उस अजन्मे बच्चे का क्या क़सूर था? रमा ऐसा सोच भी कैसे पाई? सोचा तो सोचा, करवा कैसे पाई यह जघन्य़ हत्या। हत्या ही तो थी उस बच्चे की। किसने कहा था कि यदि बच्चा नहीं चाहिये तो बिना प्रीकॉशन के सेक्स करो।

रमा भी क्याद करती? सच कहे तो कोई विश्वास नहीं करेगा। शादी के शुरूआती दिन। अंधियारा घिरते ही जय रमा के आस-पास घूमने लगते। रमा का खाना बनाना दुश्वार हो जाता। कई बार तो उसे एक तरह का अनजाना डर सा लगने लगता।

हर रात वही क्रियाएं, वही दोहराव। अंतत: स्त्रारव और ठंडभरी रात को खुद को साफ करना। वैसे कई बार लगता कि वह जय को मना कर दे, प्लीस, आज नहीं। दिल नहीं’, पर जय की नाराज़गी का खयाल आते ही खुद को समर्पित कर देती।

वह ख़ुद एक मध्यावर्गीय परिवार की ही तो बेटी थी, तो सपने भी मध्यवर्गीय थे। उसने कभी ऐसे सपने देखे ही नहीं जो पूरे न हो सकें और दिल बेचारा किरच किरचकर लहूलुहान हो जाये। जय से परिचय रमा की मित्र ने ही कराया था।

उन दिनों रमा के पास पक्की नौकरी नहीं थी और वह ईवनिंग क्लासेस के जरिये अपनी पढ़ाई पूरी कर रही थी। रमा को कभी बॉयफ्रैंड में भी रुचि नहीं रही थी। हमेशा सोचती थी कि कौन इनके साथ समय ज़ाया करे। ये उसकी ज़िन्दगी की प्रमुखता तो है नहीं। फिर भी जय उसके जीवन में प्रवेश कर ही गये।

जय से मुलाक़ातें बढ़ीं। रात को जब रमा का कॉलेज खत्म होता तो जय कॉलेज के दरवाज़े पर मिलते और दोनों वहां से स्टेशन के लिये रवाना हो जाते। जय भी क्या करते? इस माया नगरी में नितांत अकेले थे। पेइंग गेस्ट हाउस में शाम को जाकर क्या करते? तो ऐसे समय में रमा से मुलाक़ात मानो डूबते को तिनके का सहारा थी।

रमा को अंदर ही अंदर वैसे भी हौला रहता था कि कॉलॉनी के किसीने उसे रेस्तोरां में जय के साथ देख लिया तो उसके घर तक बात न पहुंच जाये। पृथ्वी गोल है। जान-पहचान के लोग कहीं न कहीं टकरा जाते हैं, वैसे शायद कभी न टकरायें पर ऐसे नाज़ुक समय में ज़रूर मिलेंगे।

अपनी पढ़ाई के आख़िरी वर्ष में रमा ने नौकरी छोड़ दी थी ताकि अच्छे नंबरों से पास हो सके और एक अच्छी नौकरी का सपना देख सके। हां, उसने सप्तांह में दो दिन हिंदी के ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था और बाकी दिन लायब्रेरी में बैठकर अपने नोट्स बनाने का काम। इन्हीं दिनों उसकी जय के साथ नज़दीकियां बढ़ने लगी थीं।

एक बार जब वे दोनों ईरानी रेस्तइरां में चाय और पेस्ट्री खा रहे थे, तब रमा ने अपना मुंह खोला और कहा, देखो जय, यह रोज़ शाम का मिलना और चाय पीना कितने दिन चलेगा? यदि इस दोस्तीं को स्थायी रूप देने में दिलचस्पी रखते हो तो हम मिलेंगे, अन्ययथा हम अपनी दिशा बदल देंगे।‘

रमा की मुखरता पर जय अचंभित रह गये थे। उन्होंने अपने चेहरे पर गंभीर भाव लाकर कहा, ‘अरे, यह क्या कह दिया तुमने? मैंने तो इस रूप में तुमको न देखा और न सोचा। कुछ समय दीजिये।‘ अचानक वे औपचारिक हो गये। रमा ने स्वीकृति में सिर हिला दिया।

उसके बाद एक सप्ताह तक रमा और जय की मुलाक़ात नहीं हुई। रमा ने इस मामले को खत्म सा समझ लिया और साथ ही इस हकीकत से रू-ब-रू हो गई कि यथार्थ कितना पथरीला होता है और उसने इसको स्वीरकार भी कर लिया था। एक दिन वह लायब्रेरी में बैठी थी कि जय आये और बोले, ’आज क्लासेस बंक कर सकती हैं?’

रमा ने कहा, ‘कोई ख़ास वजह? और अचानक की रमा की आंखों में सपने तिरने लगे थे जिन्हें उसने अपनी आंखों में आने से मना कर दिया था। जय ने कहा, ‘हां, मैंने अपने घर में बता दिया है कि मैंने मुंबईया लड़की पसन्द कर ली है और वे तुम्हारी फोटो देखना चाहते हैं। सो फोटो स्टूडियो चलना है।‘

रमा शुरू से ही काफी सादगी पसंद है। उसे हर समय कान में, नाक में, हाथ में कुछ पहने रहना बेड़ियों जैसा लगता है। उस दिन भी उसने कान में कुछ नहीं पहना था। जय ने कहा, ‘तुम्हारी फोटो तुम्हें पसंद करने के लिये भेजी जा रही है। आज तो कान में कुछ पहन लो।‘ रमा ने फुटपाथ से ही काले रंग के मोती खरीदकर कान में पहन लिये थे।

अंतत: फोटो खिंचवाये गये और जय के परिवार को भेज दिये गये। रमा जन्मीजात सुन्दिर तो थी ही। सो उन लोगों को पसन्द आना ही था और इस तरह दो दोस्त परिवारों की रज़ामंदी से विवाह के बंधन में बंध गये थे। रमा ने अपनी सुंदरता और पाक कला से सभी को अपने वश में कर लिया था।
ससुराल में कुछ दिन रहकर रमा और जय वापिस अपने शहर आ गये, नौकरी जो थी। जय की कंपनी ने बड़ी मुश्किल से बैचलर फ्लैट दिया था, वह भी बड़ी मेहरबानी से। हां, बस, इस कमरे में एक ही फायदा था कि सुसज्जित था। पूरा फर्नीचर था जो एक जोड़े के लिये ठीक ही था। मुंबई जैसे शहर में यह भी कहां नसीब होता है। सब रमा के भाग्य को सराह रहे थे।

ससुराल में रमा ने देख लिया था कि वे भी मध्य वर्ग से ही ताल्लुक़ रखते थे। जय की नौकरी अच्छी जगह थी तो उनका थोड़ा दबदबा था परिवार में। यह तो बाद में पता चला कि दुहनी गाय की तो लातें सभी सहते हैं। रमा ने अपने पुराने ऑफिस में फिर से नौकरी के लिये आवेदन कर दिया था, यह सोचकर कि कुछ न होने से कुछ अच्छा। वह नौकरी उसे मिल भी गई।

दिन ठीक-ठाक गुजर रहे थे। हालत तो यह थी कि प्रेम विवाह हुआ था तो दहेज का लेन देन न होना पहली शर्त थी। रमा नहीं चाहती थी कि वह औरों के दम पर गृहस्थी बसाये। रमा और जय अक्सर रात का खाना बाहर खाते थे। बाहर का खाते-खाते दोनों बोर होने लगे थे।

फिर भी बाहर खाने का सिलसिला क़रीब एक साल चला। घर-गृहस्‍थी का सामान जुटाने में समय तो लगना ही था। इसी बीच रमा को अपने शरीर में कुछ बदलाव महसूस होने लगा। मसलन, समय-बेसमय उल्टियां होना, देर रात कुल्फी खाने का दिल करना। उसे लगा कि यह क्या हो गया?

रमा को बड़ी हिचक हो रही थी कि कैसे जय को बताये। शादी इतनी पुरानी तो नहीं हुई थी कि वह जय के साथ पूरी तरह अनौपचारिक हो जाये। जब रमा की तबियत थोड़ी गिरी-गिरी रहने लगी और रात को जय के साथ लेटने के लिये मना करने लगी, तो जय ने एक दिन पूछा,

‘क्या, बात है रमा, मुझसे इतनी अलग क्यों रहती हो, साथ लेटने से भी कतराती हो, क्या बात है?’ तब जाकर रमा ने सकुचाते हुए जय को अपने अन्दरर होनेवाले परिवर्तन के विषय में बताया था। सुनकर जय एक पल को चुप रहे और फिर बोले, इतनी जल्दी मेरा प्यार बांटनेवाला आ जायेगा तो मेरा क्या होगा?’

रमा को जय की यह बात समझ में नहीं आई। कुछ समय बाद जय ने कहा, ‘इतनी जल्दी प्रेगनेंट नहीं होना चाहिये था। अभी घर के हालात तो देख रही हो। चलो, फिर भी डॉक्टर को दिखा दो। कन्फर्म हो गया तो सोचेंगे कि क्या करना है।‘

जय की ठंडी आवाज़ और बच्चे के प्रति रूखा रवैया देखकर परेशान हो गई। सच कहे तो वह भीतर से डर गई थी कि कहीं…..। इसके बाद उसने अपनी आंखें बंद कर लीं थीं। दिमाग़ सुन्न सा हो गया था। कभी कमज़ोरी महसूस न करनेवाली रमा अचानक ख़ुद को कमज़ोर महसूस करने लगी थी।

दूसरे दिन वह सुबह डॉक्टर के यहां गई। डॉक्टर ने नब्ज़ देखी, आंखें चेक कीं और कहा, ‘कल खून चेक करवा लो और पेशाब टेस्ट के लिये दे जाओ। दो दिन बाद रिपोर्ट मिलेगी। रात को जय ने पूछा, ‘डॉक्टर के यहां गई थीं? क्या कहा डॉक्टर ने?’

रमा ने कहा, ‘इतनी जल्दी कैसे बतायेगी? कल खून चेक करेगी और पहला पेशाब भी मांगा है। कल जाउंगी।‘ इसके बाद कुछ कहना सुनना बाकी नहीं रह गया था। दोनों करवट बदलकर लेट गये। जय को लगा कि आज रमा को छेड़ना ठीक नहीं। उसका मूड ठीक नहीं है।

रमा दूसरे दिन सुबह नौ बजे बिना कुछ खाये पिये अस्पताल गई। साथ ही सुबह का पहला पेशाब शीशी में भरकर ले गई। दे दिया। जब डॉक्टर ने रमा के हाथ की नस में इंजेक्शेन की सुई घुसाकर खून लिया था, वह बिलबिलाकर रह गई थी। पहली बार दिया था खून।

उसे रह-रहकर उल्टियां हो रही थीं। जय उसकी उल्टियों की आवाज़ से रात को परेशान हो जाते। रमा को लगता कि शायद जय मानसिक रूप से पिता बनने के लिये तैयार नहीं थे। इसका कारण क्या हो सकता है? शादी हुई तो यह काम भी तो होना ही है, ये इतने चिड़चिड़े से क्यों हो रहे हैं, जबकि रिपोर्ट आना तो बाकी है।

दो दिन बाद वह डॉक्टर के यहां गई। डॉक्टर तो मिली नहीं पर काउन्टर से ही रिपोर्ट मिल गई। उन रिपोर्टों में सब मेडिकल टर्म्स। लिखे थे जो उसकी समझ से बाहर थे। काउन्टर गर्ल से पता करना चाहा तो वह बोली, ‘हमको कुछ बताने का ऑर्डर नहीं है। डॉक्टर मैडम शाम को आयेंगी, तभी आईये।‘

वह शाम को फिर गई और डॉक्टर को रिपोर्ट दिखाई। डॉक्टर ने सब पेपर देखे और बोलीं, रमा, आपकी सब रिपोर्ट्स पॉजिटिव है, याने आप गर्भवती हैं। सच कहा जाये तो रमा को अन्दर से कोई ख़ास खुशी नहीं हुई थी। उसकी आंखों के सामने जय का गंभीर चेहरा आ गया। गया। वह डॉक्टर का धन्यवाद करके घर आ गई।

शाम को जय घर आये तो रमा ने चाय दी। चाय पीते पीते जय ने पूछा, ‘रिपोर्ट क्या कह रही है?’ जब रमा ने बताया कि वह गर्भवती हो चुकी है तो जय क्षणिक खुश तो हुए पर चेहरे पर वह चमक नहीं दिखी जो पितृत्व प्राप्त करने की ख़बर पर दिखनी चाहिये।

रमा ने कहा, ‘तुम्हें खुशी नहीं हुई यह खबर सुनकर?’ जय ने कहा, ‘ऐसी बात नहीं है, पर तुम तो जानती हो, मेरा परिवार बड़ा है और मेरे पास अच्छी नौकरी है तो मुझ पर ज़िम्मेदारी भी ज्य़ादा हैं। यदि बच्चा आ गया तो फिर मैं परिवार की मदद नहीं कर पाउंगा।‘

रमा एक मिनट के लिये सक़ते में आ गई पर फिर खुद को संभालते हुए कहा, ‘तुम क्या चाहते हो मुझसे?’ इस पर जय ने कहा, ‘अपने परिवार से तो मैं कुछ नहीं कह सकता पर तुमसे तो कह सकता हूं।‘ जय को गोल-गोल बातें करते देखकर रमा को गुस्सा आ गया। उसने कहा, ‘खुलकर कहो न। पहेलियां क्यों बुझा रहे हो?’

ऐसा है रमा, अभी तो तुम्हें ज्य़ादा दिन नहीं चढ़े हैं। क्यों न तुम यह गर्भ गिरवा दो। मैं फिलहाल यह नई ज़िम्मेदारी लेने के लिये तैयार नहीं हूं। तुम्हारी नौकरी भी पक्की नहीं है। कभी भी हाथ से जा सकती है। घर के नाम पर एक कमरा ही है। वैसे यह मेरा सुझाव है, मानो न मानो तुम्हारी मर्जी।‘

कितनी होशियारी से जय ने गेंद रमा के पाले में डाल दी थी। सभी मर्द ऐसे ही होते हैं? उसे अपना चचेरा भाई याद आ गया जो अपनी पत्नी को ऐसे ही लचर कारण देकर तीन गर्भपात करवाता रहा और अंतत: डॉक्टर ने कह दिया था कि उसकी पत्नी कभी मां नहीं बन सकती। गर्भाशय की दीवारें ख़ुरदरी हो गई हैं। गर्भ टिकेगा नहीं।‘

रमा ने कहा, ‘मुझे सोचने का मौका दो।‘ उस दिन से वह पूरे हफ्ते सो नहीं पाई थी। शादी से पहले जय ने क्यों नहीं बताया था कि उनका परिवार उनकी प्रमुखता में रहेगा। इस भावी बच्चे का क्या क़सूर है? क्या वह करे और क्या न करे, बस इसी के बीच पेंडुलम की तरह इधर से उधर होती रहती।

उधर जय इस इंतज़ार में थे कि देखें, उंट किस करवट बैठता है। रमा ऑफिस जाती रही और अब तो उसे नौकरी करना और ज्य़ादा ज़रूरी लगने लगा था। उसे लगने लगा था कि यदि परिवार की ज़रूरतों का वास्ता देकर घर खर्च देना कम कर दिया तो? जय से बात भी करना था।

जब रात को दोनों सोने लेटे तो रमा ने ही शुरूआत की, ‘देखो जय, तुम्हें इतना आसान लगता है गर्भ गिरवाना? हम दोनों के प्यार का पहला सबूत पल रहा है। तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो? तुम भी इतने भाई-बहन हो। तुम्हारी मां ने तो नहीं गिरवाये गर्भ, फिर तुम यह बात कैसे सोच सकते हो?’

जय ने कोई उत्तर नहीं दिया। दोनों के बीच पसरी चुप्पी माहौल को भारी बना रही थी। ‘जय, बोलो न! चुप्पी साधने से काम कैसे चलेगा? जो भी तुम्हारे मन में है, कह डालो।‘ जय ने मुंह खोला और बोले, ‘सच कहूं?’ ‘हां सच ही कहो। ज्य़ादा दिन चढ़ गये तो मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी।‘

अब जाकर जय खुले, ‘रमा, मुझे अन्यथा मत लेना, पर तुम इस बच्चे को जन्म मत दो। मेरी हालत समझो। मैं अभी यह ज़िम्मेदारी लेने और संभालने में समर्थ नहीं हूं।‘ यह कहते समय जय रुआंसे से हो गये थे। रमा ने कुछ नहीं कहा। उसे एक उबकाई आई और वह भागकर बाथरूम चली गई।

अब दोनों के बीच कुछ भी कहने-सुनने को नहीं रह गया था। एक वाक्य में जय अपनी बात कह चुके थे। निर्णय तो रमा को लेना था, बच्चा तो उसके पेट में पलना था। वह क्या करे और क्या न करे, कुछ भी तो समझ में नहीं आ रहा था। पेट में रह-रहकर गोले उठ रहे थे।

वह अपने पेट को हल्के से दबाकर उन गोलों को उठने से रोकने का यत्न कर रही थी। अचानक उसने अपनी आंखों को नम महसूस किया। अंधेरे में उसके आंसू कौन देखता और कौन पोंछता? कोरों में आये पानी को उसने हथेलियों में ले लिया और आंखें बन्द कर लीं।

सुबह जय शायद जल्दी उठ गये थे। अचानक उसने सुना, ‘रमा, आज काम पर नहीं जाना क्या? सुबह के आठ बज गये हैं। मैंने चाय बना ली है। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ।‘ रमा ने कहा, ‘आज मैं काम पर नहीं जा रही। ठीक नहीं लग रहा। आज आराम करूंगी। हां, चाय दे जाओ और हां, ब्रेड बटर खाकर चले जाना।‘

रमा की ठंडी आवाज़ सुनकर जय कुछ मिनटों के लिये हिल ज़रूर गये थे, पर चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया और रमा को चाय बिस्किट देकर नहाने चले गये। रमा चाय पीकर फिर सो गई। रात उसे ठीक से नींद नहीं आई थी। जय भी बिना कोई बात किये तैयार होकर काम पर चले गये।

क़रीब दोपहर के बारह बजे रमा उठी। शरीर भारी लग रहा था। अनमने मन से उठी और अपने लिये आलू की ज्य़ाजदा तेल और मसालेवाली सूखी सब्ज़ी बनाई। ब्रेड के चार पीस लिये। अपने लिये नहीं पर अन्दर पलनेवाले बच्चे के लिये तो पेट में कुछ डालना था। उसने यह मिनी लंच खाया और फिर नहाने चली गई।

अब निर्णय तो उसे लेना ही था। जय अपनी बात कम शब्दों में कह चुके थे। घड़ी देखी। शाम के चार बजे थे। उसने अपनी डॉक्टर को फोन किया, ‘हैलो, डॉक्टार, मैं आज शाम को आ सकती हूं? आपसे कुछ ज़रूरी बात करना है।‘ उधर से आवाज़ आई, ‘हां जाओ। अब तो तुमको आना होगा, छ: बजे आ जाओ।‘

शाम को छ: बजे रमा डॉक्टर के यहां गई। डॉक्टर ने उसका चेकअप किया और फिर पूरा टाईम टेबल बना डाला, ‘देखो रमा, गर्भ धारण करने के बाद हर महीने ये ये परीक्षण करवाने होते होंगे। हर परीक्षण की फीस अलग-अलग होगी।‘ रमा चुपचाप सुनती रही।

सब सुनने के बाद रमा ने कहा, ‘डॉक्टर, आपका आभार सब बताने के लिये। लेकिन मुझे अभी यह बच्चा नहीं चाहिये।‘ रमा की आवाज़ सुनकर डॉक्टर को आश्चपर्य हुआ पर उन्होंने अपनी सामान्य आवाज़ में पूछा, ‘यह आप क्या कह रही हैं? यदि अन्यथा न लें तो कारण जान सकती हूं?’ डॉक्टर ने नरमाई से पूछा।

रमा ने कहा, ‘वैसे तो बताना नहीं चाह रही थी। पर डॉक्टर से और दाई से क्या बात और क्या पेट छिपाना। आपको एक वादा करना होगा।‘ डॉक्टर बोलीं, ‘आप निश्चिंत रहिये रमा, यह बात यहीं ख़त्म हो जायेगी। पर आप बताईये तो सही।‘

रमा ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों को एक दूसरे में बन्द करते हुए होठों को तर किया। डॉक्टर देख रही थीं कि रमा के होंठ खुलते और फिर बन्द हो जाते। बार-बार जीभ से होंठ गीले कर रही थी। डॉक्टंर चुपचाप बैठी थीं और इंतज़ार कर रही थीं। आख़िरकार रमा के होंठ हिले और बोली,

‘दरअसल डॉक्टर, मैं अभी मानसिक रूप से मां बनने के लिये तैयार नहीं हूं। अजीब सा डर है मन में। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि यह सब इतनी जल्दीं हो जायेगा।‘ इस पर डॉक्टर ने कहा, ‘यदि बच्चा नहीं चाहिये था तो प्रीकॉशन लेना चाहिये था।‘ इस पर रमा ने झिझकते हुए कहा, ‘लिया था, पर न जाने कब ऐसा हो गया।‘

डॉक्टर ने सिर्फ़ हुंकारा भरा और कहा, ‘सिर्फ़ यही कारण नहीं हो सकता बच्चा न चाहने का।‘ रमा ने आगे बात बढ़ाई, ‘हमारे पास एक ही कमरा है, उससे भी बड़ी बात कि मेरी नौकरी पक्की नहीं है। मैं नहीं चाहती कि अभी से बच्चे को कमियों के बीच रहना पड़े और उसे ज़िन्दआगी भर छोटी-छोटी इच्छाएं मारनी पड़ें।‘

डॉक्टर ने रमा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘माना कि तुम्हारा कहना सही हो पर तुम्हें अजन्मे बच्चे के प्रति इतनी क्रूरता से नहीं सोचना चाहिये। वह अपनी तक़दीर लेकर आयेगा।‘ यहीं पर रमा चिढ़ गई और बोली, ‘लेकर आयेगी भी तो हो सकता है। डॉक्टर होकर भी आपके मन में लड़का ही आया न?’

डॉक्टर रमा के इस आक्रामक तेवर से गड़बड़ा गई और बोली, ‘आई एम सॉरी रमा, मेरा यह मतलब कतई नहीं था।‘ रमा ने ख़ुद को संयत किया और कहा, ‘इट इज ओ के लेकिन यह तय है कि मुझे यह बच्चा नहीं चाहिये।‘ डॉक्टर हैरान थी रमा की ज़िद देखकर। प्लीयज़, डॉक्टर, यह मामला यहीं ख़त्म कर दीजिये।‘

ठीक है रमा, जब आपका यही निर्णय है तो फिर मैं क्या कर सकती हूं। परन्तु एक बात बताईये कि क्या आपके पति को आपके इस निर्णय की जानकारी है? कहीं ऐसा न हो कि मेरे लेने के देने पड़ जायें। पेपर पर उनके हस्ताक्षर भी चाहिये होंगे।‘ रमा ने निश्चिंत होते हुए कहा,

‘जी, उसकी आप चिंता न करें। मैंने अपने पति से बात कर ली है।‘ डॉक्टर ने हैरान होते हुए कहा, ‘वे मान गये आपकी बात?’ ‘यह मैं नहीं जानती पर उन्होंने ऐसा कोई आग्रह भी नहीं किया जिससे ऐसा लगे कि वे बच्चा चाहते हैं।‘ रमा के यह कहने पर डॉक्टर कंधे उचकाकर रह गई।

रमा ने कहा, ‘मैं नहीं जानती पर यह महसूस कर पा रही हूं कि उन पर अपने भाई-बहनों की बहुत ज़िम्मेहदारी है और उन पर इन ज़िम्मेरियों को पूरा करने का अतिरिक्त- दबाव है। मैं नहीं चाहती कि इतनी जल्दी बच्चे की भी ज़िम्मेदारी आ जाये। सच तो यह है कि वे भी अभी बच्चा नहीं चाहते।

डॉक्टर ने कहा, ‘मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करती हूं लेकिन साथ ही इस बात की ताकीद भी देती हूं कि पहले बच्चे का गर्भपात करने के बाद यह भी हो सकता है कि आप कभी मां न बन पायें। यह सच भी आपको जान लेना होगा। फिर भी निर्णय आपका है।‘

‘ठीक है डॉक्टर, मैं कोई पांच महीने के बच्चे का तो गर्भपात करवा नहीं रही कि उसमें जान पड़ गई हो, उल्टे अभी तो डेढ़ महीने का ही गर्भ है। बच्चे में जान नहीं पड़ी है। इसीलिये अभी ही यह मामला ख़त्म कर देना चाहती हूं।‘ डॉक्टर समझ गई कि रमा को समझाना आसान काम नहीं है। एक तरह से वह जो सोच रही है, वह ठीक भी है।

रमा कहने को तो कह गई पर कहीं अन्दर तक सिहर गई थी। उसे अचानक अपने अन्दर पलते बच्चे से बात करने का दिल करने लगा। उसने अपने पेट पर हाथ फेरा। अभी तो पेट सपाट ही है। इतने में उसे ज़ोर की उबकाई आई और वह मुंह पर हाथ रखे वॉशरूम की ओर भागी।

वॉशरूम से बाहर आकर रमा ने डॉक्टर से पूछा, ‘तो फिर कब आऊं?’ डॉक्टर ने कहा, ‘जब आपने तय ही कर लिया है तो आप कल सुबह आठ बजे कुछ खाये-पिये बिना आ जायें..और हां, अपने पति को साथ लायें, पेपर साइन करने होंगे।‘ रमा डॉक्टर का आभार व्यक्त, करके घर वापिस आ गई।

घर आकर वह निढाल होकर बिस्तर पर लेट गई। समय काटे नहीं कट रहा था। उसे लग रहा था कि कल कभी आये ही नहीं। अचानक उसके कानों में बच्चे के रोने की आवाज़ गूंजने लगती। वह अपने पेट की और देखती कि कहीं पेट ऊपर-नीचे तो नहीं हो रहा बच्चे के रोने से।

फिर उसे याद आया कि अभी तो डेढ़ महीना ही हुआ है, बच्चे में जान कहां पड़ी होगी। रात को जय जब घर आये तो बोले, चलो, आज बाहर खा लेते हैं। तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है।‘ रमा को लगा कि जैसे बकरे को हलाल करने से पहले खिलाया-पिलाया जा रहा है। उसने सिर हिलाकर मना कर दिया।

जय ने रमा के पास आकर कहा, ‘चलो भी सही। डॉक्टदर ने क्या कहा?’ इस पर रमा ने कहा, ‘डॉक्टर को क्या कहना था? मैंने कल की तारीख ले ली है गर्भपात करवाने की। तुम्हें भी चलना होगा। पेपर साइन करने होंगे।‘ जय ने कहा, ‘कितने बजे चलना होगा?’ साढ़े सात बजे डॉक्टर ने आने के लिये कहा है। आठ बजे ऑपरेशन है।‘

जय ने कहा, ‘ठीक है। सुबह देर से ऑफिस चला जाउंगा।‘ इस तरह अब तो तय हो गया कि गर्भपात करवाना ही है। रमा ने सोचा कि एक बार तो जय कहते, भले ही झूठ को ही कि वह बच्चा न गिराये। घर को खिलखिलाहटों की ज़रूरत है। उसकी आंखों से मानो नींद ही उड़ गई है।

रात क़रीब तीन बजे उसे नींद आई। सात बजे जय ने उठाया। वह हडबड़ाकर उठी। सिर्फ़ आधा घंटा बाकी था। खाना तो था नहीं कुछ। जल्दी से नहाने चली गई। उसने ढीली सी फ्रॉकनुमा मिडी पहनी और बालों को हल्के से जूड़े का शेप दिया और अपने पर्स में करीब दस हज़ार नकद लेकर चप्पल पहनकर दरवाज़ा बन्द करके सीढ़ियां उतरकर नीचे आ गई।

वे दोनों पौने आठ बजे अस्पताल में थे। दस मिनट बाद नर्स आई और बोली, ‘रमाजी आप ही हैं?’ रमा ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी तो नर्स ने कहा, ‘आप ऑपरेशन थियेटर की ओर चलो। सब सफाई करने का है और कपड़ा भी बदलने का है। आपका हज़बैण्ड’?’ रमा ने आंख से जय की ओर इशारा कर दिया।

नर्स ने कहा, ‘साहब, आप ऑफिस में आओ। पेपर साइन करने का है आपको।‘ जय ने रमा के सिर पर हाथ फेरा और रमा उन उंगलियों का कंपन अपने सिर पर महसूस कर रही थी। उसने धीरे से जय का हाथ दबा दिया। दोनों नि:शब्द थे। वे दोनों ही यह काम आर्थिक मज़बूरी में करवाने के लिये सहमत हुए थे, बोलते भी तो क्यां?

रमा मशीनवत अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर की ओर बढ़ चली। उसने अन्दर जाकर देखा तो अन्दर से डर सी गई। एक बार फिर पेट को सहलाया। ऑपरेशन थियेटर में तरह तरह के औजार, हरे एप्रन पहने नर्सें और वॉर्ड बॉय। सब ऐसे तैयारी कर रहे थे मानो बकरे को काटने की तैयारी कर रहे हों। सपाट चेहरे, जिन पर कोई भाव नहीं।

उसने महसूस किया कि कोई उसके पास आकर खड़ा हो गया है। आखें खोलीं तो पाया कि एक डॉक्टर इंजेक्शन लिये उसके सिरहाने खड़ा है। उसने पूछा, ‘आप क्या करनेवाले हैं? डॉक्टर ने कहा, ‘मैडम, आपको एनेस्थिशिया दिया जायेगा।‘ रमा उठकर बैठ गई और पूछा, ‘उससे क्या होगा?’

डॉक्टर ने कहा, ‘डरने की ज़रूरत नहीं है। उससे आपका कमर से नीचे का हिस्सा निष्क्रीय कर दिया जायेगा। गर्भाशय की सफाई के समय दर्द नहीं होगा।‘ ‘एक मिनट रुकिये। ज़रा डॉक्टर को बुलाईये।‘ इतने में डॉक्टर आ गई़ और बोली, ‘आप लेटी रहिये रमाजी, डॉक्टर को अपना काम करने दीजिये।‘

रमा ने कहा, ‘मैं एनेस्थिशिया नहीं लूंगी। आप अपना काम शुरू कीजिये। मैं महसूस करना चाहती हूं।‘ डॉक्टर अकबका गई है, ‘आप ठीक तो हैं रमाजी? आप जो करवा रही हैं, वह काम करना कोई हंसी खेल नहीं है। बहुत दर्द होता है। आप सह नहीं पायेंगी और आप चीखेंगी, चिल्लायेंगी तो हम अपना काम नहीं कर पायेंगी।‘

‘डॉक्टर, आप चिंता न करें। मैं उफ़ भी नहीं करूंगी। हिलूंगी भी नहीं। पर मुझे इंजेक्श्न मत लगाईये। मैं बेहोश नहीं होना चाहती। आप अपना काम कीजिये। जितनी जल्दी आप यह काम कर देंगी, मेरे पेट में कुछ अन्‍न जायेगा। पानी तक नहीं पिया है।‘

डॉक्टर के चेहरे पर आई झुंझलाहट को रमा साफ देख और महसूस कर सकती है। रमा ने कहा, ‘आप सोचिये डॉक्टर, मैं जिस बच्चे को ख़तम करवा रही हूं, उसकी पीड़ा, उसके दर्द को महसूसने का क्या मुझे हक़ नहीं है? उस बच्चे का तो कोई क़सूर नहीं है, मैं जो करवा रही हूं, उसका दर्द मुझे महसूसना ही होगा।‘

डॉक्टर ने कुछ न कहकर एक बार फिर रमा का ब्लडप्रेशर मापा है। नॉर्मल है। डॉक्टर ने कहा, ‘ग़ज़ब का जीवट है आपका। पर एक बात बता दूं कि एक फॉर्म आपको साइन करना होगा कि यह काम आप अपनी मर्जी से करवा रही हैं। हम अपने सिर कोई आफ़त मोल नहीं लेना चाहते।‘

रमा को नर्स ने एक छपा फॉर्म पकड़ा दिया । रमा ने वह फॉर्म साइन कर दिया और निश्चेष्ट होकर लेट गई । डॉक्टर ने हरे रंग का एप्रन पहन लिया । मुंह पर मास्क लगा लिया । नर्सें ऑपरेशन के औजार हाथ में लेकर खड़ी हो गईं ।

रमा ने टेबल के ऊपरवाले शीशे से देखा कि डॉक्टेर ने एक सिरिंज ले ली है जिसके पॉइंट पर धारदार लंबा सा औजार लगा है। रमा ने भय के मारे आंखें बंद कर लीं। डॉक्टर ने उस सिरिंज को योनि से अंदर प्रविष्टं कर दिया और मशीन ऑन कर दी।

गर्भाशय के अन्दर सुईयां सी चुभने लगीं। रमा साफ सुन पा रही थी कि गर्भाशय की दीवारें मानो खुरची जा रही थीं। रह-रहकर सुई सी चुभती और जैसे पपड़ी सी उधड़ने लगती। खूब दर्द हो रहा था। रमा दांत भींचकर लेटी थी। लग रहा था कि कलेजा निकलकर मुंह को आ जायेगा।

उसे लग रहा था मानो अंदर बच्चा सिसक रहा है। औजार की चुभन के साथ वे सिसिकयां बढ़ती जा रही थीं। रमा को लग रहा थामानो उसके दिमाग़ की नसें फट जायेंगी। वह ख़ुद को तसल्ली सी देती और बुड़बुड़ा उठती, ‘बच्चे, तुम निर्जीव हो, अभी तुम्हारी सांसें चलना शुरू नहीं हुई हैं। मुझे कमज़ोर मत करो।‘

डॉक्टर के अभ्यस्त हाथ अपना काम कर रहे थे। रमा को अनुभव हो रहा था कि उसके शरीर के बननेवाले हिस्से को उसने ज़बर्दस्ती खत्म करके अच्छा नहीं किया। वह अजन्मा तड़पा होगा। उसे अजीब सी गिल्ट होने लगी। उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े। वह टेबल के शीशे से साफ देख पा रही थी।

डॉक्टर एक ट्रे में खून से सने पैड्स रखती जा रही थी। खून से सने हुए डॉक्टर के दस्ताने देखकर रमा को मतली सी होने लगी। यह क्या कर दिया उसने। अपने बच्चे को ही मरवा दिया उसने। डॉक्टर तो मना कर रही थीं। उसकी ही ज़िद थी। वह अचानक अपराध भावना से भर गई।

उसके पेट में टीसता हुआ दर्द उठता और वह तड़पकर रह जाती। अपने पूरे होशो-हवास में उसने यह काम करवाया था। करीब बीस मिनट बाद डॉक्टर ने अपना मास्क उतारा और रमा से पूछा, ‘आपको डर नहीं लगा?’ रमा ने कहा, ‘डर तो बहुत लगा पर क्या करती? निर्णय तो मेरा अपना था। किसको दोष देती?

‘रमा, मैं तो मन ही मन डर रही थी कि यदि आप हिलीं तो मेरा हाथ हिलेगा और अंदर सिरिंज गलत जगह न घूम जाये। लेने के देने पड़ जाते। यह तो अच्छा था कि आपका गर्भ मात्र छ: हफ्तों का था, इसलिये आराम से साफ हो गया। तुमने सहयोग किया इसलिये ठीक से हो गया। ब्ल्डप्रेशर भी नॉर्मल था।‘ ‘

रमा ने डॉक्टर का हाथ पकड़कर कहा, ‘डॉक्टर, एकाध साल मैं फिर से गर्भ घारण कर सकूंगी न?’ डॉक्ट़र ने अपने हाथ साफ करते हुए कहा, ‘होपफुली। मैंने तो पहले ही इस आशंका से अवगत करा दिया था।‘ यह कहकर उसने रमा का हाथ हौले से दबा दिया और साथ ही कहा, ‘सब ठीक हो जायेगा। चिंता न करें।‘

रमा धीरे-धीरे ऑपरेशन टेबल से उठी और खून से सने पेड्स को देखकर बोली, ‘मेरे अनाम फरिश्ते-! मुझे माफ कर देना। तेरे भले के लिये ही तुझे इस ज़मीन पर नहीं आने दिया। हम तुझे कमियों में नहीं पालना चाहते थे। तुझे जीवन की वे सभी खुशियां देना चाहते थे जिनका तू हक़दार है पर अभी नहीं दे सकते थे।

…तू ही बता मेरे लाल, मुझे क्या हक़ था कि तुझे जन्म कर तुझे घुटते देखती। ना, मैं यह जघन्य पाप नहीं कर सकती थी। इसलिये तुझे रोक दिया।‘ डॉक्टेर ने नर्स को इशारा किया। नर्स उसे बाहर ले गई और एक बेड पर लिटा दिया। उसे थोड़ा पानी दिया गया। अंदर ही अंदर खूब दर्द हो रहा था। उसने पानी पीकर आंखें बंद कर लीं।

उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। शाम के छ: बजे उसकी नींद खुली। घंटी बजाई। नर्स आई। रमा ने पूछा, ‘चाय मिल सकेगी सिस्टर और साथ ही कुछ खाने के लिये।‘ सिस्टर ने अपनी व्यावसायिक मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा, ‘हां, डॉक्टर ने इडली और चाय देने को बोला है।‘

कुछ ही देर में नर्स नाश्ता ले आई। रमा ने खाया और उसे अपने अन्दर ताक़त सी महसूस हुई। इतने में डॉक्टर आई और रमा का कंधा थपथपाकर बोली, ‘ब्रेव लेडी। सब काम ठीक से हो गया। पर यह काम बार-बार मत करवाना। गर्भाशय क़मज़ोर पड़ जाता है और फिर प्रेगनेंट होने के चांस बहुत कम हो जाते हैं।‘

रमा ने डॉक्टर से कहा, ‘नहीं अब बिल्कुहल दुबारा ऐसा नहीं होगा। आपको क्या लगता है कि मुझे अच्छा लगा यह सब करके? हर बार चुभती सुई के साथ खून के आंसू रोई हूं डॉक्टर। पर सच कहती हूं कि अभीके हालात मुझे इस अजन्मी जान को जनमने की इजाज़त नहीं दे रहे थे1’

इतने में जय अन्दर आ गये और उन्होंने रमा को गले से लगा लिया। रमा एक बार फिर फूट-फूटकर रो पड़ी। भरनेवाली गोद को खाली करवाकर खुद को लुटा सा महसूस कर रही थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आज का विचार

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

आज का शब्द

मोहर Continuous hard work is the cachet of success in the life. निरंतर परिश्रम ही जीवन में सफलता की मोहर है।

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.