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बस एक ही पल में

हे नारी!
क्यों बिखर जाते हैं
भावनाओं के मोती
बस एक ही पल में
बड़े जतन से
तू संजोता है
हर एक मोती भावनाओं का
और गूंथता है बड़े जतन से
मन के भाव एक माला में
यही भाव जो
नारी मन तुझे
गति मति देते हैं
साहस देते हैं
व्याकुल तन मन को
हर भाव तेरा
जीवन संगीत बिखेरता है
परिवार‚ समाज और विश्व में
हे नारी मन
तेरे स्पन्दन की हर लय पर
तन मन झूम उठता है
तो तू क्यों टूट जाता है
एक ही पल में
समाज के निर्मम प्रहारों से
तेरा सब कुछ लुट जाता है
बस एक ही पल में
तेरा बासन्ती रूप बदल कर
जीवन पतझड़ कर जाता है!
हे‚ नारी मन
क्यों बिखर जाते हैं
भावनाओं के मोती
बस एक ही पल में!

– सुधा रानी


 

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