मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!



 

 

होली की पहेली

 

 

 

 

होली की बयार थी‚ कोयल की गुहार थी;
रंगों की फुहार थी‚ मदन की मार थी।
वह एक कवि थो‚ कभी चंद्र कभी रवि थो;
मन मों बसाते‚ कभी शशि कभी सुरभि थो।
पत्नी गयी मायके थी‚ गुझिया बोजायके थी;
भंग–गोली खायी थी‚ दिन मों नींद आयी थी।
पपीहे की पुकार सुनी‚ पिचकारी की धार सुनी;
पहुंच गयो उसके घर‚ जो लगती थी आधी अपनी।
द्वार पर पहुंच कवि ठिठक गयो‚ मन ही मन झिझक गयो‚
श्रंगार के कवि थो‚ वीर–रस की परिस्थिति पर हिचक गयो।

उसके द्वार मों दो पल्लो थो‚ होली के दिन दानों निठल्लो थो;
कवि को देख एक खुल गया‚ उसका अंग अंग थिरक गया।
मन बन गया मयूर‚ होठों पर मुस्कान मुखरित हुई;
अधखिली कली की ज्यों‚ हों पंखुरियां प्रस्फुटित हुई।
बाहें फैलाकर ज्यों वह‚ कवि के स्वागत हेतु उद्यत हुआ‚
दूसरा पल्ला निगाह तिरछी कर‚ रोकनो को प्रस्तुत हुआ।
दूसरा प्रत्यक्षतः मुस्कराता‚ पर मन ही मन कुढ़ता था‚
दिखावटी स्वागत था‚ पर पारा आसमान मों चढा. था।
कवि जी भंग के रंग मों थो‚ कभी डूबते कभी उतराते थो
पहलो पल्लो के प्रेम सो प्रफुल्लित‚ तो दूसरे सो घबराते थो।
औंधो पडे. कवि जी उत्कंठा और शंका के बीच नहाते रहे‚
और लधुशंका ग्रस्त सब स्वान उन्हें उष्ण स्नान कराते रहे।
बूझो‚ वह किस किस का घर और किस किस का पल्ला था?
पहेली कठिन है! बता दूं‚ वह कवि की साली का मुहल्ला था।

–महेश चंद्र द्विवेदी
 

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com