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मेरा आसमान आकाश में उड़ते हुए पक्षी को खुला आसमान चाहिये जहां से उड़ कर वह दूर‚ बहुत दूर चला जाये मुझे पंख मिल गये हैं अब मैं उड़ने को पूरी तरह से तैयार हूँ लेकिन आसमान है कि कहीं दिखता ही नहीं कंकरीट के इस जंगल में भटक कर रह जाता है मन प्रतिदिन प्रतिपल प्रतिक्षण
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अकाल
-शंकर सिंह |
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