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भोर की लाली भोर की लाली हृदय में राग चुपचुप भर गयी! जब गिरी तन पर नवल पहली किरन हो गया अनजान चंचल मनहिरन प्रीत की भोली उमंगों को लिए लाज की गदगद तरंगों को लिए प्रात की शीतल हवा आ, अंग सुरभित कर गयी! प्रिय अरुण पा जब कमलिनी खिल गयी स्वर्ग की सौगात मानों मिल गयी, झूमती डालें पहन नव आभरण, हर्षपुलकित किस तरह वातावरण, भर सुनहरा रंग, ऊषा कर गयी वसुधा नयी!
-महेन्द्र भटनागर |
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