मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!


 

 

तीन कविताएं

1
कभी कभी
लगता है
हर गुज़रा हुआ दिन
एक फरियाद है
जिसे कोई सुनना नहीं चाहता है।

अंधेरे की बाँहें
लम्बी होती जा रही हैं‚
खुदगर्ज़ हाथों में पकड़ी माचिस
सीलती जा रही है।

इस दशहत भरे माहौल में मैं
खुद को ऊँचे पहाड़ों के बीच
खड़ी पाती हूँ।

धीरे धीरे
मेरे चारों ओर
असंख्य अर्धमृत आत्माएं
रत्ती भर ज़िन्दगी और
सांस भर मुक्त हवा के लिये
करवटें बदलती हैं।

मुझे अपने अन्दर
सिर हिलाती
खामोश रेंगती
एक बेचैन भीड़ का एहसास होता है
जिसमें बाहर बर्फ की ठंडक‚
और अन्दर
सदियों की आग पिघल रही होती है…


2
उस दिन
माँ रोई थी
उस रोने में
आर्शीवाद की सूक्तियाँ थीं
बरसों से मुक्त होने का आह्लाद था
एक मृदुल सिहरता दर्द था
जो नारी अस्मिता से जुड़ जाने का था

एक करुण पुकार थी
जो कांटों से बिंधे दिल की थी
जिसमें छिपी थी
एक दृढ़ता
एक विश्वास
एक रोशनी
एक छिपा दर्प

उस दिन
उसकी बेटी ने
विद्रोह किया था…

3

मैं तुम्हारे जीवन की वह केन्द्र – बिन्दु नहीं हूँ
जिसे तुम बाज़ारों में‚
भेड़ और बकरियों की तरह बेचते थे।

जिसे तुम पत्थर की दीवार में बन्द कर‚
खुद खुले आसमान में
प्ांछी और हवा की तरह उड़ान भरते थे।

शायद तुम यह नहीं जानते थे‚
मेरी आवाज़ उन पत्थर की दीवारों में
देर तक कैद नहीं रह सकेगी।

तुमने मुझे मर्यादाओं और परम्पराओं के
बंधन में बांधा और कुचला‚
शायद तुम यह नहीं जानते थे कि
रोशनी को अंधेरा दबा नहीं सकता है।

मेरे आंचल से तुमने फूल चुने
उपहार में तुमने उसमें कांटे भरे
शायद तुम यह नहीं जानते थे कि
खुश्बू हर हाल में फैल कर रहेगी।

तुमने मुझे पवित्रता का वस्त्र पहनाया
अपनी खुशी के लिये खरीदा और बेचा
शायद तुम यह नहीं जानते थे कि
लुटने के बाद लड़ने की ताकत आ जाती है।

ब्याह के बेदी पर तुमने मुझे
बली का बकरा समझ माथे पर सिन्दूर थोपा
इधर भार मुक्त हुए उधर अपने पौरुष पर अकड़े

मेरा शैशव‚ मेरी पवित्रता‚ मेरा मातृत्व
मेरा अस्तित्व
तुम्हारे लिये मात्र एक वस्तु थी
जिसका तुमने जमके व्यापार किया

सुनो मैं वह तस्वीर वालै औरत नहीं हूँ
जो निर्वस्त्र‚ अर्धवस्त्रधारी या बिकी हुई
मात्र तुम्हारी भोग्या है।

तुमने मुझे इतना गहरा डुबोया है कि
डूबने और उफनने के बाद
मुझे पानी पर चलने की विधा आ गई है…

– ऊषा राजे



 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com