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वे तीन औरतें

पूरब‚ पश्चिम और दक्षिण की ओर
मुंह किए बैठी
वे तीन औरतें
देख रहीं हैं
सूरज का जगना... सोना
और उबलना
एक साथ
सागर का उछलना बिछलना
फिर चाशनी सा जम जाना
एकसाथ
जंजीरों का खनखनाना
जकङना और टूट टूट होना
एक साथ
तमाम उत्तरों का
जमना. पिघलना... और
भाप सा उड़ जाना
एक साथ वे तीन औरतें

– रति सक्सेना


 

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