मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!



 

 

 

एक कोलाज
ढूंढते रहे हैं मुझे
मेरी कहानियों के पात्रों में
वे
क्या इतना आसान है
किसी को ढूंढ लेना
यूं कहानियों के कच्चे चिट्ठों में ?
जब साथ रह कर
समूचा खुली किताब सा पढ़ कर
नहीं पहचान सकता
कोई किसी को

फिर ये कहानियां तो
एक जिग – सॉ पज़ल है
जिनके कई टुकड़े गुम हैं
या गलती से जा लगे हैं
किसी और ही कहानी में
कैसे ढूंढेंगे वे मुझे
कैसे पहचानेंगे मुझे
ज़िन्दगी के इन बेतरतीब टुकड़ों में
लगाते हैं कयास वे
मेरी इन कहानियों से
मेरे अवचेतन का…
बनाते हैं बातें कई तरह से
कुछ सम्वेदनशील लोग
ढूँढ निकालते हैं
अपने खोए हुए स्व के एक टुकड़े को
मेरी कहानियों में से

कोई मुझसे भी तो पूछे
ज़रा…
क्या हैं ये मेरी कहानियां
कहां हूँ इनमें मैं
कहां हैं इनमें वे स्वयं
मेरे लिये — ये कहानियाँ
ज़िन्दगी से काट – पीट कर
बनाया गया एक कोलाज हैं
बस और क्या?

क्यों ज़ाया करते हो वक्त
इनमें मुझे या अपने को
ढूंढने में
देखना है तो देखो
इस समूचे चित्र को
जो तुमसे – मुझसे परे
एक नई कहानी कहता है
जो समेटे है
तुम्हारे और मेरे अलावा
हमसे कई – कई लोगों के रंगों को

माना नहीं निकालती कोई हल
ये कहानियां
नहीं खोलती किसी की आंखे
मगर बहलाती हैं एक पल को
सहलाती हैं उस दर्द को
जो अवचेतन में सबके
एक सा ही है

-मनीषा कुलश्रेष्ठ

 

अनकण्डीशनल
कुछ रिश्ते
जो अनाम होते हैं
नहीं की जाती व्याख्या जिनकी
जिन्हें लेकर
नहीं समझी जाती
ज़रूरत किसी विश्लेषण की

इनके होने की शर्तें बेमानी होती हैं
बहुत चाव से इन्हें
' अनकण्डीशनल '
' नि:स्वार्थ ' होने की संज्ञा दी जाती है
बस फिर कहां रह जाती है
गुंजाइश किसी अपेक्षा की

बस वे होते हैं‚ होने भर को
पड़े रहते हैं कहीं
अपनी – अपनी प्राथमिकताओं
के अनुसार सबसे पीछे
लगभग भुला दिये जाने को
या वक्त ज़रूरत पड़ने पर
उन्हें तोड़ – मरोड़ कर
इस्तेमाल कर लिये जाने को
' सखा‚ बन्धु‚ अराध्य‚ प्रणयी …
और भी बहुत तरह से
इतना कुछ होकर भी
इन रिश्तों में
कुछ भी स्थायी नहीं होता
हालांकि इन रिश्तों से
होती है रुसवाई
खिसका देते हैं ये रिश्ते
पैरों के नीचे की ज़मीन
बहुत भुरभुरे होती हैं इनकी दीवारें

कभी भूल से भी इनसे
टिक कर खड़े न हो जाना
!

-मनीषा कुलश्रेष्ठ
 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com