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करोगे पुलिस का ऊंचा झंडा ऐ पुलिसवालो! ज़रा ठहरो, दो मिनट सोचो, क्यों व्यर्थ में फटकारते हो जहां तहां डंडा? गरीब रिक्शे-वाले पर पड़ते हो जब-तब बरस, खिसक जाते हो, देख नेता कोई संड मुसंडा। फलों के ठेले से उठा लेते हो केला व सेब, या मुफ़्त में उड़ा जाते हो चाय और अंडा। बेकार में वसूलते हो ट्रकों से दो चार रुपये, किसने सिखाया है यह बेवकूफी का फंड़ा? ठोंकते रहते हो व्यर्थ में दिन रात सैल्यूट, हर नेता को- चाहे हो ारीफ़ या हो गुंडा? गर माफ़िया का चमचा बनने की मजबूरी हो, तो गुरू बनाओ कोई मुख्त़ार या राजा कुंडा। करना ही है तो करो कोई बड़ा काम, क्यों दिन भर पाथते हो गोबर के कंडा? कुछ तो अपने उच्चाधिकारियों से सीखो, स्त्री-वेश धारण करो जैसे आई. जी. पंडा। फिर कृष्णप्रिया बन चुराओ कृष्ण का मन, या अमेरिकन गोपिका संग मचाओ खूब तंडा। स्त्री-पुरुष, नेता-अभिनेता सब चूमेंगे श्रीचरण, साथ में करोगे तुम पुलिस का ऊंचा झंडा। -महेश चंद्र द्विवेदी |
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