मुखपृष्ठ |
कहानी |
कविता |
कार्टून
|
कार्यशाला |
कैशोर्य |
चित्र-लेख | दृष्टिकोण
|
नृत्य |
निबन्ध |
देस-परदेस |
परिवार
|
फीचर |
बच्चों की
दुनिया |
भक्ति-काल धर्म |
रसोई |
लेखक |
व्यक्तित्व |
व्यंग्य |
विविधा |
संस्मरण |
साक्षात्कार
|
सृजन |
स्वास्थ्य
|
|
Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | Feedback | Contact | Share this Page! |
|
ओ बिदेसिया......... ओ बिदेसिया......... तुम्हारी गाथा लिखना चाहती थी लिखना चाहती थी वह दर्द जो सदियों से झेलते आये हो तुम लिखना था कि चंद रोटियों की खातिर अपनी मिटटी से दूर होकर कैसे जी पाए तुम लिख देना चाहती थी....... वह सारी अवहेलना वह सारी घृणा जो तुम्हारी नियति बन गयी है जानती हूँ खून उतर आता होगा तुम्हारी आँखों में भी सुनकर अश्लील उपाधियाँ और वो हिंसक रिश्ता 'भईया' बनाने का .............. जिसमे प्रेम नहीं नफरत छुपी होती है उनकी लेकिन तुम्हारे इस असहाय क्रोध को भी चाहिए कुछ आधार मसलन एक छत जो बचा सके मुसीबतों से एक भरा हुआ पेट जिसे कल की चिंता न हो और शायद तुम्हारे अपने .......................... जो कहीं दूर बस इसी आस में टकटकी लगाये रहते हैं कि नुक्कड़ की दूकान से आएगा तुम्हारे फ़ोन का बुलावा जानती हूँ तुम्हे नींद नहीं आती देशी बोतल या गांजे के बिना फिर नहीं आते मालिक के सपने जो खड़ा होता है छाती पर अपने उधार की रकम के लिए बबलू भी याद नहीं आता ...कैसे गोल गोल आँखें मटकाता था बुधना ने बीडी पीना सीख लिया था...यह भी याद नहीं रहता न ही याद रहती है मंगली की लौकी की बेल सी चढ़ती उम्र और उसके हाथ न पीले कर पाने का मलाल रामपुर वाली की मीठी देह -गंध भी तब नहीं सताती तुम्हे . यह सब कुछ लिखना चाहती हूँ .............. लेकिन कैसे लिख पाऊँगी तुम्हारी अंतहीन पीड़ा मैं भी तो इसी सभ्य समाज का हिस्सा हूँ जिसकी नज़र में तुम हो जंगली ,जाहिल ,गंवार हम भला कैसे जानेंगे तुम्हारा दर्द .......!!!! तुम्हारी सैकड़ों वर्षों की वह त्रासद कथा जब भेड़-बकरियों से लादे गए थे तुम जहाजों पर काले पानी को पार कर कभी नहीं लौटने के लिए आज भी ठूंसे जाते हो तुम ट्रेन के डब्बों में यहाँ तक की छतों पर भी और कभी कभी यूँ ही कहीं लावारिश पड़े मिलते हो बेजान ठेले पर लाद कर भेज दिए जाने के लिए मुर्दा घर सोचो तो जरा बिदेसिया ................... तुम पैदा ही क्यों किये गए ......!!?? सिर्फ हम सफेदपोशों के इस्तेमाल के लिए ताकि तुम ढो सको हमारा बोझ अपने कन्धों पर हमारे भवन ,हमारी सड़कें ,हमारे कारखाने जहाँ मेहनत बोते हो तुम और फसल काटते हैं हम और तुम्हे मिलते हैं चंद सिक्के और ढेर सारी घृणा तुम्हारे पसीने की गंध से उबकाई आती है हमें भूल जाते हैं कि इस पसीने के दम पर ही है हमारी दुनिया सुन्दर और आरामदेह तुम सब माफ़ कर देते हो बिदेसिया पता है मुझे ..................... गलियां खाकर , नफरत झेलकर भी तुम करोगे हमारा ही सजदा क्योंकि भारी है तुम्हारी रोटियां किसी भी और भावना पर कैसे कह दूं लौट जाओ अपने गाँव भले ही भूखे मर जाना............ लेकिन कचोटती है तुम्हारी पीड़ा हमवतन जो हो तुम मेरे अंतर्मन करता है कई प्रश्न मैं निरुतर हूँ ....................... चाहती हूँ तुम दो उनका उत्तर चाहती हूँ तुम कहो कुछ.......... बताओ कि तुम भी इंसान हो हमारी तरह हम ये भूल चुके हैं .............................. अब तक अपना पसीना बेचा है न तुमने अब अपने आंसूओं की बोली भी लगाओ शायद ...मिल जाएँ कुछ अच्छे खरीदार |
|
(c) HindiNest.com
1999-2021 All Rights Reserved. |