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युवा
बेटी कदम रख चुकी बेटी को माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य ठीक वैसे ही जैसे सिखाया था उनकी माँ ने पर उन्हें क्या पता ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते अपने आँसुओं को चुपचाप पीना नहीं जानती है वह उतनी ही सचेत है अपने अधिकारों को लेकर जानती है स्वयं अपनी राह बनाना और उस पर चलने के मानदण्ड निर्धारित करना। -आकांक्षा यादव |
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