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ग़जल - 1
 
'अकबर' सी धुन लायें कहाँ
'नासिर' सा फन पायें कहाँ

दर्द नहीं है इश्क नहीं
इल्म को लेकर जाएँ कहाँ

आम के कितने पेड़ कटे
कोयल पूछे -- गायें कहाँ ?

हंसती हुई इस दुनिया में
दिल को कहो रुलाएं कहाँ

अपना तो बस इक चेहरा
अय्यारी-फन पायें कहाँ

खुसरो, मीर, कबीर, नजीर
अपना दर्द जगाएं कहाँ

दिल की बातें करनी है
बस ये कहो सुनाएँ कहाँ


- नीलाम्बुज
 

ग़ज़ल - 2
 
कल उसकी दुनिया में ऐलान हुआ/
सस्ता अब क़त्ल का सामान हुआ

हजारों क़त्ल करके वो बोला/
वक़्त मेरा बहुत जियान हुआ.

कल मिला मुझको कचरा पेटी में/
इतना गंदा मेरा ईमान हुआ

दे के रिश्वत वो झट से छूट गयी/
जब इमानदारी का चालान हुआ.

कल इक दरख़्त गिर के टूट गया/
मानो विदर्भ का किसान हुआ.

हम तो अशआर यूँ सुनाते हैं
गोया ये मीर का दीवान हुआ

- नीलाम्बुज

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