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तेरी सूरत

आज स्वयं से मिलना है,
बड़ी उत्सु
कता है ,

एक अद्भुत चाव तारी है ,
घड़ी-घड़ी भारी है ,

एक अजब सी खुमारी है  ,
और फिर करी खास तैयारी है ।

प्रेम का उबटन लगाकर ,
विवेक का सिंदूर लगाकर ,

अहंकार की खुश्की भगाकर ,
नैनों में लाज का काजल लगाकर ,

माथे पर आस्था विश्वास की बिंदया सजाकर ,
जब तुम्हे पुकारा है ,
तो
दर्पण  ने तुम्हारा ही अक्स उभारा है। 

-डॉ.शशि पठानिया
 

 

 


 

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मेरा चाँद 

डूबते सूरज से नज़र मिलते ही,
इशारा समझते ही ,
विदा होते सूरज की लाली ,
उसकी समझ में आ गई है ,

और वह लजाकर ,
छुईमुई सी शर्मा कर ,
आँखें मींचकर ,
उस ओर  मुँह कर गई है ,

जिधर से उसके चाँद ने है चढ़ना,
भेस बदल, दुनिया से चोरी ,
उसके साजन ने ,
उससे फिर आ है मिलना ।

-डॉ.शशि पठानिया
 



 


 

 

 

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