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चीख

उस चीख़ ने
दम तोड़ दिया
मानवता की दहलीज़ पर
उसे सबने सुना
हिन्दु ने भी
मुस्लिम ने भी
फिर भी मौन थी
मानवता
क्यों?
उस चीख़ में
पीड़ा भी थी‚ व्यथा भी
हृदय भेदने की शक्ति भी
फिर भी मौन थी
मानवता
क्यों?
क्योकि
चीख़ का
धर्म नहीं होता कोई
और मानवता को
धर्म निभाने के लिये
जानने की ज़रूरत थी
चीख के धर्म को
पहचानने की ज़रूरत थी
अत:
उस चीख़ ने
दम तोड़ दिया
मानवता की दहलीज़ पर।

– सालिम हुसैन



 

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