कार कछुआ चाल से सड़क पर चल रही है। जहाँ तक नज़र पहुँच रही है, कारें ही कारें दिखाई दे रही हैं। ट्रैफ़िक रुका हुआ है, आगे कोई दुर्घटना हुई है। सड़कें भी क्या करें कई दिनों से लगातार रूई के फाहों जैसी बर्फ़ गिर रही है। आज ही बर्फ़ गिरनी बंद हुई तो लोग घरों से निकले हैं। नव वर्ष का आरम्भ हुआ है। हर वर्ष के शुरू का महीना इस देश के बहुत से हिस्सों में बर्फ़ीला महीना होता है। हाईवे 270 सेंट लुईस शहर का हाईवे है, जिस पर यह दृश्य दिखाई दे रहा है। सेंट लुईस, अमेरिका के मिड वेस्ट में आता है, जहाँ इस मौसम में अक्सर बर्फ़ीले तूफ़ान आते हैं। मिड वेस्ट वासी तो ऐसे तूफ़ानों को झेलने के आदी हो चुके हैं। प्रदेश की सरकार भी ऐसे तूफ़ानों के लिए तैयार रहती है और तूफ़ान आने से पहले सड़कों पर नमक छिड़क देती है और तूफ़ान आने के बाद सड़कें एकदम साफ़ कर देती है। बावजूद सावधानी के कुछ बर्फ़ कहीं न कहीं सड़क के किसी हिस्से से चिपक ही जाती है, उस पर कारें फिसलने लगती हैं तथा दुर्घटना हो जाती है।

बर्फ़ीले मौसम में ट्रैफ़िक की समस्या तो अक्सर पैदा हो जाती है, हालाँकि चार सड़कें आने वालों की और चार सड़कें जाने वालों की हैं। इसके बावजूद कार से कार टकरा रही है। अगर कोई दुर्घटना हो जाए तो कहीं भी समय पर पहुँचना मुश्किल हो जाता है। ऐसे ट्रैफ़िक से जूझना उसके और उसके पति की दिनचर्या में शामिल है। मौसम कोई भी हो, उन्हें तो काम पर जाना ही होता है। एयरपोर्ट और उनके काम के लिए यही हाईवे पड़ता है।

उसे चिंता मेहमानों की है जो उसकी कार में बैठे हैं और उन्हें एयरपोर्ट पहुँचाना है। अगर वे समय पर नहीं पहुँचे तो उनकी अंतर्राष्ट्रीय फ़्लाइट मिस हो जाएगी। मेहमान मुंबई के हैं। सेंट लुईस से न्यूयार्क जॉन ऍफ़ कैनेडी एयरपोर्ट जाएँगे और वहाँ से मुंबई की फ़्लाइट पकड़ेंगे। एक फ़्लाइट छूट गई तो अगली फ़्लाइट अपने निर्धारित समय पर चली जाएगी, इनके लिए रुकेगी नहीं। सभी तनाव में हैं पर उत्साहित भी हैं! खराब मौसम के बावजूद फ़्लाइट कैंसिल नहीं हुई।

उसके पति हार्दिक कार चला रहे हैं और वह उनके साथ पैसेंजर सीट पर बैठी है। कारों के हजूम को देखकर उसका दिल घबरा रहा है , वह बेचैन हो रही है। ऐसा पहले उसके साथ कभी नहीं हुआ; हालाँकि कई बार वह ट्रैफ़िक में फँस चुकी है । उसे मेहमानों को समय पर एयरपोर्ट पहुँचाना है। यह ज़िम्मेदारी उसकी है। उसने स्वयं यह दायित्व लिया है। वह पीछे मुड़कर सबको देखती है। सब सोच में डूबे हैं। वह ख़ुद भी सोच रही है, कहीं फ़्लाइट न छूट जाए। वह जानती है अगर फ़्लाइट छूट गई तो इस मौसम में पता नहीं किस दिन की फ़्लाइट मिले और फिर अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को तीन घंटे पहले बुलाया जाता है। परिस्थितियों को नज़रअंदाज़ कर वह उन्हें आश्वासन देती है, ‘घबराइए नहीं अभी ट्रैफ़िक ठीक हो जाएगा और हम समय पर पहुँच जाएँगे।’

‘बेलमिल’ जिस फार्मास्यूटिकल कंपनी में वह काम करती है, उसी का एक ऑफ़िस मुंबई में है।’ वह ‘बेलमिल’ कंपनी में प्रोजेक्ट लीडर है और मुंबई ऑफ़िस की टीम के साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट पूरा कर रही है। वही टीम उसकी कार में बैठी है। पिछले चार दिनों से वे सब उसके साथ उसके घर पर थे और घर में बंद बोर हो गए थे। जब से वे आए थे, बर्फ़ की बरसात ने क़हर ढाया हुआ था । एक तरह से बर्फ़ का तूफ़ान आया हुआ था।

वह अपनी टीम की निराशा को समझ रही है । भारत से जब भी कोई विदेश आता है तो घूमना चाहता है और काम के बाद उसकी टीम तो पिछले चार दिनों से घर में बंद थी, हालाँकि उन्हें घुमाने की ज़िम्मेदारी उसने ली थी । वह भी क्या करती मौसम दग़ा दे गया ! अब वे सब उकता चुके हैं और जल्द ही घर लौटना चाहते हैं।
‘दीपाली लगता नहीं कि आज हम समय पर एयरपोर्ट पहुँच पाएँगे।’ हार्दिक ने चिंतित होते हुए कहा।
‘आप मौसम के समाचार लगाइए, शायद कुछ पता चल जाए।’ दीपाली के चेहरे पर भी चिंता की रेखाएँ उभर आईं।
‘नैविगेटर( वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली) कितने समय में पहुँचने का बता रहा है।’ वह चिंतित-सी पूछती है।
‘एक घंटे की देरी बता रहा है।’ हार्दिक ने धीरे से कहा।
‘क्या?’ कार में बैठे सभी इकट्ठे बोले।
हार्दिक ने समाचार लगा दिए। सब बड़े ग़ौर से समाचार सुनने लगे । समाचार वाचक ने जब हाईवे टू सेवेंटी पर डेढ़ घंटे की देरी की सूचना दी तो कार में बैठी टीम रुआँसी-सी हो गई। मनीष उस टीम का हेड है, बोला-‘मैडम, अब क्या होगा? हम तो खुश थे कि फ़्लाइट कैंसिल नहीं हुई। अब कैसे पहुँचेंगे! अब तो पक्का फ़्लाइट छूटेगी।’
मनीष की बात सुनकर हार्दिक और दीपाली दोनों ही उदास हो गए ।
तभी अचानक हार्दिक बोला ‘दीपाली अभी जो एग्ज़िट आ रहा है, कार उस तरफ मोड़ ली जाए। वहाँ से निकलने वाली तीन सड़कों में से बाईं ओर की सड़क इस हाईवे के साथ-साथ चलती है और उस पर ट्रैफ़िक भी नहीं होता। इससे हम जल्दी एयरपोर्ट पहुँच सकते हैं।’
‘आप तो इस सड़क के बारे में जानते हैं फिर इसका ज़िक्र क्यों कर रहे हैं?’
‘दीपाली हमारे पास और कोई च्वॉइस नहीं है ! क्या तुम नहीं चाहती कि तुम्हारी टीम समय पर एयरपोर्ट पहुँच जाएँ!’
‘हार्दिक बचेंगे तो पहुँचेंगे।’ दीपाली ने धीरे से कहा।
‘कम ऑन दीपाली! कैसी बातें करती हो! सड़क जंगल से ज़रूर गुज़रती है, पर जिस तरह लोग बातें करते हैं वैसा कुछ भी नहीं; अगर ऐसा होता तो, मेरी जान! यह अमेरिका है, सड़क कब की बंद कर दी गई होती ।’ हार्दिक ने भी धीमे से कहा ताकि मेहमान उनकी बातचीत को सुन न सकें।

दीपाली ख़ामोश हो गई । हार्दिक अपनी कार को बाकी कारों से रास्ता बनाता हुआ हाईवे से बाहर जाने वाली सड़क पर ले गया और एग्ज़िट लेने वाली अन्य कारों की लाइन में अपनी कार उनके पीछे लगा कर बाहर जाने का इंतज़ार करने लगा।
‘मैडम जाने से पहले मैं आपको कुछ बताना चाहता हूँ।’ मनीष बोला- ’मैं जैनेट गोल्डस्मिथ नाम की लड़की को ढूँढ़ना चाहता था। किसी का पत्र उस तक पहुँचाना था। पर मौसम इतना आड़े आता रहा कि मैं आपको यह बात बता भी नहीं पाया। वह पत्र आपको दे कर जा रहा हूँ।’ मनीष बैग से पत्र निकालने लगा।

जैनेट गोल्डस्मिथ का नाम सुनते ही हार्दिक और दीपाली ने एक दूसरे को देखा। उन दोनों की नज़रों में क्या था….. मनीष समझ नहीं पाया और वह अपनी ही धुन में बोलता गया….
‘मैडम दो साल पहले विजय मराठा सेंट लुईस यूनिवर्सिटी में पीऍच.डी करने आया था और जैनेट उसकी दोस्त है। विजय का ही मैसेज उस तक पहुँचाना है।’
‘विजय को तुम कैसे जानते हो?’
‘मैं और विजय बचपन के दोस्त हैं। हम दोनों मुंबई के धारावी से हैं; जिसे स्लम एरिया कहा जाता है। मिसेज़ शाह, हम दोनों वहीं जन्मे और पले। बचपन से ही दोनों की दोस्ती हो गई। कहते हैं न कुछ बातें कॉमन होती हैं जो लोगों को एक दूसरे के क़रीब ले आती हैं। हम दोनों को पढ़ने का बचपन से ही बहुत शौक़ था। बस यह पढ़ने- लिखने का शौक़ ही हम दोनों को क़रीब ले आया। मैडम, धारावी स्लम ज़रूर है पर वहाँ के भी बहुत से युवक एजुकेटिड हैं।’
‘मनीष मैं जानती हूँ।’ दीपाली ने प्यार से कहा।
‘विजय को एम.एससी के बाद सेंट लुईस यूनिवर्सिटी में पीऍच.डी. करने के लिए स्कॉलरशिप मिल गई और वह यहाँ आ गया और मैं एम.एससी के बाद ‘बेलमिल’ फार्मास्यूटिकल कंपनी में नौकरी करने लगा।’ इतना कह कर मनीष चुप हो गया।
हार्दिक और दीपाली ने फिर एक दूसरे की ओर देखा…..भेदभरी नज़रों से… जिसे कोई समझ नहीं पाया।
दीपाली कार में बैठे-बैठे कहीं और पहुँच गई…..
‘दीपाली यह है विजय मराठा, मेरा नया पीऍच.डी. स्टूडेंट। मुंबई से आया है।’ हार्दिक ने दीपाली से विजय को मिलवाया था और ‘विजय यह है मेरी पत्नी दीपाली! यह भी मुंबई से है।’ लंबे, साँवले, कसे बदन वाले विजय मराठा ने झुक कर उसे नमस्कार किया। उसके घने घुँघराले काले बालों और चमकते साँवले रंग में बहुत आकर्षण था। वह उसे देखती रह गई थी, मुस्कराहट बिखेर कर उसने अपने देखने को छिपा लिया था।
विजय के घर में प्रवेश करते ही बाहर एक दम काली घटाएँ घिर आईं, जबकि मौसम विभाग ने ऐसी कोई सूचना नहीं दी थी। गहरे स्लेटी, थोड़े से सफ़ेद बादल आकाश में घिरने लगे थे । गहरे स्लेटी और सफ़ेद बादल पहले एक समूह में इकट्ठे हो कर हल्की-हल्की और फिर तेज़ गर्जन कर शोर मचाने लगे।

दीपाली को अजीब लगा था। प्रकृति का यह रूप वह पहली बार देख रही थी। विशेषकर सेंट लुईस शहर में, जहाँ प्रकृति सफ़ेद चादरें बिछाती है पर कभी घटाटोप अँधेरा नहीं करतीं। प्रकृति हमेशा सेंट लुईस शहर को चकमक सफ़ेद और रोशन रखती है। पर उस दिन प्रकृति किस पर क्रोधित हो गई थी।

‘हार्दिक, नेचर को यह क्या हो गया है! किस पर इतना ग़ुस्सा हो रही है?’
‘मैडम, यह क्रोधित नहीं मुझे देख कर रंग बदल रही है। सोच रही है, इसके रंग में रंग कर देखूँ!’ कह कर वह ज़ोर से खिलखिलाकर हँस पड़ा था।
‘काफ़ी सकारात्मक सोच के लगते हो।’ दीपाली ने मुस्कराते हुए कहा।
‘जी मैडम, अगर पॉज़िटिव सोच का न होता तो धारावी जैसी जगह से निकल कर इस धरती पर कैसे आता!’
‘विजय मैंने तुझे समझाया था कि यहाँ सर और मैडम कहने का प्रचलन नहीं। निस्संकोच तुम हमारा पहला नाम ले सकते हो या डॉ. शाह या मिसेज़ शाह कह सकते हो ’ हार्दिक ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी उसने उन दोनों का हाथ पकड़ा और मुख्य द्वार को खोलकर बाहर बग़ीचे में ले गया। तब तक बादलों की गरज और बिजली की कड़क के साथ ही रिम झिम रिम झिम बरसात शुरू हो गई थी और वह ख़ुशी से आसमान की ओर देखता हुआ बोला-‘इस देश में आने पर मेरा स्वागत करने के लिए धन्यवाद।’
उसके साथ-साथ वे दोनों भी वर्षा में भीग गए।
‘विजय अंदर चलो, तुम अभी नए-नए इस देश में आए हो। तुम्हें मालूम नहीं कि इस बरसात में भीगना बीमारी को दावत देना है।’ हार्दिक ने बड़े नर्म लहजे में कहा और वे तीनों मुख्य द्वार के सामने आ खड़े हुए।
‘क्षमा चाहता हूँ मैडम भूल गया, कि यहाँ के घर लकड़ी के बने होते हैं और अब भीगे बदन अंदर कैसे जाएँगे! आई एम सो सॉरी!’ विजय ने बड़े अंदाज़ से कान पकड़ते हुए कहा।
दीपाली ने अपने दोनों हाथों से अपने बदन के गीले कपड़ों को ऊपर से नीचे तक निचोड़ा। कपड़े बदन पर और भी चिपक गए। पर टांगों से कुछ पानी निकल गया। तभी उसने दरवाज़े पर रखे डोर मैट पर पाँव पौंछे और उन दोनों को वहीं रुकने के लिए इशारा किया। भाग कर अंदर गई और कुछ ही क्षणों बाद वह दो तौलिए उनके लिए ले लाई। उन दोनों ने कमीज़ें और पतलूनें उतार कर तौलिये बाँध लिए और स्नान करने भीतर चले गए।
दीपाली ने पहले लकड़ी के फ़र्श पर फैला पानी एक तौलिये से सोखा और फिर पोंछा लगा कर नहाने और कपड़े बदलने चली गई।

ऐसे गीले-सीले मौसम में पकौड़ों का आनंद आ जाएगा, बस सोचकर ही जल्दी से दीपाली ने कढ़ाई चढ़ा दी और पकौड़े तलनें लगी। हार्दिक और विजय फ़ैमिली रूम में आ गए । पकौड़ों की ख़ुशबू सूँघते ही विजय गाने लगा-हाए हाए ये पकोड़े… दीपाली और हार्दिक हँसने लगे। विजय का जीवंत स्वभाव हार्दिक को बहुत पसंद आया।
अगर मैं आपको भैया- भाभी कहूँ तो आपको एतराज़ तो नहीं होगा। विजय ने बड़े सम्मान से पूछा।

‘यूनिवर्सिटी में डॉक्टर शाह। घर में कुछ भी कह सकते हो।’ हार्दिक ने मुस्कुराते हुए कहा। चाय पीने के बाद वह उठ खड़ा हुआ।
‘अच्छा भैया अब मैं चलता हूँ फिर किसी दिन आऊँगा।’ विजय ने मुस्कुराते हुए उनसे विदा ली थी।
‘रुक जाते, डिनर हमारे साथ ले लेते।’ हार्दिक ने बहुत स्नेह से कहा।
‘नहीं भैया फिर किसी दिन। अच्छा भाभी चलता हूँ।’ कह कर विजय दोनों को नमस्ते करके दरवाज़े की ओर बढ़ गया। हार्दिक उसे बस स्टॉप तक छोड़ने उसके साथ चला गया।
विजय को छोड़कर हार्दिक जब घर आया तो दीपाली ने हँसते हुए कहा-‘ देखना बहुत जल्दी किसी अमेरिकन लड़की ने इसकी ज़िंदादिली देखकर इससे दोस्ती कर लेनी है।’ इसे पहले से सचेत कर दीजिएगा।

हार्दिक गंभीर हो गया ।’ऑलरेडी किसी से दोस्ती हो चुकी है।’
‘क्या?’ दीपाली चौंक गई-‘कौन है वह लड़की!’
‘सेंट लुईस के मेयर रॉबर्ट गोल्डस्मिथ की बेटी जैनेट गोल्डस्मिथ।’
‘अभी तो विजय आया है। दोस्ती कब हो गई? कहाँ मिले! इसे पता है मेयर नस्लवादी है। वह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी बेटी एक भारतीय से दोस्ती रखे।’ दीपाली भावनाओं में बहती बोलती गई- ‘प्लीज़ विजय को समझाएँ, मेयर कंज़र्वेटिव, सनकी और रूढ़िवादी पॉलिटिशियन है।’
हार्दिक ने कोई जवाब नहीं दिया। वह गंभीर और चुप था।
‘क्या विजय ने आपको बताया कि वह जैनेट से कहाँ मिला, कैसे मिला ? मुझे हैरानी हो रही है, उसे आए अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ और एक अमेरिकन लड़की से दोस्ती कर ली। इसका मतलब लड़कियों के मामले में बहुत तेज़ है। दिखने में तो ऐसा नहीं लगता। मुझे तो बहुत सरल-सा लड़का लगा।’ दीपाली बिना रुके लगातार बोल रही थी ।
‘दीपाली शांत हो जाओ। विजय और जैनेट की दोस्ती पहले की है। दरअसल जैनेट ने ही विजय को यहाँ पीऍच.डी करने के लिए एन्करेज किया है।’
‘मैं कुछ समझी नहीं।’
‘जैनेट यूनिवर्सटी के एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत मुंबई विश्वविद्यालय में दो साल के लिए गई थी। वहीं जैनेट की दोस्ती विजय से हो गई। विजय को स्कॉलशिप अपनी क़ाबलियत पर मिली है। पर अब वह जैनेट के साथ उसके टाउन हाउस में रह रहा है और वे दोनों जल्दी ही मेयर को बताने वाले हैं ।’
‘क्या बताने वाले हैं कि वे दोनों साथ रहते हैं। हार्दिक, वे क्या सोचते हैं कि मेयर को पता नहीं।’ दीपाली ने चिढ़ कर कहा था।
‘अभी तो मेयर को यही कहा गया है कि विजय ने भारत में जैनेट की बहुत मदद की थी , इसलिए जैनेट उसकी मदद कर रही है। पर वे जल्दी ही उसे यह बताना चाहते हैं कि वे दोनों प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। अब तुम ही बताओ मैं उसे क्या सचेत करता।’ हार्दिक की आवाज़ में निराशा उभर आई थी।
‘ओह गॉड ! बेटी तो अपने बाप को जानती है, फिर भी वह यह क़दम उठा रही है!’ ‘दीपाली, तुम फ़ालतू में भावुक हो रही हो…’ हार्दिक ने दीपाली की ओर देखते हुए कहा-‘जैनेट को तो अपने डैड बहुत ही प्रगतिशील लगते हैं। उसे एक्सचेंज प्रोग्राम में भारत भेजा दो साल के लिए। वे इसी भ्रम में है कि उसके डैड इस शादी को मान जाएँगे।’
‘पॉलिटिशियन हैं, हो सकता है अपनी इमेज बचाने के लिए मान जाएँ! हम फ़िज़ूल में परेशान हो रहे हैं।’ दीपाली ने स्वयं को संयत करते हुए कहा।
‘अश्वेतों और दूसरे इमिग्रेंट्स के बारे में उनकी जो राय हैं, उसको देखकर तो नहीं लगता कि मेयर इस शादी के लिए राज़ी हो जाएँगे। ख़ैर समय ही इसका उत्तर देगा । तुमने सही कहा, हम क्यों परेशान हो रहे हैं?’ हार्दिक हल्का सा मुस्कुरा दिया था।
हार्दिक कार को हाईवे से बाहर जाने वाली सड़क से मोड़ कर बाईं ओर वाली सड़क पर ले गया। इस एग्ज़िट पर तीन सड़कें हैं। सीधे जाने वाली और दाईं ओर जाने वाली सड़क, शहर के दक्षिण और पश्चिम की तरफ जाती हैं और बाईं ओर जाने वाली सड़क पूर्व की ओर जाती हुई एयरपोर्ट की मुख्य सड़क से जाकर मिल जाती है ।
बाईं ओर वाली सड़क शहर के बाहरी हिस्से की तरफ़ मुड़ गई है। दो एक मील ड्राईव करने के बाद हार्दिक ने कार की गति तेज़ कर दी। सड़क पर ट्रैफ़िक बहुत कम हो गया है। सड़क शहर को छोड़कर जंगल की तरफ जा रही है। सरकार ने पन्द्रह मील के इस जंगल को जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित रखा है । सड़क जंगल के बीचों-बीच से निकल कर एयरपोर्ट पर समाप्त हो जाती है। काफी घुमावदार भी है। इस सड़क पर बहुत कम आवा-जाही है। पता नहीं चलता कब कोई जानवर सामने आ जाए या कार से टकरा जाए। आपात्कालीन स्थिति में ही लोग इस सड़क पर से निकलते हैं। दिन में तो लोग फिर भी कई बार जोख़िम उठा लेते हैं पर रात को यहाँ से निकलना सच में खतरे से ख़ाली नहीं। भयानक दुर्घटनाएँ हुई हैं। उन दुर्घटनाओं के साथ भारतीय समुदाय में कई कहानियों ने जन्म लिया हुआ है और अब वे अफ़साने बन चुकी हैं।
कार की गति बढ़ने के साथ-साथ हार्दिक के दिल की धड़कन भी तेज़ हो रही है। बस वह सुरक्षित इस सड़क को पार कर एयरपोर्ट पहुँच जाना चाहता है। उसे यह देख कर तसल्ली हुई कि उससे थोड़ी दूरी पर कुछ और कारें भी जा रही हैं, शायद उन्होंने भी एयरपोर्ट पर जल्दी पहुँचने के लिए यह सड़क चुनी है। उसने अपनी भावनाओं को नियंत्रण में करने के लिए दीपाली की ओर देखा। उसे वह किसी और ही दुनिया में खोई हुई लगी।
उसने अपना ध्यान बाँटने और कार में छायी गहरी चुप्पी को तोड़ते हुए मनीष से पूछा-
‘क्या मेरे बारे में विजय ने तुम्हें कभी नहीं बताया ?’ हार्दिक के इस प्रश्न पर दीपाली वर्तमान में लौट आई।
‘सर, आप विजय को जानते हैं?’ मनीष ने जिज्ञासा से पूछा।
‘मैं विजय का गाइड था, जब वह पीऍच.डी करने यहाँ आया। उस समय मैं सेंट लुईस यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर था।’ हार्दिक ने शान्त आवाज़ में कहा।
‘सर, विजय पीऍच.डी बीच में छोड़कर क्यों लौट गया? क्या वह यहाँ ड्रग का धंधा करता था? क्या सच में उसका कोई गैंग था?’ मनीष की आवाज़ दर्द से भीग गई।
‘ड्रग और विजय! कैसी बातें करते हो मनीष! तुम तो उसे बचपन से जानते हो, तुम्हीं बताओ, क्या वह ऐसा कर सकता है?’ हार्दिक की आवाज़ पहले की भाँति शान्त थी।
‘विजय का कसूर बस इतना है कि उसने एक दक़ियानूसी, रंगभेदी, पॉलिटिशियन की बेटी से प्यार किया।’ दीपाली रोष से बोली, ‘जैनेट के डैडी ने उसे चेतावनी दी थी, कि अगर वह विजय का साथ नहीं छोड़ेगी तो इसके घातक परिणाम होंगे और उनकी ज़िम्मेदार वह होगी।’ कह कर दीपाली चुप हो गई।
‘फिर क्या हुआ?’ कार में बैठे मनीष, अशोक और पॉल के मुँह से एक साथ निकला।
हार्दिक की आँखें सड़क पर आगे जा रही कारों पर टिकी हैं और कान कार के अंदर की बातचीत सुन रहे हैं।
‘मनीष तुम तो जैनेट को भी अच्छी तरह से जानते होंगे! दोनों की दोस्ती मुंबई यूनिवर्सिटी में ही हुई थी, क्या यह सही है। ‘ दीपाली ने पूछा।
‘जी मिसेज़ शाह। विजय जैनेट को बहुत चाहने लगा था, उसी की ख़ातिर इस देश में आया। वरना वह तो विदेश जाना ही नहीं चाहता था।’ मनीष की आवाज़ में दर्द अभी भी था।
इतना कह कर वह चुप हो गया, शायद अपने ही भीतर, अपनी सोचों में गुम हो गया। मनीष की बात सुन दीपाली उन स्मृतियों में खो गई, जब विजय नया-नया सेंट लुईस आया था, जैनेट बहुत भावुक हो गई थी। इश्क से लबालब अभिसारिका नायिका-सी वह हरक़तें करने लगी थी। हार्दिक और दीपाली ने मुहब्बत की बहार की पद्चाप पहचान ली थी। विजय की बाँहों में बाँहें डाले सेंट लुईस के रमणीक स्थलों पर वह अपने प्यार का इज़हार करने लगी थी। विजय की मुहब्बत में जैनेट इस क़द्र खो गई, यह भी भूल गई कि वह सेंट लुईस के मेयर रॉबर्ट गोल्डस्मिथ की बेटी जैनेट गोल्डस्मिथ है। हालाँकि इस देश का समाज और परिवेश हर इंसान को अपना जीवन अपनी मर्ज़ी से जीने का पूरा हक़ देता है। जैनेट को भी यह हक़ था और वह उसका भरपूर आनंद ले रही थी। पर वह इस बात से लापरवाह हो गई कि एक कट्टरपंथी और रूढ़िवादी विचारों वाले राजनीतिज्ञ की वह बेटी है, जिसके कई प्रतिद्वंद्वियों की नज़र उस पर है।

उस दिन को दीपाली कैसे भूल सकती है, जिस दिन मरमेक केव्ज़, जो सेंट लुईस के दर्शनीय स्थलों में से एक है, उसे देखने और वहाँ समय बिताने के बाद लौटते समय जैनेट और विजय उनके घर रुके थे। वे दोनों बहुत उत्साहित और खुश थे। उनके रोम -रोम से प्रेम छलक रहा था, खासकर उनकी आँखें उनकी अंतरंगता की चुगली काट रही थीं । साँवला-सिलोना विजय और गोरी-चिट्टी जैनेट बिना बात के भी मुस्कराते , बेवजह खिलखिला कर हँस पड़ते । नदी समंदर से मिलने को बेताब थी, बाँध कभी भी टूट सकता था। हार्दिक और दीपाली उन दोनों को देख का डर गए थे। अनजान निगाहें भी उनकी प्रीत को पहचान सकती थीं, फिर मेयर रॉबर्ट गोल्डस्मिथ और उसके प्रतिद्वंद्वियों की निगाहों से वे कैसे बचे हुए थे।

दीपाली ने उस दिन पाव-भाजी बनाई थी। चटकारे ले लेकर खाने के बाद जैनेट ने उन दोनों को कुछ तस्वीरें दिखाईं। सेंट लुईस के प्रवेश द्वार ‘आर्च’ के नीचे खड़े, किसी चित्र में वे आलिंगनबद्ध थे, किसी में वह विजय को चूम रही थी। ‘आर्च’ के नीचे खड़े होकर युवा जोड़े अक्सर इसी तरह की तस्वीरें खिंचवाते हैं , या स्वयं खींचते हैं, पर हार्दिक उन्हें देखकर ख़ामोश हो गए थे।

विजय ने हार्दिक की ख़ामोशी को भांप लिया -‘भैया, क्या बात है? आप कुछ कहना चाहते हैं।’
‘जैनेट, मुझे लगता है कि तुम्हें अब अपने डैड को विजय और अपने बारे में बता देना चाहिए, इससे पहले कि उन्हें कोई और बताए! किसी और के बताने से अनर्थ हो सकता है।’ हार्दिक ने बड़ी गंभीरता से कहा था।
हार्दिक की बात सुन दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्करा पड़े थे।
‘कैसा अनर्थ! आप क्यों डरते है भैया ? मैं रॉबर्ट गोल्डस्मिथ की एकलौती बेटी हूँ, उन्हें मेरा फैसला मानना ही पड़ेगा। उन्होंने भी तो अपनी मर्ज़ी से शादी की थी, तो मैं क्यों नहीं कर सकती ?’ विजय की देखा-देखी वह भी हार्दिक को भैया कहने लगी थी।
‘जैनेट, तुम्हारे डैड एक कॉन्ट्रोवर्शियल पॉलिटिशियन हैं, ऑपोज़िशन तुम्हें और विजय को लेकर कोई इशू न बना दें, इससे अनर्थ हो सकता है।’ हार्दिक की चिंता उसके चेहरे पर आ गई थी।
‘डोंट वरी भैया, माय डैड कैन हैंडल एनी थिंग।’ यह सुन कर दीपाली और हार्दिक दोनों को चुप होना पड़ा।
यह उनकी अंतिम मुलाकात थी। उसके बाद तो परिस्थितियाँ तेज़ी से बदलीं। किसी फ़ोटो जर्नलिस्ट ने जैनेट के डैड को उनके चित्र दिखा दिए। घर में एक तूफ़ान खड़ा हो गया। पूरा परिवार एक तरफ और जैनेट एक तरफ हो गई। रोज़ की गतिविधियाँ विजय हार्दिक को बताता, हार्दिक दीपाली को। जैनेट के डैड ने विजय को बुला कर बहुत डराया-धमकाया था। हार्दिक बहुत घबरा गया था, विजय को सचेत किया था, पर प्रेम के रंग में रंगे प्रेमी पर दुनिया-दारी का रंग कहाँ चढ़ पाता है! दोनों सब बातों से बेपरवाह अपने में खोए रहे। हीर और राँझे ने भी कहाँ सुनी थी किसी की चेतावनी….
सड़क से उड़ कर कार की विंड शील्ड पर एक छोटा सा पत्थर टकराया। विंड शील्ड को कुछ नहीं हुआ पर उसकी आवाज़ से सब अपनी-अपनी सोच के खोल से बाहर आ गए ।
‘मिसेज़ शाह, मैं सोच रहा था, विजय से कहाँ ग़लती हुई ।’ उदास आवाज़ में मनीष ने सीट पर पहलू बदलते हुए कहा।
‘मनीष ,जैनेट अपने पिता की तरह ज़िद्दी थी और विजय भी हमारे संकेत नहीं समझा। सच कहूँ, वे दोनों एक दूसरे से बेइंतिहा प्यार करते थे। हम भी चाहने लगे थे कि उनका प्यार परवान चढ़े। पर एक ग़लती उन्होंने कर दी । मेयर रॉबर्ट गोल्डस्मिथ की धमकियों को नज़रअंदाज़ कर दिया। जैनेट इसी ग़लतफहमी में रही कि उसके पिता उन्हें बस डरा रहे हैं, वह उनकी इकलौती संतान है। उसके डैडी कुछ करेंगे नहीं। वह अपने पिता की मानसिकता को समझ ही नहीं पाई ।’ दीपाली की आवाज़ भी उदास हो गई।
‘जब विजय को वापिस भेजा गया तो जैनेट ने कुछ नहीं किया।’ अब पॉल ने पूछा। टीम में भी आगे जानने की जिज्ञासा पैदा हो गई।
‘जैनेट को मेयर ने ख़बर नहीं होने दी। उसे जब पता चला देर हो चुकी थी।’ दीपाली ने उसी उदासी में कहा।
‘मिसेज़ शाह , हम समझे नहीं, जैनेट और विजय इकट्ठे रहते थे। तो जैनेट को पता कैसे नहीं चला?’ मनीष ने पूछा।
‘इमिग्रेशन ऑफ़िसर ने पुलिस के साथ मिलकर विजय को लैब से पकड़ा। जो फ़ाइल विजय के खिलाफ यूनिवर्सिटी में पेश की गई, वह थी इमिग्रेशन के कागज़ों में ग़लत जानकारी और फैक्ट्स के साथ छेड़छाड़ यानी तथ्यों का आभाव। झूठे प्रमाण पत्र लगाने का जुर्म। इमिग्रेशन के कानूनों का उल्लंघन। धोखे और फ्रॉड का बहुत मज़बूत केस तैयार किया गया था।’ उदासी ने दीपाली की आवाज़ भारी कर दी।
‘हे भगवान्…. विजय जैसा ईमानदार और आदर्शवादी लड़का ऐसा कर ही नहीं सकता।’ मनीष ने बड़े विश्वास के साथ कहा।
‘मनीष, विजय इतना सरल, बुद्धिमान और मिलनसार था कि यूनिवर्सिटी के इमिग्रेशन ऑफ़िस के वकील तक उसे सच्चा मानते थे। पर उसके खिलाफ केस इतना मज़बूत बनाया गया कि कोई कुछ नहीं कर पाया और सबके सामने वे उसे ले गए। उसका फ़ोन छीन लिया, और तीन घंटे के अंदर उसे जहाज़ में बिठा दिया गया।’
‘उसका सामान?’ दूसरे सदस्य अशोक ने पूछा।
‘वह सब इमीग्रेशन वाले बाँध कर लाए थे, तभी तो मुंबई एयरपोर्ट पर उतरते ही वह ड्रग डीलर, ड्रग माफ़िया का मेंबर और गैंगस्टर पता नहीं क्या-क्या बना दिया गया। यहाँ से फ़ोन किया गया था वहाँ के इमिग्रेशन में। गंदी राजनीति जीत गई और सच्चा प्यार हार गया। पॉलिटिशियन किसी भी देश के हों, सब एक जैसे हैं।’ दीपाली की आवाज़ में रुलाई आ गई।
‘मुंबई एयरपोर्ट पर पहुँचते ही विजय के साथ जो हुआ, उसका हमें पता चल गया था । यूनिवर्सिटी का एक प्रोफ़ेसर उसी जहाज़ में अपने परिवार के साथ मुंबई गया था और ज्योंही वह एयरपोर्ट पर उतरा, उसने सब कुछ देखा। यहाँ आकर उसने यूनिवर्सिटी को इन्फॉर्म कर दिया। हम समझ गए थे…..अब वह कभी लौटकर नहीं आ सकता।’ दीपाली की आवाज़ में रुलाई आ गई -‘एक भोला, नादान और अच्छा इंसान घटिया राजनीति, नस्लवाद और रंगभेद की बलि चढ़ गया।’ दीपाली की रुलाई से भरी आवाज़ में अब हताशा उभर आई।
‘मिसेज़ शाह जैनेट को इसका पता कब चला?’
‘मनीष, जैनेट के साथ उसके परिवार ने बहुत बड़ा धोखा किया।’ दीपाली गले में आए भारीपन को गले में ही गटक गई ….
‘विजय की गिरफ़्तारी से एक रात पहले उसकी माँ मरियम आई सी यू में दिल के दर्द को लेकर भर्ती हो गई। विजय को पकड़कर जहाज़ में बैठाने तक वह हस्पताल में थी। जैनेट का फ़ोन बंद करके, जिस जगह वह बैठी थी, वहीं कुशन के पीछे छुपा दिया गया। जैनेट माँ के दुःख में विचलित फ़ोन को भूली रही।’ दीपाली साँस लेने के लिए रुकी। उसने गहरी लम्बी साँस ली और गले में अटके रोने को कम किया। वर्षों से भीतर दबा लावा बाहर आने को बेताब हो रहा है। हार्दिक और दीपाली ने विजय को लेकर कभी किसी से कोई बात नहीं की थी और अब आँखों, नाक और गले से लुढ़क-लुढ़क कर कितना कुछ निकल रहा है। उसने टिशू पेपर से उन्हें रोका।

पता नहीं क्यों हार्दिक भीतर से डरा हुआ है। चेहरा सामान्य नहीं लग रहा। भारतीय समुदाय में फैले अफ़सानों की वजह से, हालाँकि वह उन्हें सच नहीं मानता या जंगल से गुज़रती इस सड़क पर पहली बार ड्राइव करने से। जंगल के भीतर से घूम-घूम कर जा रही सड़क पर कार को सँभालते हुए , वह बड़ी सचेतता से ड्राइव कर रहा है।
दीपाली बताने लगी – ‘हार्दिक जैनेट को फ़ोन करते रहे। उसका फ़ोन बंद था। पर अचानक उसे अपने फ़ोन का ध्यान आया तो उसने उसे ढूँढ़ा और विजय को फ़ोन मिलाया। उसका फ़ोन बंद पाकर उसने हार्दिक को कॉल किया तो हार्दिक ने उसे सब कुछ बता दिया। दो साल में ही उसने हिन्दी अच्छी सिख ली थी। वह हस्पताल में ही चिल्लाने लगी…’माँ की बीमारी के बहाने उसे यहाँ रोकना एक षड्यंत्र है डॉ. शाह।’ वह रो पड़ी। फ़ोन ऑन था, वह अपने डैडी पर चीख उठी थी-‘यू लॉयर, यू चीटर, आई विल मेक शोयर दैट दिस टाइम यू वोन्ट विन द इलैक्शन।’ कह कर वह पार्किंग लॉट की ओर भागी । कार में बैठ कर उसने हार्दिक को कहा कि वह एयरपोर्ट जा रही है और फ़ोन बंद कर दिया।
‘क्या वह समय पर एयरपोर्ट पहुँच नहीं पाई?
‘मनीष मैं उस दिन को कभी भूल नहीं पाती। उस दिन भी मौसम बहुत ख़राब था। हाईवे पर ज़रूर ट्रैफिक रुका हुआ होगा, जो उसने एयरपोर्ट जाने के लिए यही छोटा रास्ता लिया, पर… दीपाली की बात मुँह में ही रह गई । तभी ज़ोर से तड़ाक-फड़ाक और घर्र -घर्र की आवाज़ के साथ कार रुक गई और आगे की कारें भी इसी शोर से रुक गईं…आगे की कारों से चीख-पुकार शुरू हो गई ।

हार्दिक के चेहरे पर पसीना आ गया और वह उद्विग्न होकर बोला – ‘दीपाली, कारों के आगे देखो कैसा धुआँ उठ रहा है….! तभी सब कारें रुक गई हैं। सब घबरा गए…घबराहट ने अशांत कर दिया…पॉल घबराहट में बार-बार एक ही बात कहने लगा-‘ मैडम अब क्या होगा! …मैडम अब क्या होगा! …मनीष से उसे गुस्से से कहा-‘शटअप पॉल…हालात को समझो।’ वह खुद भी बेचैन हो रहा है ।

अकस्मात् बाहर बेहद तेज़ रफ़्तार से हवा चलने लगी…सड़क के आस-पास घास पर फैली सफ़ेद चादरें चिन्दी-चिन्दी होकर हवा में लहराने लग गईं । सड़क के इर्द-गिर्द बर्फ से लदीं, पत्तों वहीन वृक्षों की टहनियाँ हवा के साथ डोलने लगीं। टहनियों पर से छोटे -बड़े आकार में रुई सी बर्फ़ ऊपर-नीचे हो कर हवा में उड़ने लगी। हवा में टहनियों का झूलना एक डरावना मंज़र पैदा कर रहा है। वातावरण में जंगल से जानवरों की तरह-तरह की आवाज़ें गूँजनी शुरू हो गईं। चारों ओर अजीब-सा शोर मच गया। इस शोर ने सभी के बदन में सिहरन पैदा करके डरा दिया। बस चीखें नहीं निकलीं। आगे की कारों से तो खूब चीख-पुकार हो रही है। कार में सभी के दिल की घड़कनें और साँसें बेकाबू हो रही हैं….

धुएँ के अंधड़ ने बर्फ़ के बवंडर का रूप धार लिया। प्रचंड वेग से हवा का एक बबूला ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर घूमने लगा और चारों ओर उड़ती रुई के टुकड़ों सी बर्फ़ उसमें सिमटने लगी। गोल-गोल घूमता बबूला बर्फ़ का गोला दिखने लगा । वह गोला गति में इतना तेज़ घूमने लगा कि आस-पास की सभी चीज़ें उड़ कर उसमें समाने लगीं । कारों ने हिलना शुरू कर दिया ।

कार में बैठे सभी जनों ने अपनी सीटों को कस कर पकड़ लिया। कार में उन्हें ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगी, पर शरीर हिल-डुल नहीं रहे। स्तब्ध और परेशान बैठे आँखें देख रही हैं और मुँह साँस लेने के लिए खुले हुए हैं।

मनीष को साँस लेने में दिक्कत हो रही है। उसने अपने पास वाली खिड़की खोलनी शुरू ही की, तभी दीपाली में पता नहीं कैसे जोश आया और वह ज़ोर से बोली,’ मनीष खिड़की मत खोलना, हवा इतनी तेज़ है , कार को उड़ा ले जाएगी।’ मनीष ने खिड़की आधी ही खोली और उसका हाथ रुक गया पर घनघोर वेग में हवा का एक झोंका तेज़ी से भीतर आया, जिसने कार को ज़ोर से हिला दिया, लगा कार एक तरफ लुढ़क जाएगी। मनीष खिड़की के पास बैठा है, हवा उसके बदन को अपनी तरफ खींचने लगी। वह उसकी तरफ झुका भी, साथ बैठे अशोक ने उसकी बाज़ू पकड़ ली। सीट बेल्ट ने उसे कुर्सी से परे जाने नहीं दिया। पर उसके हाथ में थामा विजय का पत्र, जो वह जैनेट तक पहुँचाने के लिए दीपाली को देने वाला था, हवा के वेग के साथ उड़ कर बाहर चला गया। कार में भय और ठंड से सब थरथराने लगे। ठंडी हवा बदन को चीर गई। इसके बावजूद पॉल ने फुर्ती दिखाई और फ़टाफ़ट खिड़की बंद कर दी।
यह सब क्षणों में हुआ। भीतर हवा आनी बंद होते ही कार थम गई। सबकी साँसें और शरीर भी काबू में आए। मनीष का बदन इस ठंड में भी पसीने से भीग गया। बड़ी मुश्किल से उसकी कँपकँपी बंद हुई। वह ज़ोर-ज़ोर से साँसें लेकर स्वयं को सामान्य करने की कोशिश करने लगा। हार्दिक और दीपाली ने एक दूसरे को थाम लिया। कार में आए हवा के झोंके ने सबको विचलित कर दिया। गर्म कपड़ों की तहों में भी बदन ठण्डे हो गए। ऊर्जा रहित बदन हो गए, जैसे हवा का झोंका अपने साथ ही शरीरों की ऊर्जा भी ले गया।

‘हाथों को शरीर पर फेर कर ठण्ड को कम करें। एनर्जी आ आएगी।’ हार्दिक ने कहा।
पलक झपकते ही हवा उस पत्र को लेकर बर्फ के गोल-गोल घूमते अब गुब्बारे के आकार में बदल गए गोले में सिमट गई।

उनहुँ… उनहुँ…और कई स्वरों की तीखी ध्वनियाँ निकालता हुआ वह गोला पल में आकाश की ओर उड़ गया…. वातावरण में वे ध्वनियाँ क्रंदन सी सुनाई दीं। एक तेज़ रोशनी की लकीर उस गोले से निकली और वह अंतरिक्ष में खो गई। चारों ओर रोशनी फैल कर गायब हो गई। कार में बैठे मेहमान इन ध्वनियों से सहम गए और उनके दिमाग़ पता नहीं किन-किन अँधेरी गुफ़ाओं की यात्रा करने लगे। जिसकी जितनी सोच, समझ और विवेक था, उसी स्तर पर इस घटना के स्वरूप के बीज पड़ गए।

बाहर सब कुछ शांत हो गया। जानवरों की आवाज़ें आनी बंद हो गईं। हर तरफ देखकर ऐसा लगा रहा है, जैसे बवंडर आया था, एक बहुत बड़ा टॉरनेडो, जो सब कुछ तहस-नहस कर, चला गया। शोर-शराबा, चीख -पुकार सब समाप्त।
अगली कारें चल पड़ीं। हार्दिक ने भी अपनी कार आगे बढ़ा दी।
‘लगता है जैनेट इस दुनिया में नहीं है।’ मनीष ने बड़ी धीमी आवाज़ में कहा।
‘कैसे जाना!’ सत्यपॉल, जिसे पॉल कहते हैं, ने पूछा।
मनीष ने कोई उत्तर नहीं दिया। सिर झुका कर बैठा रहा।
दीपाली ने अपना गला साफ़ करते हुए कहा ‘मैं बता ही रही थी, जब यह सब हो गया।’
‘पर कैसे ?’ पॉल ने ही पूछा। मनीष ख़ामोश बैठा है।
‘एयरपोर्ट जाते समय इसी रास्ते पर उसका एक्सीडेंट हो गया था। कहा यह गया कि वह कार तेज़ चला रही थी और उसकी कार के आगे कोई जानवर भागता हुआ आ गया। स्पीड तेज़ थी और वह कार को सँभाल नहीं पाई, कार वृक्ष से टकरा गई। पर हम जानते हैं, उसके डैड ने उसे मरवाया दिया। ज़िंदा रहती तो वह उनके लिए खतरा बन जाती। ‘
‘विजय जैनेट की मौत के बारे में जानकर सदमे से टूट जाएगा?’ हार्दिक ने भारी मन से कहा।
‘डॉ. शाह , पुलिस के टॉर्चर से विजय तो पहले ही टूट गया था। अब इस सदमे को सहने से पहले ही वह आज़ाद हो चुका है।’ मनीष का गला भर गया।
‘क्या ?’ सबके मुँह से एक साथ निकला।
‘पुलिस के टॉर्चर ने उसका मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया था। उसका विश्वास डगमगा गया था। मैंने दो बेहतरीन वकील उसके मुकदमें की पैरवी के लिए भेजे, पर उसने उनसे बात तक नहीं की।’ अब उसकी आवाज़ थोड़ी ऊँची हुई-‘ वे वकील मैंने भेजे थे और मैं उस कंपनी में काम करता हूँ, जिसका हेड ऑफ़िस सेंट लुईस में है। हरेक पर वह शक करने लगा था। मैं जब भी मिलने जाता, वह मिलने से इंकार कर देता। बस अपने छोटे भाई पर विश्वास करता था। उसी के द्वारा हम कुछ मित्र मिलकर अच्छे वकीलों का इंतज़ाम कर रहे थे।’
‘अब समझ में आया उसने हमसे नाता क्यों तोड़ लिया? हालाँकि वह जानता था कि मेरे भाई और पिता जी मुंबई के नामी वकील हैं, वे सब उसकी मदद ज़रूर करते। हमने तो उसके घर पर कई पत्र लिखे। विनती की घरवालों से कि ये पत्र उस तक पहुँचा दें। पर कोई जवाब नहीं आया।’ दीपाली की आवाज़ बता रही है कि वह बेहद दुखी है।
‘विजय ने इस दुनिया को कब छोड़ा ?’ दीपाली ने तड़प कर पूछा।
‘किसी को पता नहीं, कब ? कैसे गया वह इस दुनिया से ? कोई नहीं जानता? कहा यह गया कि उसने निराशा और अवसाद में आत्महत्या की।’ मनीष से आगे बोला नहीं गया।
‘परिवार ने ऐसे कैसे लाश ले ली! ‘ दीपाली की आवाज़ का दर्द और बढ़ गया।
‘मिसेज़ शाह, परिवार के सदस्य भी क्या करते? पुलिस टॉर्चर तो वे पहले ही सह रहे थे। चुपचाप लाश ली और दाह संस्कार कर दिया।’ यह बताते हुए मनीष की आवाज़ टूट गई।
‘तुम्हें यह पत्र कैसे मिला ?’
‘यहाँ आने के पहले। एयरपोर्ट के बाहर। विजय का छोटा भाई टीटू दौड़ता-भागता, हाँफता हुआ पहुँचा था मुझे यह पत्र देने के लिए। मेरे यहाँ आने के थोड़ी देर पहले ही उसे किसी कैदी ने यह पत्र भिजवाया था। साथ ही कहा था विजय की अंतिम इच्छा थी यह पत्र जैनेट तक पहुँच जाए। एयरपोर्ट के भीतर जाने तक वह मुझे कहता रहा…. यह पत्र उस तक पहुँचा देना….यह पत्र उस तक पहुँचा देना। मुझे ख़ुशी है पत्र जैनेट तक पहुँच गया।’
मनीष के चुप होते ही उदास-सी ख़ामोशी कार में छा गई।
सड़क एयरपोर्ट की मुख्य सड़क से जा मिली। हार्दिक ने कार एयरपोर्ट के टर्मिनल दो की ओर मोड़ दी, जहाँ अमेरिकन एयरलाइन का प्रस्थान स्थल है। कार एक कोने में करते हुए उसने लम्बी साँस ली और कहा-‘बावजूद सब अड़चनों के आपको दो घंटे पहले एयरपोर्ट पहुँचा दिया।’ कार की उदास ख़ामोशी कार के दरवाज़े खुलने के साथ ही बाहर हो गई।
एयरपोर्ट तक पहुँचते-पहुँचते सभी के तन और मन बोझिल हो गए थे। समय की टिक-टिक जल्दी-जल्दी विदा लेने की दस्तक देने लगी…. अपना-अपना सामान लेकर, फीकी-सी मुस्कान चेहरों पर बिखरते हुए दीपाली और हार्दिक से हाथ मिला कर वे तीनों अमेरिकन एयरलाइन के खुलते-बंद होते दरवाज़ों से भीतर चले गए।
हार्दिक और दीपाली कुछ क्षण उन्हें जाते देखते रहे फिर हाईवे लेने की बजाय कार उसी सड़क पर मोड़ दी, जहाँ से वे आए थे……
”हार्दिक, यह सड़क अब किसी कहानी को जन्म नहीं देगी।” कहकर दीपाली सीट पर अधलेटी हो गई। घुमावदार सड़क, जिसके दोनों तरफ ऊँचे-ऊँचे वृक्षों की टहनियों ने छतरियाँ बना कर एक मनोरम दृश्य पैदा किया हुआ है, दीपाली उसका आनंद लेते हुए सीट पर पसर गई। कार इन छतरियों के बीच सड़क पर मध्यम गति से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही है……

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आज का विचार

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

आज का शब्द

जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

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