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चीखते प्रश्न

कैसे कहूँ मैं भारतीय हूँ 

क्यों करूँ मैं गुमान 

आखिर किस बात का 

क्या जबाब दूं उन सवालों का 

जो "इंडियन" शब्द निकलते ही 

लग जाते हैं पीछे ...

वहीँ न

जहाँ रात तो छोड़ो 

दिन में भी महिलायें 

नहीं निकल सकती घर से ?

बसें , ट्रेन तक नहीं हैं सुरक्षित

क्यों दूधमुंही बच्चियों को भी 

नहीं बख्शते वहां के दरिन्दे ?

क्या बेख़ौफ़ खेल भी नहीं सकतीं 

नन्हीं बच्चियाँ ?

कैसे जाते हैं बच्चे स्कूल ?

क्या करती हैं उनकी मम्मियाँ 

क्या रखती हैं हरदम उन्हें 

घर के अन्दर बंद 

या फिर बाहर भी नहीं करतीं 

एक पल को नज़रों से ओझल.

क्या हैं वहां कोई नागरिक अधिकार

अपने किसी नागरिक की क्या 

कोई जिम्मेदारी लेती है सरकार ?

क्यों एक भी मासूम को नहीं बचा पाती 

दुश्मनों के खूनी शिकंजे से ?

कैसे वे मार दिए जाते हैं निर्ममता से 

उनकी जेलों में ईंटों से 

क्या होते है वहां पुलिस स्टेशन?

क्या बने हैं कानून और अदालतें?

या बने हैं सिर्फ मंदिर और मस्जिद 

गिरजे और गुरुद्वारे......

ओह.. बस बस बस ..

चीखने लगती हूँ मैं 

लाल हो जाता है चेहरा 

बखानने लगती हूँ 

अपना स्वर्णिम इतिहास 

सुनाने लगती हूँ गाथाएँ महान 

उत्तर आता है ..

ओह !! इतिहास है 

वर्तमान नहीं

और भविष्य का तो 

पता ही नहीं..

मैं रह जाती हूँ मौन,स्तब्ध 

और चीखने लगते हैं 

फिर से वही प्रश्न..

शिखा वार्ष्णेय

7 दिसम्बर 2014

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