क्या कोई मानेगा सपने का प्रत्यारोपण ऐसी घरेलू हिंसा है जिसकी खबर न समाज को होती है न कानून को ? पर यह हर कोई मानेगा अधिकांश पिता अपने सपने का प्रत्यारोपण अपने पुत्र पर करना चाहते हैं और करते हैं। भले ही सपना जिद बनते हुये जीवन से प्रधान होकर परिणाम को बिगाड़ दे। यहीं से विकल्पों से भरी दुनिया में निर्विकल्प हो जाने की असहायता तैयार होने लगती है।
कामतानाथ सपने के प्रत्यारोपण में अपने पुत्र युगल का भविष्य देख रहे थे। युगल छोटे सपने के साथ मनमुताबिक जीना चाहता था।
अच्छे इलाके के योगमाया अपार्टमेन्ट के द्वितीय तल के फ्लैट नम्बर तीन में दाता नगर के नामी कर सलाहकार कामतानाथ का दफ्तर है। वे सुबह दस बजे से रात नौ बजे तक दफ्तर में सुशोभित रहते हैं। मुवक्किलों को अप्वाइन्टमेन्ट लेना पड़ता है कि वे बिना दखल के अपने टैक्स जैसे गोपन मामले को सम्पूर्णता में समझ पायें। इस उपक्रम में दफ्तर में निरंतर सरगर्मी बनी रहती है। सरगर्मी में किसी को अंदाज नहीं मिलता कामतानाथ ने युगल के कंधे में अपने सपने की जो सलीब लादी थी उसे घसीटते हुये उसका क्या हुआ ?
तीन संतान।
ब्रजबाला, युगल, ओमबाला।
युगल को हिफाजत – नफासत से पोसते हुये कामतानाथ अनायास चाहने लगे वह सी0ए0 बनकर उनकी प्रैक्टिस को यशस्वी बनायेगा।
‘’मैंने जब एल0एल0बी0 किया, नहीं जानता था सी0ए0 (चार्टेर्ड अकाउन्टेन्ट) भी कोई कोर्स होता है। जानता तो भी कर न पाता। मामूली स्तर में एल0एल0बी0 कर पाया इसे किस्मत मानता हूँ। दाता नगर में इस समय जो छ: सी0ए0 हैं खुद को हुक्मरान समझते हैं। युगल तुम सी0ए0 बनोगे।‘’
कक्षा पॉंच का विद्यार्थी युगल, सपने के प्रत्यारोपण की जटिलता नहीं समझता था ‘’पापा, सी0ए0 बनकर मैं आपकी कुर्सी में बैठूँगा। आपकी तरह खूब पान खाऊँगा।‘’
कामतानाथ की ऑंखो में खोज दिखाई देती ‘’मेरी कुर्सी में क्यों ? तुम्हारा अलग चैम्बर होगा।‘’
युगल का चित्त विद्या से अधिक दीगर हरकतों में लगा रहता। मिडिल पास होते-होते जाहिर हो गया वह औसत छात्र है। कामतानाथ ने गणित और अँग्रेजी के लिये ट्यूटर लगा दिया। शाम को जब मुहल्ले के किशोर क्रिकेट खेलते युगल, मास्टर की जद में रहता। न पढ़े तो साधिकार मरम्मत करें जैसे कामतानाथ के निर्देश का पालन कर मास्टर युगल के कान के उस हिस्से, जहॉं इयर रिंग पहनी जाती है, को चुटकी में दबा कर क्रूरता से मसल देता –
‘’इतने कम नम्बर ? तुम्हारे पापा कहते हैं मैं क्या पढ़ा रहा हूँ ? भेजे में तो उपद्रव भरा है …….
युगल की बहनों और मॉं गीता को यह अराजकता लगती। कामतानाथ ढील न देते –
‘’गुरू की मार पड़े तभी विद्या आती है। लोग अपने बच्चों का इतना अच्छा रिजल्ट बताते हैं मैं शर्म के मारे इसका पचास प्रतिशत नहीं बता पाता। इसके कारण ओम बाला का रिजल्ट नहीं बता पाता कि लोग कहेंगे लड़की फर्स्ट रैंक वाली है, लड़का सेकेण्ड डिवीजनर।‘’
दसवीं पास होते ही कामतानाथ ने रूपरेखा तैयार कर दी –
‘’युगल, कॉमर्स पढ़ो। सी0ए0 में काम आयेगा1’’
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युगल खुद को सरस्वती पुत्र नहीं मानता था लेकिन कॉमर्स स्ट्रीम में जाना उसे पतन की तरह लगा –
‘’पापा, लड़के कहते हैं पढ़ाकू, मैथ और बॉयो ग्रुप लेते हैं, फिसड्डी कॉमर्स। कभी बेंच तोड़ते हैं, कभी बाथ रूम में रस्सी बम फोड़ते हैं, कभी इंडियन कॉफी हाउस चले जाते हैं।‘’
‘’तुम फिसड्डी ही हो।‘’
‘’मेरी बेंच में बैठने वाले सुगम और बहादुर सिंह मैथ ले रहे हैं।‘’
‘’क्योंकि वे फिसड्डी नहीं हैं। सुनो, बारहवीं बोर्ड में कम से कम अस्सी प्रतिशत लाना होगा। मेहनत से पढ़ोगे तो समझो सी0ए0 फाउण्डेशन एग्जाम की बहुत कुछ तैयारी हो जायेगी।‘’
‘’इस घर में क्या प्रतिशत के अलावा कोई बात नहीं होगी ?’’
‘’अब प्रतिशत का जमाना है। मेरे समय में डिवीजन का था। मैं बिना साधन – सुविधा के अपने बूते पढ़ा। तुम्हें कोई जद्दोजहद नहीं करनी है, बस प्रतिशत लाना है।‘’
उसने कामतानाथ को इस तरह देखा जैसे वे भरोसेमंद और समझदार बिल्कुल नहीं रहे –
‘’साइकिल से रोज तीन किलोमीटर स्कूल आता – जाता हूँ, यह जद्दोजहद नहीं है ? थक जाता हूँ। समय अधिक लगता है। बाइक दिला दो।‘’
‘’अस्सी प्रतिशत लाओ, बाइक लो।‘’
युगल प्रतिशत के दायरे में डाल दिया गया।
बारहवीं में मात्र बॉंसठ प्रतिशत।
प्रतिशत ने कामतानाथ को हिंस्त्र बना दिया। फौजदारी दिखाते हुये उसे पीटने लगे –
‘’तुम्हें मेरी तरह साइकिल घसीटते हुये काम मॉंगने नहीं जाना है, सी0ए0 कर जमे जमाये दफ्तर में बैठना है। मैं पर्ल सीमेन्ट फैक्टरी में सेल्स टैक्स का काम मॉंगने गया था। जवाब मिला हमारा काम जबलपुर के वकील सम्भालते हैं …………. अब वे खुद केस लेकर मेरे दफ्तर आये ………. फैट फीस देते हैं ……..
गीता उसे उनकी पकड़ से खींचने लगी ‘’फर्स्ट आया है। बच्चे की जान लोगे ?’’
वे हॉफ कर थम गये ‘’मैंने दिल्ली के श्रीराम कॉमर्स कॉलेज, किरोड़ीमल, हंसराज कहॉं – कहॉं की इनफरमेशन मँगा रखी है कि यह बी0कॉम0 में एडमीशन लेगा और फाउण्डेशन की कोचिंग करेगा। बॉंसठ प्रतिशत इसे किस कॉलेज में दाखिला दिलायेंगे ?’’
‘’यहीं के कॉलेज में।‘’
गीता के इस मुकाबले के जवाब में उन्होंने युगल को एक मुक्का और मारा ‘’तुम्हारे दुलार ने इसे निकम्मा बना डाला है।‘’
घर में तम – मातम।
सी0ए0 करेगा – एक ही गान वे दिगदिगंत में चर्चित – प्रचारित कर रहे थे। अकोविद ने तमन्ना का नाश कर दिया।
तभी पन्ना जिले के हीरा व्यापारी सोलंकी अपने केस के सिलसिले में संकट मोचक बनकर कामतानाथ के दफ्तर आये। हौसला देकर उनके दारूण दर्द को कुछ कम किया। घर पहुँच कर कामता नाथ ने युगल को तलब किया। युगल दूरी बना कर खड़ा हो गया –
‘’हॉं, पापा।‘’
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‘’मेरे क्लाइंट सोलंकी जी के बेटे निरामय का बारहवीं में पचासी प्रतिशत आया है। वह और उसका मित्र अमान कोचिंग के लिये भोपाल जा रहे हैं। वहीं बी0कॉम0 में एडमीशन लेंगे। तुम उनके साथ भोपाल जाओ। अच्छे विद्यार्थियों की संगत में बुद्धि खुलेगी।‘’
युगल अपनी क्षमता जानता था –
‘’मेरी रुचि सी0ए0 में नहीं है।‘’
‘’ढाबे में है ? खोल देता हूँ। दाल में तड़का लगाना। समझ नहीं रहे हो ये बरस कैरियर बनाने के हैं। जब समझोगे ढाबा चलाने के लायक ही बचोगे।‘’
मानसिक – मनोवैज्ञानिक दबाव में विक्षिप्त होने से अच्छा है भोपाल चले जाना। पापा नाम के प्रेत से छुटकारा मिलेगा।
युगल भोंपाल में।
कामता नाथ और सोलंकी कॉलेज, कोचिंग, घर की व्यवस्था बनाने हेतु तीनों के साथ गये। लौटते हुये कामता नाथ ने युगल को निरामय के सुपुर्द किया –
‘’……….. निरामय तुम्हारे कारण युगल को यहॉं पढ़ा रहा हूँ। इसे सिखाओ तुम किस तरह पढ़ते हो ……….. युगल, निरामय के साथ कम्बाइण्ड स्टडी करना ———-।
नई जगह ने युगल की कोशिकाओं में चेतना का संचार किया। गति – प्रगति के लिये ईमानदारी से पढ़ेगा। टू बी0एच0के0 के एक कमरे में निरामय और अमान ने अड्डा जमा लिया। युगल दूसरे कमरे में। वे युगल को अपने काबिल नहीं मानते थे। उसे स्टडी में शामिल न करते। युगल का अकेलापन और अक्षमता का बोध कम न होता यदि कोचिंग में हरिहर से मित्रता न होती। हरिहर के कृपण पिता ने उसे उसकी बुआ के घर रख दिया था। बुआ की अरुचि से हरिहर क्षुब्ध रहता था। युगल ने उसे अपने फ्लैट में रखकर उसकी क्षुब्धता और अपने अकेलेपन का निवारण किया। युगल के कमरे में रहते हुये हरिहर, हरिहर से हरिया हो गया। निरामय और अमान ने एक किस्म का विभाजन कर रखा था। वे स्टडी में इतने लीन रहते कि हरिया और युगल की ओर कतई ध्यान न धरते थे। फाउण्डेशन की परीक्षा मई और नवम्बर में होती थी। बी0 कॉम0 प्रथम वर्ष की सालाना परीक्षा और मई की फाउण्डेशन परीक्षा देकर युगल दाता नगर आ गया। जुलाई चल रही थी लेकिन बी0कॉम0 द्वितीय वर्ष की कक्षायें आरम्भ न होने से वह दाता नगर में ही था। मूसलाधार बारिश हो रही थी जब दाँव हारने जैसा मुख लिये कामता नाथ चैम्बर से लौटे –
‘’युगल, सोलंकी का फोन कॉल आया था। निरामय और अमान ने फाउण्डेशन पास कर लिया।‘’
युगल ने जस्टीफिकेशन की कोशिश कर अपना बचाव किया ‘’हरिया भी पास नहीं हुआ।‘’
‘’कहा था निरामय के साथ पढ़ो। तुमने हरिया जैसे फेलियर की संगत पकड़ ली।‘’
‘’निरामय मुझसे मतलब नहीं रखता।‘’
‘’तुम उससे मतलब रखो।‘’
गीता ने संतुलन बनाया ‘’युगल अगली बार पास हो जायेगा।‘’
कामता नाथ ने क्रोध में वाष्प सी छोड़ी ‘’गीता, तुम जिस मामले को नहीं समझती, चुप रहा करो। ब्रजबाला की शादी हमने अच्छा दहेज देकर रेंजर से कर दी। ओम बाला का भी कुछ हो जायेगा। यह लड़की नहीं है जो दहेज देकर इसके लिये सरंजाम बना दूँगा। इसे अपनी श्रेणी खुद बनानी पड़ेगी।‘’
कक्षायें शुरू होते ही युगल भोपाल आ गया।
फ्लैट में चार लड़के।
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दो सफल, दो असफल।
अब तक चारों साइकिल से आवाजाही करते थे। सफलता पर सोलंकी ने निरामय को बाइक खरीद दी। निरामय और अमान स्वच्छ कपड़े, चमकते बूट, कड़क टाई लगा कर बाइक से आर्टिकिलशिप के लिये जाते। उनकी सत्ता देखकर युगल ने खुद से वादा किया – पूरे कौशल से पढ़ेगा। लेकिन बी0 कॉम पूरा हो गया, फाउण्डेशन क्लियर न हुआ। इस दौरान जबर बात यह हुई अमन ने इंटर का एक ग्रुप निकाल लिया। निरामय दोनों ग्रुप निकाल कर फाइनल ग्रुप में आ गया।
बी0 बॉम0 अट्ठावन प्रतिशत ने संदर्भ बहुत बदल दिये।
दाता नगर नहीं जाना जाता था पर कोई ठौर नहीं। घर में शासक की तरह रहता था, अभियुक्त की तरह रहने लगा। अधिकार के साथ अपनी जहमतें – जरूरतें बताता था अब छिपाने लगा। माता – पिता की ऑंखों का तारा था, अब वह कसैला धुँआ बन गया जो ऑंखों में जलन उत्पन्न करता है। हरिया ने उसके काले रंग वाले छोटे मोबाइल पर फाउण्डेशन का परिणाम घोषित होने की इत्तिला दी। वह तेज सॉंसों, तेज धड़कनों के साथ कम्प्यूटर सेंटर गया। एक और असफलता। देर तक सड़कों में चहल कदमी करता रहा। जैसे घर जाने का साहस एकत्र कर रहा हो। कामता नाथ पूरी बेसब्री से आगे के कमरे में डटे थे।
‘’सॉरी पापा।‘’
कामता नाथ ने अभिप्राय भॉंप लिया।
‘’मुझे उम्मीद भी नहीं थी। दुकानों में बही खाते लिखने लगो या ढाबा खोलकर मेरी कीर्ति बढ़ाओ।‘’
‘’सॉरी पापा।‘’
‘’तुम्हारे साथ मेरी सामाजिक – आर्थिक हैसियत जुड़ी है। शहर में मेरे नाम का डंका बजता है लेकिन तुम्हारे कारण लोग मुझ पर तरस खाते हैं। सोलंकी की मेरे सामने औकात नहीं है लेकिन मुझे उपदेश देता है हमेशा सफल लोगों को देखेंगे तो निराशा आयेगी। उन्हें भी देखना चाहिये जो सफल नहीं हैं। युगल ही नहीं तमाम लड़के हैं जो पास नहीं हो पाते।‘’
‘’पापा, हरिया एम0बी0ए0 करेगा, मैं भी ………..
‘’हरिया का बाप उसके लिये प्रैक्टिस सजा कर नहीं बैठा है। वह सी0 ए0 करे कि एम0बी0ए0 करे फर्क नहीं पड़ेगा पर तुम्हें अकल क्यों नहीं आती ?’’
असफल होने का आघात उसके लिये भी उतना गहरा था जितना कामता नाथ के लिये। स्तब्धता में कह गया –
‘’एक मैं सी0ए0 न बना तो दाता नगर का अपमान न हो जायेगा।‘’
तर्क उन्हें दुराशय की तरह लगा।
‘’तुम असभ्य ही नहीं बेरहम हो। ऐसी बात करते हो कि मेरे दिल को चोट जरूर पहुँचे …………
वे अपने भाव सम्भाल नहीं पाये।
पूरी तरह बर्बर होते हुये चप्पल उतारकर युगल को पीटने लगे। घर में अक्सर समर छिड़ा रहता था। गीता की कोरें अक्सर भरी रहती थीं। बाईस साल का युगल भय, भ्रम, भटकाव में कुंठित हो रहा था। ओमबाला आशंकित रहती थी पर यह अब तक का सबसे वीभत्स वक्त था। युगल को बचाते हुये ओमबाला और गीता पिट गईं। युगल की आवाज मर्मान्तक हो रही थी –
‘’मॉं ……… ओमबाला, हट जाओ ………. मेरा जो होना है हो जाने दो ………..
उनकी पकड़ ढीली पड़ गई।
ओमबाला युगल को उसके कमरे में ले गई।
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युगल बुरे दौर से गुजर रहा था।
घर यातना शिविर बन गया। परिजन आततायी हो गये। वह रीढ़ खोकर केंचुयें की तरह सिकुड़ गया। उसकी मीमांसा सुनी नहीं जा रही है। अभिव्यक्ति फरेब मानी जाती थी। रिश्ते वही थे पर संबंधों में फर्क आ गया था। कामता नाथ के सपने के व्यापक असर ने आचार – व्यवहार की स्वाभाविकता खत्म कर दी। पोजीशन खोकर वह गुमशुदा की तरह अपने कमरे में घुसा रहता। आखिर ओमबाला ने पुकारा –
‘’भैया, पापा बुला रहे हैं।‘’
वह ढीली – झुकी मुद्रा में प्रस्तुत हुआ –
‘’बुलाया पापा ?’’
‘’बी0कॉम0 पास सीधे इंटर में एपीयर हो सकते हैं। भोपाल में इंटर की कोचिंग लो, आर्टिकिलशिप ज्वॉइन करो। सी0ए0 हो जाओ। तुमसे कुछ नहीं मॉंगूगा।‘’
कामता नाथ ने कुंठित व्यक्ति की तरह हाथ जोड़े।
‘’…………. ।‘’
‘’कभी तुम्हारी मौसी का कॉल आता है, कभी बुआ का। युगल का कोई ग्रुप निकला ? पड़ोसी परिचित अलग पूछताछ में लगे रहते हैं। क्या जवाब दूँ ? बुआ कहती है, ड्रग या लड़की के फेर में तो नहीं पड़ गया कि पास नहीं होता।
‘’…………।‘’
‘’निरामय के नोट्स पढ़ो। कोशिश करो। उसके बॉस के दफ्तर में आर्टिकिलशिप ज्वॉइन कर लो।‘’
युगल भोपाल में।
हरिया ने एम0बी0ए0 में अन्य शहर में दाखिला ले लिया था। उसके बिना युगल को फ्लैट ऐसा अनचीन्हा लगा जैसे यहॉं कभी नहीं रहा। निरामय ने उससे कभी भी सीधा संबंध नहीं रखा। निरामय के दफ्तर में आर्टिकिलशिप की बात की तो उसने दर्प से कहा –
‘’युगल मेरे सर, फाउण्डेशन क्लियर करने वालों को आर्टिकिल रखते हैं।‘’
युगल कई सी0ए0 के दफ्तरों में विनती करता घूमा। छोटे दफ्तर में प्रवेश मिला। दफ्तर दूर था। साइकिल से आवाजाही करता। एक वक्त था कामता नाथ उसे जरूरत से अधिक पैसे देते थे कि मानसिक मजबूती मिलेगी। अब जरूरत से कम देते कि मूवी, होटेल मे समय बर्बाद नहीं कर पायेगा। निरामय और अमान मूवी जाते, इतवार की शाम टिफिन सेंटर बंद रहने से होटेल में अच्छा खाना खाते। युगल मूवी नहीं जा पाता। इतवार को सस्ते ठेले में कुछ खा लेता। कामता नाथ जब – तब निरामय के सेल फोन पर कॉल कर युगल की पराजय बढ़ा देते ‘’निरामय, युगल को समझाओ, पढ़े …… अपने नोट्स दो …… पढ़ने का तरीका बताओ …… न पढ़े तो मुझे सूचित करना ……….। निरामय ने सर्वेसर्वा की भॉंति युगल को व्याख्यान दिया –
‘’हरिया एम0बी0ए0 में चला गया। युगल तुम भी कुछ सोचो।‘’
‘’पापा सोचने नहीं देते।‘’
‘’तुम्हारे पापा मुझसे कहते हैं युगल को पढ़ने का तरीका बताओ। मैं तुम्हें ऊँगली पकड़ कर नहीं पढ़ा सकता।‘’
अमान तबियत से हँसा ‘’इकलौते का दर्द तुम नहीं समझोगे निरामय। इसके बापू इसे अपनी आसंदी सौंपना चाहते हैं।‘’
युगल हताहत हो जाता।
6
‘’अमान, मैं बहुत अच्छा स्टूडेन्ट कभी नहीं रहा। दृढ़ निश्चय के साथ नहीं सोच पाता मेरा उद्देश्य क्या होना चाहिये। पोथी खोलता हूँ। इबारत समझ में नहीं आती।‘’
‘’पापा को बताओ।‘’
‘’वे सी0ए0 में अटक गये हैं। कोई राह निकले ऐसी उम्दा बात कभी नहीं करते।‘’
उम्दा बात हुई।
युगल ने इंटर का फर्स्ट ग्रुप पास कर लिया।
उसे लगा स्फुलिंग पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। कब से इस मंगल बेला की प्रतीक्षा थी। उसने घर के लैण्ड लाइन पर कॉल किया। ओमबाला उत्साह से भर गई –
‘’वाह भैया, एक ग्रुप क्लियर हो गया ——–।’’
युगल से संवाद न रखने वाले कामता नाथ ने ओमबाला के हाथ से रिसीवर छीन लिया ‘’युगल तुम कर सकते हो …………. तुम्हारी बुद्धि खराब नहीं है, लापरवाही करते हो ……… यह धन – दौलत किसकी है ? तुम्हारी। जब तुम दफ्तर में बैठोगे दफ्तर में क्या – क्या बदलाव किया जायेगा, क्या व्यवस्था बनेगी, मैंने सब सोच रखा है ……….’’
युगल के जीवन की पहली शाबाशी।
उसे पापा जिद्दी लेकिन सहृदय बल्कि निरीह लगे। पढ़ेगा। उनके सपने को पूरा करने की कोशिश करेगा।
कोशिश निरुद्देश्य नहीं थी पर निष्फल रही।
आर्टिकिलशिप के तीन साल पूरे हो गये। वह इंटर का दूसरा ग्रुप नहीं निकाल पाया। कामतानाथ ने सम्मन जारी किया –
‘’वक्त बर्बाद किया, पैसा बर्बाद किया। डेरा समेट कर घर लौटो। सेकेण्ड ग्रुप की परीक्षा देने भोपाल चले जाना ……….
युगल घर में।
अपने कमरे में सिमटा रहता जैसे फरारी काट रहा है। घबरा जाता तब हरिया को कॉल कर बातें करता।
कामता नाथ जिस-तिस से विषाद बताते रहते।
ससुराल से आई ब्रजबाला से बताने लगे –
‘’लोग पूँछते हैं युगल दफ्तर में कब बैठेगा। कौन सी यश गाथा सुनाऊँ ? इसने मेरी प्रतिष्ठा खत्म कर दी।‘’
‘’हॉं, पापा। इसके कारण मुझे भी सुनना पड़ता है। ललन (ब्रजबाला का देवर) सी0ए0 हो गया है। राघव (ब्रजबाला के पति) हँसी उड़ाते हैं युगल पास नहीं हो रहा है। ललन को तुम्हारे पापा के चैम्बर में बैठा देता हूँ।‘’
ओमबाला ने आपत्ति की ‘’जीजी, जीजा जी हमारे घरेलू मामले में दिलचस्पी न लें। यहॉं पहले ही इतने मतभेद हैं।‘’
ब्रजबाला को ओमबाला का युगल के लिये फिक्रमंद होना अनुचित लगा ‘’ओमबाला, युगल की चमची न बनो। लोग कहते हैं क्योंकि यह मौका देता है।‘’
कामता नाथ का विषाद बढ़ गया ‘’मेरा भाग्य खोटा है। सबके लड़कों की अच्छी खबर सुनता हूँ। चाहता हूँ मैं भी कुछ अच्छा सुनाऊँ।‘’
बहुत हुआ।
हर बात की एक सीमा होती है।
7
चुप रहते हुये अधिकारविहीन की तरह रहने वाला युगल मानो बिना किसी तैयारी के बोल उठा –
‘’जो लोग सी0ए0 न बनें क्या जीना छोड़ दें ? हम छोटे सपनों के साथ नहीं जी सकते ? ठीक है। मैं बही खते लिखूँगा, दाल में तड़का लगाऊँगा।‘’
कामता नाथ वाष्प सी छोड़ने लगे –
‘’निकम्मे की तरह मत सोचो।‘’
‘’आप कुछ सोचने कहॉं देते हो ?’’
‘’तुम भी लड़की होते तो ब्याह कर गंगा ………
‘’लड़की होता तो आपका वारिस होने की सजा न मिलती।‘’
‘’चाहते क्या हो ?’’
‘’अच्छा इंसान बन कर जीना चाहता हूँ।‘’
‘’अच्छे इंसान होते तो मेरा खून न जलाते।‘’
युगल एकाएक उठ कर कहीं चला गया।
अब यही होने लगा था। कामता नाथ समर ठानते। यह कहीं चला जाता। देर रात लौटता। ओमबाला द्वार खोलती। थाली परस कर उसके कमरे में ले जाती। इस बार ललन के शौर्य ने ऐसा मानसिक संघात दिया कि रात के दो बज गये युगल न लौटा। कामता नाथ और गीता एक – दूसरे को घात – प्रतिघात देने लगे –
‘’कोशिश कर रहा है। नहीं पास होता तो क्या करे ? आज के लड़कों पर सख्ती नहीं चलती। अखबार में पढ़ा किसी छात्र ने बारहवीं में फेल होकर आत्महत्या कर ली। तुम्हें एक ही जिद है, युगल सी0ए0 बने।‘’
‘’मैं उसका दुश्मन नहीं हूँ।‘’
‘’बच्चा घर नहीं लौटा है। मैं ढूँढ़ने जा रही हूँ।‘’
गीता द्वार खोल कर बाहर निकल गई। आशंका से घिरे कामता नाथ ने उसका अनुसरण किया। चारों ओर भटके। युगल घर के पास वाले स्टेडियम की सीढि़यों पर गहरी नींद में सोता मिला। कामतानाथ की आशंका क्षुद्रता में बदल गई –
‘’यहॉं पसरा है। जो ड्रामा करना है घर में करे।‘’
गीता ने मानो भविष्य बॉंच लिया ‘’आज मिल गया। तुम्हारा यही सलूक रहा तो कहो कल न मिले।‘’
युगल खो गया।
सेकेण्ड ग्रुप की परीक्षा के लिये रात वाली ट्रेन से भोपाल के लिये रवाना हुआ लेकिन सुबह भोपाल नहीं पहुँचा। पहुँचने की सूचना की प्रतीक्षा करते हुये पूरा दिन बीत गया। ओमबाला ने उसके मोबाइल पर कॉल किया। रिंग उसके कमरे से आ रही थी। ओमबाला मोबाइल उठा लाई –
‘’भैया, मोबाइल भूल गया।‘’
कामतानाथ अब विपरीत ही बोलते थे ‘’इस लड़के का कुछ नहीं हो सकता। दिक्कत देने के लिये ही पैदा हुआ है। एग्जाम देने नहीं भ्रमण करने गया है।‘’
सप्ताह बीत गया।
कोई सूचना नहीं।
कामतानाथ को मददगार के रूप में निरामय की याद आई। वह दमोह की डायमण्ड सीमेन्ट फैक्टरी में अच्छे पैकेज पर जॉब में था। उन्होंने निरामय को कॉल किया। निरामय ने भोपाल के कुछ मित्रों को कॉल किया। ज्ञात हुआ युगल भोपाल नहीं पहुँचा।
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अब तक की सबसे बुरी खबर।
दुर्घटना हो गई कि कहीं चला गया। पर वह फैसला लेता हुआ कभी नहीं लगा कि योजनाबद्ध तरीके से चला जाये। व्यग्रता में कामतानाथ ने पूरे जगत को कॉल कर डाला कि कोई युगल के योगक्षेम की सूचना दे। शिद्दत से लगा वह जैसा भी था घर दरअसल उसके होने से आदीप्त रहता था। विलाप करती गीता को लग रहा था घर की बुनियाद में जो दरार आ गई है उसे कोई कारीगर नहीं भर सकता। भ्रमित ओमबाला उसके कमरे की छानबीन करने लगी।
सी0ए0 की मोटी पोथियों के बीच पतली डायरी मिली। मित्रों के कॉनटैक्ट नम्बर होंगे जैसी जिज्ञासा में डायरी देखने लगी। नम्बर नहीं थे अवसाद के क्षणों में जहॉं – तहॉं लिखी बेतरतीव इबारतें थीं। ……….. कोई नहीं जानना चाहता मेरी तकलीफ कितनी जायज है ………. मैंने मेहनत की पर एक ग्रुप से आगे नहीं बढ़ सका। पेपर देता हूँ लेकिन कुछ समझ में नहीं आता ………. पापा ने मेरी शक्ति और कार्य शक्ति को खत्म कर दिया है। वे तानाशाह हैं। मॉं भी वह नहीं रहीं जो थीं। होतीं तो पापा की क्रूरता को रोकतीं ………. कहती हैं पापा से बहस क्यों करते हो ? आज से चुप हूँ। मैं लड़की होता तो ग्रेजुएशन के बाद अच्छे दहेज के साथ मेरी शादी हो जाती। मैं जीजी की तरह इस घर में आदर पाता ………. मैं शादी नहीं करूँगा। पापा ठीक कहते हैं निकम्मे को अपनी लड़की कोई नहीं देगा ———- ओमबाला तुम मेरी बेस्ट फ्रेण्ड हो, बाकी मुझे अपनों से, दोस्तों से, बाशिंदों से डर लगने लगा है …….. जी चाहता है ऐसी जगह चला जाऊँ जहॉं रिश्ते न हों। ढाबा खोल कर, बही खाते लिख कर अपना बंदोबस्त कर लूँ ………. मेरा पूरी दुनिया से विश्वास उठ गया है ……. यह दुनिया अब मेरी नहीं है …………
ओमबाला के ऑंसू नहीं थम रहे थे। हिचककर रोई, फिर बिलख कर रोई, कामतानाथ के सम्मुख तन कर खड़ी हुई –
‘’पापा, मेरा भाई घर क्यों नहीं आता ? आपने कभी नहीं पूछा वह क्या चाहता है। उसे वही करना पड़ता था, जो आप चाहते थे …….. मॉं तुम भी उसे फटकारती थी कि पास नहीं होता, बाकी लड़के कैसे पास हो जाते हैं ……. इस घर में जन्म लेने की भैया ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है ………. मुझे बड़े सपनों से डर लगने लगा है। वे लोग ही अच्छे जिनके सपने बड़े नहीं होते। बच्चों को जीने तो देते हैं ……….. अब ललन को अपनी कुर्सी में बैठा दो या उस निरामय को जिसके आगे आप भैया को निकम्मा समझते रहे ………. आपने इतना दबाव बनाया कि वह सह न सका ………… पता नहीं किस अकेलेपन में घर से गया ………. उसे घर लाओ …….. मेरा जी घबरा रहा है ……….
अकेला पड़ गया था युगल।
हरिया ने सौहार्द्र निभाया।
उसके अवसाद को भॉंप कर हरिया अक्सर कॉल करता –
‘’युगल, तुम पापा की आसंदी सम्भाल सकते हो।‘’
‘’कैसे ?’’
‘’एल0एल0बी0 करो। वे खुद एल0एल0बी0 हैं, पता नहीं क्यों सी0ए0 का फितूर लिये बैठे हैं।‘’
‘’कहते हैं सी0ए0 होना प्रतिष्ठा की बात है।‘’
‘’तब तो उनकी कोई प्रतिष्ठा नहीं है। तुम खुद बताते हो दातानगर के टॉप क्लास एडवोकेट हैं। सी0ए0 उनसे ऑडिट का काम मॉंगते हैं।‘’
‘’ऐसा है।‘’
‘’तुम अच्छे बच्चे की तरह लॉ में एडमीशन ले लो।‘’
‘’पापा गोली मार देंगे।‘’
‘’डरा रहे हो।‘’
‘’मैं दातानगर में नहीं रहना चाहता। जो मितता है जरूर पूछता है यहीं हो, भोपाल नहीं गये ? यहॉं एडमीशन लूँगा तो कहेंगे यहीं पढ़ना था तो भोपाल में बाप का पैसा काहे फूँक रहे थे।‘’
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‘’ऐसा कब तक चलेगा ?’’
‘’पता नहीं। पापा ने मेरे दिमाग में फेलियर शब्द इस तरह चस्पा कर दिया है कि मैं कुछ नहीं कर सकूँगा। करना ही नहीं चाहता।‘’
‘’कुंठा हमेशा काम बिगाड़ती है। मानसिक रोगी बन जाओगे।‘’
‘’बन गया हूँ। सोता हूँ तो नाइट मेयर्स डराते हैं। कभी लगता है थकान से मर गया हूँ। कभी लगता है भूख से मर गया हूँ। लाश को लावारिस समझ कर सरकारी अमले ने जला दिया है।‘’
‘’घर वालों को अपनी समस्या बताओ।‘’
‘’मेरी बात बहानेबाजी समझी जाती है। भूल गया हूँ मैं कभी पापा और मॉ की ऑंखों का तारा था। मैंने पापा को मॉं से कहते सुना है इसे पैसे न दिया करो। खाना-कपड़ा मिलता है और क्या चाहिये ? कई बार सोचा आज से खाना नहीं खाऊँगा पर कोई भूख आखिरी नहीं होती। बार-बार लगती है। दिन में कई बार लगती है। कहॉं तक कहूँ हरिया। कभी पापा के वॉलेट से, कभी मॉं की अलमारी से पैसे चुराता हूँ। अपनी नजरों में गिरता हूँ। कई बार ओमबाला ने अपनी बचत दी। छोटी बहन से लेने में ग्लानि होती है।‘’
‘’ऐसा कब तक चलेगा ?’’
‘’चलता रहेगा। तुमने अच्छा किया जो एम0बी0ए0 कर लिया। इटारसी में जॉब कर रहे हो।‘’
‘’इटारसी आ जाओ। साथ में रहेंगे। लॉ में एडमीशन ले लेना।‘’
‘’लगता है जो करूँगा गलत होगा। जो नहीं करूँगा वह भी गलत होगा।‘’
‘’रास्ते कभी बंद नहीं होते। आ जाओ।‘’
सॉंसें बढ़ी, धड़कन बढ़ी लेकिन युगल ने फैसला कर लिया। उसे आन्दोलन खड़ा नहीं करना था बस एक राह की खोज करनी थी। अंकसूचियॉं बैग में रखते, पैसे चुराते हुये दिल भर आया। घर यातना शिविर बन गया था फिर भी रेलवे स्टेशन जाते हुये उसने एक बार मुड़ कर घर को देखा। घर की छवियों, आकृतियों, प्रतिध्वनियों में पता नहीं कैसे तंतु होते हैं जो मुक्त नहीं करते। वह इटारसी में उतरकर जब हरिया के दर पर पहुँचा रात के तीन बज रहे थे। हरिया उसे देखता रह गया। चेहरे में उस सपने का दबाव दिख रहा है जिसका प्रत्यारोपण इस पर किया गया। इसके अंत:करण में अच्छे इंसान वाली शुद्धता थी, अब शायद रिक्ति है। अच्छी कद काठी वाला परिष्कृत लड़का इतना सूख गया है कि गले की हडि्डयॉं उभर आई हैं। लड़कियों को बेचारी कहा जाता है जबकि लड़के भी सहते हैं। सितम यह कि लड़कियों की तरह बिलख कर रो नहीं पाते।
‘’पापा मान गये ?’’
‘’उन्हें नहीं बताया। बताता तो उनके हाथ में जो आता उसी से मुझे मारने लगते। हरिया, मुझे साम्राज्य खड़ा नहीं करना है। छोटे सपने के साथ जिया जा सकता है। ट्यूशन या बही खाते का काम पकड़ कर अपने हुक्का पानी का इंतजाम कर लूँगा।‘’
‘’युगल मैंने तुम्हें बुलाया है। इंतजाम मैं करूँगा। कितनी बार हुआ मेरे पास पैसे नहीं होते थे, तुमने दिये। मूवी दिखाई, अच्छे होटेल में खिलाया।‘’
‘’तब पापा उदारता से पैसे देते थे।‘’
‘’मैं कंजूसी से दूँगा। नई नौकरी है। सैलरी कम है।‘’
‘’फीस के पैसे चुरा लाया हूँ। बस खुराक देते रहना।‘’
युगल दिनों बाद हँस रहा था।
तीन साल हरिया की अनुकम्पा में रहा।
10
लॉ की प्रथम श्रेणी ने उस दुनिया का स्मरण करा दिया जिसे छोड़ आया था। इस दौरान घर बार-बार याद आया। ओमबाला की शुभ चिंतना याद आयी। घर में क्या-क्या बदल गया होगा। उसे खोया हुआ या मरा हुआ मान लिया गया होगा। ग्लानि भी हुई अपने इटारसी में होने की बात घर को बतानी चाहिये थी। लेकिन पापा पहली ट्रेन पकड़ कर पहुँच जाते कि हरिया से खाना-खुराक लेकर मेरा अपयश बढ़ा रहे हो ———–
हरिया ने उसका अपराध बोध समझ लिया –
‘’युगल, घर बात करो।‘’
‘’पापा का पता नहीं क्या रियेक्शन होगा।‘’
‘’ओमबाला से बात करो। वह सम्भाल लेगी।‘’
लैण्ड लाइन के अंतिम डिजिट पर युगल की ऊँगलियॉं थरथरा कर थम जाती थीं।
‘’बड़ी देर से नाटक देख रहा हूँ।‘’ कहते हुये हरिया ने अंतिम डिजिट दबा दिया।
उधर ओमबाला थी ‘’हैलो ……..
‘’ओमबाला, मैं भैया …………
‘’भैया तुम …………..
ओमबाला के स्वर का कम्पन बताता था उसका इंतजार करते-करते, न करने का अभ्यास कर लिया है।
‘’कैसी हो ?’’
‘’कहॉं हो ?’’
‘’हरिया के पास इटारसी में। लॉ ग्रेजुयेट हो गया हूँ।‘’
‘’घर क्यों नहीं आये ?’’
‘’पापा से डर लगता है।‘’
‘’वे तुम्हारे बिना पागल से हो गये हैं। खुद से नजरें नहीं मिला पाते। जो लोग पापा से कहते थे युगल में क्षमता नहीं है वे ही कहते हैं आप जिद न पकड़ते तो यह दिन न देखना पड़ता।‘’
‘’तुम इन दिनों क्या कर रही हो ?’’
‘’प्राइवेट कॉलेज में पढ़ाने लगी हूँ।‘’
‘’शादी ?’’
‘’साफ कह रखा है जब तक भैया नहीं लौटता, शादी नहीं करूँगी।‘’
‘’तुम्हें लगता था मैं लौटूँगा ?’’
‘’पता नहीं पर पता था तुम नहीं लौटते हो तो शादी नहीं करूँगी।‘’
‘’आता हूँ। किसी को न बताना। सरप्राइज दूँगा।‘’
युगल लौटा।
आह-कराह से उबर कर घर ने अच्छे दिन देखे। अच्छे इलाके के योगमाया अपार्टमेन्ट के द्वितीय तल के फ्लैट नम्बर तीन को युगल की घर वापसी के उपलक्ष्य में खरीदा गया है। कामतानाथ युगल से नये सिरे से परिचित हो रहे हैं। नहीं जानते थे उसमें काम करने, स्टाफ से काम कराने की भरपूर क्षमता है। अच्छे अधिवक्ता के साथ अच्छा प्रबंधक भी है। अपने चैम्बर में बैठ कर कद्दावर लगता है। मौज में आकर पॅूछते हैं –
‘’युगल, कैसा लग रहा है ?’’
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‘’अच्छा लग रहा है। दंद-फंद कर अपने मुवक्किल पर लगे कर को कम या खत्म कराना, सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स, एक्साइज, जी0एस0टी0, वैट को समझना, अधिकारियों के मिजाज को परखना अच्छा लग रहा है। आप खुश हो ?’’
‘’बहुत। ठीक वक्त पर तुमने दफ्तर सम्भाला है। मैं कम्प्यूटर का प्रयोग नहीं जानता। इस लॉक डाउन में गूगल मीट पर भोपाल और जबलपुर के केस कराने में तुम जो होशियारी दिखाते हो, मेरे बस की बात नहीं है।‘’
इनकी आपसदारी प्रगति पर है। आपसदारी को देखकर कौन कहेगा युगल सपने के प्रत्यारोपण के कष्टप्रद दौर से गुजरा है। क्या कोई मानेगा सपने का प्रत्यारोपण ऐसी घरेलू हिंसा है जिसकी खबर न समाज को होती है, न कानून को ?
…………