मुखपृष्ठ |
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
साक्षात्कार
|
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
जीवन
बड़ा है समुद्र से मैं ने जीवन देखा था अब समुद्र को भी देख लिया समुद्र बड़ा नहीं जीवन से अपनी कुछ खास हरकतों की पुनरावृत्ति है समुद्र जीवन पुनरावृत्ति नहीं यह भरा है विविधताओं से जीवन गहरा है समुद्र से जीवन का उतार चढ़ाव अनिश्चितताओं से भरा है जीवन समुद्र से कहीं ज़्यादा अनंत‚ अथाह‚ अगम‚ असीम है आसान है समुद्र को समझना जीवन को नहीं समुद्र विजित है जीवन अभी भी अविजित है चाँद को देखकर मचलता है समुद्र चाँद को पददलित कर दिया है मनुष्य ने समुद्र में उतर कर आसान है किनारे आना जीवन में उतरना कठिन है किनारे आना तो और भी कठिन कभी मथा गया था समुद्र को जीवन का मंथन अब भी अपूर्ण है और यह जारी है दोनों में बस एक ही समानता है समुद्र में अनमोल रत्न और रेत हैं जीवन में भी अनमोल रत्न और रेत हैं जिन्हें प्रेम और घृणा कहते हैं – जयनन्दन |
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |