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निद्रा के परे

निद्रा के परे
एक अलग ही व्योम है
और अलग ही संसार
उतना ही त्रिविमीय और जाग्रत
जितना कि वर्तमान
फिर भी पूर्णतया भिन्न है
हर कोण से
आरेखित होना वर्तमान की सीमा है
और कुछ कर पाना इसकी विवशता
यह भिन्न संसार सीमाओं के परे ले जाता है
और सारी विवशतायें तोड देता है
यह उतना भी स्वपनिल नहीं है
जितना कि भविष्य
इसमें उतनी ही आसानी से घूमो
जैसे पंछी हवा में उडते हैं
और उतनी ही आसानी से सांस लो
जैसे फूलों को हवा स्र्पश करती है
अंततÁ रम जाओ
परम शांति में।

– दीपक रस्तोगी
 

  


 

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