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मत छुओ मुझे…
मत छुओ मुझे
कि छूने से
हर बड़ी और अहम चीज़ आम हो जाती है
कि बड़प्पन का सारा खोल चटक कर टूट गिरता है
और बह जाते हैं गर्हणा के नाले में वे टुकड़े
घर से बुहारे गये मैले – चीकट की तरह
यह वह छूना नहीं जो कंकड़ को अहिल्या का रूप दे दे
या कदम्ब को पुष्पावृत कर दे
या किसी कुमारी को लज्जा से लाल कर दे
यह छूना है
जो अनावृत करता है
अंतस को चीर – फाड़ कर धर देता है
करीब जाता है
करीब लाता है
पर शायद तुम्हें लगने लगे
कि तुम्हारा बड़प्पन
तुम्हारा शानदार महिमामय स्वरूप
कुछ था ही नहीं
या उसके अलावा भी तुम
बहुत कुछ हो
जो सिर्फ बड़प्पन से परिभाषित नहीं होता
या वह मात्र एक खोल था‚
एक मुखौटा
या कोई कवच!
क्यों न मुझसे दूर रहो
छेड़ो न मुझे!
मैं
जो कि खुद एक
नाचीज़‚ नामहीन ‚
आमतर हस्ती हूँ
क्योंकि सच ही मेरा
श्रेय और प्रेय है
सच मेरे बहुत करीब बसता है
इसे किसी ऊंचाई से खींच कर
लाना नहीं होता
किसी ऊंचाई तक
पहुंचाना नहीं होता
वह तो हर वक्त कहीं रहता है
हर पड़ाव पर‚ हर थल पर
कि छूने से वह महक भी सकता है
कि छूने से वह महक भी सकता है
कि छूने से वह छोटा भी हो सकता है
तो छूने से ही बड़ा भी ।
अगर सच से तुम्हें डर न लगता हो
तो मेरा छूना
तुम्हें मुक्ति देगा!

-सुषम बेदी

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