कूकुर के रोने की आवाज़ आधी रात में … ऊ … ऊ ड पर आकर जैसे किसी कुएँ में गिरती है। पुत्तान की गली का कुत्ता है, ठंड में रिरिया रहा है। नहीं। यह ठंड की किक्याहट नहीं, दूसरी सूँघ है, जो बोल रही है। कैसा आश्चर्य कि जो ज्ञानी-ध्यानी को पता नहीं चल पाता उसे एक कूकुर सूँघकर जान लेता है।

कौन चला …शिवोऽहँ … शिवोऽहँ … पगला बाबा ने करवट ली। बुखार में माथा चटक रहा है। ऑंखें आधा खुलीं … बाहर ठिलियाढिली है, छिद्दू मिठया के घ्ज्ञर का अगवाड़ा है, दिन में सजकर मिठाई की दुकानबन जाएगा। जाड़े की कितनी रातें वहाँ कही हैं, यहीं भट्टी से सटकर … अग्नि धीरे-धीरे बुझती हुई …

किसकी बुलाहट आई …? आसपास ही ढेरों पड़े हैं, क्या इनमेें से कोई … शिवोऽहँ … शिवोऽहँ …

मृत्यु का वरण करने लोग काशी पहुँचते हैं … बाबा विश्वनाथ की नगरी। यहाँ प्राणांत हो, मणिकर्णिका घाट में दाह मिल जाए तो सीधा मुक्ति। आते समय भय कि कहीं मार्ग में ही पंछी न उड़ जाए, पहुँच गए तो दूसरा संकट कि प्राणांत नहीं हो रहा। ऐसी रुग्णावस्था में आए थे कि आज गए, कल गए-और यहाँ आकर देखा कि गाड़ी उल्टी दिशा में चल पड़ी-चंगे होने लगे। फजीहत होती है ऐसे में–क्याकरें, लौटने में बड़ी शर्म आती है … और यह तो सैकड़ों के साथ होता हैकि डेराडाले पड़े हैं, गर्दन उचका-उचकाकर गंगाजी की दिशा में हर पलनिहारते हुए … अब बुला लो मैया! जो सगे-संबंधी साथ आए थे वे भी उबियाकर लौट गए। मृत्यु महारानी की कृपा नहीं हो रही, अंतत: सुध ली तो मणिकर्णिका घाट ले जाने वाला कोई नहीं … अब उठकर तो जा नहीं सकते और उधर जो है सोकाशी बनारस होता जा रहा है–लोग दौड़ रहे हैं, यहछोर से वह छोर नापते हुए, अगल-बगल देखने का समय नहीं होता बेचारों के पास।

लेकिन पगला बाबा की बातऔर है। वे कहीं खड़े हुए और घंटी टनटनाई नहीं कि कोई कुछ कर रहा हो, कह-सुन रहा हो, यहाँ तक कि झगड़ ही क्यों न रहाहो … थम जाता है। लोगों के सामने उनका एक ही रूप … छड़ी-सा शरीर गेंदे के मोटे-मोटे फूलों से लदा, कमर के नीचे झूमता लाल रंग का गमछा, नीचे लंगोट, रक्तिम चेहरे पर बिखरी खिचड़ी दाढ़ी, माथे पर भभूत और सर दूल्हे वाली मौर। एक हाथ में घंटी दूसरे में भिक्षापात्र। पगला बाबा … फुसफुसाहट इधर से उधर दौड़ जाती है। लोग रुपए-पैसे पात्र में डाल प्रणाम करते हैं। पगला बाबा तेज कदमों से आगे बढ़ जाते हैं … एक दूकान के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी। रुपए पूरे हुए कि पलटे और फड़फड़ कपड़े वाले की दुकान। घंटी और फिर उँगलियाँ उठा दीं-एक या दो। कफन का कपड़ा हाथ आते ही पगला बाबा दुगनी तेज रफ्तार से भागते हैं … सड़क पार, गलियों-नालियों को ताकते-फाँदते वहाँ जहाँ उनकी ठिलिया पड़ी होती है … पास में कोई शव। ठिलिया पर शव को लिटाया, कफन ओढ़ाया, अपना एक गजरा तोड़कर फूल बिखेर दिए और ठिलिया ढिनगाते चले मणिकर्णिका घाट। बीच में सिर्फ एक ही पड़ाव-थाने में कागज बनवाने के लिए। वहाँ भी घंटी बजी कि सिपाही दौड़ा चला आताहै, खुद ही जाकर डॉक्टर से पर्ची कटा लाता है। तब तक पगला बाबा दीगर सामान खरीद लेते हैं। मणिकर्णिका घाट पहुँचकर शवको गंगा-स्नान कराते हैं और फिर पूरे सम्मान और विधिविधान से दाह। पश्चात ठिलिया ढिनगाते हुए वापस बस्ती में, ऑंखें खोजती हुई-कहाँ कौन मृत उपेक्षित पड़ा हुआ है …

चक्कर … चक्कर … बस्ती से घाट, घाट से बस्ती … सहसा पगला बाबा को ध्यान आयाकि साल से ऊपर हो गया वे मंदिर नहीं गए। लोग कितने दूर-दूर से दर्शन को आते हैं और वेहैं कि जी किलप उठा … कौन अपराध हुआ प्रभु कि बिसार दिया। कल उठकर पहले मंदिर ही जाएंगे। सवेरे से ही चकरी चिकिर-चिकिर करने लगती है … भाग … भाग। उजियारे-उजियारे जितने पार लग जाएँ। जाने किस-किस कोने से पुकार उठती है-एक के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी … कि सब कुछ बिसर आता है, रात उतरते-उतरते दम ही नहीं बचता। कैसा काम दिया प्रभु …

गाँव के दादा भैया अपना भाग सँवारने काशी आ रहे थे। वे भी पीछे लग गए। गाँव में आगे नाथ न पीछे पगहा वाला हिसाब था तो चलो बाबा विश्वनाथके दरबार हो। दादा भैया बड़े आदमी थे, अपने अंत की प्रतीक्षा के लिए एक धर्मशाला में टिके। वे चाहते तो उनकी सेवा में बने रहते, पर मनमें आया कि बाबा की नगरीआए हैं तो केवल विश्वनाथ बाबा की चाकरी ही करेंगे, सो बस … विश्वनाथ गली, ढुँडिराज गली, मंदिर में सिध्दि-विनायक, काली जी, अन्नपूर्णा जी और मंदिर का मुख्य दरवाजा … यहीं डोलते रहते इधर से उधर। प्रत्युष वेला में उठकर डेढ़-सी पुल होते हुए दशाश्वमेघ घाट … गंगास्नान … पट खुलने के पहले-पहले ही बाबा की सभा में उपस्थित। वह समय भी खूब था कि रोज कोई-न-कोई धर्मात्मा पूड़ी-कचौड़ी झोली में डाल जाता या चार-छह को ले जाकर कचौड़ी गली में आराम से खिला देता था।

एकाएक बड़ा आलतू-फालतू लगने लगा। उनके जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं जो कहीं जोड़े। जिसके न माँ-बाप, न जमीन-जायदाद और न काम-धाम ही … उनके लिए जोड़-जेड़ाव का सिलसिला आगे भी क्या बनेगा। क्या पेट भर लेना ही अथ और इति था? वह जुगाड़ तो बाबा विश्वनाथ बिठा देते थे। भीतर कुरकुराहट-सी मची रहती। क्या यही बाबा की चाकरी है-बैठे-बैठे खाना और पगुराना, कोई काम नहीं कि लगे पृथ्वी पर आना धन्य हुआ, वहन सही तो यही लगे कि जितना खाते हैं उतने का प्रतिदान कर रहे हैं। बाबा की देहरी पर पड़ा रहना तो ठीक लेकिन परजीवी होना? क्या संसारमें अपने हिस्से का कोई काम नहीं, वे किसी से नहीं जुड़ सकते, कोई ऐसा नहीं जो उनकी प्रतीक्षा करे, जिसे उनकी जरूरत हो, जिसका उनके बिना कुछ रुका पड़ा हो …?

ऐसे ही एक दिन मणिकर्णिका घाट पर बैठे थे। हर दिशा से शव-यात्राएँ आरही थीं … एक के बाद एक … जैसे चारों तरफ से छोटी-छोटी जलधाराएँ बड़ी धारा में मिलने बढ़ी चली आ रही हों। अंतिम यात्रा सभी … फिर भी कितनी अलग-अलग। किसी के पीछे गाना-बजाना, उत्सव तो किसी के पीछे भयंकर चीख-चिल्लाहट, जैसे प्राण उनके खिंचे जा रहे हों जो पीछे छूट गए। कोई यात्रा अकेली … उदास और वीरान, मात्र चार कंधे देने वाले … उनके चेहरों पर भी कुछ नहीं, शायद उनकी तरह का ही कोई फालतू था-जैसे आया वैसे ही गया। भाई लोगों ने जल्दी-जल्दी दाह निपटाया और फिर मजे से एककिनारे बैठ बीड़ी पीने लगे।

घाट प्रतिपल चलायमान … पर एक महिला का शव सवेरे से ही एक किनारे पड़ा हुआ था-रग्घू की टाल से नीचे उतरकर जो छुटका चबूतरा है, उसी से सटे हुए … जैसे चबूतरे पर बैठे-बैठे ही लुढ़क गई हो। लोग आते थे, अपना काम खत्म कर चले जाते थे, कभी-कभी तो उस शव के बगल से ही गुजरते थे। ये प्रतीक्षा में थे कि किसी का ध्यान तो उधर जाएगा। ऍंधेरा छाने को हो आया पर कोई उस शव का पुच्छैया नहीं। उतरती शाम … शव के इर्द-गिर्द वीरानी गहराने लगी, फिर वही लपलपाती हुई स्त्री की तरफ बढ़ने लगी … ये प्रतीक्षा करते रहे। हवा की हर नई लहर एक और मुट्ठी-भर धूल शव के चेहरे पर भुरकती चली जाती। उनके लिए वह सब असह्य हो गया। वे उठे … घाट के ऊपर दफ्तर में जाकर कागज बनवाया और टाले के सामने जा खड़े हुए। धेला पास में नहीं था इसलिए केवल खड़े हो गए और उस शव की तरफ इशारा करदिया। लकड़ियाँ मिल गईं।स्वयं बटोरकर लाए और चिता सजाई। अकेले ही शव को स्नान करा चिता पर रखा …

शरीर क्या था … एक सूखी लकड़ी। महिला का अंत जो था वह उनके सामने था … आदि और मध्य कैसा रहा होगा? जहाँ तक कोई नहीं था दिवंगता का या क्या पता घर में सब कोई हो और किसी विवाद के चलते झटके में सब कुछ छोड़ आई हो … या कोई रुग्णा पर घोर आस्थावती थी, रेंग-रेंगकर मणिकर्णिका घाट तक पहुँच ही गई। कौन कहाँ की … कुछ नहीं मालूम। जीवनभर उनकी अजनबी, पर शरीरांत पर सगी हो गई … माँ …

अग्नि देते समय उनकी ऑंखें छलछला आईं, ऑंसुओं से अवरुध्द दृष्टि लपटों के पार आसमान के चौखटे पर … ऍंधेरे का वहहिस्सा कैसा चमक-चमक उठता था।

बाँह जिस पर पगला बाबा का सिर टिका था, वहकुछ गीली-गीली लगी … इतने वर्षों बाद भी। माता … भागते-भागते चूल ढीले पड़ पड़ गए, कब तक चलते रहना होगा …

उस शाम जैसे उन्हें अपना धर्म मिल गया था जिसका कोई नहीं उसका सब कोई। संसार-यात्रा का एक छोटा-सा भाग जहाँ व्यक्ति अशक्य हो जाता है … मात्र नि:स्पन्द देह … वहाँ उसे आगे की तरफ ढेल देना, पंचभूत पंचतत्तवों को सौंप देना। वे पगला बाबा हो गए। कहाँ के थे, क्या नाम था, कौन जाति-धर्म … सब पगला में डूब गया।

दिन … मास … वर्ष … जैसे गंगा मैया की नई-नई जल लहरी। कितने लोग कितनी तरह की उधेड़-बुनों में व्यस्त पर उनके लिए एक ही धुन … एक ही काम। बस्ती के किसी कोने से मणिकर्णिका घाट … फिर-फिर वही। सबको जीवन पार पहुँचा-पहुँचाकर लौटते हैं। पागल की तरह हर पल दौड़ते रहते हैं। थकान सेपिंडरियाँ दुखने लगीं या विंदास में कहीं बैठगएकि एकाएक फिर झटका देकर उठ बैठते हैं … चल पड़ते हैं। काम पूरा होने कोफिर भी नहीं आता, हर पल यही लगता रहता है कि किसी कोने में कोई छूट गया, कहीं कोई उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। पगला बाबा भागते रहते हैं अपनी ठिलियाके साथ-साथ …

लोगों की अनुकम्पा है कि कर्म से डोम फिर भी अस्पृश्य नहीं मानते लोग। कहते हैं पगला बाबा का कलेजा कजब का है। कोई कहता है कि शिवजी के गण हैं, कोई उन्हें काशी के कोतवाल बाबा भैरवनाथ का अवतार बताता है। क्या कहा जाए। वे किससे कहें कि एक समय अवश्य था जब मोह-माया व्यापती ही नहीं थी-पर अब … अब वे दूर-दूर तक हिल्गे चले जाते हैं-जो गया उसने क्या पाया, क्या खोया, कितना भोगा … क्यों … कितनी तरह के प्रश्न भीतर कुलबुलाने लगते हैं। माया उनके लिए कैसे-कैसे खेल रचाती है … छोटे-छोटे खेल! घाट तक की इस सहायता में कोई दादा हो जाता, है तो कोई ताऊ,कोई काका। भैया-भचैजी तो कितने गए … और आज … आज एक बच्चा था … जैसे उनका अपना … प्रभु ने तो गृहस्थी से दूर रखा, फिर भी उनका। कैसा फूल-सा, हाथ में उठाते ही मन टूटने लगा। जिसने अभी ठीक से ऑंखें भी नहीं खोलीं … कुछ देख नहीं पाया … कैसा अनाथ-सा घूमता रहा होगा … प्रभु, उस पर से तुमने अपना संरक्षण उठालिया … इतना निष्ठुर हो रहता है तू? बच्चों को कष्ट मत दे विस्सनाथ! हमें दे … हम हैं … ओ छिद्दू भैया …

पगला बाबा का जी बहुत जोरों से घबराने लगा, टटोलकर अपनी घंटी उठाई और टनटनाने लगे। घंटी की आवाज जो दिन के शोर में भी ऊपर चढ़कर बोलती थी रात के सन्नाटे में खासी तीखी और डरावनी उठी। छिद्दू ने बाबा का माथा छूकर कहा।

”आपको तो बहुत तेज बखार है बाबा … भीतर चलिए …” छिद्दू ने बाबा का माथा छूकर कहा।

का हो … नंबर आ गया का रे … पुत्तान की गली का कुत्ताा पगला का नाम ले हा का भाई … बुलाहट आ गई? मणिकर्णिका घाट जहाँ कभी-कभी दिन में चार-चार बार जाना होता है … आना और जाना, वहाँ आज पहुँचकर आना नहीं होगा का …

”छिद्दू भैया, गला सूखत हो।”

छिद्दू ने पास रखा पानी का लोटा उठाया तो बाबा ने मना कर दिया-”अरे ई बंबा के पानी से पियास बुझी? तई दू बूँद गंगाजल डाल दे।”

छिद्दू भीतर से गंगाजल ले आया, बाबा के मुँह में डालकर उन्हें भीतर ले चलने की जिद करने लगा।

”अरे छिदुआ … हम ठहरे बनारस के राजा। तौहरी ई कोठरी में समईबे का रे? उ देख हमारा रथ खड़ा हो”-बाबा ने अपना कमजोर हाथ बाहर ढिली ठिल्लिया की तरफ उठाया-”ए ही पर गंगा मैया के पास ले जाए। हम निकल जाई तो इ रथ के रग्घू के टाल के नीचे जौन छुटका चबूतरा हो न … उहैं छोड़ दिहे … उहैं हमार महतारी ई हमरे हाथ में थमौल रहलीं …”

बाबा अपनी जगह लेट गए और ऑंखें मूँद लीं। तब छिद्दू पास-पड़ोस में खबर करने दौड़ गया।

थोड़ी देर में बाबा की ऑंखें फिर आधा-खुलीं। भिनसार … वे पड़े हैं … वे तो काशी मुक्ति की भीख माँगने नहीं आए थे? उठ … पग्गल! उठ दृ तत् … तत् … चल …

हड़बड़ाकर वे उठे, दूल्हेवाली मौर सिर पर रखी और ठिलिया ढिनगाते चल पड़े पुत्तान की गली की ओर जहाँ से रात कुत्तो की रोने की आवाज आती रही थी। विश्वनाथ मंदिर जाने की बात जैसे कभी उठी ही नहीं थी मन में।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आज का विचार

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.