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उखाड़ने वाले
गाड़ी ज़्यादा नहीं
केवल बारह घंटे लेट थी
इसलिये कवि सम्मेलन में
जब हम पहुंचे
तो घड़ी में रात के दो हो रहे थे
एक हास्य रस के कवि
मंच के पीछे खड़े रो रहे थे
हमने पूछा क्या हुआ
क्यों रो रहा है?
वो बोला – भाईसाहब
कवि सम्मेलन समझ कर आया था
मगर यहां तो
दंगल हो रहा है
सारे कवि हूट हो रहे हैं
हमको देखो
हम हास्य रस के हैं
और रो रहे हैं
श्रोताओं ने सबको उखाड़ दिया है
गीतकारों को तो बाकायदा गाड़ दिया है
और वो जो
कोने में खड़ा हांफ रहा है
मारे डर के थर थर कांप रहा है
वो वीर रस का कवि है..
बेचारे ने
अपना खण्ड काव्य
हल्दी घाटी सुना दिया
तो जनता ने
उसके चेहरे को ही हल्दीघाटी का
मैदान बना दिया..
हमने पूछा —
बाकी कवि कहां खड़े हैं?
वो बोला मंच के नीचे पड़े हैं..
आखिरी सांसें ले रहे हैं
आप ज़रा देर से आये हैं न
इसलिये दिखाई भी दे रहे हैं ,,
हमने पूछा —
' कोई कवियत्री नहीं आईं ?'
वो बोला –
इसीलिये तो आपको बुलाया है भाई
हमारी मानो तो लौट जाओ
खामख्वाह
अपनी हत्या मत करवाओ
वरना लोग
तुम्हीं को कवियत्री समझ लेंगे
बड़े शौकीन हैं
अगले साल तक पीछा नहीं छोड़ेंगे..
हमने लपक कर
उसके पैर छुए
और अटैची उठाकर
जैसे ही भागने को हुए
कि संयोजक आ टपका
हमें घसीटता हुआ
मंच पर लपका
जनता से बोला —
शांत हो जाईये ‚ शांत हो जाईये
अपने चौबे जी आ गये हैं
ज़रा जोर से ताली बजाइये
एक श्रोता बोला —
अरे ताली क्या
उनको ही बजा देंगे
सामने तो लाइये…
हम अन्दर से घबराते हुए
बाहर से मुस्कुराते हुए
जैसे ही
माईक पर आये
दो चार श्रोता एकसाथ चिल्लाये
' क्या पर्सनाल्टा है?'
दूसरा बोला – हमारे यहां
बहुत बड़ी बाल्टी है
मगर ये तो पूरा बाल्टा है..
एक बोला –
सुभान अल्लाह ॐ क्या शक्ल पाई है
दूसरा बोला –
उपर वाले ने ओवर टाइम में बनाई है
तीसरा बोला – मूंछे निकाल दो
तो बिलकुल लुगाई है..
चौथा बोला – बम्बई से आया है
टुनटुन का भाई है
पांचवाँ बोला –
दाढ़ी तो ऐसे बनाता है
जैसे खानदानी नाई है..
छठवां बोला –
हमारी बना दोग..
दाढ़ी के साथ
कटिंग का क्या लोगे?
सातवां बोला –
अठन्नी दे देंगे
' साथ में दो चार
कविताएं भी सुन लेंगे…'
हमने कहा –
खामोश
बदतमीजी हमें बिलकुल नापसंद है
कोई बोला –
ज़रा जोर से बोलो बेटा
इधर का लाउडस्पीकर
शुरु से बन्द है..

खतरनाक माहौल था
आदमी तो आदमी
औरतें तक
हमें उखाड़ने पर तुली थीं
आपकी कसम
बड़ी चुलबुली थीं
एक बहनजी
सामने बैठीं
स्वेटर बुन रही थीं
बीच बीच में
कविता भी सुन रही थीं
भगवान जाने
बुन रहीं थीं कि सुन रही थीं
हमने कहा – बहन जी‚
आप दोनों काम
एक साथ मत कीजिये
या तो सुन लीजिये
या बुन लीजिये
वरना हम आपको यहां से
निकाल देंगे
वो बोलीं –
भाई साहब
अपना काम कीजिये
वरना जो फन्दा
हम स्वेटर में डाल रहे हैं
आपके गले में डाल देंगे

हम बड़े दु:खी थे
अन्दर से एकदम ज्वालामुखी थे
तभी हमारे
सौभाग्य से
एक सरदार जी भीड़ में उगे
बोले – बाश्शाओ‚
इन पुंगों की बात में मत आओ
कोई धार्मिक रचना लिखी हो तो
सुनाओ
हमने कहा –
आप ठीक कहते हैं
लीजिये
एक धार्मिक रचना
हजम कीजिये
रचना का शीर्षक है
' गंगा तेरा पानी अमृत'
सरदार जी फौरन बोले –
पिलाओ
हमने कहा –
देखो सरदार जी‚
हमें गुस्सा मत दिलाओ
तुम्हें उखाड़ने के
अलावा भी कोई काम है?
यार तुम्हारे
शहर में तो
पांव रखना भी हराम है..
कान पकड़ते हैं
अब जो तुम्हारे शहर में आयें
लेकिन एक बात
आपको जाते जाते बतायें
कि आप जैसे
थर्ड क्लास श्रोता
हमने आज तक नहीं देखे–
सरदार बोला –
शुक्र करो बेटा
हमने अभी तक
अण्डे और टमाटर नहीं फेंके..
वरना प्यारे..
हम अपनी
औकात पर उतर आते
तो आप
आदमी की जगह
कार्टून नजर आते..
भाई साहब
आप जिन्हें श्रोता समझ रहे हैं
वे श्रोता नहीं
लोकल कवि हैं
संयोजक हमसे नहीं पढ़वायेगा
तो बाहर का कवि
हमारी छाती पर
कविता कैसे पढ़ जाएगा
आज तो हम
किसी को नहीं छोड़ने वाले हैं
आपको तो केवल
उखाड़ा है
मगर आपके मंच पर
जो अध्यक्ष बैठा है ना
उसकी खोपड़ी पर तो हम
नारियल फोड़.ने वाले हैं..
अध्यक्ष लगभग सो रहा था
उसने सुना तो जागा
मंच से कूदा
और घर की तरफ भागा
हमने भी
भागते भागते
संयोजक से कहा
कि भैया
जो होना था सो हुआ
अब कम से कम
हमारा पेमेन्ट तो दिला दो…
वो बोला –
काहे का पेमेन्ट
तुम्हारी जेब में
अठन्नी हो तो
तुम्हीं हमको चाय पिला दो..
दोस्तों
क्या बतायें इसके आगे
हम वहां से
सर पर
पांव रख कर भागे
सोचा
जान बची
और लाखों पाये
लौट के बुद्धू घर को आये..

– प्रदीप चौबे
 


     

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