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उत्तर - प्रश्न
कामना का यह अंतिम प्रहार
प्रेम की यह आख़िरी तड़प
और एक साथ इतनी बिजलियों का गिरना
अब आग नहीं
आंच की खुमारी है
स्याह पर्दे पर
फुसफुसाहट की इबारत में
लिखता है वह
एक पुरातन पुरुष - प्रश्न
कैसा लगा ?
कि जैसे टूटता है जादू
अचानक कम होने लगता है
कमरे का तापमान
सिहरते हुए वह
चादर सिर तक खींचती हुई
पूछना चाहती है
तुम प्रेम कर रहे थे
या परीक्षा दे रहे थे
समर्पण में विभोर थे
या अवरूद्घ थे तनाव में
लेकिन वह कुछ नहीं कहती
और वह उसके मौन को
अपनी तरह से
बूझता रहता है


 
        

नाखून
हमने उनसे युद्घ में काम लिया
और प्यार में भी
वे हमारी देह में सहेजे हुए
आदिम बर्बरता के स्मृतिचिन्ह हैं

वे मृतक हैं
जो हमारे भीतर जीवित हैं निरन्तर
यातना की अकथ कथाएं
उनमें और उनसे दर्ज हैं
उनकी जड़ों में उगते हुए
आधे चन्द्रमा की तरह

सभ्यता का तकाज़ा है
कि हम उन्हें लगातार तराशते रहें
और इतना भी न तराश दें
कि उनका उपयोग असम्भव हो जाये

हममें से कौन नहीं जानता
कि उनकी ज़्यादा तराश के खिलाफ
किस तरह
उंगली दिन भर शिकायत करती है हमसे।

आशुतोष दुबे

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