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भुवन मोहिनी सन्यासिन भुवन मोहिनी रूप गर्विता देहयष्टि अद्भुत अनुरक्ता तन है दुनियाँ का आकर्षण मन से वैरागन परित्यक्ता
दृष्टि जगत की भस्मित करती दग्ध रोम - रोम को करती ज्वाला की नदिया में डोली जोगन सूर्य - पुजारन भोली
सौन्दर्य साधना कर्म भूमि मन की साध मोक्ष को छू ले दुनिया जिसके मद में झूमी वो तप के झूले में झूले
रूप दिया विधना ने जी भर ज्ञान योग की लगन थमा दी सृष्टि अनोखी है पर नश्वर मन न हो उसको रत्तीभर
मंजरी
भान्ती |
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