मैं ने कहा, उठो कहीं बाहर चलें।
अंधेरे में मेरी आवाज़ सुलग कर बुझ गयी।
कमरे में। जो उस रात के आखिरीपन से अंटा हुआ था। जहां उस रात को सोकर खत्म नहीं किया जा सकता था।
उसने बिजली जलाकर कहा, तो उठो।
कमरा रोशनी से एकदम तन सा गया दिखाई दिया। मुझे। जैसे कोई तीसरा हमारे सिर पर आ खड़ा हुआ हो। खामोश और अदृश्य। रोशनी में लिपटा हुआ।
उसकी आवाज़ तृप्त मर्द की – सी थी। तृप्त और नंगी।
मैं ने उसकी आंखों को अपनी पीठ पर महसूस किया।
कपड़े पहन कर हमने, मैं ने बिजली बुझा दी।
कमरा, सनसना कर रूठ गया।
कुछ देर हम ख़ामोश अंधेरे में खड़े रहे।
धीरे धीरे उगते हुए सफेद बिस्तर के पास। उसे घूरते हुए ख़ामोश।

अब कहां?
अब कहीं भी।
कुछ पीना चाहोगी?
कहां?
कहीं भी।
नहीं। तुम?
नहीं।

क्या सोच रही हो?
रात बहत गहरी है।
अच्छी है। नहीं?
हां।तुम क्या सोच रही हो?
सड़क बार बार गुम हो जाती है।
हां। मैं चलाऊं?
नहीं। ठीक है।

वह देखो हिरन! दिखे?
नहीं।
इस इलाके में हिरन बहत होते हैं।
मुझे नहीं मालूम था।
नींद तो नहीं आ रही तुम्हें?
नहीं। तुम्हें?
नहीं।

बहत खूबसूरत रात है। नहीं?
हां। बहुत।
इतनी रात को हम कभी बाहर नहीं आये।
हां।
तुम्हें रात पसन्द है या दिन?
कभी कभी दोनों। तुम्हें?
रात।
क्यों?
दिन से मुझे डर लगता है। ऊब से भरा हुआ डर। हो सके तो मैं दिन भर सोऊं और रात भर जागूं।
उल्लू!
हां, उल्लू।

हवा बन्द है।
शीशा नीचे कर लो।
हम कभी इस सड़क पर नहीं आए।
यह हमारी आखिरी रात है।
हां। आख़िरी। लेकिन…।
कहो।
रहने दो।
धीमे चलो।
मुझे तेज़ चलना पसंद है।
क्यों?
ख़ास तौर पर रात को। झब कहीं पहुंचने की ख्व़ाहिश या मजबूरी न हो। खाली और पेंचदार देहाती सड़कों पर। अंधेरे में जानते हो मेरा पति क्या कहता है?
धीमे चलो।

आज तारीख क्या है?
शायद बीस। क्यों?
यूं ही।
तुम्हारी बीवी…?
हां?
रहने दो।

कैसी है देखने में?
ठीक है।
सुन्दर?
हां सुन्दर।
क्यों?
वैसे ही।
कल उसका ख़त आया था लिखा था, वहां बारिश हो रही है। ज़ोरों से। बारिश।
और?
और ख़ास कुछ नहीं।

तुम्हें याद तो बहत किया होगा?
किसने?
उसने।और बच्चों ने?
हां।
तुम पहले कभी इस तरह अलग रहे हो?
कई बार।
वह तुम्हारे साथ यहां आना चाहती थी?
शायद नहीं।
तुमने पूछा था?
नहीं।
क्यों?
वैसे ही।
क्यों?
धीमे चलो।

तुम्हें बच्चों की याद आती रही?
हां।
बहुत?
काफी।तुम्हें?
नहीं।
नहीं?
नहीं।
क्यों?
बस नहीं।
क्यों नहीं?
बस नहीं। तुम्हें यकीन नहीं आता?
नहीं।
क्यों? क्योंकि मैं औरत हूं? मां हूं?
हंसो मत। धीमे चलो।

न जाने तुम कैसे इम सवालों का इतना सीधा जवाब दे जाती हो?
मैं सच बता रही हूं।
सच?
तुम मानते क्यों नहीं।
क्या?
किसी भी बात को?
क्योंकि मैं नहीं जानता कि सच क्या है।

तुम्हें हैरानी होती है?
किस बात पर?
कि मैं ने अपने बच्चों को याद नहीं किया।
हां।हैरानी से भी ज़्यादा ईर्ष्या।
ईर्ष्या? मुझसे?
तुम्हारी आज़ादी से।
ओ। आज़ादी!
ऐसे मत हंसो।
हंस कौन रहा है?

तुम वापस जाना नहीं चाहती?
नहीं।
क्यों?
बस नहीं। लेकिन लौटूंगी।
क्यों?
क्योंकि और कोई चारा नहीं।
अगर होता तो?
नहीं लौटती। तुम्हें यकीन क्यों नहीं आता?
क्योंकि…
बोलो।
रहने दो।

शीशा चढ़ा दो। अब हवा बहने लगी है।
हां।
चांद होता तो और भी अच्छा रहता।नहीं?
हां।
वैसे काली स्याह रातें मुझे ज़्यादा पसंद हैं।
मुझे भी।
क्यों?
वैसे ही।
तुम यूं ही हां में हां मिला रहे हो।
शायद।
क्या सोच रहे हो?
कुछ नहीं।
मैं नहीं मानती।
तुम क्या सोच रही हो?
सब – कुछ।
मैं नहीं मानता।

मेरा पति हर खत में यही लिखता रहा कि उसे भूख नहीं लगती, नींद बहत कम आती है, काम में जी नहीं लगता। बहुत खुश्क ख़त लिखता है। कल तुम्हें एक – दो नमूने दिखाऊंगी। देखना चाहोगे?
नहीं। और तुम? मेरा मतलब है तुम्हारे खत कैसे होते हैं?
मैं ज़्यादा लिखती नहीं।
क्यों?
समझ में नहीं आता कि क्या लिखूं? ऊपरी बातें लिखने में कोई मज़ा नहीं आता। असली बात लिख नहीं सकती।
असली बात क्या होती है?
तुम हंस रहे हो?
हां।
वैसे हम एक बार भी इतने दिनों के लिये अलग नहीं हुए। यह पहला मौका था।
धीमे चलो।इस बार कैसे हुआ?
मैं ने कहा था – मैं कुछ दिन घर से दूर अकेली रहना चाहती हूँ। जानते हो, उसका खत हर रोज़ आता था। मैं ने तुम्हें बताया नहीं। बहत कोफ्त होती थी। एक बार मैं ने उसे मना भी किया था।
क्यों?
क्योंकि वह एक ही ख़त, बार – बार लिखता है। एक खत में मैं ने चलते – चलते तुम्हारा ज़िक्र भी किया था।
क्यों?
बस यूं हीं।
उसने जवाब में कुछ लिखा मेरे बारे में?
हां। लिखा था, खबरदार रहना खबरदार!
जानती हो तुम्हारी हंसी बहत बेरहम है।
हां, जानती हूं।
मेरा बस चले तो मैं कभी भी कोई बात न करूं।
किससे?
किसी से भी
क्यों?
बस यूं हीं।
तुम चाहते हो ख़ामोश हो जाऊं?
हां।
क्यों? तुम्हें मेरी बातें पसंद नहीं?
बातों से कुछ बनता नहीं।
क्या नहीं बनता।
कुछ भी नहीं।
तो?
तो क्या?
तुम बहत अजीब हो।
मेरी बीवी भी यही कहती है।
ओ, तुम्हारी बीवी।

तुमने कभी उसे मेरे बारे में लिखा था?
नहीं।
कुछ तो लिख दिया होता।
क्यों?
वैसे ही। अच्छा रहता।
जाकर बता दूंगा।
क्या?
कुछ नहीं।

सब कुछ बता सकते हो?
किसे?
उसे।
नहीं। तुम?
किसे?
उसे।
नहीं।वह?
किसे?
तुम्हें।
नहीं।वह?
किसे?
तुम्हें।
नहीं।

तुम यहां क्यों आये थे?
लिखने के लिये।
लेकिन यहां क्यों?
एक बार पहले यहां आ चुका हूं।
अकेले?
हां।
तो कुछ लिखा?
नहीं।
क्यों नहीं?
रहने दो।
मेरी वजह से?
नहीं।
तो?
रहने दो।
न लिख सकने का रंज है?
है।
क्यों?
रहने दो।
पहली बार लिख सके थे।
हां।
क्या?
कुछ नहीं।
मतलब?
बकवास।
क्यों?
रहने दो।
लिखना क्या ज़रूरी है?
नहीं।
तो?
तो क्या?

क्या सोच रहे हो?
कुछ नहीं। तुम?
कुछ नहीं।

एक बात पूछूं?
पूछो।
रहने दो।

वापस चलें?
अभी नहीं।
यह हमारी आखिरी रात है।
हां।
मान लो कि …
क्या?
कुछ नहीं।

सब कुछ बता डालने की ख्वाहिश होती है?
किसे?
किसी को भी?
हां।
फिर?
फिर क्या?
बताते क्यों नहीं।
क्या?
सब कुछ।
किसे?
मुझे।

मैं उससे अलग नहीं होना चाहती।
क्यों?
दुबारा शुरु करना गलत लगता है।
क्यों?
दुबारा कुछ भी शुरु नहीं किया जा सकता।
क्यों?

तुमने कभी?
नहीं।
क्यों?
रहने दो।
डर?
शायद।
ख्वाहिश कभी हुई है?
नहीं।
क्यों नहीं?
बस नहीं।
बच्चे?
शायद।
दुबारा शुरु नहीं किया जा सकता कुछ भी।
शायद।
क्यों?
सभी संबंधों की संभावनाएं एक सी होती हैं। नहीं?
शायद। लेकिन…
लेकिन क्या?
अगर…
अगर क्या?
कुछ नहीं।
कुछ नहीं क्या?
कुछ नहीं।

वैसे कभी कभी मैं चाहती हूं कि उसे सब कुछ बता डालूं।
सब कुछ?
हां।
सभी कुछ?
हां। गुस्से में नहीं। किसी दबाव में भी नहीं। बस यूं हीं।
अपना बोझ हलका करने के लिए।
शायद।
यह देखने के लिए कि वह क्या कहेगा, क्या करना चाहेगा, क्या करेगा?
शायद। लेकिन मैं बताऊंगी नहीं।
क्यों?
ख्व़ाहिश से डर ज़्यादा है।
डर?
हां।
तो तुम भी आज़ाद नहीं।
नहीं। तुम हो?
नहीं।
तुम प्यार में विश्वास रखते हो?
कैसे प्यार में?
सच्चे प्यार में।
वह कैसा होता है, बता सकती हो?
नहीं। तुम?
नहीं।
होता भी है?
क्या?
सच्चा प्यार?
रहने दो।

कभी तुम्हें उस पर शक हुआ है?
हां। तुम्हें?
हां। उसे तुम पर?
हां। जलन?
हां। तुम्हें?
हां। उसे?
हां।
इसीलिए तो।
इसीलिए तो क्या?
कुछ नहीं।
क्या नहीं?
कुछ भी नहीं।

बात दरअसल यह है कि…
क्या?
कुछ नहीं।

क्यों लिखते हो?
कहां लिखता हूं?

मैं कहना यह चाहता था कि
क्या?
कुछ नहीं।

तुम इतना तड़पते तिलमिलाते क्यों हो?
धीमे चलो।

आज हमारी आखिरी रात है।
हां।
मैं बातें करना चाहती हूँ।
मैं सुन रहा हूं।
कुछ कहोगे नहीं?
कह तो रहा हूँ।
क्या?

मैं कहना यही चाहता हूं कि…
बोलो…
कुछ नहीं।
क्या कुछ नहीं ?
कुछ भी नहीं।
मैं नहीं मानती।
तो बताओ।
क्या?
क्या है?
तुम हो, मैं हूं, यह रात है, कल सुबह होगी, हम यहां नहीं होंगे, मैं तुम्हें याद करूंगी, तुम मुझे, दर्द होगा, शुस्र् में तेज़, फिर धीरे धीरे धीमा होता जायेगा और एक दिन शायद मर भी जाये, हमारे मरने से पहले। और तुम क्या चहते हो?
कुछ नहीं।

कभी तुमने आत्महत्या के बारे में सोचा है?
हां।
कोशिश?
एक बार। बहुत पहले।
कब?
बचपन में।
कैसे?
गले में रस्सी डालकर।
क्यों?
अब याद नहीं।
कितनी उम्र थी?
शायद दस बरस।
सच?
हां।
दिन को?
हां। सुबह – सवेरे।
वह जानती है?
नहीं।
क्यों नहीं?
मैं ने कभी उसे बताया नहीं।
क्यों नहीं?
रहने दो।
कभी उसने पूछा है?
क्या?
आत्महत्या के बारे में?
नहीं।
तुमने उससे?
नहीं।
क्यों?
हम ऐसी बातें नहीं करते एक दूसरे से। तुम?
नहीं।
तुमने कभी?
नहीं।

क्या सोच रही हो?
सब कुछ।
सब कुछ क्या होता है।
सब कुछ।
नहीं।
नहीं क्या?

हम बहत दूर निकल आए।
यह हमारी आखिरी रात है।

कभी हम दोबारा मिलेंगे?
शायद नहीं।
क्यों?

कभी तुमने सोचा है?
क्या?
कुछ नहीं।

मेरी एक ख्व़ाहिश है।
क्या?
कुछ नहीं।
क्या तुम खुश हो?
हां।
क्यों?
कल हम अलग हो जायेंगे। तुम?
मैं क्या?
खुश हो?
हां।
जो हुआ, जितना हुआ, ठीक था।
हां।

वह सामने क्या है?
कहां?
सामने?
कुछ नहीं।
क्या कहा?
कुछ नहीं।
कभी तुमने किसी को सब कुछ बताया है?
नहीं।
बताना चाहा है?
सब कुछ?
हां।
नहीं। तुमने?
हां।

अगर मैं पूछूं तो?
क्या?
कुछ नहीं।
एक बात बताओगी?
क्या?
बताओगी?
क्या?
कुछ नहीं।

मैं कहना यह चाहती थी कि
क्या?
कुछ नहीं।

तुमने कभी भरपूर नफरत की है?
किससे?
किसी से भी?
नहीं। तुमने?
हां।
तुम न जाने किस तरह कह जाती हो।
क्या ?
सब कुछ।
सब कुछ नहीं।
तो?
तो क्या?
क्या सोच रहे हो?
कुछ नहीं।

क्या सोच रही हो?
सब कुछ।
क्या?
कुछ नहीं।

कहां?
कुछ नहीं।
कुछ नहीं?
कुछ नहीं।

क्यों?
क्या क्यों?
कुछ नहीं।

कैसे नहीं।
क्या?
सब कुछ।

नहीं?
क्या नहीं।
सब कुछ।
नहीं।
क्यों?
क्या?
क्या?

कुछ नहीं।
कुछ भी नहीं।
कुछ भी नहीं।
कहीं भी?
नहीं।
नहीं?
हां।
नहीं?
हां।
नहीं?

तुम?
मैं क्या?
कुछ नहीं।

मैं?
तुम क्या?
कुछ नहीं।

वह?
वह क्या?
कुछ नहीं।

वे?
वे क्या?
कुछ नहीं।
वापस?
कहां?
कहीं नहीं।

क्या सोच रहे हो?
कुछ नहीं।

क्या सोच रही हो?
कुछ नहीं।

क्यों नहीं?
क्या?
कुछ नहीं।

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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