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हूक

एक हूक
गांव से काम की तलााश में आए
भाई को टालकर विदा करते उठती है परदेस में

एक हूक
जो बूढ़े पिता की
जिम्मेदारियों से आंख चुराते उठती है

मां की बीमारी की सोच
उठती है रह–रह

बहन की शादी में
छुट्टी नहीं मिलने का बहाना कर
नहीं पहुंचने पर

मैं उस हूक को
कलेजे से निकाल
बेतहाशा चूमना चाहता हूं

मैं प्रणाम करना चाहता हूं
कि उसने ही मुझे ज़िन्दा रखा है

मैं चाहता हूं वह ज़िन्दा रहे
मेरी आखिरी सांस के बाद भी

मैं आंख के कोरों में
बेहद संभाल कर रखना चाहता हूं
कि वह चुए नहीं

हूक ज़रूरी है
सेहत के लिए
हूक है कि
भरोसा है‚ अभी भी अपने होने पर

हूक एक गर्म अंवाती बोरसी है
संबंधों की शीतलहरी में।

– अभिज्ञात


 

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