वह अठारह बरस से कुछ माह ऊपर पर पूरे उन्नीस साल का नहीं हुआ था और न ही अठारह साल का रह गया था। सेवा अभिलेख में नाम दऱ्ज करते समय पंजीयनबाबू ने उसकी शैक्षणिक योग्यता का प्रमाण-पत्र देखा और उसकी आयु का मोटा-माटी हिसाब लगाया, तब उसके मुख से सम्बोधन स्वरूप निकला था…” वाह! उन्नीस साल का लड़का।” हालाँकि उन्नीस साल की उम्र पूरी होने में अभी चार-पाँच माह बाकी थे पर पंजीयक ने उसकी उम्र को ऐसा ताना कि वह उन्नीस साल का हो गया। कार्यालय के सभी विभाग में यह खब़र, कार्यालय अधीक्षिका मिसेज़ रंगारे के जूडे में लगे मोगरे के फूल की बेनी की खुश्बू की तरह फैल गई…
” ऑफ़िस में आया उन्नीस साल का लड़का।
– वह मैट्रिक्यूलेट है।
– वह टायपिंग परीक्षा पास है।
– वह शुद्ध लेख और स्वच्छ लिखाई लिखता है।
– वह चुस्त एवम् फुर्तीला है।
– और सबसे बड़ी बात… वह बहुत सीधा और ज़रूरतमंद है।
खब़र से तत्परता बढ़ी।
तत्परता से जागी सजगता।
सजगता से अहसास हुआ अपने भरी भरकम पद का।
पद को अहसास हुआ अपनी गरिमा का।
हर विभागाध्यक्ष अनुकंपा श्रेेणी में रोजगार पाये उन्नीस साल के लड़के को अपने विभाग में रखना चाहता था। पन्द्रह सालों से रिक्त पदों पर नियुक्ति न होने के कारण कई विभाग की कुर्सीयाँ खाली पड़ी थी। सेवा निवृत्ति समय पर हुई। स्वेच्छिक सेवा निवृत्ति समय से पूर्व दी गई। कुछ पद प्राकृतिक, कुछ दुघर्टनाजन्य परिस्थिति में भी रिक्त हुये पर काम चलता रहा। शेष कर्मचारियों का कार्यभार लगातार बढ़ता रहा। ऐसे में सभी को
दिखा…”उन्नीस साल का लड़का!”
पूरे कार्यालय में कीचड़ की तरह नेतागिरी मच गई। सबका यही कहना था, सबका यही रोना था… “काम बहुत हैं एक असिस्डेंट चाहिये।”
जनरल सेक्शन, कैश सेक्शन, एकाउन्ड्स डिपार्टमेंट, एडमिनिस्ट्रेटिव डिपार्टमेंट… सबका यही तकाजा था… ” हमें ही चाहिये यह उन्नीस साल का लड़का।”

सेवा अभिलेख भरते-भरते पूरे कार्यालय में अफ़रा-तफ़री मच गई। उन्नीस साल का लड़का पूरे कार्यालय में छा गया पर वह चिपका रंगारे के ही दफ़तर में। कुछ दिनों तक चली उठा-पटक की राजनीति। आवेदन, अनुमोदन और निरस्तीकरण में एक ही मुद्दा छाया रहा…” हमें चाहिये उन्नीस साल का लड़का।” पर वह नहीं मिला जिसे चाहिये था। मिसेज़ रंगारे ने पहले ही अपनी गुट्टी फिट कर रखी थी। इसके लिये उन्हें पूरे कार्यालय का कोपभजन भी सहना पड़ा। वह जब कैश सेक्शन से स्टेटमेंट माँगती, वे कहते ” नहीं बना! क्या करें.. हमारे डिपार्टमेंट में कहाँ हैं उन्नीस साल का लड़का। मिस्टर वर्मा को लकवा मार गया है। वह आकर हॉजरी लगा देते है, इतना ही बहुत हैं।” वह जब जनरल सेक्शन में सांख्यिकी तलाशती, आंकड़े उनसे लुका–छुपी का खेल खेलते। वह झल्ला जाती तो वे कहते…” क्या करे मैडम! हमारे पास तो नहीं हैं कोई उन्नीस साल का लड़का! मिस्टर शर्मा को तो यूनीयन के काम से ही फ़ुरसत नहीं मिलती। अब किससे कहें- रिकार्ड अपटूडेट रखे।”

मिसेज़ रंगारे उल्टे पैर लौट आतीं। वह एकाउन्टस् सेक्शन में जाती, स्वयं ही लेज़र से क्लोसिंग बैलेंस के आंकड़े लेती और स्टेटमेंट बनाने बैठ जाती। तब केंटिन से लौटता हुआ एकाउन्ट्स क्लर्क कहता…” मैडम! आप रहने दीजिये। मैं तो बना ही रहा था। मैडम उपेक्षा से कहती…” रहने दीजिये! आपके डिपार्टमेंट में कहाँ हैं उन्नीस साल का लड़का।

मैडम रंगारे के डिपार्टमेंट में उसकी पोस्टिंग हो चुकी थी। ऑफ़िस के काम को उसने स्कूल की पुस्तकों की तरह पढ़ा, गुना और कुछ ही दिनों में वह अपने काम में दक्ष हो गया। मैडम का सारा काम वह चुटकियों में निपटाने लगा । उसकी यही तत्परता, उसे अन्य विभाग के कर्मचारियों के ईर्षा, द्वेष और उपेक्षा का पात्र बनाती चली गई। बात-बात में, हर काम में अधिकारी कहते …. “तुमसे अच्छा तो वह उन्नीस साल का लड़का हैं। वह अपने काम सहित विभाग के दूसरे काम भी फुर्ती से निपटा देता हैं। तुम सब कामचोर हो। इसके ठीक विपरित उसके हर काम पर बॉस कहते – वाह! उन्नीस साल का लड़का। उसके काम की मुक्त कंठ से सराहना की जाती। वह अपना काम पूरे उत्साह और ईमानदारी से करता।

एक दिन वास्तव में वह उन्नीस साल का हो गया पर उसके उन्नीस का होने पर उसके सिवाय और किसी को दिलचस्पी नहीं थी। सब पहले ही उसे उन्नीस साल का मान चुके थे। उन्नीस के बाद बीस, इक्कीस, बाईस… आगे बढ़ते-बढ़ते वह पैंतीस साल का हुआ। उसकी बढ़ती हुई उम्र से किसी को कोई सरोकार नहीं था। सब उससे उन्नीस साल की रफ्तार से ही काम चाहते थे और वह कर रहा था, करते चला जा रहा था।

नौकरी लगने के बाद उसका विवाह हुआ। वह एक बेटा और दो बेटियों का पिता बना। बेटा मिडिल स्कूल और बेटी हाईस्कूल में पढ़ने लगी पर उसकी आयु को उन्नीस बरस ने ऐसा पकड़ कर रखा कि वह चालीस का होकर भी चालीस का न हो सका।

मैडम रंगारे धीरे-धीरे साठ साल की ओर बढ़ रही थी। उन्हें रिटायर होने से उम्र के अलावा और कोई नहीं रोक सकता था। फिर भी उन्नीस साल के लड़के ने बहुत भाग दौड़ की। मुख्यालय के कई चक्कर लगाये। विभागाध्यक्ष से लेकर मंत्री-संत्री तक कई लोगों के हाथ-पैर जोड़े कि कम से कम एक-आध साल के लिए उन्हें एक्स्टेंशन मिल जाये। बेटा उनका कहीं चिपक जाये। बेटी के हाथ पीले हो जाये। मैडम का अधूरा पड़ा मकान का काम पूरा हो जाये पर किसी ने नहीं सुना… कोई नहीं माना। सभी ने कहा ऐसा कोई प्रावधान नहीं हैं।

फिर एक दिन उम्र के सामने विवश होकर मैडम रंगारे साठ साल की हो गई। वह फिर भी रहा उन्नीस साल का। मैडम रंगारे के रिटायरमेंट के अंतिम दिनों में वह बहुत उदास और अंतर्मुखी हो गया था। जब उनकी विदाई का क्षण और चार्ज हैन्ड ओवर-टेक ओवर का समय आया तो विभागाध्यक्ष ने उन्हें चार्ज लेने के लिए कार्यालय आदेश थमा दिया। कायदे से जनरल सेक्शन में वही सबसे अधिक सक्षम और वरिष्ट था। उससे अधिक तीन वरीय या तो नेतागिरी में थे या जिम्मेदारी ग्रहण करने से बचना चाहते थे।

सेवा निवृि>ा के बाद जब मिसेज़ रंगारे की अनौपचारिक बिदाई पार्टी चल रही थी, वह बहुत भावुक हो उठा। वह उन्नीस साल का नहीं था पर उन्नीस साल के लड़के की तरह मिसेज़ रंगारे से लिपटकर भभक-भभकर रो पड़ा। “मैडम! म्ैंा आपके बिना यह आफ़िस कैसे चला पाऊँगा…?”
” पागल! अब कहाँ रहा तू…. उन्नीस साल का।”
मैडम रंगारे ने वात्सल्य दृष्टि से उसके गाल पर एक हल्की सी चपत लगाते हुये कहा, फिर एक दीर्ध उसाँस छोड़ते हुये बोली… “दस साल बाद तू भी मेरी ही तरह रिटायर हो जायेगा लेकिन इस कार्यालय में फिर कभी नहीं आयेगा कोई उन्नीस साल का लड़का। इसीलिये तुम जब तक हो उन्नीस साल के ही बने रहना और उन्नीस साल में ही रिटायर होना।”

वह हँस पड़ा पर पचास साल में उन्नीस साल की हँसी नहीं हँस पाया।

अपने रिटायरमेंट के साथ ही मिसेज़ रंगारे को इस बात का बहुत अफ़सोस रहा।

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