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दोस्त
जैसे सघन गगन में हँसती झिलमिल सी दामिनी
जैसे स्वपलिन वीणा पर संगीत सुनाती रागिनी
जैसे नीरव संध्या में चन्दा सी मुस्काती आली
जैसे रूमानी बगिया में महकी हरसिंगार की डाली ।

दोस्ती
जैसे गहन अंधेरे की चादर पर
क्षीण एक उजली रेखा
शिशिर के ठिठुरते श्वेत दामन पर
धूप की संगीतमय रेखा
जैसे मृदु मन्द गति गति लहरों पर उतरी चन्द्रपरी
विस्मृति की गहरी सरिता पर तंदि.ल गीतों की लहरी ।

दोस्ती
जैसे युग प्रलय सृजन सुरधुन सी संगीता
जैसे चिर सृष्टा अपराजित अमृत जीवन दृष्टा ।
लेकिन कभी देखी
जगमग जगमग तारों सी चमकती दोस्ती
नूपुर की तालपर खनखनाती नर्तन करती दोस्ती ।
कभी देखी
अंधकार में लहरों पर डोलती अकेली एक नौका सी दोस्ती
तेज हवा के झोंकों में जलती बुझती दीप शिखा सी दोस्ती
भूत के गर्भ में इतिहास की कब्र पर रोती सिसकती दोस्ती।
तो कहीं
दोस्ती मिली तो हार जीत हो गयी पीर गीत हो गयी
तड़पाती निष्ठुर निशा फिर पुनीत शीत हो गयी ।
परिभाषाओं की इस भटकन से परे
आओ बसाये इक आनन्द नगर
जिसमें दोस्ती
दीपक बन कर मन के गहन अंधेरे मिटाये
मील का पत्थर बन भटकों को राह दिखाये।
प्यार के गीत गुनगुना. मुरझाये फूल खिलाये
वीणा को छेड़ विश्व बन्धुत्व का राग सुनाये।

-अनिता बरार

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