मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!


 

 

मुखौटे आदिवासियों के

उनके पास एक वैसा ही चेहरा है
जैसा किसी आदमी के पास होना चाहिए
फिर भी देवता को खुश करने के लिए
वे चढा लेते हैं मुखौटा
उनके मुखौटों में उतने रंग होते हैं
जितने फूलों में हुआ करते हैं
उतनी ही लकीरें
जितनी नदी में लहरें
उतना ही विस्तार
जितना कि आसमान
थोड़े से फूल
जरा सी नदी
मुठ्ठी भर आसमान लेकर
वे रिझा लेते हैं देवता को
उनके देवता को पसंद है जंगल
वे चाहते हैं आदमी बन जाए भरापूरा जंगल
चेहरा छिपा लेते हैं
उन मुखौटों में
जिनमें आदमियत है
जंगल में रंगी हुई
शहरातियों के
उनके पास लगभग वैसा ही चेहरा है
जैसा किसी जंगली के पास हो सकता है
फूलों सा रंगीन नदियों सा चंचल
और न जाने कैसा वैसा
फिर भी चढ़ा लेते हैं वे मुखौटे
इतने सीधे और सपाट कि
धोखा खा जाएं देवता भी
धोखा देते हैं वे धोखा खाते हुए
मुखौटे के भीतर कसमसाते हुए
बनते जाते हैं वे
पूरे के पूरे जंगली
मुखौटे चढ़ाते हुए

– रति सक्सेना



 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com