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लो यहीं पे' ख़त्म होता है सफर, मेरी रूमानियत का... एन् तुम पर...आकर एक ऊंचे आलाप पर जाकर टूट गयी तान - सा मंत्र - मुग्ध श्रोता - सा मेरा वज़ूद अनमना छूट गया है सम्मोहन से टूट कर - भौंचक्क! तृप्ति की पराकाष्ठा पर पहुंच - अतृप्त एक घूंट और होता तो... बची हुई है एक बूंद की प्यास अभी तो शेष था कुछ और भी और ...और ...और मृत्यु के बाद ... शून्य में भी शून्य पाकर भटकते दार्शनिक की आत्मा की तरह हतप्रभ है मेरा वज़ूद अब कोई रहस्य बाकि नहीं? उम्र खुली पड़ी है पोस्टमार्टम के बाद तार - तार मृत देह - सी सम्बन्धों के जले चेहरों पर से छद्म के सुन्दर मुखौटे खिसक गए हैं। |
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