एक : सम्बन्ध

” लडक़ी हुई है।” उसने अपने अनन्य मित्र को सूचित किया। उसे तपाक से ‘बधाई ‘ हो सुनने का इंतजार था।
” तो होना क्या था?” मित्र ने अविश्वास में पूछा।
” होना न होना क्या होता है यार। जो हुआ है वही होना था।” उसने विश्वास से कहा।
” सोनोग्राफी नहीं करवाई थी क्या?” सवाल में सहानुभूति का सायास पुट साफ था।
” करवाई भी पर सैक्स के लिये नहीं।”
” करवा लेनी चाहिये थी” साफ मतलब।
” नहीं यार, सब ठीक ही हुआ।”
” अब तुमसे पार्टी नहीं मांग सकते।” दोस्त ने टुच्ची हंसी छितराई।
” क्यों – क्यों? ”
”लडक़ी होने पर क्या पार्टी। लडक़ा होता तो।”
बच्चे होने से पार्टी के संबंध पर वह स्तब्ध था।

दो: लेन – देन

मारे खुशी के वह सराबोर था। एक नन्हीं कोंपल सी खुबसूरत बिटिया का पिता जो बना था। घनिष्ठ मित्र ही नहीं, वह उनको भी सूचित किये बिना न रह पाया जिनसे वह साल में दो – तीन बार से अधिक नहीं मिलता था।

उसे ध्यान आया कि माहेश्वरी तो इस हो – हल्ला में छूट ही गया। किसी तीसरे स्रोत से उसे पता चलेगा तो जल कटेगा। तुरंत ही माहेश्वरी का नम्बर घुमाया।
”हलो, मैं पंकज बोल रहा हूं।”
” बोलो – बोलो अच्छा हुआ  मैं तुम्हें फोन करने की सोच ही रहा थाक्या खबर है? ”
”खबर यह है कि मैं एक पुत्री का पिता बन गया हूं।”
”अच्छा कब?”
” पिछले मंगलवार को।”
”सब ठीक है?”
” हां, सब ठीक है वह”
बच्ची का वजन, रंग, नैन नक्श और नीलिमा की तबियत के अपेक्षित प्रश्नों का उत्तर वह अब तक रट चुका था लेकिन माहेश्वरी ने वार्तालाप को बीच में ही काट कर कहा, ” सुनो प्रभाकर एक नया इशू आया है मार्केट मेंग्लैक्शो इन्टरनेशनलअच्छा है। कम से कम डबल्स से तो खुलेगा ही और साल भर के भीतर कम से कम पांच गुना हो जायेगा। भाहर से कोलैबरेशन किया है कंपनी ने जरूर एप्लाय करना।”
”अच्छा” कह कर उसका उत्साह क्षीण होने लगा।
” मैं ने तो पचास हजार लगाये हैं।”
”अच्छा।”
”और हां प्रभाकरतुम्हारी मंत्रालय में कविता माथुर से जान पहचान है ना?”
” हां, है तो”
” उसके पास मेरी फाईल गयी हुई हैजरा रफा – दफा करवाओ यार”
” ठीक है मैं देखता हूं।”
” देखता हूं नहीं, अर्जेन्ट।”
” नहीं वो बेटी हुई है ना इस वजह से कुछ दिनों से व्यस्त हो गया हूं इसलिये”
” वो सब ठीक है थोडे दिन बाद सही।”
”अच्छा।”
”ओके।”
अब उसका किसी को भी फोन करने का मन नहीं है।

तीन : ईश्वर का न्याय

उसकी बदनसीबी कि वह भी तीन बहनों के बावजूद आ गई। बाप हताश और मुर्झाया हुआ। बहनें खुद को अपराधिनें सी महसूस करती रहतीं। दो रोज से न चॉकलेट – ऑमलेट खेलीं, न टी वी देखा। बाबा – दादी कोख में कहीं खोट ढूंढ रहे हैं।

बडी बुआ पारिवारिक आनुवांशिकी की तह तक जा रही थीं। बस एक मां थी। दुनिया भर – सा कलेजा लिये उसकी तरफ ममता से निहारती हुई। इस बार भी भगवान की यही मर्जी मां के भीतर एक कसक अलबत्ता जरूर उठी।

प््रासव पश्चात निचुडा शरीर कहां – कहां से टीस रहा है, उसे सुध नहीं। शिश नॉर्मल ही हुआ था। पर पता नहीं कहां से क्या हुआ कि तीसरे दिन ही दस्तों का शिकार हो गया।

तीनों बहने शोक से स्तब्ध। बाप का कलेजा भारी, मगर बच्ची को मिट्टी समर्पित करने लायक बचा हुआ था।

बिस्तर पर पडे पडे ही वह ऐसे दहाडी ज़ैसे फिर प्रसव वेदना के झटके आये हों।
सास ससुर ने संभाला, ” हौसला रख बहू भगवान जो करता है ठीक ही करता है।”
बाकी सबके हाव भाव ऐसे थे जैसे किसी अनिष्ट के टल जाने के बाद होते हैं।

चार : सेफ

उसका दोस्त मुबारकबाद के लिये ऐसे लिपटा जैसे वह किसी इम्तिहान में अव्वल दर्जे से पास हुआ हो।
”मज़ा आ गया।” दोस्त ने तीसरी बार दोहराया।
”मैं खुश हूं कि जो मैं चाह रहा था, वही हुआ। मैं ही नहीं पत्नी भी लडक़ी की ख्वाहिश रखती थी।”
” बाप का बेटी के प्रति जो लगाव होता है, बेटे से नहीं होता।” दोस्त ने खुशी के आलम में तर्क दिया।
”लडक़े मूलत: उद्दण्ड और ढीठ होते हैं, लडक़ियां सौम्य और सर्जक”

उसने भी अपने विचार बांटे, ” सच बात है।”
फिर दोनों ने सामने रखी मिठाई का स्वाद लिया।

”लेकिन एक बात है।” उसने बर्फी का आधा भाग काट कर, मुंह ऊपर उचका कर कहा, ” पहले लडक़ा होना चाहिये फिर लडक़ी।”
वह थोडा सकते में आया, ” वह क्यों भई लडक़ा – लडक़ी सब बराबर ही तो हैं आजकल”
”वह ठीक है लेकिन पहले लडक़ा हो जाये तो आगे कुछ भी चिन्ता नहीं रहती सब सेफ रहता है”

‘ सेफ’ उसके तलुए पर अचानक ही अटक गया।

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आज का विचार

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

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