मेरे ऊपर आया गुस्से का लाल रंग मिल गया या कुछ और…,”नहीं सर! ऐक्चुअली कल मेरे हसबैंड यू एस ए से वापस आ रहे हैं, 6 महीने बाद! तो मैं थोड़ा बिज़ी…”

मैं ग़लत था! मैंने उस रात अमलतास की पेंटिंग नहीं बनाई, मैंने एक जलता हुआ घर पेंट किया, तिनकों वाला…एक चिंगारी जैसी लड़की वहीं खड़ी थी, किसी और का हाथ पकड़कर!

इस तकलीफ़ के बाद मैं निश्चित रूप से कह सकता था कि ये प्रेम है ! मैंने वो कैसे सोच लिया था, जो होना नहीं था…लेकिन जो होना नहीं था वो सोच कैसे लिया था? 

चलो, वो हो सकता है… लेकिन मैं  क्यों स्वीकार  रहा था वो मूक निमंत्रण? और वो 2 बार ” बाई मिस्टेक” मेरे फोन पर फोटो  क्यों आ गई थी… मैं सिगरेट लिए लॉन में आ गया,  मैं आखिर चाहता क्या था? ये सामने लगा हरसिंगार केवल मेरा होकर रह जाए? निधि किसी की पत्नी क्यों है? ऐसे अनगिनत ‌सवालों से‌ भरा दिमाग घूमने लगा था! निधि अगर इसी समय‌ नारंगी बॉर्डर की सफेद साड़ी पहनकर मेरे सामने आ जाती, एकदम हरसिंगार का फूल बनकर,तो‌ ?… मैं बेचैन होने लगा था, घड़ी देखी…ये रात रुकी हुई थी, सिर्फ मैं बीत रहा था!

” जी साहब, बताइए ! … नहीं, सो नहीं रहे थे” वॉचमैन ने जम्हाई लेते हुए आसानी से झूठ बोल दिया!

“बिटिया की बीमारी ठीक हो गई? …घर में सब ठीक है…” और ऐसे ‌ही कई बिना सिर-पैर के सवाल, बस मैं आज अकेला नहीं रहना चाहता था! वो भौंचक्का मुझे देखता हुआ ‌कुछ बोल रहा  था,जो‌ मेरे‌ कानों तक पहुँच नहीं रहा था..एक अजीब सी ख्वाहिश मन में जोर मार रही थी कि  किसी बात को‌ खत्म करते-करते निधि का जिक्र शुरू हो जाए!

” साहब, आपको पता चला ?…वो‌ जो‌ मैडम नहीं आती हैं काली कार वाली, उनके घर के सामने चोरी हो गई पचासन लाख की…” उसके आगे मैं कुछ सुनने की हालत में ‌नहीं रहा, एक आह निकल गई! उस वक्त मैं कोई और ख्वाहिश कर लेता,तो‌‌ वो‌ पूरी हो जाती…शायद मैं उसको एक बार बहुत ‌पास से देख लेता, एक बार उसके ‌बालों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर सफेद फूल टाँक देता…या बस एक बार मैं ये यकीन कर लेता कि जो भी था वो एकतरफा नहीं था!

मौसम में हल्की ठंडक अकेलापन बढ़ा देती है,ऐसा सुना‌ था…आज महसूस हो रहा था। मुझे वो बहुत ‌याद‌ आ रही थी, हद से ज़्यादा!

” सर, मैं और आप…आप और मैं, अच्छा रहने ‌दीजिए” निधि ने‌ मेरे‌ कान में फुसफुसा कर कहा, वो मेरे सिरहाने बैठकर मेरा सिर‌ सहला‌ रही  थी… मैं हड़बड़ाकर ‌उठ बैठा! 

“क्या हुआ साहब! चाय लीजिए… कोई सपना देख रहे थे शायद!” रमेश चाय लेकर आया था, मैंने ‌घड़ी देखी; लोग कहते हैं सुबह का सपना‌ सच हो जाता है!

जो प्यार में हैं, उन्हें ये मौसम अच्छा लगता है! कार लेकर मैं दूर तक निकल गया था, मुझे मौसम अच्छा भी लग रहा था, ठंडा भी! थोड़ी और ठंड लगी तो कार के काँच बंद कर लिए… रेडियो पर लहराती एक आवाज़ थोड़ी और साफ सुनाई दे रही थी, मैं मुस्कुरा दिया! कैसे बोलते हैं ये रेडियो जॉकी यानि आर जे, जैसे कान में फुसफुसा रहे हों…एकदम से सपने में निधि का फुसफुसाना याद आ गया,” सर! मैं और आप..आप और मैं, अच्छा रहने दीजिए!” क्यों रहने दूँ निधि, आगे बोलो तो, सपने में ही सही… कार सड़क के किनारे लगाकर एक सिगरेट सुलगा ली, धुएँ में आर जे की आवाज़ घुलने लगी है,”अगले गाने की ओर बढ़ने से पहले मैं सुनाना चाहता हूँ जॉन एलिया साहब की ये ग़ज़ल-

जो तकता है आसमान को तू

कोई रहता है आसमान में क्या?

ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता 

एक ही शख्स था जहान में क्या?”

मैंने तुरंत रेडियो बंद कर दिया! ये कोई साजिश चलती है क्या मेरे खिलाफ़? यही ग़ज़ल क्यों सुना दी अभी इसने…मेरी आँखें पता नहीं कितने दिनों बाद भीग गईं, मैं आसमान को देख रहा था,” कोई रहता है आसमान में क्या”..माँ बहुत याद आ रही थी इस वक्त, वो होनी चाहिए थी इस वक्त, हर उस वक्त जब एक बच्चे को माँ चाहिए होती है…पता नहीं कैसे मुझे माँ और निधि एकसाथ याद आने लगी थीं, सीट पर सिर टिकाकर मैं शायद रो रहा था!

घर पहुँचा तो वॉचमैन और माली दोनों मेरी बाट जोह रहे थे और कुछ इस तरह कि कुछ होने वाला हो, अप्रत्याशित!

” साहब,ये देखिए…हम चार महीने पहले चेता दिए थे आपको, बोले थे कि नहीं”  हरसिंगार की एक मोटी सी जड़, फर्श का पत्थर उखाड़कर अपनी हाजिरी लगाने ऊपर आ गई थी! माली चिंताग्रस्त,” साहब! ऐसे बढ़ते-बढ़ते तो ये पेड़ सब तोड़ जाएगा।” माली भी उसी साजिश में शामिल है, क्या डायलॉग मार दिया है, ये पेड़ सब तोड़ जाएगा…

“फिर क्या करना चाहिए..”

“उखड़वा दीजिए साहब, बवाल है”

बवाल ही तो है, मुझे कहाँ से कहाँ ले जा रहे हैं दोनों, ये हरसिंगार और वो हरसिंगार! उस दिन के बाद से आई ही नहीं, कितने दिन बीत गए हैं…कितने? तीन या मुश्किल से चार! 

प्रदर्शनी की सफलता से स्टूडेंट्स बहुत खुश थे, वो जो भीड़ मुझे घेरे हुए थी, मुझे खाली-खाली लग रही थी, एक चेहरा मिसिंग है…वही जिसको आना चाहिए था!

“सुनो, मैं थोड़ी देर में निकलूँगा यहाँ से, तुम लोग सँभाल लेना…. कुछ स्टूडेंट्स आए क्यों नहीं, ये सब हर दिन होता है क्या..” मैंने सहज रहने के लिए नकली गुस्से का एक कोट मार दिया।

“नहीं सर, सब आए हैं, बस निधि नहीं…अरे! वो भी आ गई !”

एकदम से जैसे उस हॉल की छत में सुराख हो गया था और रोशनी की एक तेज़ किरण मुझे चमका गई थी! मैं पीछे मुड़कर भी नहीं देख पा रहा था, बस महसूस कर रहा था… मेरी पीठ पर उसकी आँखों का स्पर्श और मेरी ओर  बढ़ते हुए कदम!

” सर…कैसे हैं आप” अब उस सुराख से पानी की कुछ बूँदे गिरने लगी थीं और हवा में उड़ती गीली मिट्टी की सोंधी महक! 

” ओह निधि!… तुम तो एक दिन की छुट्टी लेकर गई थी, घड़ी रुक गई है क्या तुम्हारी ?” तुरंत मैंने अपने को‌ धिक्कारा, क्या ज़रूरत थी अपनी बेचैनी दिखाने की? कि मैं उसके बगैर बीता एक-एक दिन गिन रहा हूँ…

” ऐक्चुअली सर! मैं भी यू एस ए जा रही हूँ, शायद परमानेंट…क्या कल मैं आ सकती हूँ?” 

मैंने छत की ओर देखा, ना धूप थी ना बारिश…एक बड़े से हॉल में मैं सैकड़ों लोगों के बीच अकेला खड़ा था,” जब क्लास छोड़कर जा रही हो, तब किस काम से आना है… फीस रिफंड चाहिए?” अपने को हल्का करने के लिए मैं एक बेहद हल्की बात बोल गया था ! मैं देख रहा था, उस मासूम चेहरे पर अनगिनत रंग आ जा रहे थे…वो‌ कुछ बोलते हुए बार-बार रुक जा रही थी, बस एक आवाज़ बराबर आ रही थी… उसके कान में लटके बड़े बड़े झुमकों की छुन-छुन छुन-छुन! 

मैंने घर आते ही माली को पेड़ काटने का आदेश ‌दे‌ दिया था, हरसिंगार को उसने क्या कहा था…हाँ,बवाल, वो सही  कह रहा था! उस रात मैंने एक बच्चे की पेंटिंग ‌बनाई थी, आसमान को देखते हुए…”कोई ‌रहता है आसमान में क्या?”

जब मन भरा हुआ होता है, वो‌ कहीं भी छलकने लगता है! मैं दीवार पर टेक लगाए, ऊँघते हुए वॉचमैन को ध्यान से देख रहा था, एक कंबल लाकर उसको उढ़ा दिया…वो थोड़ा सा हिला और शायद पहले से ज़्यादा गहरी नींद में सो गया! गर्माहट का अलग ही आनंद है, कभी कंबल की कभी रिश्तों की…

” साहब! आप यहाँ कुर्सी पर‌ काहे सो रहे हैं?” मुझे शायद झपकी आ गई थी, वो कंबल हाथ में लेकर भौंचक्का खड़ा था…अभी भी बहुत अँधेरा था बाहर, रात बाकी होगी।

” बस, नींद नहीं आ रही थी तो टहलने लगा, यहीं बैठ गया…जाग ही गए हो तो चाय बना लाओ!”

वो चाय को प्लेट में डालकर, भरपूर आवाज़ ‌करके सुड़क रहा था… मुझे उससे जलन हो रही थी, चाय को मैं ऐसे क्यों नहीं पी सकता… मैं ज़िंदगी को ऐसे तेज़ आवाज़ करके बड़े-बड़े घूँट लेकर क्यों नहीं जी सकता?

“साहब, इस साल ठंड ज़्यादा पड़ेगी,लग रहा है!” मैं मुस्कुराने लगा,जब बात करने को कुछ नहीं होता है तब हम मौसम की बातें करने लगते हैं, शायद मौसम भी हमारी बातें करते होंगे इसी तरह!

” इसी बात पे तो हमारी झाँय-झाँय हो‌ गई साहब! साले की शादी है ना दिसंबर में, चार ठो साड़ी खरीदी है ऊ, सूटर साॅल एक्को नहीं…सज के ठंड नहीं लगती इन लोगों को…” जलन की एक चिंगारी मुझे छूते हुए निकल गई; स्त्री भी तो है इसके जीवन में ! क्या होगा साले की शादी में… ठंड से काँपती बीवी को डाँटते हुए अपना स्वेटर पहना देगा शायद, या दौड़कर चाय ले आएगा…वो‌ भी इसी तरह  पिएगी चाय  बड़े-बड़े घूँट लेकर, तब ये उसे देखता रहेगा तृप्त होकर… और मैं उस वक्त भी  यहीं बैठा रहूँगा अकेले, आधी रात को!

” बहुत लड़ाई करते हो क्या तुम लोग, हैं?” उसके निजी पलों में ताँक- झाँक करना, अपना कैनवस रंगने के लिए उसका रंगो‌ का डिब्बा खँगालने जैसा था  कुछ!

“नहीं, साहब…कभी कदार, घर परिवार को लेकर, आजकल तो फोन को लेकर…फोटू वाला फोन चाहिए उसको अब..” 

मुझे कुछ भूला हुआ एकदम से याद आ गया, मेरे पास दो फोटो आई थीं ” सॉरी सर,बाई मिस्टेक” के स्लोगन के साथ! फोन निकालकर देखीं,पहली फोटो में हल्के हरे रंग का कुर्ता, गीले बाल… जिनसे पानी गिरकर कई जगह कुर्ते के रंग को गहरा हरा कर गया था, दूसरी फोटो देखकर मेरा दिल बैठ गया… मैंने बार-बार क्यों नहीं देखा इस‌ फोटो को? बिखरे हुए बाल, आँख बंद करके कुछ सोचती हुई, मुस्कुराती हुई निधि! किसने ली होगी ये तस्वीर और कब ली होगी?जॉन एलिया की शायरी पर हूबहू फिट बैठती ये फोटो,

“उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा, 

यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे”

पता नहीं कब सुबह हो गई थी, कुछ याद‌ नहीं…फोन मेरे सीने पर रखा था, निधि की बंद आँखों वाली फोटो खुली हुई थी, कुछ ऐसे कि मुझ पर टिककर वो‌ सारी रात सोई हो…ऐश-ट्रे में जमा हुए टुकड़ों से याद आया कि रात कैसी बीती होगी!

” सबको फोन‌ कर दो, आज क्लास नहीं है… कोई आ जाए तो मना कर देना…वो काली कार वाली मैडम आएँगी, आने ‌देना, कुछ काम है…” मैं वॉचमैन को‌ सफाई क्यों दे रहा था? प्यार कुछ भी करा ले जाता है, कहीं का नहीं छोड़ता!

काश आज मैं इस स्टूडियोनुमा कमरे को थोड़ा बदल पाता! यहाँ वहाँ फैले रंगों,ब्रश, मग सबको सही जगह रख पाता…काश मैं मान पाता कि हरसिंगार बवाल नहीं है, काश मैं आज उसका चेहरा अपनी हथेलियो में लेकर और गौर से देख पाता…दराज से स्केचबुक निकालकर माँ का स्केच देखा, ये उस दिन बनाया था जब माँ को आखिरी बार देखा था, अस्पताल में भर्ती माँ उस दिन भी कितनी सुंदर लग रही थी! ये आखिरी दिन आता ही क्यों है, उस दिन भी आया था, आज भी आ गया है!

” इतनी सिगरेट पीने का कोई फायदा होता है क्या सर! ” एक आवाज़ गूँज गई थी!

मैंने आवाज़ की तरफ देखा, बिल्कुल सफेद लंबा-सा कुर्ता ज़मीन को छूता हुआ…बाल जैसे जानबूझकर बिखराए गए थे, मैं देखता रह गया.. मैंने इससे प्यार क्यों किया!

” ज़्यादा सिगरेट पीने से भूख कम लगती है निधि ( मैं कहना चाहता था कि।ज़्यादा सिगरेट पीने से तुम्हें याद करने में दर्द कम होता है)…आओ बैठो!” आज इसका आना ‘आखिरी बार’ क्यों है?

” सर, मैं कल जा रही हूँ, इंडिया से… आपको बताया था, ऐक्चुअली सब बहुत जल्दी जल्दी हुआ..” 

पता नहीं किस बात की भूमिका, क्या है अगली लाइन? ये तो सच है कि सब बहुत जल्दी जल्दी हुआ, बहुत जल्दी पेड़ बड़ा हो गया और इतना बड़ा कि…

” सर, ये सब बहुत मुश्किल है,” कोने में देखते हुए लगभग फुसफुसाते हुए उसने कहा! मेरे लिए समझना बहुत मुश्किल हो रहा था, मुश्किल तो है, लेकिन क्या? परदेस जाकर रहना या यहाँ कुछ छोड़ जाना? 

“निधि, हैव अ ग्लास आॅफ वाॅटर प्लीज़,” मैंने पानी उसकी ओर बढ़ाया, पता नहीं क्यों मुझे लग रहा था हरसिंगार की एक डाल दीवार तोड़कर मेरे कमरे में घुसने वाली है…

” सर, क्या मुझे आपको समझाना पड़ेगा कि मैं यहाँ से, इंडिया से, आपसे भागकर क्यों जा रही हूँ?”

मैं इस लम्हे के लिए तैयार नहीं था! ये नहीं हो सकता, और अगर हो रहा था तो भी ये सच नहीं है… बड़े बड़े गोले आकर मेरे गले में फँस रहे थे, मैं कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था! 

” निधि…तुम जाओ प्लीज़” मेरे लिए रुकना मुश्किल हो रहा था, वो ठीक मेरे सामने आकर खड़ी हो गई थी, मैंने आगे बढ़कर उसका माथा चूम लिया! इस पल को कोई नाम नहीं दिया जा सकता है,इसको बस जिया जा सकता है…वो‌ फफक-फफक कर रो‌ पड़ी थी, और ये ऐसा पल था जो जिया भी नहीं जा सकता था,बस बर्दाश्त किया जा सकता था!

 ” ये आपके लिए…” एक गिफ्ट मुझे थमाकर वो जाने लगी, एक-एक कदम भारी था उसके लिए, एक-एक पल खिंच रहा था मेरे लिए…कमरा पूरा भरा हुआ था हरसिंगार के फूलों से, समय रुका हुआ था, हम दोनों बीत रहे थे! मैं बाहर तक छोड़ने भी नहीं आया, वहीं बैठकर महसूस करता रहा, और भी कुछ समझ में आ रहा था।फोटो गलती से नहीं आई थी, मुझे भेजी थी…आज वो आई थी, उसने कुछ कहा था, हम पास थे ,वो रो रही थी…कार जाने की आवाज़ मैं बस सुनता ही रहा, पर्दा हटाकर उसे जाता हुआ देख नहीं सकता था! वॉचमैन मुझसे कुछ कहने आया था,

” साहब! वो लोग आ गए हैं पेड़ काटने,एक बार आ जाते आप बाहर..” मैं सम्मोहन से जैसे बाहर निकला,

“मना कर दो, नहीं कटवाना है!”

” लेकिन साहब, उसकी जड़ें …”

“बढ़ने दो जड़ें, जितना फैलेंगी…पेड़ और बढ़ेगा, और फूल आएँगे, समझ रहे हो ना…” मैं सिगरेट फूँकता हुआ शायद अपने को ही समझा रहा था। उसका गिफ्ट खोलकर देखा, गुलज़ार साहब की एक किताब थी, पहला पन्ना खोलते ही मैं मुस्करा दिया… गुलज़ार साहब भी शामिल हैं इस साज़िश में-

“तुम्हारे ग़म की डली उठाकर,

 ज़ुबां पर रख ली है देखो मैंने

ये कतरा-कतरा पिघल रही है

मैं कतरा-कतरा ही जी रहा हूँ”

उस रात भी मैंने पेंटिंग बनाई थी, एक लड़की की…सफेद कुर्ता पहने हुए, नारंगी दुपट्टा ओढ़े हुए, बिल्कुल हरसिंगार का फ़ूल! लेकिन उस रात मैं बेचैनी से जागता नहीं रहा था, सो गया था ज़ुबां पर ग़म की डली रखकर, वो कतरा-कतरा पिघल रही थी, मैं कतरा-कतरा जी रहा था!

लकी राजीव

पुणे

8 Replies to “Harsingar”

  1. “मैं उस हरसिंगार को फूलता देख रही हूँ ।”
    “मैं उन सफ़ेद और पीले रंगों जो छू रही हूँ जो निधि की रंगत थे ।”
    कशमकश में लिपटा प्रेम इंसान को प्रेम के हर रंग से रंगता है ।
    “ आपने तो जादू इस कहानी में ऐसे गूँथा जैसे अलसुबह किसी सुनसान
    राह पे , किसी उदास मन को हरसिंगार झरा मिल गया हो ! ”
    क़िस्सागोई में आज ये क़िस्सा दर्ज़ हुआ ।
    “ मिलो या ना मिलों तुम मुझे
    कि प्रेम कब प्रेम को मिला है
    पर सोच के आँगन में
    तुम रोज़ गुलमोहर सी खिलती हो ।”

    शुभकामनाएँ,,,,,

    श्वेता ।

  2. बेहद खूबसूरत कहानी। गुलज़ार साहब और जॉन एलिया जिसमें खुद रंग भरते रहे।
    शुरू से अन्त तक बांधे रखा और खत्म होने पर एक मुस्कान चेहरे पर आ गई।
    हरसिंगार से सुन्दर रंगों और महक से लबालब रचना के लिए लकी राजीव जी को ढेर सारी बधाइयां।
    यूं ही लिखती रहें।किसी खूबसूरत पेंटिंग सी कहानी।

  3. आह्हा लकी 😍😍
    बहुत ग़ज़ब कहन है तुम्हारा ❤️❤️
    प्रेम ऐसे छूकर निकल जाता है कई बार,पर उसको यूँ व्यक्त कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं है। तुम जादूगर हो 😍😍
    खूब प्यार तुम्हें 💐💐

  4. कितनी प्यारी कहानी है।
    सोचती मैं भी ऐसा ही हूं कि जो हो सकता है वो क्यों नहीं होता ,और जो नही हो सकता वो ही क्यों हो जाता हैं।
    कतरा कतरा पिघलती डली और कतरा कतरा जीती हुई मैं💕

  5. वाह लकी,तुम्हारे कलम की लुनाई, उसकी खुसूसियत बनी रहे…!

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