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 ग़ज़ल - 1


शीशा चुप है पत्थर बोलता है
वो खामोशी में अक्सर बोलता है

अजब होता है उल्फत का ये जादू
सभी के सर पे चढ़कर बोलता है

किस कदर बदहाल हैं वो रहने वाले
घरों का टूटा छप्पर बोलता है

समय से जब भी बिटिया घर न आती
मेरा दिल डर से थर-थर बोलता है

जलाया है अगन ने फिर किसी को
धुआं उपर को उठकर बोलता है

करेगा कुछ नहीं है उसकी फितरत
मगर वो बात बढ़कर बोलता है

नजर शायर की होती है अलग ही
इसी से ‘राज’ हटकर बोलता है

-राज वाल्मीकी




 

ग़ज़ल - 2
 
आपका है देश पार्टी आपकी
आपका इतिहास थाती आपकी

आपकी मर्जी है इसको जिस तरफ भी हांकिये
आपकी है भैंस लाठी आपकी

यहां सुरक्षित है यकीनन चाहे जब भी खाइए
आपकी है भेड़ भाटी आपकी

बस हमारा रक्त इसमें तेल के सम जल रहा
आपका है दीप बाती आपकी

आह का या बद्दुआ का कुछ असर होता नहीं
है बहुत मजबूत छाती आपकी

आगाजे-वगाबत है कहीं अब मिट न जाए देखिए
ये हुकूमत जुल्म ढाती आपकी

-राज वाल्मीकी

 

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