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कितना मुश्किल है धर्म की लादी ढोते हुए भी, हिन्दू, मुस्लिम या कि सिक्ख, जैन, बौध्द या क्रिस्तान होते हुए भी कितना मुश्किल है धार्मिक होना ! जैसे कोई शिल्पी गढ़ता रहे शब्द सुन्दर या रचता रहे छन्द टकसाली, पर शब्द या छन्द की रचना के बाद भी कितना मुश्किल है कवि होना ! धर्म या कविता कहां है विधान में ! अभिधान या परिधान में !! जैसे बहुत मुश्किल है फूल का पराग में, खुशबू में बदलना, वैसे ही बहुत मुश्किल है विचार की धर्म में गति और भाव की कविता में परिणति।
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