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विज्ञापनों का गोरखधंधा विज्ञापनों ने ढँक दिया है सभी बुराईयों को हर रोज चढ़ जाती हैं उन पर कुछ नामी-गिरामी चेहरों की परतें फिर क्या फर्क पड़ता है उसमें कीडे हों या कीटनाशक या चिल्लाये कोई सुनीता नारायण पर इन नन्हें बच्चों को कौन समझाये विज्ञापनों के पीछे छुपे पैसे का सच बच्चे तो सिर्फ टी0वी0 और बड़े परदे पर देखे उस अंकल को ही पहचानते हैं जिद करते हैं उस सामान को घर लाने की बच्चे की जिद के आगे माँ-बाप भी मजबूर हैं ऐसे ही चलता है
विज्ञापनों
का
गोरखधंधा।
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