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देवदार मैं जब भी अकेली होती हूँ मुझे देवदार नज़र आते हैं आसमान को धरती पर उतर आने को उकसाते पर मन मसोस कर रह जाते दूरियों को कैसे तय कर पाते एक दूजे से मिलने को आतुर आस सदियों से पाले देवदार आज भी खड़े हैं कि काश आसमां खिसक कर नीचे उतर आए और देवदार की बाँहों में समा जाए एक दूरी जो सदियों से थी मिट जाये तय दूरियों का होना तो बस एक ख्.वाब है मन से मन का मिलना ही खास है देवदार तो तब भी खड़े थे और आज भी हैं आसमां का नीचे उतर आना तो बस एक अहसास है। |
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